रविवार, 24 दिसंबर 2017

पूना पैक्ट का इतिहास





गांधी जी आजादी को ठुकराने के लिए तैयार थे मगर अछूतों को अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे
24 सितम्बर 1932 को पूना की यरवदा जेल में गांधीजी और डा. बाबा साहब अम्बेडकर के बीच पूना पैक्ट हुआ। बाबा साहब ने पूना समझौता के पंद्रह साल बाद 15 मार्च 1947 को स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी जो किताब लिखी जिसे बाबा साहब ने संविधान परिषद को समर्पित किया था। बाबा साहब के द्वारा तैयार किया हुआ वो संविधान का ब्लू प्रिंट था। बाबा साहब को अगर सारे के सारे अधिकार संविधान निर्माण करने के लिए दिये जाते तो कैसा संविधान तैयार होता, इसका ब्लू पिं्रट स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी है। उसका मूलरूप उसका ड्राफ्ट है। इस स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी में बाबा साहब कहते हैं कि ‘लम्बी और दर्द भरी कहानी को समाप्त करने के लिए कांग्रेस ने पूना करार से जूस चूस लिया और भूसा (छिलका) अछूतों के मुंह पर फेंक मारा’ इसको पढ़कर ठीक से समझने की कोशिश करते हैं तब पता चलता है कि बाबा साहब पूना पैक्ट के खिलाफ किन शब्दों में अपना दुख और विरोध प्रकट करते हैं। बाबा साहब खुद पूना पैक्ट के समझौते के 15 साल बाद खुद पूना पैक्ट के विरोध में लिख रहे हैं। वे लिखते हैं कि पूना करार बदमाशी से भरा हुआ है। इसको मिस्टर गांधी के आमरण अनशन के दबाव में आकर और उस समय यह विश्वास दिलाया गया था कि अनुसूचित जाति के चुनाव में हिन्दू लोग दखल नहीं देंगे इसलिए स्वीकार किया गया था।’ (राईटिंग एण्ड स्पीचेज बीआरए वैल्युम 1, पेज 432), स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी में बाबा साहब और आगे जाकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा लिखा है। बाबा साहब ने इसी स्टेट्स और मायनॉरिटी के आर्टिकल ।।, सेक्शन-4 में बाबा साहब इसमें लिखते हैं कि ‘‘पूना करार द्वारा चुनाव की जो पद्धति आयी उसे खत्म कर देना चाहिए’’।
पूना करार द्वारा जो दो अधिकार छीन लिए गए थे बाबा साहब वो दो अधिकार फिर से लाना चाहते थे। सन् 1947 में बाबा साहब कहते हैं कि ये जो पृथक मताधिकार था जिसमें अलग से स्वतंत्र मतदार संघ होने के कारण हमें जैसा प्रतिनिधि चाहिए वैसे प्रतिनिधि चुनकर भेज सकते थे। हमारे अपने लोग प्रतिनिधित्व करने के लिए संसद में और विधानसभा में जा सकते थे। लेकिन आज जो आरक्षित मतदान पत्र बनाए गए उसके द्वारा नहीं जा पा रहे हैं। ये बताते हुए बाबा साहब ने सन् 1946 के चुनाव का व्यौरा देते हुए स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी में इस विषय पर लिखा है। पूना पैक्ट सन् 1932 में हुआ था और उसका विरोध 1932 के बाद कर रहे हैं। बाबा साहब स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी में स्पष्ट रूप से व्यौरा दे रहे हैं कि पूना पैक्ट द्वारा चुनाव पद्धति लाई गई, उसे खत्म करो और बाबा साहब फिर कह रहे हैं कि सेप्रेट ऐलेक्टोरेट को लाओ। 