पेटीएम मत करो
दै.मू.ब्यूरो/नई दिल्ली
अगर अलीबाबा-पेटीएम इस मकसद में कामयाब हो जाता है, तो भारत की पूरी अर्थव्यवस्था इस चीनी कंपनी के हाथ की कठपुतली बन जाएगी. अलीबाबा ने सिर्फ पैसा ही नहीं लगाया है, बल्कि पूरा ऑपरेशन भी उनके हाथ में है. हकीकत ये है कि अलीबाबा ने 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश किया है, साथ ही 20 टेक्निकल सपोर्ट टीम को भी भारत भेजा है, जो पेटीएम के हर पहलू का ऑपरेशन देख रही है. सवाल तो ये भी है कि पेटीएम ने ऐसी क्या टेक्नोलॉजी अपनाई है, जिसे ऑपरेट करने वाले भारत में नहीं हैं? चीन से आई अलीबाबा की टेक्निकल टीम न सिर्फ ऑपरेशन देख रही है, बल्कि पेटीएम के हर प्रोडक्ट को भी तैयार कर रही है. यही टीम पेटीएम के टेक्निकल सिस्टम को तैयार कर रही है. मतलब यह कि सर्वर से लेकर पूरा हार्डवेयर तक चीन से मंगाया गया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अलीबाबा की टीम ही पेटीएम के ऑपरेशन के रिस्क कंट्रोल कैपेसिटी का विकास कर रही है. रिस्क कंट्रोल कैपेसिटी किसी भी ऑनलाइन कंपनी की रीढ़ की हड्डी होती है. इसे कंपनी के कर्मचारियों से भी गुप्त रखा जाता है. पेटीएम ने इतने संवेदनशील काम की जिम्मेदारी भी चीनी कंपनी को सौंप रखी है. इतना ही नहीं, पेटीएम के मार्केटिंग कैंपेन को भी यही चीनी कंपनी चला रही है. इन सब जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अलीबाबा के भूतपूर्व डायरेक्टर (थोक व्यापार) भूषण पाटील को पेटीएम का वाइस-प्रेसीडेंट बनाया है. अब सवाल यह है कि अलीबाबा की तकनीक, अलीबाबा के लोग, अलीबाबा का प्रोडक्ट, अलीबाबा का सिस्टम और खतरे से निपटने की जिम्मेदारी३ यानी सबकुछ अलीबाबा के हाथ में है तो पेटीएम को तो यही कहना पड़ेगा कि यह कंपनी चीनी कंपनी अलीबाबा के हाथों की एक कठपुतली मात्र है. कुछ कंपनियां देश की जनता को लूटने में लगी हैं. सरकार ऐसी कंपनियों को बढ़ावा दे रही है, जो दुश्मन देशों की कंपनियों के साथ मिल कर देश की जनता को चूना लगा रही है.सरकार, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की मिलीभगत से इस कंपनी को खुली छूट मिली हुई है. चौथी दुनिया ने पेटीएम से जुड़े विवाद की छानबीन की. इस तहकीकात में कई हैरतअंगेज बातें सामने आई हैं, जो पेटीएम और उसके मालिक पर खतरनाक सवालिया निशान खड़ा करती हैं. कैशलेस भुगतान का धंधा करने वाली कंपनियां लोगों को अपने जाल में फांस रही हैं. लोगों को गुमराह करने में पेटीएम सबसे आगे है.
टीवी और अखबारों में बड़े-बड़े एडवर्टिजमेंट देकर पेटीएम लोगों को गुमराह कर रही है. लोगों को गुमराह करने की जरूरत इसलिए है क्योंकि भारत में जिस स्तर पर ये काम करना चाहती हैउसके लिए पेटीएम के पास न तो टेक्नोलॉजी है, न ही संसाधन और न ही नेटवर्क. इसलिए पेटीएम ने चीन की एक विशालकाय कंपनी के साथ हाथ मिलाया है.देश का कानून नए जमाने के ऑनलाइन अपराध के मामलों में सजा दिलाने के लिए काफी नहीं है. इसका मतलब यही है कि हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं कि लोगों के पैसे की गारंटी लेने वाला कोई नहीं है. सामान्य स्थिति में हर रुपये की गारंटी भारत सरकार की होती है. लेकिन जब हम कैशलेस हो जाएंगे, तो लोगों के पैसे की गारंटी कौन देगा? यह सवाल गंभीर इसलिए है, क्योंकि इससे देश में आत्महत्या का एक नया दौर शुरू होगा.
