शनिवार, 24 मार्च 2018

पानी के संकट से जूझता भारत, गरीबों की बजाय ‘पानी’ पर पूंजीपतियों का कब्जा

पानी के संकट से जूझता भारत
गरीबों की बजाय ‘पानी’ पर पूंजीपतियों का कब्जा 


दै.मू.ब्यूरो/यूनेस्को
❍ सरकार पानी के निजीकरण की ओर बढ़ चुकी है, जिससे पानी गरीब की पहुंच से बाहर हो गयी है और पानी पर अमीर, पूंजीपतियों का कब्जा हो चुका है।
आज देश का पानी संकट में हैं और सरकारें पानी संकट से छुटकारा के उपाय करने के बजाय कॉरपोरेट घरानों पर उपकार करने में व्यस्त हैं। इस बात से उनको क्या लेना-देना है, उनको तो महंगी-महंगी बंद बोतलों का पानी पीना है। इन बातों से तो उनको लेना-देना है जो सिर्फ पानी पीकर भूख और प्यास की आग बुझाते हैं।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि पानी की समस्या ने भारत के कई राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया है। जमीन के नीचे पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है, साल दर साल गर्मी का पारा चढ़ रहा है और देश, सूखे की गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है। हाल ही में आयी वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि अगर नीति बनाने वालों ने जल संसाधन की व्यवस्था पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया तो भारत के ज्यादातर बड़े शहर 2050 तक सूख जाएंगे। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक भारत में भारी गंभीर जल संकट आने वाला है। अनुमान है कि कुछ ही सालों में देश के जल संसाधनों में 40 फीसदी की कमी आनी तय है। भारत में प्रति व्यक्ति के हिसाब से सालाना पानी की उपलब्धता तेजी से नीचे गिर रही है। 2001 में यह 1,820 घन मीटर थी, जो 2011 में 1,545 घन मीटर ही रह गयी। 2025 में इसके घटकर 1,341 घन मीटर और 2050 तक 1,140 घन मीटर हो जाने की आशंका जताई गई है। अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ‘वाटर एड’ का कहना है कि दुनिया का हर दसवां प्यासा व्यक्ति ग्रामीण भारत में रहता है। पीने के साफ पानी की कमी की समस्या भले ही वैश्विक स्तर पर हो, लेकिन भारत के लिए यह संकट कितना भयावह है इसे सिर्फ एक आंकड़े से समझा जा सकता है। देश की 67 फीसद आबादी गांवों में रहती है, यानी 83 करोड़ 80 लाख लोग ग्रामीण भारत का हिस्सा हैं। इनमें से छह करोड़ तीस लाख लोगों को पानी मयस्सर नहीं है। इन प्यासे लोगों की संख्या ब्रिटेन की कुल आबादी के बराबर है और इन लोगों को अगर एक लाइन में खड़ा कर दिया जाए तो न्यूयार्क से सिडनी और फिर सिडनी से न्यूयार्क तक दो लाइनें बन सकती हैं। पिछले साल सरकार ने भी माना था कि देश की एक चौथाई आबादी सूखा पीड़ित है। 
आपको बताते चलें कि यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस साल में भारत में भूजल स्तर औसतन 65 फीसद तक गिरा है। उत्तर प्रदेश में 89 फीसद कुओं का जल-स्तर पिछले दस साल में लगातार घटा है। तेलंगाना में 88 फीसद, बिहार में 78 फीसद, उत्तराखंड में 75 फीसद और महाराष्ट्र में 74 फीसद कुएं जल-स्तर घटने की वजह से सूख गए हैं। राजधानी दिल्ली में लगातार गिरता भूजल-स्तर खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है, अब स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। इसका सबसे अहम कारण कंपनियों द्वारा पानी का दोहन है। कंपनियों पर पानी दोहन को लेकर स्टॉक होम वाटर प्राइज से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा कोका कोला, पेप्सी सहित अन्य कंपनियों को पानी दोहन का लाइसेंस दिए जाने पर कड़ा विरोध दर्ज कराया था। उन्होंने कहा था कि सरकार पानी के निजीकरण की ओर बढ़ चुकी है, जिससे पानी गरीब की पहुंच से बाहर हो रहा है और पानी पर अमीर, पूंजीपतियों  का कब्जा होना तय है। बड़ी-बड़ी कंपनियां नर्मदा नदी से लेकर भूगर्भ जल का दोहन करने में लगी हैं, इसके चलते आने वाले समय में भूगर्भ जल लगातार कम होता जा रहा है। इससे सबसे ज्यादा मुश्किल गरीबों के लिए उम्पन्न होने वाली है। 

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