चौकीदार से बड़ा चोर
नीरव मोदी ‘गिरोह’ ने महज तीन दिन में हड़प लिए 03,09,58,06,847 रुपए
सत्ता तक सीधी पहुंच रखने वाले पूंजीपति बैंकों से साठगांठ करके बड़े-बड़े घोटाले कर रहे हैं और मोदी सरकार इसे रोकने में नाकाम साबित हो रही है। पिछली सरकारों से तुलना करने से भ्रष्टाचार कम नहीं होता, बल्कि यह नाकामियां छिपाने का एक अच्छा उपाय है। नीरव मोदी ‘गिरोह’ के घोटाले के प्रसंग में भ्रष्टाचार की परतें खोलती यह रिपोर्ट। पंजाब नेशनल बैंक घोटाले पर अखबारों में, समाचार चौनेलों पर और सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा, दिखाया और कहा जा चुका है लेकिन बातें इधर-उधर छितराई या बिखरी रह गईं, कोई सिरा कहीं गया तो कोई सिरा कहीं। पंजाब नेशनल बैंक घोटाला कहें या नीरव मोदी तिकड़ी घोटाला, इसमें कई कड़ियों को एक साथ मिला कर देखने की जरूरत है। भाजपा विरोधी राजनीतिक खेमा इसे नरेंद्र मोदी सरकार से जोड़ रहा है तो कांग्रेस विरोधी सियासी दल इसे कांग्रेस से जोड़ रहे हैं, लेकिन इस जोड़ा-जोड़ी की सियासत से अलग, तथ्यों के आधार पर हमें बिखरे हुए तमाम सिरों को सामने रखकर उन्हें समग्रता से देखने की कोशिश करनी चाहिए।
केंद्र में सरकार भारतीय जनता पार्टी की है तो किसी भी घोटाले के होने या किसी भी घोटालेबाज के फरार होने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर ही आएगी, इस जिम्मेदारी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग नहीं सकते। भले ही उनके चहेते वित्त मंत्री अरुण जेटली वास्तविकताओं के सतह पर आने से डरकर मुंह छुपाए बैठे हों। सोशल मीडिया पर इस घोटाले के प्रसंग में नरेंद्र मोदी के कई पुराने बयान वायरल हुए, मसलन ‘भाइयो-बहनों, आप मुझे प्रधानमंत्री मत बनाएं, मुझे चौकीदार बनाएं, मैं दिल्ली जाकर चौकीदार की तरह बैठूंगा, आप मेरे जैसा चौकीदार बिठाओगे तो हिंदुस्तान की तिजोरी पर कोई पंजा नहीं पड़ने दूंगा’। ‘मैं वादा करता हूं कि चाहे कोई नया कानून बनाना पड़े या किसी अन्य देश के साथ समझौता करना पड़े, मैं कालाधन भारत वापस लाऊंगा और देश का धन भारत से बाहर नहीं जाने दूंगा’। ‘जिन लोगों ने देश को लूटा है, वे चाहे जितने भी ताकतवर हों, उन्हें देश के लोगों को जवाब देना ही होगा’। ‘मैंने जो रास्ता चुना है, हो सकता है इसके लिए मुझे राजनीतिक कीमत चुकानी पड़े, लेकिन मैं इससे पीछे नहीं हटूंगा। मैं इसके लिए कोई भी राजनीतिक कीमत चुकाने को तैयार हूं’ वगैरह, वगैरह।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन बयानों का यहां प्रसंग बनता है, ताकि वे अपने बयानों से या तो इन्कार कर सकें या अब तक फेल साबित हुए अपने बयानों पर आगे खरा उतरने का फिर से संकल्प ले सकें। सत्ता में आने के बाद से जो हालात सामने आए हैं उसमें मोदी के बयानों का विरोधाभास ही देश के सामने प्रस्तुत हुआ है। ललित मोदी, विजय माल्या, पनामा गेट, नीरव मोदी और ऐसे कई माध्यमों के जरिए देश का अकूत धन विदेश चला गया और देशवासी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन सख्त बयानों की असलियत ही टटोलते रह गए। किसी व्यक्ति के विदेश भाग जाने और उसे फिर से पकड़ कर वापस लाने का मसला उतना महत्वपूर्ण नहीं है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि जो धन विदेश चला गया उसे वापस कैसे लाया जाए? केंद्र सरकार को विदेश गया धन वापस लाने और भविष्य में भारत का धन विदेश न जाने पाए उसके छेद बंद करने के उपायों पर शीघ्रता से काम करना चाहिए। अर्थ और बैंकिंग विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की नासमझ नीतियों के कारण देश का बैंकिंग सिस्टम ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच गया है, लेकिन प्रधानमंत्री इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।