13 नवम्बर 1931 के गोलमेज सम्मेलन में गांधीजी ने कहा था कि हिन्दुत्व के लिए यह जरूरी है कि अछूतों को अधिकार ना दिए जाए। अगर अधिकार दिए गए तो हिन्दुत्व को धोखा पहुंच सकता है। यानि हिन्दुत्व के लिए गांधीजी अछूतों को अधिकार देने के खिलाफ है। दूसरा जो बहुत ही गम्भीर मामला है। गांधीजी स्वतंत्रता सेनानी थे और उनको राष्ट्रपिता कहा जाता है। गांधीजी ने इस देश की आजादी का आन्दोलन चलाया लेकिन गांधीजी कहते हैं कि ‘‘भारत देश के  स्वतंत्रता को मेरे पास रखोगे और कहोगे ये लो स्वतंत्रता और इस स्वतंत्रता के बदले में हम अछूतों को अधिकार देना चाहते हैं तो भी मैं कहूंगा मुझे आजादी नहीं चाहिए। ये गांधी के शब्द हैं। यानि अछूतों को अधिकार देने के बदले गांधीजी को आजादी नहीं चाहिए। गांधीजी आजादी को ठुकराने के लिए तैयार हैं लेकिन अछूतों को अधिकार देने के लिए तैयार नहीं है। अछूतों को अधिकार नहीं मिलने चाहिए। यह सबूत आज भी लंदन में मौजूद हैं। 
सन् 1918 में बाबा साहब का पहला पॉलिटिकल डॉक्यूमेंट साऊथ बॅरो कमीशन को 27 जनवरी 1919 को पेश किया। साऊथ बॅरो कमीशन के सामने बाबा साहब ने पहली बार मत रखा कि अछूत मायनॉरिटी हैं और इन्हें मायनॉरिटी की अधिकार मिलना चाहिए। इसलिए इनको अपना हक मिलने के लिए इनको प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। बाबा साहब कहते हैं कि जब तक हमें प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा तब तक हमको हक और अधिकार नहीं मिलेगा। 
इसीलिए हम आरक्षित मतदान संघ की मांग कर रहे हैं। यह मांग 27 जनवरी 1919 को साऊथ बॅरो कमीशन के सामने रखी। इसके बाद सायमन कमीशन के सामने बाबासाहब ने अपना दूसरा पॉलिटिकल डॉक्यूमेंट पेश किया। इसमें भी उन्होंने प्रतिनिधित्व की मांग की और आरक्षित मतदार संघ की मांग की। सायमन कमीशन ने बाबा साहब से 285 सवाल पूछे। बाबा साहब की सायमन कमीशन के साथ बहुत बड़ी चर्चा हुई इसमें 285 सवालों का जवाब बाबासाहब ने दिया। खासकर तीन सवाल काफी महत्वपूर्ण हैं। पहला सवाल सायमन कमीशन ने बाबा साहब अम्बेडकर से पूछा कि आपको आरक्षित मतदार संघ चाहिए मगर गांधी, कांग्रेस और बाकी नेता तैयार नहीं हुए तो आप क्या करोगे। बाबा साहब ने कहा कि अगर वो आरक्षित मतदार संघ नहीं देंगे तो हम पृथक मतदार संघ की मांगेंगे। ये हमारी रणनीति रहेगी। यह सही है कि शुरूआत में बाबासाहब सेप्रेट एलेक्टरेट के बारे में नहीं सोचते थे। वो तो आरक्षित मतदार संघ के बारे में सोचते थे। लेकिन स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर हमें आरक्षित मतदार संघ नहीं मिले तो हम पृथक मतदान क्षेत्र मागेंगे। मैं प्रमाणित करना चाहता हूं कि 20 सितम्बर 1932 को गांधीजी ने जिस दिन अनशन शुरू किया उस दिन राजभोज को जवाब में लिखा मैं आरक्षण नहीं देना चाहता। इससे प्रमाणित होता है कि गांधीजी किसी भी तरह का आरक्षण देना नहीं चाहते थे लेकिन जब बाबा साहब ने पृथक मतदान क्षेत्र की मांग की तो गांधीजी कहने