गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

अंबेडकरवाद एक जंग मूलनिवासी नारी के उद्वारक?

अंबेडकरवाद एक जंग
मूलनिवासी नारी के उद्वारक?

यह ऐतिहासिक तथा अटल सत्य है कि ब्राह्मणों के आतंक से तबाह नारियों को दुःख और अपमान की गहरी खाई से बाहर कर समस्त अधिकार, सम्मान देने के साथ-साथ पूज्यनीय बनाने का महान कार्य सबसे पहले महामानव तथागत बुद्व ने किया था। बुद्व से पहले किसी भी महापुरूष ने महिलाओं को वो स्थान व सम्मान नहीं दिया, जिसकी वे हकदार थीं। समस्त मूलनिवासी नारी जीवन के उद्वार की शुरूआत महामानव बुद्व से होती है। इसके बाद नारी जीवन के महान कार्य को बडे़ पैमाने पर राष्ट्रपिता महात्मा जोतिराव फुले और उनकी जीवन संगीनी पूज्यनीया शिक्षा देवी माता सावित्रीबाई फुले ने किया। इन्हीं दोनों महान विभूतियों ने नारी शिक्षा के आंदोलन को जीवन भर आंदोलित किया। माता सावित्रीबाई फुले ही इस देश की पहली महिला शिक्षक हैं, जिसे यूरेशियन ब्राह्मणों ने न केवल इतिहास से गायब कर दिया, बल्कि देश की प्रथम महिला शिक्षिका माता सावित्रीबाई के स्थान पर सरस्वती को शिक्षा की देवी जो एक सफेद झूठ को सामने लाकर रख दिया है। जिसकी चपेट में आज मूलनिवासी बहुजन समाज माता सावित्रीबाई को छोड़कर सरस्वती का ही शिक्षा की देवी मान रहा है। इसके बावजूद भी हिन्दू धर्म (ब्राह्मण धर्म) की निष्ठुरता और दुश्चरित्रा ने इस देश की नारी को इस कदर नीच, अपवित्र, अबला, विवश, लाचार और असहाय बना दिया था कि नारी जीवन में सुख और सम्मान की कोई कल्पना ही नहीं की जा सकती है। परन्तु धन्य हैं डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर जी, जिन्होंने नारी समाज के सुख और सम्मान की केवल कल्पना ही नहीं किया, बल्कि उन्हें वे सारे के सारे अधिकार मुहैया करा दिए, जिनके द्वारा नारी सुख-सम्मान के साथ-साथ स्वतंत्रता और समानता का जीवन जी सकें।
इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था में ब्राह्मणों द्वारा भारतीय मूलनिवासी नारियों पर सदियों से अन्याय, अत्याचार, उत्पीड़न और शोषण को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने समाप्त कर पुरूषों के बराबर अधिकार बहाल कर दिया। नारी उत्पीड़न एवं पराधीनता की बेड़ियों को काटकर उनके लिए स्वतंत्रता और समानता के जिस मार्ग को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने रचा है, उसी पर चलकर आज की मूलनिवासी नारी प्रगति की चरम सीमा पर पहुँंच कर अपने उत्कर्ष और श्रेष्ठता के झंडे गाड़ चुकी हैं। जिसका नतीजा सामने है कि आज कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां महिलाओं की भागीदारी न हो। आज की तारीख में महिलाएं पुरूषों के बराबर लगातार सक्रिय होती जा रही हैं। वास्तविक रूप से यह डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर के अथक जीवन संघर्षों का सुखद परिणाम है, अन्यथा इस देश में ब्राह्मणवादी व्यवस्था ने तो महिलाओं को किसी भी क्षेत्र में रŸाभर भी अधिकार नहीं दिया, सिवा तिरस्कार और अपमान के अलावा। यही नहीं डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने मूलनिवासी महिलाओं को अधिकार व सामाजिक सम्मान दिलाने के के लिए 28 सितंबर 1951 को कानून मंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया। क्योंकि महिलाओं के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारों को प्रस्ताव हिन्दू कोड बिल को को जब ब्राह्मण तंत्र ने अमान्य कर दिया तो बाबासाहब ने ऐसी महिला विरोधी सरकार में रहना एक पल के लिए भी स्वीकार नहीं किया और कानून मंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया। दुनिया के इतिहास में महिलओं के लिए शयद ही किसी ने इतना बड़ा त्याग किया हो। यही नहीं डॉ.बाबासाहब इतने भर से रूकने वाले नहीं थे, जब उन्हें इस देश का संविधान लिखने का मौका मिला तो उन्होंने महिलाओं के समस्त अधिकारों के बंद दरवाजे खोल दिए। जिसके तहत भारतीय नारी को स्वतंत्रा, समानता, संपिŸा में उŸाराधिकार, तलाक, विधवा विवाह, बाल विवाह निषेध और गर्भवती महिलाओं को प्रसूती अवकाश जैसे कईयों अधिकार मिला। संविधानके अनुच्छेद 14, 15, 16, 39, 42 तथा अनेक सत्रों के विधेयकों द्वारा नारी को समस्त अधिकार व सुरक्षा प्राप्त हैं। यानी इस देश की प्रत्येक नारी को डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर का एहसानमंद होना चाहिए, क्योंकि वर्तमान समय में नारी के जीवन में भी उत्कर्ष दिख रहा है वह सिफ और सिफ डॉ.बाबसाहब अम्बेडकर की देन है। मगर सोचनीय बात तो यह है कि देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज (एससी, एसटी, ओबीसी और मायनॉरिटी) के महिलाओं के पास बाबासाहब अम्बेडकर के नाम पर दो मिनट की फुर्सत नहीं है। सबसे अहम बात तो यह है कि ये महिलाएं जानना ही नहीं चाहती हैं कि इनके जीवन का उद्वारक कौन हैं? बाबसाहब अम्बेडकर द्वारा चलाए गए नारी स्वतंत्रता और समानता के आंदोलन को आगे बढ़ाने वाली महिलाओं के संगठन को ढूंढा जाए तो आज वर्तमान समय में कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है। जबकि समाज में हजारों संगठन सक्रिय हैं, इसके बाद भी महिलाओं को उनके संवैधनिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है और संगठन कुछ भी नहीं कर पा रहा है। इसका सबसे मूलकारण यह है कि महिलाओं के जीतने भी संगठन देश में कार्य कर रहे हैं, इन सभी संगठनों पर यूरेशियन ब्राह्मणों का कब्जा है। पूरे भारत में मात्र एक ही ऐसा संगठन ‘‘राष्ट्रीय मूलनिवासी महिला संघ’’ है जो महिलाओं के अधिकारों के लिए इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहा है। आज सारे देशभर में हजारों कार्यक्रम के माध्यम से ब्राह्मणवादी व्यवस्था में गुलाम महिलाओं को जागृत कर जन-आंदोलन के लिए एक ऐसी शक्ति का निमार्ण करना चाहता है जिससे महिलाएं अपने अधिकार खुद व खुद छीन सके।

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