बड़े-बड़े वित्तीय घोटाले बैंकों के माध्यम से हो रहे हैं, लेकिन बैंकों की शीर्ष स्तरीय साठगांठ और मिलीभगत पर उतनी चर्चा नहीं हो रही, जितनी होनी चाहिए। मीडिया भी विजय माल्या और नीरव मोदी की फरारी पर ताबड़तोड़ लगा है, लेकिन उन बैंकों और बैंक अधिकारियों की संलिप्तता पर कुछ नहीं बोल रहा है जो घोटालों में बराबर से शरीक रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी या वित्तमंत्री जेटली भी बैंकों के भ्रष्टाचार पर चुप हैं और भ्रष्टाचार के कारण बैंकों में हो रहे घाटों की भरपाई करने के लिए देश में नोटबंदी लागू कर देते हैं। अकूत भ्रष्टाचार और घोटालों में बैंकों की आपराधिक भूमिका पर प्रधानमंत्री या वित्तमंत्री की चुप्पी या तो मिलीभगत है या कोई भय? इन दो स्थितियों के अलावा कोई तीसरी स्थिति हो ही नहीं सकती है लिहाजा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को देश के सामने आकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
अखबारों और समाचार चौनेलों पर तो नहीं, लेकिन सोशल मीडिया पर नीरव मोदी के भाई नीशल मोदी की मुकेश और अनिल अम्बानी से नजदीकी रिश्तेदारी, नीरव मोदी की एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली से नजदीकी तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, पी.चिदंबरम और सोनिया के दामाद रॉबर्ड वाड्रा से करीबी के तमाम चर्चे सरगर्म हैं। इन मुद्दों पर सम्बद्ध लोगों को पब्लिक फोरम पर आकर सफाई पेश करनी ही चाहिए, लेकिन वे चुप हैं। मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी को भी समाज के सामने आकर यह बताना चाहिए कि नीशल मोदी उनकी भांजी इशिता (धीरूभाई अम्बानी की बेटी दीप्ति सलगांवकर की बेटी) का पति है कि नहीं। पंजाब नेशनल बैंक के मुम्बई जोनल ऑफिस से सीबीआई को दी गई तहरीर में भी और सीबीआई की तरफ से दर्ज एफआईआर में भी नीरव मोदी के साथ-साथ उसका भाई नीशल मोदी नामजद अभियुक्त है, ऐसे में अम्बानी परिवार से सम्बन्धों को लेकर सधी चुप्पी संदेहास्पद है।
आपको यह बताते चलें कि नीरव मोदी, उसकी पत्नी अमि नीरव मोदी, भाई नीशल मोदी और मामा मेहुल चीनूभाई चोकसी की साझेदारी की तीन कंपनियों ‘डायमंड आर यूएस’, ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ और ‘स्टेलर डायमंड्स’ ने पंजाब नेशनल बैंक के साथ साठगांठ करके ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग’ (एलओयू) के जरिए अरबों रुपए हड़प लिए। धन हड़पने का कुचक्र पिछले छह-सात वर्ष से चल रहा था, धीरे-धीरे इसकी गति बढ़ती गई। देश का धन हड़पने की स्पीड का आलम यह रहा कि महज तीन दिन में अरबों रुपए ‘सोख’ लिए गए, इसमें पंजाब नेशनल बैंक के साथ-साथ कुछ अन्य बैंकों की मिलीभगत भी रही है। पंजाब नेशनल बैंक से सीबीआई को मिले दस्तावेज बताते हैं कि 09 फरवरी 2017 को ‘डायमंड आर यूएस’ के लिए 4415791.96 अमेरिकी डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ, फिर 09 फरवरी 2017 को ही ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ के लिए 4335319.38 यूएस डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हो गया। 10 फरवरी 2017 को ‘डायमंड आर यूएस’ के लिए 5942017.70 यूएस डॉलर का एलओयू फिर इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ। 10 फरवरी 2017 को ही ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ के लिए भी 5843161.93 यूएस डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ, फिर उसी दिन यानि 10 फरवरी 2017 को ही ‘स्टेलर डायमंड’ के लिए 6093321.10 यूएस डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी कर दिया गया।
14 फरवरी 2017 को ‘डायमंड आर यूएस’ के लिए 5856885.00 यूएस डॉलर का एलओयू एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ। 14 फरवरी 2017 को ही ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ के लिए 5862251.03 यूएस डॉलर का एलओयू फिर से एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ। उसी दिन यानि 14 फरवरी 2017 को ही ‘स्टेलर डायमंड’ के लिए 5877064.00 यूएस डॉलर का एलओयू एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ। ये सारे एलओयू पंजाब नेशनल बैंक के मुम्बई जोन के तहत ब्रैडी हाउस स्थित मिड कॉरपोरेट शाखा से जारी हुए थे।
