सोमवार, 25 दिसंबर 2017

भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा 01 जनवरी 2018 को आयोजित भीमा-कोरेगांव शौर्य दिवस से यूरेशियन ब्राह्मणों में खौफ


पूना के ब्राह्मणों ने कार्यक्रम न लगाने की शासन-प्रशासन से लगाई गुहार
पूणे/दै.मू.समाचार
आज पूरे देश में बामसेफ एवं भारत मुक्ति मोर्चा से यूरेशियन ब्राह्मणों में किस तरह से खौफ समा चुका है, इसका एक नजारा महाराष्ट्र के पुणे में रविवार 24 दिसंबर 2017 को तब देखने को मिला जब अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ ने पुणे पुलिस से दरख्वास्त की कि 01 जनवरी 2018 को बामसेफ एवं भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा आयोजित भीमा-केरेगांव शौर्य दिवस मनाने व प्रदर्शन करने की अनुमति न दी जाए। इसी के साथ अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ ने शासन-प्रशासन से गुहार लगाई है कि जिस ईस्ट इंडिया कंपनी के राज को उखाड़ने के लिए 1857 में लगभग पूरे भारत में गदर मच गया हो, आजाद भारत में उसी कंपनी की विजय का उत्सव मनाने से बड़ा देशद्रोह और क्या हो सकता है? इसलिए भीमा-कोरेगांव उत्सव मनाने वालों को देशद्रोही का सर्टिफिकेट दिया जाए।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि बामसेफ एवं भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा 01 जनवरी 2018 को पुणे में भीमा-कोरेगांव क्रांति के 200 साल पूरे होने के अवसर पर राष्ट्रव्यापी महारैली का आयोजन किया जाएगा। इस महारैली को रोकने के लिए पुणे के अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ के ब्राह्मणों ने शासन-प्रशासन से गुहार लगाई है कि जिस ईस्ट इंडिया कंपनी के राज को उखाड़ने के लिए 1857 में लगभग पूरे भारत में गदर मच गया हो, आजाद भारत में उसी इस्ट इंडिया कंपनी की विजय का उत्सव मनाने से बड़ा देशद्रोह और क्या हो सकता है? इसलिए भीमा-कोरेगांव उत्सव मनाने वालों को देशद्रोही का सर्टिफिकेट दिया जाए। इसी के साथ यह भी कहा है कि ऐसे उत्सवों से जातीय भेद बढ़ेगा।
आपको बतात चलें कि 01 जनवरी 1818 के दिन भीमा कोरेगांव, यहाँ पर ब्राह्मण पेशवाआें का नागवंशी बहुजनां से घमासान युद्ध हुआ था। उस युद्ध में पेशवाआें की संख्या 28,000 थी और शूरवीर नागवंशी बहुजन 500 थे। इस लड़ाई में 500 शूरवीर नागवंशियां ने 28,000 पेशवाआें को हरा कर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी। इस घटना को 01 जनवरी 2018 को 200 वर्ष पूरे हो जायेंगे। बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा के द्वारा देशभर में भीमा-कोरेगांव 200 वर्ष पूरा होने के अवसर पर हर्ष उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। 01 जनवरी 2018 को इस ऐतिहासिक 200वर्ष पूरा होने का समारोह कार्यक्रम के माध्यम से एक देशव्यापी महारैली का आयोजन किया जा रहा है। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर भीमा कोरेगांव 500 शूरवीरां को श्रद्धाजंलि देने के लिए अपने कार्यकर्ताआें समेत स्वयं जाते थे। इस ऐतिहासिक द्विशताब्दी वर्ष के माध्यम से लाखों कार्यकर्ता देशभर से श्रद्धाजंलि देने के लिए भीमा कोरेगांव में होने वाली महारैली के लिए आनेवाले है।
31 दिसम्बर 1817 के दिन कैप्टन स्टॉटन के नेतृत्व में मुम्बई नेटी इन्फेट्री के 500 शूरवीर नागवंशियां ने 28,000 पेशवाआें के साथ भीमा कोरेगांव के किनारे आमने-सामने की लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में बाजीराव पेशवा के सेनापति बापू गोखले का पुत्र मारा गया था। जिन पेशवाआें ने अस्पृश्यतां के गले में मटका और कमर में झाडू बांधा था वहीं पेशवाई 01 जनवरी 1818 को उन शूरवीरां ने खत्म की। पेशवाआें के माध्यम से मनुस्मृति राज्य में अमल में की गयी थी। एससी, एसटी, ओबीसी भटके हुए विमुक्त, मुस्लिमां पर प्रचंड अन्याय हुआ करता था। छत्रपति शिवाजी महाराज के बाद उनका राज्य संभाजी महाराज के कुशल नेतृत्व में बढ़ रहा था। पूना के ब्राह्मणां ने मुगलां के साथ गुप्त समझौता करके छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्य तथा शिवशाही को खत्म करके पेशवाई की स्थापना की राज्यां में लड़ाई छत्रपति संभाजी महाराज और मुगलां के बीच हो रही थी। लेकिन छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या के बाद महाराष्ट्र में मुगलां का राज्य आए बगैर पेशवाआें का राज्य कैसे आया? ब्राह्मण पेशवाआें का राज्य आने के पीछे का कारण ब्राह्मणां द्वारा मुगलां के साथ किया गया गुप्त समझौता था। 01 जनवरी 1818 इस क्रान्ति महासग्राम में जो 500 शूरवीर नागवंशी योद्धा थे उसमें बहुसंख्यक अगर महार थे तो उनके साथ में मराठा, भटके विमुक्त आदिवासी, मुस्लिम, क्रिश्चन सैनिक भी शामिल थे। विजय स्तम्भ पर अंकित शहीद जवानां के नाम से पता चलता है कि यह लड़ाई ब्राह्मणां और बहुजनां के बीच लड़ी गई थी। 
आपको बताते चलें कि फिलहाल वर्तमान परिस्थिति में सम्पूर्ण देशभर में पेशवाई द्वारा ब्राह्मणवाद की पुर्नस्थापना का प्रयास चालू है। समस्त बहुजन समाज पर अपना वर्चस्व थोपने में ब्राह्मण कामयाब होता दिख रहा है। ब्राह्मणां ने लोकतंत्र के चारां ही आधार स्तम्भां विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, प्रचार माध्यम सभी पर षड्यंत्र पूर्वक कब्जा किया है। भारतीय मूलनिवासी बहुजन समाज को गुलाम बनाया गया है। आज फिर से नये आजादी के आन्दोलन की जरूरत है। इसके लिए 6000 जातियां में विभाजित बहुजन समाज को संगठित करना होगा। मूलनिवासी बहुजन समाज संगठित किये बगैर आजादी का आन्दोलन सफल नहीं किया जा सकता है। यही प्रेरणा एवं संदेश लेने के लिए द्विशताब्दी वर्ष पर भीमा कोरेगांव क्रान्ति स्थल पर हम सब इकट्ठा हो रहे है। इसके लिए भीमा कोरेगांव (पूना) में ऐतिहासिक क्रान्ति संग्राम के 200 वर्ष के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर महारैली का आयोजन किया जा रहा है। इस महारैली सफल बनाने के लाखां की संख्या में मूलनिवासियों के आने की सुगबुगाहट से ब्राह्मणों में खौफ का महौल हो उठा, इसलिए ब्राह्मणों द्वारा इस महारैली को रोकने के लिए शासन-प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं।  

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