मंगलवार, 27 मार्च 2018

कोबरापोस्ट का सनसनीखेज खुलासा, भारत में पैसों की खातिर खबरें छापते हैं कई मीडिया संस्थान

कोबरापोस्ट का सनसनीखेज खुलासा
पत्रकारिता की प्रतीष्ठा को दाव पर लगाती मीडिया
भारत में पैसों की खातिर खबरें छापते हैं कई मीडिया संस्थान




दै.मू.ब्यूरो/नई दिल्ली
खुफिया कैमरे की मदद से किए गए कोबरापोस्ट के स्टिंग ‘ऑपरेशन 136’ में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान सत्ताधारी दल के लिए चुनावी हवा तैयार करने को राजी होते नजर आ रहे हैं। अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले कोबरापोस्ट के हालिया सनसनीखेज खुलासे ने देश के मीडिया जगत की पोल खोल कर रख दी है।
कोबरा पोस्ट ने ऑपरेशन 136 के नाम से किए गए स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से मीडिया जगत के उस स्याह पक्ष का पर्दाफाश किया है जहां कहा जाता है कि पैसों के लिए देश का मीडिया अपनी आवाज और कलम का सौदा करके पत्रकारिता की निष्पक्षता से भी समझौता कर लेता है। गोदी मीडिया के इस दौर में कोबरापोस्ट ने ‘गोदी मीडिया’ शब्द को सार्थक सिद्ध कर दिया है। साथ ही विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का दुष्प्रचार करके चरित्र हनन करने और उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाकर उनकी छवि को धूमिल करके सत्तारूढ़ दल के पक्ष में माहौल बनाने की सौदेबाजी का भी खुलासा हुआ है। यहां तक की सत्ताधारी पार्टी के लिए इन लोगों ने पत्रकारिता की प्रतिष्ठा को दांव पर रखते हुए नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वालों के खिलाफ खबरें बनाने पर भी अपनी रजामंदी जाहिर की। देशभर में आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियों द्वारा उकसाया हुआ बताकर सरकार की नीतियों का महिमामंडन करने के लिए भी ये सहमत हो गए, तो वहीं न्यायपालिका के फैसलों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर लोगों के सामने पेश करने में भी इनको कोई गुरेज नहीं था। इस जांच में पाया गया है कि किस तरह भारतीय मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर प्रेस की आजादी का गलत फायदा उठाया है और अवांछित सामग्री चलाकर पत्रकारिता के पेशे पर सवालिया निशान लगा रही है। कोबरा पोस्ट का यह खुलासा खोजी प्रत्रकारिता के माध्यम से हुआ है। इस दौरान देश के करीब तीन दर्जन बड़े मीडिया संस्थानों के वरिष्ठ और जिम्मेदार अधिकारियों से उन्होंने मुलाकात की और एक खास तरह का मीडिया कैंपेन चलवाने के लिए 6 से 50 करोड़ रुपये तक का अपना बजट बताया। कोबरा पोस्ट ने ऑपरेशन 136 का अभी पहला भाग जारी किया है, जिसमें कुल 16 मीडिया संस्थानों के नाम सामने आए हैं, जिनमें अमर उजाला, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, इंडिया टीवी, सब नेटवर्क, डीएनए (डेली न्यूज एंड एनालिसिस) और यूएनआई जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इनके अलावा स्कूप व्हूप, रेडिफ डॉट कॉम, 9एक्स टशन, समाचार प्लस, एचएनएन लाइव 24×7, स्वतंत्र भारत, इंडिया वॉच, आज हिंदी डेली, साधना प्राइम न्यूज को भी सौदेबाजी में लिप्त पाया गया है। इन सभी मीडिया संस्थानों से जुड़े बड़े पदों पर काबिज लोगों की बातचीत के अंश खुफिया ऑपरेशन में दिखाए गए हैं। जिस एजेंडे को लेकर कोबरा पोस्ट ने मीडिया संस्थानों से संपर्क साधा था, उनमें चार बिंदु शामिल थे। पहला, मीडिया अभियान के शुरुआती और पहले चरण में हिंदुत्व का प्रचार करना, जिसके तहत धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाएगा। दूसरा, इसके बाद विनय