मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

दुनिया का वसूल है जो डरता है उसे डराया जाता है-वामन मेश्राम


मोहन भागवत के लिए यह कहना ज्यादा मुश्किल है, इसलिए आरक्षण की समीक्षा होना चाहिए, इस तरह की बातें वे कर रहे हैं। मोहन भागवत आरएसएस के प्रमुख हैं और आरएसएस के द्वारा एक राजनीतिक दल भारतीय जनता पर्टी बनाया गया है। ये जो भारतीय जनता पार्टी बनाई गई है, आज की तारीख में केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। केन्द्र में उनकी सरकार है, तो आरक्षण की समीक्षा होना चाहिए, ऐसा बयान देने की वजह के बिहार से चुनाव के दौरान रजनीति में ये एक बहुत बड़ा पॉलिटिकल इश्यू (राजनीतिक मुद्दा) बना। इस निर्णय को बिहर की प्रजा ने नकारा दिया। 
दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि केन्द्र सरकार ने मदन मेहन मालवीय को भारत रत्न का खिताब दिया, जो 1932 में हिन्दू महासभ के बहुत बड़े नेता थे। उन्होंने पूना पैक्ट पर साईन किया था। वहाँ पर बैठे हुए बहुत सारे लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी। केन्द्र सरकार ने मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न का खिताब दिया, तो हम ऐसा मानते हैं कि ये लोग मदन मोहन मालवीय के मानते हैं। मदन मोहन मलवीय ने पूना पैक्ट में साईन किया है। पूना पैक्ट में क्या है? यहाँ बैठे हुए बहुत सारे लोगों को पूना पैक्ट की जानकारी नहीं होगी। गुजरात में बीजेपी की सरकार है और मैंने गुजरात में जाकर कहा कि आरएसएस के सरसंघ चालक को यह पता नहीं है कि आरक्षण कितने प्रकार के हैं। आरक्षण एजूकेशन में है, आरक्षण नौकरियों में है और आरक्षण पॉलिटिक्स में है। पूना पैक्ट में जो रिजर्वेशन है, वह दस साल के लिए है। आपके पास संविधान की कॉपी है, तो उसमें लिखा है कि पॉलिटिकल आरक्षण दस साल के लिए है। यह पूना पैक्ट में है। पूना पैक्ट में मदन मोहन मालवीय ने साईन किया, वह मोहन भागवत का पूरखा है। 
पूना पैक्ट में लिखा हुआ है कि अगर पॉलिटिकल रिजर्वेशन समाप्त करना है या बरकरार रखना है या उसमें किसी भी प्रकार का रद्दोबहल करना है, कुछ भी करना है तो म्यूचुअल एग्रीमेन्ट से करना होगा। म्यूचुअल एग्रीमेन्ट का मतलब है कि दोनों पार्टियों के सहमति से ये हो सकता है। इस पर आरएसएस के प्रमुख मोहन भावगत के पुरखा मदन मोहन मालवीय का साईन है। जिसको उन्होंने भारत रत्न का पुरस्कार दिया है। यदि बाबासाहब अम्बेडकर और आरएसएस के पुरखों के बीच में ये एग्रीमेन्ट हुआ है और पूना पैक्ट में हिन्दू के नाम पर मदन मोहन मालवीय ने साईन किया है तो हम लोगों की सहमति से ही कुछ हो सकता है और अगर आज की तारीख में अगर सहमति लेनी है तो आज के तारीख में शेड्यूल्ड कास्ट का राष्ट्रीय स्तर का कोई नेता होना चाहिए। तो मेरे मुकाबले में शेड्यूल्ड कास्ट का क्या कोई नेता है? मेरे मुकाबले का तो कोई नेता राष्ट्रीय स्तर का नहीं है, चाहे फेक (झूठा) ही क्यों ना हो? उदीत राज ने एक सर्वे कराया था। उसने यह सर्वे खुद ही उनके लोगों के द्वारा करवाया था। उसने वह लिस्ट पब्लिस किया कि उदित राज पहले नम्बर का अनुसूचित जाति का नेता है और वामन मेश्राम दूसरे नम्बर का नेता है। उसे वामन मेश्राम को दूसरे नम्बर का नेता घोषित करना था, इसलिए उसने अपने लोगों के द्वारा ही यह सर्वे करवाया था। चलो मान लेते हैं कि मैं दूसरे नम्बर का नेता हूँ, पर अब तो वह बीजेपी में चला गया है तो मेरा दूसरा नम्बर तो पहले नम्बर में आ ही गया है। यह अपने आप हो गया है। तो आरएसएस के लोगों को यह आरक्षण समाप्त करना है या समीक्षा करना है या रद्दोबदल करना है या कुछ भी करना है तो मेरे से सलाह मश्वरा करना पड़ेगा। 