लगे कि आरक्षित मतदार संघ देने के लिए तैयार हूं। ये मामला आगे चलकर राऊंड टेबल कान्फ्रेंस में पहुंचता है। हमारे लोगों को पता है कि प्रथम राऊण्ड टेबल कान्फ्रेंस में गांधीजी को निमंत्रण था लेकिन वे नहीं गए, दूसरे राऊण्ड टेबल कान्फ्रेंस में उनको निमंत्रण नहीं था फिर भी वो चले गए। कांग्रेस की तरफ से गांधीजी लंदन में पहुंचे। लंदन के हैरो उपनगर में दुनिया के सौ अखबारों को रखा गया है। वहां मैंने अखबार को पढ़ा तो उस समय के सारे अखबार के हेड लाईन में लिखा था कि गांधीजी आप लंदन में आए हो तो आपकी अंग्रेजों से क्या मांग रहेगी। तब गांधीजी ने कहा कि इन सब बात को अलग रखो। बाद में कहा कि डा. अम्बेडकर अछूतों के नेता नहीं है। मैं और केवल मैं मोहनदास करमचन्द्र गांधी अकेला अछूतों का नेता हूं। इस देश के ये महान नेता लंदन की जमीन पर उतरने के बाद पहला शब्द कहते हैं कि अछूतों का एक मात्र नेता मैं मोहनदास करमचन्द गांधी हूं। इसका मतलब है कि उनका लंदन आने का पहला एजेण्डा था डा. बाबासाहब अम्बेडकर के खिलाफ खड़ा होना।
17 अगस्त 1932 को ब्रिटिश सरकार ने कम्युनल एवार्ड घोषित किया, जिसके तहत पृथक मतदान क्षेत्र का अधिकार मिला, अछूतों को पृथक मतदान क्षेत्र का अधिकार मिला इसके अलावा मुसलमानों, सिखों, क्रिश्चनों, एंग्लो इण्डियन, व्यापारी, मजदूर, राजाओं और महिलाओं को भी पृथक मतदान क्षेत्र दिया था। मगर गांधीजी ने इनमें से किसी का विरोध नहीं किया। उन्हांने सिर्फ अछूतों के पृथक मतदान क्षेत्र के अधिकार का विरोध किया था। गांधीजी किसी के अधिकार के खिलाफ नहीं खड़े हुए थे, वे सिर्फ अछूतों के अधिकार के खिलाफ खड़े हुए थे। गांधीजी ने कहा कि अगर इसे खत्म नहीं किया गया तो मैं अनशन करके अपना जीवन खत्म कर दूंगा। बाबासाहब के सामने कितनी बड़ी समस्या थी? क्या वातावरण था? बाबा साहब को बाध्य किया गया पूना समझौता करने के लिए। देहातों में लोगों को मारने काटने की शुरूआत हो गई। बाबासाहब पर कितना दबाव बढ़ने लगा, यहां तक कि बाबासाहब को देशद्रोही तक कहा गया। लेकिन बाबासाहब डटकर खड़े रहे। उन्हांने कहा था कि आप अगर फांसी भी चढ़ाओगे तो भी मैं अपने समाज के हित का काम करूंगा। सवाल बाबासाहब के जिंदा रहने या ना रहने का नहीं था। सवाल था समाज जिंदा रहेगा या नहीं। देश के सारे अछूतों को खत्म किया गया तो फिर बाबासाहब किसके लिए लडेंगे? खुद की जान की बाजी लगाकर, उन्होंने डटकर मुकाबला भी किया लेकिन जब गांव देहातों में अत्याचार होने लगे, गांव जलाए जाने लगे, तब जाकर मजबूरन बाबासाहब ने पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हुए। ये मजबूरी उन्होंने छिपाकर नहीं रखी थी। उन्होंने दूसरे ही दिन 25 दिसम्बर को खुले आम कह दिया था कि मैंने मजबूरन इस पर दस्तखत किया है। बाबा साहब ने 25 दिसम्बर से लेकर अपने मृत्यु के समय तक, बाबा साहब ने पूना करार का बार-बार धिक्कार किया था। पूना पैक्ट से संबंधित एक छोटी किन्तु काफी महत्वपूर्ण बात बताना जरूरी है। पृथक निर्वाचन क्षेत्र तथा संयुक्त आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र में लोगों को गलतफहमी हो जाती है, थोड़ा सा समझाने पर यह गलतफहमी दूर हो जाती है। 