कटियार, उमा भारती, मोहन भागवत और दूसरे हिंदुवादी नेताओं के भाषणों को बढ़ावा देकर सांप्रदायिक तौर पर मतदाताओं को जुटाने के लिए अभियान खड़ा किया जाएगा। तीसरा, जैसे ही चुनाव नजदीक आते हैं, राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को टारगेट किया जाएगा। मायावती और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को बुआ और बबुआ कहकर जनता के सामने पेश किया जाएगा, ताकि चुनाव के दौरान जनता उन्हें गंभीरता से न ले और मतदाताओं का रुख अपने पक्ष मे किया जा सके। चौथा, मीडिया संस्थानों को यह अभियान उनके पास उपलब्ध सभी प्लेटफॉर्म पर जैसे-प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो, डिजिटल, ई-न्यूज पोर्टल, वेबसाइट के साथ-साथ सोशल मीडिया जैसे-फेसबुक और ट्विटर पर भी चलाना है। कोबरा पोस्ट के अनुसार, इस एजेंडे पर उसने जिन मीडिया संस्थानों से संपर्क साधा, लगभग सभी ने यह अभियान चलाने पर सहमति दिखाई।
सभी हिंदुत्व को अध्यात्मवाद और धार्मिक प्रवचन की तरह बढ़ावा देने के लिए सहमत हुए। सांप्रदायिक पृष्ठभूमि के आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए एक खास विज्ञापन सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत हुए। अपने मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए सत्तारूढ़ दल के लिए उसके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को बदनाम करने और उनकी छवि खराब करने पर भी उन्होंने सहमति जताई। वहीं, कई मीडिया संस्थान सौदेबाजी के बदले नकदी भुगतान यानी कि काला धन भी स्वीकार करने के लिए तैयार थे। वहीं, कुछ संस्थानों के मालिक और कर्मचारियों ने बताया कि वे स्वयं संघ से जुड़े रहे हैं और हिंदुत्ववादी विचारधारा से प्रभावित हैं लिहाजा उन्हें इस अभियान पर काम करने में खुशी होगी, तो कुछ ऐसे भी संस्थान थे जो अपने प्रकाशनों में सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में कहानियां और खबरें लगाने के लिए भी सहमत हुए। शर्त के अनुसार सभी ने यह अभियान उनके पास उपलब्ध तमाम प्लेटफॉर्म पर चलाने की हामी भरी। कुछ ऐसे भी पाए गए जिन्होंने अपने संस्थान के अलावा अन्य पत्रकारों की मदद से दूसरे संस्थानों में भी सत्तारूढ़ दल का समर्थन करने वाली सामग्री चलवाने के लिए पूरा मीडिया प्रबंधन करने की पेशकश की। यहां तक कि ये संस्थान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार मे भाजपा के सहयोगी दलों के बड़े नेताओं जैसे अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और उपेन्द्र कुशवाहा के खिलाफ भी खबरें चलाने के लिए तैयार थे। वहीं कुछ मीडिया संस्थान प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे, कामिनी जयसवाल और इंदिरा जय सिंह जैसे कानूनी जानकार और नागरिक समाज के बीच जाने-माने चेहरों को बदनाम करने पर भी सहमत दिखे। साथ ही कुछ संस्थानों ने आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियो के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए भी सहमति जताई। कोबरा पोस्ट ने कहा है कि स्टिंग ऑपरेशन में उसके पत्रकार को उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर का भी सहयोग मिला। गौरतलब है कि ऑपरेशन 136 के दौरान खोजी पत्रकार ने खुद को सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई का भी अध्यक्ष बताया था। इस पूरी तहकीकात को ऑपरेशन 136 नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि वर्ष 2017 के प्रेस इंडेक्स में भारत विश्व में 136वें पायदान पर है।

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