पूना पैक्ट के ओरिजनल टेक्स्ट में म्यूचुअल एग्रीमेन्ट लिखा हुआ है। बाबासाहब ने इसे 1932 में लिखा है। म्युचुअल एग्रीमेन्ट अर्थात आपसी सहमति से होगा, केवल एक की सहमति से नहीं होगा। मोहन भागवत का मुद्दा सामने आ गया तो उस पर मेरी सहमति तो लेनी पड़ेगी ना। मेरी सहमति लेने के लिए मेरे पास आने तक ही हिम्मत उनके पास में है क्या? सहमति लेने की तो बहुत दूर की बात है। मेरे पास चर्चा के लिए आने तक की हिम्मत उनके पास है क्या? इतनी भी हिम्मत उनके अन्दर है, मैं नहीं जानता हूँ क्या? नागपुर में आरएसएस का जो हेड क्वार्टर है, दस साल में वही खतरे में पड़ जाएगा। नागपुर में आरएसएस का हेड क्वार्टर हमारे लोगों से घिरा हुआ है। आरएसएस के हेड क्वार्टर के आगे-पीछे हमारे लोगों की बस्तियाँ है। आरएसएस खुद ही खतरे में पड़ जाएगा। आरक्षण की समीक्षा करने वाले जो लोग हैं। अरक्षण की समीक्षा तो बात की बात है, पहली बात तो आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत को तो इतनी अकल नहीं है कि कौन सा रिजर्वेशन दस साल के लिए है। इसलिए मैंने गुजरात में कहा कि आरएसएस का सरसंघ चालक मोहन भागवत गदहा है। उसको राजनैतिक आरक्षण और नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण का फर्क समझ में नहीं आता है और ये सुधार वो जब तक नहीं करता है, तब तक मैं ऐसा बोलता रहूँगा कि मोहन भागवत गदहा है। मैं ऐसा बोलता रहूँगा। सरकार के पुलिस वाले होते हैं, उन्होंने मोहन भागवत को खबर दिया होगा वो आपको गदहा कह रहे हैं और तब तक आपको गदहा कहता रहेगा, जब तक आप इसमें सुधार नहीं करते हैं। और यदि वह सुधार करेगा तो भी यह सिद्ध हो जाएगा वो गदहा था। इसलिए मोहन भागवत ने सुधार किया, इस विषय पर ज्यादा लम्बा खिंचने की जरूरत नहीं है। इतना ही बहुत है। क्योंकि सौ सुनार की और एक लोहार की मामला। 
दूसरा विषय पाटिदार लोगों का है। साथियों, पार्टीदार लोगों को गुजरात में मैंने कहा कि शेड्यूल्ड कास्ट के लोगों ने ब्राह्मणों से लड़-झगड़कर आरक्षण लिया। शेड्यूल्ड ट्राईब के लोगों ने ब्राह्मणों से लड़-झगड़कर आरक्षण लिया। ओबीसी के लोगों ने ब्राह्मणों से लड़-झगड़कर आरक्षण लिया। अगर पाटिदारों को आरक्षण चाहिए तो ब्राह्मणों से लड़ना होगा और अगर पाटिदार लोग गुजरात में ब्राह्मणों से लड़ना चाहते हैं, तो मैं उनको समर्थन देने के लिए तैयार हूँ। अगर पाटिदार लोगों को मेरी बात समझ में आती है तो पाटिदार का आन्दोलन ब्राह्मणों के विरोध में शुरू हो जाएगा। ब्राह्मणों ने पाटीदार का इस्तेमाल एससी, एसटी और ओबीसी के विरोध में करवाना चाहा। हमने पाटीदारों से कहा कि अगर आपको आरक्षण चाहिए तो ब्राह्मणों से लड़ो। हम तुम्हारे साथ में हैं। तुम मोर्चा निकालो तो हम तुम्हारा समर्थन करेंगे। अगर क्षत्रिय और वैश्य भी आरक्षण की मांग करते हैं तो हम उसका भी समर्थन करेंगे। क्यों? क्योंकि हम इस देश में आरक्षण के मुद्दे पर विवाद को खत्म करना चाहते हैं और इसको खत्म करने का एकमात्र तरीका है सौ प्रतिशत आरक्षण। आप संख्या की गिनती करो और जिसकी जितनी संख्या है, उसको उसे उतनी अनुपात में सभी लोगों को आरक्षणा दे दो। अगर मुसलमान 15 प्रतिशत है तो मुसलमानों को भी 15  प्रतिशत आरक्षण दे दो। क्योंकि वे भी भारत के हैं। सभी को उसकी संख्या के अनुपात में उसको आरक्षण दे दो। ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों को भी उसकी संख्या के अनुपात में आरक्षण दे दो। आप पाटीदार की गिनती करो और पाटिदार को भी उसकी संख्या के अनुपात में आरक्षण दे दो। इससे क्या होगा? इससे भारत में रिप्रजेन्टेटिव डेमोक्रेसी लागू होगी। अगर डेमोक्रेसी रिप्रजेन्टेटिव लागू होती है तो इसमें गलत क्या होता है? डेमोक्रेसी तो रिप्रजेन्टेटिव ही होना चाहिए। इसमें गलत क्या है? इसमें कुछ भी गलत नहीं है। 
दुनिया में डेमोक्रेसी को इसलिए लाया गया, क्योंकि पहले केवल एक राजा के हाथ में सत्ता थी, उस सत्ता को जनता के हाथ में देने के लिए ही तो डेमोक्रेसी को लाया गया। जनता को उसकी संख्या के अनुपात में अगर प्रतिनिधित्व को दिया जाता है तो यह तो डेमोक्रेसी का अमल होगा और यह अमल होना चाहिए। हम लोग ऐसा चाहते हैं। अब चौथा विषय है कि इस पर अमल ना हो इसके लिए ब्राह्मणों ने केन्द्र सरकार पर कब्जा करने के बाद, इस पर अमल ना हो, इसलिए केन्द्र सरकार ने कोई कानून नहीं बनाया। जैसे संविधान में अन्टचेबिलिटी (छुआछूत) के बारे में आर्टिकल 17 है। आर्टिकल 12 से मौलिक अधिकार शुरू होता है। आर्टिकल 17 भी मौलिक अधिकार के ही विषय के अन्दर है। आर्टिकल 17 को अमल में लाने के लिए एट्रोसिटी एक्ट बनाया गया। अगर आर्टिकल 15, 16  और 335  आरक्षण का है और आर्टिकल 15 और आर्टिकल 16 मौलिक अधिकार है, तो इसको अमल में लाने के लिए एक्ट क्यों नहीं बनाया गया? 
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आस्वासन दिय था कि रिजर्वेशन एक्ट बनाया जाएगा। प्राईवेटाईजेशन में रिजर्वेशन देने का कनून बनाया जाएगा। ये दोनों बातें 2004  के लोकसभा 
चुनाव में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में रखी थी, मगर कांग्रेस ने उस पर अमल नहीं किया। अगर रिजर्वेशन एक्ट बनता, तो क्या होता? अगर रिजर्वेशन एक्ट बनता है तो जो अधिकारी रिजर्वेशन पर अमल नहीं करेगा, तो एक्ट में यह बात लिखी जाती है कि यदि इस पर अमल नहीं करेगा तो उसे दो, चार, पांच या दस साल की सजा होगी और दो हजार, पांच हजार या दस हजार रूपये का दण्ड होगा। एक्ट बनाते समय यह लिखना पड़ता है कि जो इसका उल्लंघन करेगा, उसको साल, दो साल, पांच साल या दस साल की सजा होगी। जब ऐसा सजा का प्रावधान होता तो रिजर्वेशन सौ प्रतिशत अमल में लाया गया होता। वो लोग रिजर्वेशन देते भी हैं और साथ-साथ रिजर्वेशन पर अमल ना हो इसकी भी व्यवस्था करते हैं। वे एक साथ दोनों चीजे करते हैं। इसलिए ये कानून ना बनाना, यह एक पॉलिसी का मामला है कि हमको रिजर्वेशन देकर लोगों को उलझाए रखना है। लोगों को संतुष्ट रखना है, मगर रिजर्वेशन पर अमल नहीं लाना है। क्योंकि कांग्रेस, बीजेपी और कम्युनिस्ट के जो एमएलए और एमपी हैं। वह नोमिनेटेट एमएलए और एमपी हैं। वे विधानसभा और 
लोकसभा में सवाल पूछने वाले ही नहीं है और अखबार वाले खबर छापने वाले ही नहीं है, तो किसी को पता ही नहीं चलेगा कि वे रिजर्वेशन पर ना अमल (नॉन इम्प्लीमेन्ट) कर रहे हैं। किसी को कोई जानकारी ही नहीं होगी। इसलिए इस षड्यंत्र के बारे में हमारे लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। यहाँ रिजर्वेशन से सम्बंधित अलग-अलग प्रकार के विषय यहाँ रखे गए हैं। इससे सम्बंधित देश भर में एक माहौल बना। 