फरवरी 2017 के महज तीन दिनों में नीरव मोदी ‘गिरोह’ के लिए पंजाब नेशनल बैंक ने इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम 44225812.10 अमेरिकी डॉलर का एलओयू जारी कर दिया। एलओयू जारी होते समय एक यूएस डॉलर की कीमत करीब 70 रुपए थी, यानि भारतीय मुद्रा में 3095806847 रुपए। इन सभी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स (एलओयू) का भुगतान विदेश से ऑपरेट कर रही एक्सपोर्ट्स कंपनियों ‘ऑरा जेम कंपनी लिमिटेड’, ‘साइनो ट्रेडर्स लिमिटेड’, ‘ट्राई कलर जेम्स एफजेडई’, ‘सनशाइन जेम्स लिमिटेड’, ‘युनिटी ट्रेडिंग एफजेडई’ और ‘पैसिफिक डायमंड्स एफजेडई’ ने उठा लिया। नीरव मोदी ‘गिरोह’ की कंपनियों को ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग’ की सारी रकम 25 जनवरी 2018 तक क्लियर कर देनी थी, लेकिन इसके पहले ही घपले के सारे कर्ताधर्ता देश छोड़ कर जाते रहे। जबकि नीरव मोदी की पत्नी अमी नीरव मोदी पहले से अमेरिकी नागरिक है। अमी ने छह जनवरी को ही भारत छोड़ दिया था और नीरव का मामा चोकसी चार जनवरी को देश छोड़ कर भाग गया था। नीरव मोदी का भाई नीशल मोदी बेल्जियम का नागरिक है। नीशल ने भी अमेरिका को ही अपना ठिकाना बनाया हुआ है। यानी नीशल मोदी भी एक जनवरी को ही भारत छोड़ कर भाग गया था। शातिर नीरव मोदी खेलता रहा, इसी बीच वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डावोस दौरे में उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल रहा और उसने पंजाब नेशनल बैंक से और लेटर ऑफ अंडरटेकिंग हासिल करने की कोशिश की, लेकिन इस दरम्यान पंजाब नेशनल बैंक के मुम्बई जोन के डिप्टी जनरल मैनेजर अवनीश नेपालिया ने घोटाले का भंडाफोड़ कर दिया।
अंदरूनी जांच के बाद नेपालिया ने 29 जनवरी को अपनी लिखित तहरीर सीबीआई को दी थी। सीबीआई मुम्बई की बैंक स्कैम एंड फाइनेंशियल क्राइम सेल के एसपी शारदा राउत ने 31 जनवरी 2018 को एफआईआर दर्ज कर औपचारिक छानबीन शुरू कर दी। एफआईआर दर्ज करने के बाद 31 जनवरी को ही सीबीआई ने अभियुक्तों के खिलाफ ‘लुक-आउट नोटिस’ जारी की, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। घोटाले की आखिरी महत्वपूर्ण कड़ी नीरव मोदी भी देश से फरार हो चुका था। अब आपको उन तथ्यों की जानकारी दे दें जिसके बारे में आम जानकारी नहीं है। नीरव मोदी ‘गिरोह’ से जुड़ी वे कंपनियां जो विदेशों से ऑपरेट कर रही हैं, उनमें हॉन्गकॉन्ग से ऑपरेट करने वाली ‘ऑरा जेम कंपनी लिमिटेड’ महत्वपूर्ण है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके तार पनामा-गेट कांड से जुड़े हैं। ‘ऑरा जेम कंपनी लिमिटेड’ की नियंत्रक कंपनी ‘अटलांटिक सेन्सर लिमिटेड’ ने ही ‘ऑरा जेम’ को हॉन्गकॉन्ग में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के यहां 28 मई 2010 में पंजीकृत कराया था। ‘अटलांटिक सेंसर’ टैक्स चोरों के स्वर्ग ब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूह और पनामा पेपर्स मनी लॉन्ड्रिंग मामले से सीधे सम्बद्ध रही है। ‘अटलांटिक सेन्सर’ ने वर्ष 2012 में ‘ऑरा जेम’ की समस्त शेयर-होल्डिंग्स दुबई के सोनू शैलेश मेहता के नाम ट्रांसफर कर दी थी।
वही मेहता वर्ष 2016 तक ‘ऑरा जेम’ का इकलौता निदेशक था। बाद में हॉन्गकॉन्ग के दिव्येश कुमार गांधी को निदेशक नियुक्त किया गया। नीरव मोदी ‘गिरोह’ के एलओयू का विदेश में भुगतान उठाने वाली कंपनियों में ‘साइनो ट्रेडर्स लिमिटेड’ भी शामिल है। यह कंपनी हॉन्गकॉन्ग में 22 फरवरी 2013 को पंजीकृत (नंबर-1865307) हुई थी। इसी तरह ‘सनशाइन जेम्स लिमिटेड’ भी हॉन्गकॉन्ग के कोउलून से ऑपरेट करती है। ‘ट्राई कलर जेम्स एफजेडई’ संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह से ‘युनिटी ट्रेडिंग एफजेडई’ दुबई से और ‘पैसिफिक डायमंड्स एफजेडई’ अजमान से ऑपरेट करती है। विदेशों से ऑपरेट कर रही इन्हीं कंपनियों ने नीरव मोदी ‘गिरोह’ की भारत की तीन कंपनियों के लिए जारी हुए 44225812.10 अमेरिकी डॉलर के एलओयू पर भुगतान ले लिया।