पृथक निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव में उम्मीदार को खड़ा होने का अधिकार सिर्फ अछूतों को था और खड़े हुए अछूत उम्मीदवार को वोट डालने का अधिकार भी सिर्फ अछूतों को ही था। इसमें अछूत अपना हितैषी को चुनकर भेज सकता था लेकिन आरक्षित मतदान क्षेत्र में चुनाव में खड़ा होने वाले उम्मीदवार तो अछूत ही होगा लेकिन उस चुनाव में खड़े हुए अछूत उम्मीदवार को वोट डालने का अधिकार अछूत और सछूत दोनों को होगा। किसी भी मतदान क्षेत्र में अछूतों की संख्या कम है और सछूतों की संख्या ज्यादा है। इसलिए सछूतों की बहुमत होने के कारण सछूत जिसको चाहेगा वही जीतकर जायेगा। इसके तहत अछूतों का अपना सच्चा प्रतिनिधि चुनकर नहीं जाएगा। पुणे करार के बारे में बाबासाहब ने स्टेट्स एण्ड मायनॉरिटी में 16 पन्ने की सूची दी है। 1946 के चुनाव में पूरे देश भर के हर एक मतदान क्षेत्र में क्या हुआ इसका व्यौरा उसमें दिया हुआ है। उसमें उन्हांने प्रमाणित किया है। आरक्षित मतदान क्षेत्र से हमारा हित नहीं होता। हमारा हित पृथक निवार्चन क्षेत्र से ही हो सकता है। जहां उम्मीदवार भी अछूत ही होंगे और मतदान भी अछूत ही करेंगे। कम्युनल आवार्ड के तहत दो बार मत देने का अधिकार था यानि अछूतों को दुबारा सवर्णों को भी चुनने का अधिकार था। पूना पैक्ट की वजह से दो बार मत देने का अधिकार खत्म किया गया, एक ही बार मत देने का अधिकार रखा गया। पूना पैक्ट के द्वारा पृथक निर्वाचन क्षेत्र एवं दो बार वोट देने का अधिकार खत्म हो गया, जिसकी जगह पर आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र और एक ही बार वोट देने का अधिकार रह गया। जिस ढंग से विचार होना चाहिए, नहीं हो सकता है। पूना पैक्ट ने हमें मतदानहीन कर दिया। हमारे मताधिकार के अधिकार को एकदम खत्म कर दिया। इस बात को खासकर के बाबा साहब ने कहा था कि पूना पैक्ट से हमारा बहुत बड़ा नुकसान हुआ। पहला हमारा सही प्रतिनिधि चुनकर नहीं आ पाया। दूसरा हमारे मत के अधिकार की कोई कीमत नहीं रही। हमारा पूरा मताधिकार छीन लिया गया। तीसरा अगर पृथक निर्वाचन क्षेत्र मिलता तो बाबा साहब के पीछे पूरे भारत का अछूत खड़ा रहता। ओबीसी और मायनॉरिटी भी बाबा साहब के नेतृत्व में चलते। इसका आपको सबूत देना चाहता हूं। सन् 1932 के बाद ही क्यों महाराष्ट्र में जेधे जवलकर, भास्करराव जाधव, मुकुन्दराव पाटिल इन सभी लोगों को गांधीजी और कांग्रेस ने मिलजुलकर कांग्रेस में शामिल कर लिया। उसके पहले क्यों नहीं किया था। इसका कारण यह है कि गांधीजी ने धोखा महसूस किया कि अब बाबासाहब अकेले अछूतों के नेता नहीं रहेंगे। गांधीजी ने एससी, एसटी, ओबीसी और वीजेएनटी के नेताओं को कांग्रेस में शामिल किया। जिससे बाबासाहब ने जो अर्जित किया था, उसको खत्म करने के लिए गांधीजी और कांग्रेस ने मिलकर काम तमाम कर दिया