शनिवार, 24 मार्च 2018

झूठा है तेरा वादा...! सरकार के झूठे वादों से भर गई है गंगा

झूठा है तेरा वादा...!
सरकार के झूठे वादों से भर गई है गंगा
♦ एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशक के दौरान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक संरक्षण गुट को गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) के दो चरणों में नदी को साफ करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित की गई। लेकिन फिर भी गंगा मैली की मैली ही रही। कहां गए इतने पैसे? 


झूठा है तेरा वादा, वादा तेरा वादा....इसी तर्ज पर जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने स्वच्छ गंगा मिशन की वॉट लगा दिया है। सरकार की ओर से आयोजित हो रहे गंगा स्वच्छता पखवाड़ा के बहाने सरकार यह बताने की कोशिश कर सकती है कि वह गंगा की सफाई के काम में लगी हुई है। लेकिन बीते करीब चार वर्षों में गंगा सफाई के लिए किए गए कार्यों के बारे में कोई उत्साहवर्धक जानकारी नहीं मिल सकी है। प्रधानमंत्री से लेकर गंगा सफाई मंत्री तक के लंबे-चौड़े वादों के अलावा शायद ही कुछ ऐसा मिले जिससे पता चले कि वाकई इस दिशा में कुछ किया गया है। गंगा सफाई परियोजना की असफलताओं को लेकर लंबे समय से आलोचना ही देखने-सुनने में ज्यादा आती रही है। 2014 में केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार बनने के बाद लोगों में यह उम्मीद जगाने की कोशिश की गई थी कि गंगा का उद्धार होने वाला है। स्वयं देश विनाशक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नमामि गंगे मिशन की शुरुआत बड़े जोर-शोर से की थी। तब गंगा सफाई मंत्री बनी उमा भारती ने भी सबको विश्वास दिलाने की कोशिश की थी कि गंगा जरूर साफ कर दी जाएगी। 
केंद्र में नई सरकार बनने के बाद गंगा सफाई मंत्री उमा भारती ने दावा किया था कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता रहेगी गंगा की सफाई। उन्होंने यह भी कहा था कि हम तीन वर्षों में अंतर पैदा करने का प्रयास करेंगे। तब तीन चरणों वाली कार्ययोजना भी पेश की गई थी। अब चार साल बीतने वाले हैं। अब सरकार की ओर से गंगा स्वच्छता पखवाड़ा आयोजित किया जा रहा है। होना तो यह चाहिए था कि सरकार सबसे पहले यह बताती कि उसके वादों का क्या हुआ और करीब चार सालों में गंगा आखिर कितनी साफ हुई? इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश की जाएगी, तो लोगों को शायद ही कुछ मिल पाए। गंगा सफाई के बारे में सरकार की असफलताओं को लेकर अगर केवल दो बातों को गौर से देखा जाए, तो पता चल जाता है कि सरकार गंगा सफाई के बारे में गंभीर नहीं है। सरकार का ध्यान गंगा की सफाई से कहीं ज्यादा चुनावी लॉलीपॉप देने के लिए प्रचार और जनता के पैसे के अपव्यय पर है। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से सरकार से पूछे गए तीखे सवाल हैं जिनका कोई सटीक जवाब भी सरकार नहीं दे सकी थी। सितंबर 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट ने गंगा की सफाई पर अपेक्षित ध्यान न देने पर केंद्र सरकार की जमकर आलोचना की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा था कि ऐसे तो गंगा की सफाई में दो सौ साल लग जाएंगे। तब क्या आने वाली पीढ़ियां गंगा को कभी उसकी पुरानी गरिमा के साथ देख पाएंगी? सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि वह गंगा को उसी गौरवपूर्ण रूप में वापस लाए। इस आशय की तल्ख टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से गंगा सफाई पर दिए गए हलफनामे पर की थी। 
यह ध्यान में रखने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट में गंगा की सफाई से संबंधित मामला 1985 से चल रहा है। फिलहाल ऐसी स्थिति तब है जब केंद्र में एनडीए की सरकार है और वह खुद गंगा को न केवल अपनी मां कहती है, बल्कि सफाई को लेकर प्रतिबद्ध बताती है। बीजेपी तो अपने चुनावी घोषणापत्र में भी गंगा की सफाई के प्रति प्रतिबद्धता जता चुकी है। इसके बाद सन 2015 में इस सरकार ने फिर सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि गंगा की सफाई इसी कार्यकाल में पूरी हो जाएगी। केंद्र सरकार 2018 तक यह महत्वाकांक्षी परियोजना पूरी कर लेगी। अब तो 2018 भी आ गया, लेकिन गंगा वैसी ही रह गई जैसी पहले थी या उससे भी ज्यादा गंदी हो गई। इसके अतिरिक्त नमामि गंगे के लिए आवंटित धन और उसके खर्च को लेकर भी चौंकाने वाली जानकारी सामने आ चुकी है। इससे पता चलता है कि इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर करीब चार सालों में क्या-क्या किया गया। 
जून 2017 में आरटीआई के माध्यम से मिली एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशक के दौरान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक संरक्षण गुट को गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) के दो चरणों में नदी को साफ करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित की गई। लेकिन फिर भी गंगा मैली की मैली ही रही। कहां गए इतने पैसे? मतलब साफ है कि इन पैसों को बंदरबाट कर लिया गया है। सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसमें से भी सफाई पर कितना खर्च किया गया होगा। संभव है, इसका अधिकाधिक हिस्सा इसी तरह के पखवाड़ों और यात्राओं पर खर्च किया गया हो
अब इस सरकार का कार्यकाल एक साल ही बचा है। जब गंगा सफाई के परिणाम सामने आने चाहिए थे, तब सरकार पखवाड़ा आयोजित कर रही है। इसका मतलब यह है कि अपने वादों और दावों को सरकार पूरी तरह भुला चुकी है। गंगा की सफाई उसका मकसद है ही नहीं, केवल गंगा के नाम पर वोट बनाना ही मोदी सरकार का असली मकसद है। इस तरह इस परियोजना का हश्र भी वही होता दिख रहा है जैसा इस सरकार की बाकी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का हो रहा है। साफ है कि वादे करने में चाहे जितनी भी भाजपा आगे रही हो, लेकिन वादे पूरे करने के मामलों में फिसड्डी ही साबित हुई है। गंगा को निर्मल बनाने वाली ‘नमामि गंगे परियोजना’ भी सरकार की विफलता की ही कहानी कह रही है। यही कारण है कि इस सरकार से सभी का बहुत तेजी से मोहभंग हो रहा है।

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