यह भुगतान उठाने के बाद भी नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक से और एलओयू जारी करने का आवेदन दिया, लेकिन पीएनबी मुम्बई के डिप्टी जोनल मैनेजर ने इसे पकड़ा और जांच के लिए भेज दिया। हालांकि जानकार बताते हैं कि भ्रष्टाचार में शरीक पीएनबी के अधिकारियों ने एलओयू जारी करने के लिए अधिक रिश्वत देने की मांग शुरू कर दी थी। अधिक रिश्वत देने से नीरव मोदी के मना करने पर पीएनबी ने एलओयू जारी नहीं किया और वर्षों से चल रहा यह कुचक्र अचानक थम गया। इसके थमते ही एक विदेशी बैंक ने हांगकांग की नियामक एजेंसी के साथ-साथ भारतीय रिजर्व बैंक को भी इसकी सूचना भेज दी।
इस तरह मामला खुल गया और रिजर्व बैंक द्वारा पूछने पर पंजाब नेशनल बैंक को मामले की अंदरूनी जांच कराने और सीबीआई में प्राथमिकी दर्ज कराने पर विवश होना पड़ा। तब यह भी भेद खुला कि एलओयू कांड में पंजाब नेशनल बैंक के साथ-साथ भारतीय स्टेट बैंक, इलाहाबाद बैंक, एक्सिस बैंक, यूनियन बैंक भी लिप्त हैं। भारतीय स्टेट बैंक के बाद पंजाब नेशनल बैंक ही देश का दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीयकृत बैंक है। आधिकारिक तौर पर जो रकम घोटाले की बताई जा रही है वह 11,330 करोड़ रुपए यानि 1.8 अरब डॉलर है। जबकि वर्ष 2017 में पंजाब नेशनल बैंक की कुल आय 1320 करोड़ रुपए थी। साफ है कि घोटाले की रकम पीएनबी की सालाना आय से आठ गुना अधिक है।
यही वजह है कि घोटाला उजागर होते ही शेयर बाजार में पंजाब नेशनल बैंक का शेयर धड़ाम हो गया और दूसरे बैंकों के शेयर भी अधर में झूलते रहे। जानकार बताते हैं कि भारत में हीरे और हीरे के जेवरात का व्यापार 70 हजार करोड़ रुपए से अधिक का है। इस व्यापार का मुख्य केंद्र गुजरात का सूरत और महाराष्ट्र का मुम्बई है। पूंजी-केंद्रित इस व्यापार में देश की छः बड़ी हस्तियों के नाम हैं, जिनमंय से दो नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के चेहरे से पर्दा हट चुका है, कुछ अन्य की बारी भी आने वाली है। नीरव मोदी ज्वेलरी डिजाइनर भी था और ढाई अरब डॉलर की कंपनी ‘फायर-स्टार डायमंड’ का मालिक भी है। नीरव मोदी का नाम वर्ष 2013 में फोर्ब्स की भारतीय अरबपतियों की सूची में शामिल हो गया था और उसे देश के सबसे रईस लोगों की कतार में 46वां स्थान प्राप्त हुआ था।
एलओयू घोटाले के दूसरे अभियुक्त नीरव मोदी का ‘शकुनी’ मामा मेहुल चीनूभाई चोकसी नक्षत्र, संगिनी रश्मि जैसे जेवर बनाने वाली कंपनी ‘गीतांजलि जेम्स’ का मालिक है। चोकसी घपलेबाजी में मास्टर-माइंड रहा है, सेबी ने भी इसकी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की थी। जनवरी 2017 में आयकर विभाग ने नीरव मोदी के घर और उसके करीब 50 ठिकानों पर छापेमारी की थी, उन्हीं दिनों नीरव के चोकसी मामा के भी ठिकानों पर आयकर का छापा पड़ा था। लेकिन विडंबना देखिए कि आयकर विभाग की उस कार्रवाई के अगले ही महीने इस तिकड़ी ने पंजाब नेशनल बैंक के जरिए अरबों रुपए उड़ा लिए। एलओयू का खेल भाजपा के लिए भी जाना बूझा हुआ है, क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे अप्रत्याशित अकूत सम्पत्ति के मालिक जय शाह को भी एक प्राइवेट वित्तीय कम्पनी ने लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किया था।
बहरहाल, नीरव मोदी घोटाला प्रकरण में कुछ सवाल अनछुए या अनुत्तरित ही रह गए हैं। किसी भी बैंक द्वारा जारी होने वाले ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स’ की जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक को दी जाती है। वर्ष 2011 में ही पंजाब नेशनल बैंक की ओर से पहला एलओयू जारी हुआ, लेकिन उसे ‘कोर बैंकिंग सिस्टम’ (सीबीएस) में दर्ज क्यों नहीं किया गया? पीएनबी के शीर्ष प्रबंधन ने इस गंभीर खामी पर ध्यान क्यों नहीं दिया? भारतीय रिजर्व बैंक ने इस आपराधिक कोताही पर कार्रवाई क्यों नहीं की? ‘सोसाइटी फॉर दि वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन’ (स्विफ्ट) कोड के जरिए विदेशी बैंकों से हो रहे लेनदेन को मॉनीटर क्यों नहीं किया जा रहा था?