और पूना पैक्ट करवाया। पूना पैक्ट का एससी और एसटी के लिए धोखाधड़ी के साथ-साथ ओबीसी के लिए ये सबसे बड़ी धोखाधड़ी थी। क्योंकि आगे चलकर ओबीसी बाबासाहब के नेतृत्व में थे। लेकिन गांधी और कांग्रेस ने पूना पैक्ट की वजह से ओबीसी के नेता को बाबासाहब से तोड़कर कांग्रेस में शामिल करवाया, जिससे ओबीसी का कोई स्वतंत्र नेतृत्व उभरकर आज तक सामने नहीं आया। यह एक मात्र पूना पैक्ट के कारण हुआ। जो ओबीसी के लोग बाबासाहब के नेतृत्व में खड़े होने चाहिए थे, वो हो नहीं पाए। क्योंकि ओबीसी को सŸा देकर फंसाया गया।
अगर पूना पैक्ट नहीं हुआ होता तो सारे ओबीसी बाबासाहब के नेतृत्व में जाते और बाबासाहब भारत वर्ष में सबके (एससी, एसटी, ओबीसी, मायनॉरिटी) नेता बन चुके होते तब संविधान अलग से बन जाता। हम जानते हैं कि संविधान सभी में ओबीसी के सिर्फ तीन लोग थे, लेकिन कांग्रेस से ओबीसी का एक भी नेता नहीं था। कांग्रेस के संविधानसभा में 212 लोग थे लेकिन इनमें ओबीसी से एक भी नेता नहीं थे। ओबीसी के तीन लोगों में एक पंजाब से अकाली दल से चुनकर गए थे और दो मुम्बई प्रदेश से चुनकर गए थे। एक स्वयं पंजाब राव देशमुख थे, दूसरे तुकाराम और गीताचार्य थे। इन तीन लोगों ने संविधान सभा में कोशिश की और बाबा साहब वहां होने के कारण संविधान में धारा 340 मिला। धारा 340 के द्वारा एक आयोग गठित करने का अधिकार मिला। आज मण्डल की जो हालत है वो देखने को मिल रही है।
अगर पूना करार नहीं होता और पूना करार के तहत गांधीजी बाबा साहब से अधिकार नहीं छीनते तो बाबा साहब की ताकत को पहचानकर ओबीसी भी बाबासाहब के नेतृत्व में खड़े हो गए होते। ओबीसी को बाबासाहब के साथ खड़े होने से संविधान में ओबीसी को न सिर्फ धारा 340 मिलता, बल्कि मूलअधिकार के तहत 26 जनवरी 1950 से ही ओबीसी को आरक्षण मिल जाता। पूना समझौता होने के कारण 26 जनवरी 1950 को कुछ नहीं मिला। सिर्फ धारा 340 मिला। बाबासाहब ने 10 नवम्बर 1951 को मंत्री पद से जब इस्तीफा दिया तो उन्होंने लिखा कि हम अपने ओबीसी के लिए संविधान में कुछ नहीं कर पाए। हमने एक आयोग स्थापित करने की बात की थी। सरकार ने उसको भी नहीं माना। उसका धिक्कार करते हुए उनहोंने इस्तीफा दिया। अगर पूना करार नहीं होता, तो 1952 के चुनाव में एससी, एसटी, ओबीसी, बीजेएनटी और मायनॉरिटी बाबासाहब के पक्ष में खड़े हो जाते। 1952 के इलेक्शन के नतीजे बदल जाते। कांग्रेस को पूरा का पूरा समर्थन मिला, वो नहीं मिल पाता। इसी तरह 1957 के चुनाव में भी बदल जाता और 1956-70 के आते-आते एससी, एसटी, ओबीसी, मायनॉरिटी को सŸा का सूत्र हम मूलनिवासी बहुजनों के हाथ में आ जाता। हम 1970 तक इस देश में आजाद हो गए होते, लेकिन ऐसा पूना करार होने के कारण नहीं हो पाया। पूना पैक्ट के कारण तीन और बातें हुई। पहली बात हुई कि पूना समझौता में कहा था कि दस साल बाद इस करार का रिव्यु किया जायेगा। पूना करार ही हमें चर्चा करने के लिए कहती है। सन् 1942 में रिव्यु होना था लेकिन नहीं हो पाया, 1952 में हम स्वतंत्र हो गए थे। बाबा साहब के बजाय खास करके कांग्रेस ने रिव्यु नहीं किया। 1962 और 1972 में भी रिव्यु नहीं हुआ। लेकिन 1982 में मान्यवर कांशीरामजी ने जब पूना पैक्ट को 50 साल पूरे हुए तो उसके खिलाफ आवाज उठाई। उसके बाद से बामसेफ और अन्य संगठन पूरे 25 साल से लगातार चर्चा कर रहे हैं। 
