अन्न की बर्बादी और भूखों मरने की नौबत
भूख से 12 करोड़ से अधिक लोगों के मरने का खतरा-संयुक्त राष्ट्र
दै.मू.एजेंसी/यूएस
भारत में हर दिन लाखों करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी नसीब नहीं होती, फिर भी भारत जैसे देश में खाने की बर्बादी दोनों हाथों से हो रही है। ताजा रिपोर्ट कहती है कि हम जितना एक साल में अनाज बर्बाद कर देते हैं, उतना ब्रिटेन उगा भी नहीं पाता है।
दैनिक मूलनिवासी नायक विशेष संवाददाता ने विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा जारी एक सनसनीखेज खबर का हवाला देते हुए बताया कि दुनियाभर में भूख के कारण 12 करोड़ लोग मरने के कगार पर पहुंच गए हैं। इन लोगों को जल्द ही भोजन नहीं मिला तो इनकी मौत होने का खतरा प्रबल हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एजेंसी के प्रमुख डेविड बीसली ने यह जानकारी देते हुए शुक्रवार को सुरक्षा परिषद को बताया कि भूख से जूझ रहे तकरीबन तीन करोड़ 20 लाख लोग चार संघर्षरत देश सोमालिया, यमन, दक्षिण सूडान और उत्तर पूर्व नाइजीरिया में रह रहे हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक ने कहा कि भूख और संघर्ष के बीच सम्बन्ध विध्वंसकारी है, संघर्ष से खाद्य असुरक्षा पैदा होती है और खाद्य असुरक्षा से अस्थिरता तथा तनाव उत्पन्न होता है, जिससे हिंसा फैलती है। बीसली ने कहा कि वैश्विक रूप से लंबे समय से भूखे 81 करोड़ 50 लाख लोगों में से 60 फीसदी लोग संघर्षरत इलाकों में रहते हैं और उन्हें यह पता नहीं होता कि अगली बार खाना कहां से मिलेगा?
संयुक्त राष्ट्र में मानवतावाद प्रमुख मार्क लोकोक ने कहा कि इस गंभीर चेतावनी के बावजूद पिछले कुछ दशकों में अकाल की स्थिति में सुधार देखा गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। वहीं भारत की स्थिति और ज्यादा बेहद खतरनाक है। उन्होंने कृषि उत्पादन और उत्पादकता में हुए विस्तार और गरीबी का आंकलन करते हुए कहा कि एक तरफ करोड़ों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन खाना बर्बाद किया जा रहा है। दुनिया भर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई यानी लगभग 1 अरब 30 करोड़ टन बर्बाद हो जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे दो अरब लोगों की खाने की जरूरत पूरी हो सकती है। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में बढ़ती संपन्नता के साथ खाना भी फेंकने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यही कारण है कि विश्व भूख सूचकांक में 2017 के अनुसार भारत का 100वां स्थान है। विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का हर सातवां व्यक्ति भूखा सोता है। भारत में हर साल 25.1 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होता है, लेकिन हर चौथा भारतीय भूखा सोता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के कारण खराब हो जाती हैं।
विश्व खाद्य संगठन के मुताबिक भारत में हर साल पचास हजार करोड़ का भोजन बर्बाद हो जाता है, जो कि देश के कुल खाद्य उत्पादन का 40 फीसद है। आज देश पानी की कमी से जूझ रहा है लेकिन अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन को पैदा करने में इतना ही पानी व्यर्थ चला जाता है जिससे 10 करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। एक आकलन के मुताबिक अपव्यय के बराबर की धनराशि से 05 करोड़ बच्चों की जिंदगी संवारी जा सकती है। 40 लाख लोगों को गरीबी के चंगुल से मुक्त किया जा सकता है और 05 करोड़ लोगों को आहार सुरक्षा की गारंटी दी जा सकती है। हैरानी की बात तो यह है कि सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, इसके बाद भी 4.08 लाख परिवार कूड़ा बिन कर तो 6.68 लाख परिवार भीख मांग कर अपना गुजारा करते हैं। ये तथ्य भी विचारणीय हैं कि देश में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार होती है। नष्ट हुए गेहूं की कीमत लगभग 50 हजार करोड़ होती है और इससे 30 करोड़ लोगों को साल भर भरपेट खाना दिया जा सकता है।
आपको बता दें कि 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है, क्योंकि उसे रखने के लिए उचित भंडारण की सुविधा नहीं है। देश के कुल उत्पादित 40 फीसदी फल-सब्जी समय पर मंडी तक नहीं पहुंच पाने के कारण सड़-गल जाता है। औसतन हर भारतीय एक साल में 06 से 11 किलो अन्न बर्बाद करता है। देश में जितना अन्न एक साल में बर्बाद होता है उसकी कीमत से ही कई सौ कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकते हैं जो फल-सब्जी को सड़ने से बचा सकें। एक साल में जितना सरकारी खरीद का धान व गेहूं खुले में पड़े होने के कारण नष्ट हो जाता है, उससे ग्रामीण अंचलों में 05 हजार गोदाम बनाए जा सकते हैं। भोजन का फेंका जाना पहली निगाह में भले ही मामूली-सी बात प्रतीत हो या फिर एक बड़े कार्यक्रम की जरूरत बता कर इससे पल्ला झाड़ लिया जाए, लेकिन यह एक गंभीर मसला है। इस संदर्भ में विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा संभव नहीं है। भोजन के अपव्यय से जल, जमीन और जलवायु के साथ साथ जैव-विविधता पर भी बेहद नकारात्मक असर पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्पादित भोजन, जिसे खाया नहीं जाता, उससे प्रत्येक वर्ष रूस की वोल्गा नदी के जल के बराबर जल की बर्बादी होती है। अपव्यय किए जाने वाले इस भोजन की वजह से तीन अरब टन से भी ज्यादा मात्रा में खतरनाक ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। दुनिया की लगभग 28 फीसद भूमि, जिसका क्षेत्रफल 1.4 अरब हेक्टेयर है, ऐसे खाद्यान्न को उत्पन्न करने में व्यर्थ जाती है। यह रिपोर्ट खतरे की घंटी है, जो बताती है कि सरकार की घोर लापरवाही के कारण, पैदा किए जाने वाले अनाज का एक तिहाई हिस्सा यानी करीब 1.3 अरब टन अनाज बर्बाद चला जाता है, वहीं 87 करोड़ लोग भूखे सोने के लिए विवश हैं।
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