पंजाब नेशनल बैंक के विदेशी मुद्रा विनिमय विभाग (फॉरेन एक्सचेंज डिपार्टमेंट) ने शीर्ष अधिकारियों को इस बारे में त्वरित रूप से अलर्ट क्यों नहीं किया? कहीं ऐसा तो नहीं पीएनबी के शीर्ष प्रबंधन स्तर से ही इस मसले पर चुप्पी साधे रहने के निर्देश दिए गए थे? पंजाब नेशनल बैंक प्रबंधन अब यह कह रहा है कि बैंक के कुछ भ्रष्ट अफसरों ने अनधिकृत रूप से ‘स्विफ्ट-कोड’ के जरिए साढ़े ग्यारह हजार करोड़ रुपए विदेश भेज दिए। बैंक के शीर्ष प्रबंधन के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि ऐसे संदिग्ध ट्रांजैक्शन पर अलर्ट संदेश जारी करने और ‘कोर-बैंकिंग सिस्टम’ में इसे दर्ज करने के अनिवार्य नियम का पालन क्यों नहीं किया गया? आधा दशक से भी अधिक समय से हो रही घपलेबाजी के प्रति आपराधिक अनदेखी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
पंजाब नेशनल बैंक की तरफ से जारी अरबों डॉलर के एलओयू प्राप्त करने वाली इलाहाबाद बैंक या एक्सिस बैंक की विदेशी शाखाओं ने जारी एलओयू की पुष्टि के लिए ‘लेटर ऑफ कन्फर्मेशन’ भेजा था कि नहीं? अगर भेजा था तब पीएनबी प्रबंधन ने क्या कार्रवाई की? अगर नहीं भेजा तब पीएनबी प्रबंधन ने इस पर क्या कार्रवाई की? स्पष्ट है कि नीरव मोदी ‘गिरोह’ का घोटाला पंजाब नेशनल बैंक प्रबंधन के साथ-साथ अन्य सम्बद्ध बैंकों की मिलीभगत से चल रहा था।
केंद्र सरकार का तंत्र घोटालेबाजों पर चौकसी बरतने में फेल हो गया और सारे अभियुक्त बड़े आराम से फरार हो गए. अभियुक्तों के विदेश भाग जाने के कारण कानूनी कार्रवाइयों की औपचारिकता बिल्कुल आधी रह गईं. सरकारी तंत्र के नाकारेपन की स्थिति अब यह है कि प्रवर्तन निदेशालय (इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) सम्मन जारी करता है और अभियुक्त उसे इन्कार करके वापस भेज देता है. नीरव मोदी ‘गिरोह’ ने भी निदेशालय के समक्ष हाजिर होने से इन्कार कर दिया है. यही हाल विदेश मंत्रालय का भी है. विदेश मंत्रालय ने भी नीरव मोदी ‘गिरोह’ को नोटिस भेजने की औपचारिकता निभाई है और जवाब का इंतजार कर रहा है.
विदेश मंत्रालय ने भगोड़े अभियुक्तों का अब तक पासपोर्ट भी रद्द नहीं किया है. मंत्रालय का अजीबोगरीब तर्क है कि नीरव मोदी ‘गिरोह’ की तरफ से जवाब मिलने के बाद उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी. मंत्रालय जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ तब उसका पासपोर्ट रद्द किया जाएगा. विदेश मंत्रालय का यह रुख बताता है कि वह जवाब मिलने के पहले से ही संतुष्ट है. उधर, प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि नीरव मोदी घोटाला मामले में अब तक 5,826 करोड़ रुपए की सम्पत्ति व अन्य कीमती सामान जब्त किए गए हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के 94.52 करोड़ रुपए कीमत के म्युचुअल फंड्स और शेयर भी जब्त किए हैं. इनमें से 86.72 करोड़ रुपए के म्युचुअल फंड्स और शेयर चोकसी के और 7.80 करोड़ रुपए के फंड्स और शेयर नीरव मोदी के हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी की नौ लग्जरी कारें भी जब्त की हैं. इन कारों में एक रॉल्स रॉयस घोस्ट, एक मर्सिडीज बेंज, एक पोर्श पनामेरा, होंडा की तीन कारें, एक टोयोटा फॉर्चुनर और एक इनोवा शामिल है. सीबीआई इस मामले की जांच कर ही रही है. सीबीआई की दूसरी एफआईआर में गीतांजलि ग्रुप की तीन कंपनियों के नाम शामिल किए गए हैं.
आरबीआई का ़फरमानः अगर बैंक डूबा तो आपका पैसा भी डूबा
पंजाब नेशनल बैंक महाघोटाले के बाद इसकी भरपाई करने में पीएनबी समेत सभी सम्बद्ध बैंकों की हालत खराब हो जाएगी. अगर केंद्र सरकार ने ‘बेलआउट-पैकेज’ देने से मना कर दिया तो बैंकों में जमा आम ग्राहकों के पैसे पर आफत आ सकती है. भारतीय रिजर्व बैंक का नया नियम भी कहता है कि बैंक डूब गया तो उसमें जमा आपका पैसा भी डूब गया. बैंक में आपका करोड़ रुपया भी जमा हो और अगर बैंक डूब जाए तो आपको केवल एक लाख रुपए ही प्राप्त होंगे, बाकी रकम डूब जाएगी. इसी अंधेरगर्दी की तरफ हम तेजी से बढ़ रहे हैं. रिजर्व बैंक ने जमाकर्ताओं को उनके जमा धन पर मिलने वाले इन्श्योरेंस कवर को लेकर कुछ नियम बनाए हैं. डिपॉजिट इन्श्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (डीआईसीजीसी) के नाम से बने इस नियम के अनुसार बैंकों में आपके द्वारा जमा किए गए रकम में से केवल एक लाख रुपए का इन्श्योरेंस कवर है. यह कवर सभी तरह के खातों पर लागू होगा. आरबीआई की वेबसाइट पर भी यह नियम प्रदर्शित है.