क्या मोदी सरकार जो इन कंपनियों के प्रचार में लिप्त है, वो लोगों के आत्महत्या की जिम्मेदारी लेगी. हकीकत तो ये है कि ऐसी स्थिति में सरकार भी कुछ नहीं कर पाएगी क्योंकि पैसे के भुगतान पर पूरा नियंत्रण चीन की एक कंपनी का होगा. अलीबाबा चीन की कंपनी है, जो हिंदुस्तान में पेटीएम नामक कंपनी के जरिए मोबाइल-पेमेंट सर्विस में घुस चुकी है. अलीबाबा और पेटीएम के बीच 2015 में समझौता हुआ. अलीबाबा की तुलना में पेटीएम एक छोटी कंपनी है. चीनी मीडिया के मुताबिक, अलीबाबा की पेटीएम में 40 फीसदी हिस्सेदारी है. अब सवाल ये है कि पेटीएम अधिकारी और मीडिया अलीबाबा के निवेश को सिर्फ 25 फीसदी ही क्यों बता रहा है? इस झूठ का प्रचार क्यों किया जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि पेटीएम ने हर अखबार और टीवी चौनलों पर अपने विज्ञापन देकर सच पर पर्दा डाल दिया है? पेटीएम और अलीबाबा का ये रिश्ता सिर्फ पैसे का नहीं है. अलीबाबा सिर्फ एक निवेशक नहीं है, बल्कि हिंदुस्तान में पेटीएम के पूरे कारोबार की चाबी इसके हाथ में है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक, मोबाइल के जरिए कैशलेस भुगतान के बाजार पर 74 फीसदी अलीबाबा और पेटीएम का कब्जा हो चुका है. अलीबाबा के जनरल मैनेजर चेन यान ने हाल में एक चायनीज पत्रिका को बताया कि अलीबाबा पिछले एक साल से पेटीएम के साथ टेक्नोलॉजी और बिजनेस मॉडल साझा कर रहा है. मजेदार बात ये है कि अलीबाबा जिस तकनीक के तहत चीन में मोबाइल पेमेंट की सुविधा दे रहा है, वही तकनीक पेटीएम भारत में अलीबाबा की मदद से भारत में लागू कर रहा है.
अलीबाबा और पेटीएम के समझौते का एक और खतरनाक पहलू ये है कि दोनों कंपनियां दोनों देशों के उपभोक्ताओं और विक्रेताओं को अपने नेटवर्क से जोड़ेंगी. अलीबाबा के वरिष्ठ टेक्निकल एक्सपर्ट याओ मिन के मुताबिक, पेटीएम ने अलीबाबा के जिस तकनीक को अपनाया है, उससे चीनी उपभोक्ता भविष्य में भारत में क्यूआर कोड के जरिए भुगतान करने में सक्षम हो जाएगा. इसका मतलब यह है कि अब कोई भी व्यक्ति या बिजनेसमैन, जो चीन से कोई सामान खरीदता या बेचता है, वो पेटीएम के जरिए सीधे भुगतान कर सकता है. यह फेमा का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि विदेश जाने वाला हर व्यक्ति कितना पैसा बाहर ले जा सकता है, उसकी एक सीमा है. अगर अलीबाबा और पेटीएम के जरिए भुगतान करने की व्यवस्था कायम हो जाती है, तो इस सीमा का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा. लोग चीन जाकर पेटीएम के जरिए जितना मन चाहे उतना पैसा भुगतान कर सकते हैं.
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