सुप्रीम कोर्ट में कांती सिंह नाम के एक जस्टिस है। उसने भी दस साल के लिए आरक्षण है, ऐसा कहा था तो जैन टीवी पर मैंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का जो यह जज है, यह गदहा है, इसको अकल नहीं है। इसको जज किसने बनाया, मुझे समझ में नहीं आता है कि इसको इतना भी पता नहीं है कि शिक्षा और नौकरियों में साल की मर्यादा नहीं है। पॉलिटिकल रिजर्वेशन के लिए दस साल की मर्यादा है। ये सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए जज को मालूम नहीं है, तो उस जज को तो गदहा माना जाना चाहिए। ये बात मैं जैन टीवी के कार्यक्रम में कहा था। और मैंने यह भी कहा था कि इसके बारे में जज को ऐतराज है तो मेरे खिलाफ कार्यवाही करे। फिर सुप्रीम कोर्ट में आकर देखते हैं। मगर कुछ नहीं हुआ। ये बातें रिकार्ड में अभी भी है और उनको सबूत चाहिए तो, उसकी कॉपी हम खुद ही दे देंगे। हमको कोई दिक्कत नहीं है। हम जो चीज बोलते हैं, ठोककर बोलते  हैं और उसको रिकॉर्ड करते हैं और हम हमारे पैसे से रिकॉर्ड करते हैं। किसी को कोई ऐतराज है तो हमसे ही लो और सबूत लेकर जाओ। मगर कोर्ट में कोई जाता ही नहीं है। कांशीराम जी के विरोध में कोर्ट में जाते थे, मगर मेरे विरोध में तो कोर्ट में कोई जाता ही नहीं है। मेरे विरोध में तो आज तक कोई कोर्ट में नहीं गया। क्योंकि उनको मालूम है कि कोर्ट में गया तो बहुत बड़ा हंगामा होने वाला है। मैं तो उसको अवसर मानूँगा क्योंकि मैं ये मानता ही हूँ कि अगर उन्होंने मुझे जेल में डाला तो जेल से बाहर आने के बाद तो हमारी ताकत बढ़ जाएगी और हमको मालूम है कैसे और कब बढ़ाना है? जेल में जाना हमारी कमजोरी नहीं है। जेल में जाना हमारे लिए गौरव है। जेल में जाने के लिए बहुत सारे लोग डरते हैं। 
राजकोट का पन्द्रह सोलह साल का एक लड़का हमारे साथ था। उसको हिम्मत नगर में पुलिस वालों ने पुलिस चौकी में बुलाया और धमकी दिया कि आपको जेल में डालेंगे। उसने मुझसे पूछा तो मैंने कहा कि जाओ और वह लड़का पुलिस चौकी में गया। घंटा दो घंटा बैठने के बाद वह इंस्पैक्टर आया और उससे पूछा कि तुम ऐसा करो कि तुम्हारा कोई जमानतदार आदमी है तो ले आओ, तुमको हम जमानत दे देते हैं। उसने मुझे टेलीफोन किया कि वह इंसपेक्टर ऐसा बोल रहा है। तो मैंने कहा कि अन्दर जाओ और इन्स्पेक्टर को जाकर बोलो कि मेरो कोई पहचानने वाला नहीं है, मैं जमानतदार नहीं ला सकता, इसलिए मुझे अन्दर डालो। तो उसने इन्स्पेक्टर को जाकर ऐसा कहा तो इन्सपेक्टर ने उसे कहा बैठो। फिर घंटा दो घंटे के बाद में इंस्पेक्टर बाहर आया और कहा कि तुम खुद ही अपना जमानत ले लो और जाओ। फिर उसने मुझे टेलीफोन किया कि वो इन्स्पेक्टर ऐसा बोल रहा है तो मैंने उसको कहा कि जाओ और इन्स्पेक्टर को जाकर बोलो कि मैं अपनी जमानत लेने वाला नहीं हूँ, मुझे जेल में डालो। तो वो पुलिस वाला सोचा कि जेल में डालने की बात करते हैं, तो हर आदमी डरता है। मगर ये कौन आदमी है और इसको सलाह कौन दे रहा है? इसको जेल में जाने की धमकी देने के बाद में भी ये डर नहीं रहा है। दुनिया का वसूल है कि जो डरता है, उसको डराया जात है और जो नहीं डरता है, उसको कोई नहीं डराता है। इसलिए हमलोगों ने लोगों में हिम्मत पैदा की है, तो जेल में जाने से किसी को डरने की जरूरत नहीं है। मगर समाज के लिए जेल में जाना चाहिए तो फायदा होगा और अब हम लोग उसकी तैयारी कर रहे हैं। सरकार हमको जेल में डालने वाली नहीं है।

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