बैंकों के एनपीए घोटाले की अनदेखी कर रही सरकार
बैंकिंग सेक्टर से जुड़े संगठन बैंकों के डूबे हुए कर्ज यानि ‘नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट’ (एनपीए) के खिलाफ लगातार आंदोलन चला रहे हैं. उन संगठनों और बैंकिंग विशेषज्ञों का भी मानना है कि एनपीए बैंकों के घोटालों में लिप्त होने का परिणाम है. लेकिन केंद्र सरकार इस अकूत घोटाले की लगातार अनदेखी कर रही है. विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी समेत तमाम पूंजीपशुओं के ऋृण लेकर भाग जाने की घटनाएं सीधे तौर पर बैंकों की मिलीभगत की तरफ इशारा करती हैं, लेकिन सरकार बैंकों के खिलाफ कार्रवाई करने से कन्नी काट रही है. अगर ठीक से जांच हो जाए तो बैंकों का एनपीए घोटाला ही अकेले एक लाख करोड़ से अधिक का घोटाला साबित होगा.
बैंक हैं घोटालेबाज, प्रमाण के बावजूद कार्रवाई नहीं करती केंद्र सरकार
भ्रष्टाचार और वित्तीय घोटालों में बैंकों के लिप्त होने के प्रमाण सरकार के हाथ में हैं, लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही. सरकार में शामिल मंत्रियों, नेताओं और नौकरशाहों के इसमें लिप्त रहने के कारण कार्रवाई कभी संभव नहीं. इस संदर्भ में आपको यह बता दें कि नोटबंदी लागू होने के एक महीने पहले यह आधिकारिक तौर पर खुलासा हुआ था विभिन्न बैंकों के जरिए बहुत बड़ी तादाद में काले धन का ट्रांजैक्शन हो रहा है. विभिन्न बैंक पैन नंबर दर्ज किए बगैर करोड़ों और अरबों रुपए का लेन-देन कर रहे हैं. इस तरह के सात लाख बड़े व सामूहिक लेन-देन (क्लस्टर ट्रांजैक्शन) से सम्बन्धित लोगों को नोटिसें भेजी गई थीं, लेकिन उनमें से छह लाख 90 हजार नोटिसें ‘एड्रेसी नॉट फाउंड’ लिख कर वापस आ गईं.
यानि, सात लाख बड़े ट्रांजैक्शंस में जो पते लिखाए गए थे, उन पतों पर कोई मिला ही नहीं. न नाम का पता चला, न पते पर कोई पाया गया और न उनके केवाईसी (नो योर कस्टमर) का कोई ब्यौरा मिला. 90 लाख बैंक ट्रांजैक्शन पैन नंबर के बगैर हुए, जिनमें 14 लाख बड़े (हाई वैल्यू) ट्रांजैक्शन हैं और सात लाख बड़े जोखिम वाले (हाई-रिस्क)ट्रांजैक्शन हैं. इन्हीं सात लाख ट्रांजैक्शन के सिलसिले में नोटिसें जारी हुई थीं, जो लौट कर वापस आ गईं. यह बैंकों के घोटाले में शामिल होने का आधिकारिक प्रमाण था, लेकिन केंद्र सरकार ने बैंकों पर कार्रवाई करने के बजाय उस खाई को पाटने के लिए नोटबंदी का फरमान जारी कर दिया. सरकार को आधिकारिक तौर पर पता चल गया है कि विभिन्न बैंकों के माध्यम से काले धन का ट्रांजैक्शन धड़ल्ले से हो रहा है, लेकिन केंद्र सरकार बैंकों की करतूतों पर पर्दा डालने का काम कर रही है. वित्त मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा कि करोड़ों और अरबों रुपए के लेन-देन में बैंकों द्वारा पैन नंबर की अनिवार्यता का ध्यान नहीं रखा जाना और केवाईसी नॉर्म्स का पालन नहीं किया जाना साफ तौर पर घोटालों में बैंकों की मिलीभगत का प्रमाण है. तकनीकी व्यवस्था है कि एक वर्ष की अवधि में भी अगर 10 लाख रुपए डिपॉजिट हुए या लेन-देन हुआ तो वह फाइनैंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (वित्तीय खुफिया इकाई) के समक्ष खुद ब खुद फ्लैश करने लगेगा. लेकिन वह फ्लैश नहीं हुआ. इससे स्पष्ट हो गया कि बैंक केवाईसी नियमों और पैन नंबर इंट्री के नियम का पालन नहीं कर रहा है. आयकर विभाग के अनुसंधान अधिकारी कहते हैं कि बैंक के माध्यम से हो रहा नॉन पैन ट्रांजेक्शन काले धन को सफेद करने के धंधे (मनी लॉन्ड्रिंग) का प्रमुख जरिया बना हुआ है. पैन नंबर दर्ज किए बगैर होने वाले लेन-देन के लिए सीधे तौर पर बैंक दोषी हैं, फिर भी कुछ मामूली अफसरों की गर्दन नापने के सिवा बैंकों के शीर्ष प्रबंधन पर इसका कोई दायित्व तय नहीं होता.
