मोदीराज में ‘अर्धसैनिक बल’ छोड़ने वालों की संख्या चार गुना बढोत्तरी
2017 में 14,587 जवानों ने छोड़ी नौकरी
देश में एक तरफ मोदी सरकार सैनिकों को बेहतर सुविधाएँ देने का दावा कर रही है। वहीं दूसरी तरफ इस सरकार के राज सबसे ज्यादा जवानों द्वारा नौकरी छोड़ने के मामले सामने आए हैं। ये आकड़े मोदी सरकार के तथाकथित राष्ट्रवादी दावों पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं।
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को छोड़कर जा रहे जवानों और अधिकारियों की संख्या में 2015 के बाद लगभग चार गुना बढ़ोतरी हो गई है। द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने संसद में एक ताजा रिपोर्ट पेश करते हुए यह जानकारी दी है।रिपोर्ट में बताया गया है कि 2017 में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स) में काम कर रहे 14587 लोगों ने या तो इस्तीफा दे दिया या फिर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुन लिया। जबकि 2015 में यह आंकड़ा 3422 था।2015 में कॉन्स्टेबल या दूसरे छोटे पदों पर काम करने वाले सीआरपीएफ के 1156 कर्मचारियों ने नौकरी छोड़ी थी। 2017 में यह आंकड़ा 4154 हो गया। नौकरी छोड़ने वालों में कई गजेटेड अधिकारी भी शामिल हैं। बीएसएफ में इस तरह के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। उसके करीब 11198 जवान या अधिकारी 2017 में उसे छोड़ गए।
बता दें, कि पिछले साल बीएसएफ के एक जवान तेज बहादुर ने बीएसएफ में खराब सुविधाओं की शिकायत की थी। उसने एक विडियो सोशल मीडिया पर डाला था जिसमें उसने पानी जैसी दाल मिलने और जली हुई रोटियां मिलने का आरोप लगाया था। एक तरफ सरकार दावा करती रही है कि उसने केंद्रीय सशस्त्र बलों और पुलिस बल के कल्याण के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। लेकिन इन आंकड़ों को देखें कहानी दावों के विपरीत ही नजर आती है।
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