प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी ने कहा कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाना संभव नहीं है क्योंकि इसमें बड़े नेता, बड़े नौकरशाह, बड़े उद्योगपति और बड़े सामर्थ्यवान दलाल शामिल हैं. काला धन जमा करने का सबसे बड़ा स्रोत देश स्विट्जरलैंड के बैंकों में खाता खोलने की न्यूनतम राशि ही 50 करोड़ डॉलर होती है. इससे भारत से काला धन ले जाने वालों की औकात का अंदाजा लगाया जा सकता है. हवाला के जरिए देश का धन बेतहाशा दूसरे देशों में जा रहा है. फेमा (फॉरेन एक्सचेंज मेंटेनेंस एक्ट) आने से हवाला का धंधा करने वालों पर फेरा (फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट) जैसे सख्त कानून का भी खौफ नहीं रहा. शुरुआती दौर में स्विस बैंक एसोसिएशन ने कहा था कि गोपनीय खातों में भारत के लोगों की 1,456 अरब डॉलर की राशि जमा है. लेकिन भारत सरकार ने इसे हासिल करने की कोई कारगर पहल नहीं की. बताया जाता है कि भारतीय मुद्रा में 300 लाख करोड़ रुपए का काला धन अकेले स्विस बैंकों में जमा है. उस समय एक आकलन भी आया था कि उक्त राशि भारत को वापस मिल जाए तो देश के प्रत्येक जिले को 50,000 करोड़ रुपए मिल जाएंगे. लेकिन विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी प्रकरण ने आम लोगों की इस उम्मीद को धुआं-धुआं कर दिया. प्रवर्तन निदेशालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि नोटबंदी के बाद बैंकों के अधिकारियों ने काला धन सफेद करने के एवज में अंधाधुंध कमाई की. बैंक अधिकारी भी मालामाल हो गए और काला धन के जमाखोर भी 30 प्रतिशत कमीशन देकर रुपए बटोर ले गए. आम नागरिक एटीएम और बैंक काउंटर की लंबी कतार में लग कर अपनी ईमानदारी से कमाई रकम लेने के लिए चिरौरियां करता रहा और अपमानित होता रहा.
पीएनबी घोटाले से जैसे-जैसे परतें हट रही हैं, वैसे-वैसे कई राजनीतिक दलों के लोगों से नीरव मोदी ‘गिरोह’ के जुड़े होने की बातें सामने आ रही हैं. लेकिन दोनों ओर से प्रवक्ताओं के आरोप-प्रत्यारोपों की आड़ लेकर संदर्भित नेता शातिराना चुप्पी साधे बैठे हैं. नीरव मोदी ‘गिरोह’ की जिन डेढ़ सौ शेल कंपनियों का पता चल रहा है उनमें से कई कंपनियां एक नव-सत्ताधारी राजनीतिक दल से जुड़ी बताई गई हैं. जानकार बताते हैं कि शेल कंपनियों का इस्तेमाल कालेधन को खपाने के लिए किया जाता है. वर्ष 2010 से 2014 के बीच पीएनबी और केनरा बैंक ने मिल कर ऐसी ही एक कंपनी को 5,86,50,00,000 रुपए का लोन दिया था. इस कंपनी के निदेशक उसी नव-सत्ताधारी राजनीतिक दल को दो करोड़ रुपए का चंदा देने के मामले में सुर्खियों में आए थे. दो सौ करोड़ में एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के लिए आलीशान घर खरीदने में नीरव मोदी का नाम पहले से आयकर नेट पर है. कुख्यात हथियार डीलर अदनान खशोगी के खास हसन अली खान से नीरव मोदी की नजदीकियां और स्विट्जरलैंड के बैंक अकाउंट जमा कराए गए 48 करोड़ रुपए का रहस्य भी अब खुलने ही वाला है. प्रवर्तन निदेशालय के सूत्र बताते हैं कि एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के दुबई के बैंक खाते में जमा कराए गए 14.5 करोड़ रुपए की भी जांच की जा रही है. एक नेता की पत्नी तो नीरव मोदी की कंपनी में डायरेक्टर तक रही हैं.
हजारों करोड़ का घोटाला करने वाले नीरव मोदी ‘गिरोह’ का एक विज्ञापन आजकल चर्चा में है. इस विज्ञापन में फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा हैं. इस विज्ञापन के जरिए काफी पहले ही फरारी-गाथा रचे जाने का संकेत दे दिया गया था. हीरे के जेवरात से सम्बन्धित विज्ञापन में प्रियंका चोपड़ा सिद्धार्थ मल्होत्रा को बता रही हैं कि उनका एक जानने वाला शख्स बैंक से बड़ा लोन लेकर देश छोड़कर भाग गया है. यह विज्ञापन सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है. कहते हैं कि नीरव मोदी ने इस विज्ञापन को खुद ही यू-ट्यूब पर भी अपलोड किया था. दूसरी तरफ कुछ फिल्म अभिनेत्रियों ने नीरव मोदी ‘गिरोह’ पर धोखाधड़ी करने का भी आरोप लगाया है. फिल्म अभिनेत्री कंगना रानावत और विपाशा बसु ने नीरव मोदी के रिश्तेदार और जूलरी ब्रांड के मालिक मेहुल चोकसी पर बकाया भुगतान न करने और कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने का आरोप लगाया है. कंगना रानावत को मेहुल की कंपनी से पैसे मिलने बाकी थे, जबकि बॉन्ड पूरा हो चुका था. विपाशा बसु ने कहा है कि वे चोकसी से जुड़े एक ब्रैंड को प्रमोट करने का काम करती थीं. करार की अवधि पूरी होने के बाद विपाशा के मैनेजर ने चोकसी को विपाशा की फोटो का इस्तेमाल बंद करने की सलाह दी, लेकिन चोकसी विपाशा की फोटो अपने ब्रांड प्रमोशन के लिए इस्तेमाल करते रहे पर उन्हें दूसरा कॉन्ट्रैक्ट नहीं दिया.
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के उजागर होने के दरम्यान ही यूपी के कानपुर में पांच हजार करोड़ का बैंकिंग घोटाला सामने आ गया. इस घोटाले के तार कानपुर के प्रसिद्ध ‘पान-पराग’ फेम उद्योगपति विक्रम कोठारी से जुड़े हैं. हालांकि पारिवारिक बंटवारे के बाद विक्रम कोठारी के हिस्से में रोटोमैक ग्लोबल कंपनी आई, लेकिन इसके बाद भी कोठारी ‘पान-पराग’ से ही मशहूर हैं. रोटोमैक कम्पनी के विस्तार के लिए विक्रम कोठारी ने पांच हजार करोड़ से अधिक बैंक लोन लिया था. बैंकों ने रोटोमैक के घाटे की अनदेखी कर कोठारी को अंधाधुंध लोन दिया, लेकिन भुगतान के वक्त कोठारी भाग खड़े हुए. अब विक्रम कोठारी की कंपनी पर ताला लगा है. बैंकों ने कोठारी पर मुकदमा कर रखा है और कोठारी ने बैंकों पर. इस गुत्थी को कानूनी पेंचों में उलझा कर कोठारी देनदारी से बचने की जुगत लगा रहे हैं.
विक्रम कोठारी को लोन देने वाले पांच बड़े बैंकों में इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक और इलाहाबाद बैंक के नाम सामने आ चुके हैं. इसमें इंडियन ओवरसीज बैंक ने कोठारी की बीमारू कंपनी को 1400 करोड़ रुपए का लोन दे दिया. बैंक ऑफ इंडिया ने 1395 करोड़ का लोन दिया. बैंक ऑफ बड़ौदा ने 600 करोड़ रुपए का लोन दिया. यूनियन बैंक ने 485 करोड़ रुपए का लोन दिया और इलाहाबाद बैंक ने 352 करोड़ रुपए का लोन दिया.
कानपुर के मशहूर व्यापारी विक्रम कोठारी पान पराग समूह से जुड़े रहे हैं. 18 अगस्त 1973 को मनसुख भाई कोठारी ने पान पराग का उत्पादन शुरू किया था. सन् 1983 से 1987 के बीच ‘पान पराग’ सबसे बड़ी विज्ञापनदाता कंपनी बन गई. मनसुख भाई कोठारी की मृत्यु के बाद उनके बेटे दीपक कोठारी और विक्रम कोठारी में बंटवारा हो गया. विक्रम कोठारी के हिस्से में कलम बनाने वाली कंपनी ‘रोटोमैक’ आई. प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सलमान खान कभी ‘रोटोमैक’ कंपनी के ब्रैंड अम्बैसेडर हुआ करते थे. सलमान ने ‘रोटोमैक’ पेन के लिए काफी विज्ञापन भी किए। कभी इस कंपनी ने काफी मुनाफा कमाया, लेकिन आज यह घाटे के कारण बंदी के कगार पर है. विक्रम कोठारी को डिफॉल्टर घोषित किया जा चुका है. उन पर 600 करोड़ का चेक बाउंस होने का भी केस दर्ज है. लेकिन तमाम आशंकाओं के बावजूद विक्रम कोठारी देश छोड़ कर नहीं भागे और आखिरकार विक्रम कोठारी और उनके बेटे राहुल कोठारी को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया, कोठारी परिवार पर कुल 3,700 करोड़ रुपए का लोन हड़पने का आरोप है।
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