बाबासाहब ने फन्डामेंटल राईट में धारा 15(4) और 16(4) में कहते हैं शिक्षा और नौकरी के आरक्षण में कहते हैं कि जब तक हमारा पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो जाता तब तक आरक्षण मिलना चाहिए। बाबासाहब कहते हैं कि जिसकी संख्या जितनी भारी उसकी उतनी भागीदारी की बात बाबा सहाब फंडामेंटल राईट में कहते हैं। अगर पूना करार नहीं होता तो ये सिर्फ एससी और एसटी के लिए ही नहीं बनता बल्कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए बनता। ओबीसी की आरक्षण की बात आजादी मिलने के 60 साल बाद भी सुप्रीम कोर्ट में लटक रही है। पूना करार के कारण ओबीसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। सबसे बड़ा धोखा ओबीसी के साथ हुआ। लेकिन बात करते समय लोग कहते हैं कि बाबासाहब अछूतों और अनुसूचित जनजातियों के नेता हैं, इसलिए नुकसान हुआ तो एससी और एसटी को हुआ। यह एकदम गलत बात है। एससी और एसटी को नुकसान तो हुआ ही लेकिन सबसे बुरा नुकसान ओबीसी को हुआ इसलिए ओबीसी को संविधान में धारा 340 के अलावा कुछ भी नहीं मिला।
1932 में कम्युनल अवार्ड के तहत मुसलमान, ईसाई और सिक्खों को भी अलग से आरक्षण मिला था लेकिन पाकिस्तान बनने के बाद मौलाना आजाद और नेहरू से बात करके पाकिस्तान बनने का कारण देकर इसे खत्म कर दिया गया। अगर पूना पैक्ट नहीं होता तो मुसलमान, क्रिश्चन और सिख भी बाबा साहब के साथ जुड़ जाते और 1950 में उनका आरक्षण खत्म नहीं होता, मैं यह साबित करना चाहता हूं कि पूना पैक्ट के कारण इस देश के मुसलमानों, क्रिश्चयन और सिखों का भी अधिकार छीन लिया गया। अंत में बाबा साहब का एक स्टेटमेंट दोहराना चाहता हूं जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘‘अगर सेप्रेट इलेक्टरेट होता तो उनको जो सबसे अच्छा च्वाईस है, चुन सकते थे। अब ज्वाईंट इलेक्टरेट होने से वे सबसे अच्छा च्वाइस नहीं चुन सकते हैं। दूसरी बात बाबा साहब ने कहा था कि ‘बातें और भी बिगड़ जायेंगी और भी नुकसान हो जायेगा क्योंकि आने वाले समय में पूना पैक्ट के तहत संविधान में  चुनाव की पद्धति बनेगी। बाबासाहब ने ये बातें स्टेट एण्ड मायनॉरिटी में लिख रखा है। और भी बाबासाहब कहते हैं कि ‘पूना करार द्वारा हमें पूरी तरह डिसफ्रेन्चाईज (मत के अधिकार से वंचित) कर दिया गया। ये इतना गम्भीर मामला है कि लोकतंत्र में लोगों की सŸा होती है। लोकतंत्र में लोगों को मतदान का अधिकार होता है। आज हमें मतदान का अधिकार है लेकिन वो दिखावे के लिए है। हम अपना प्रतिनिधि संसद में चुनकर नहीं भेज सकते, इसलिए बाबा साहब कहते हैं कि हमें डिसफ्रेंचाईज किया गया अर्थात मतदान के अधिकार से वंचित किया गया। पूना पैक्ट के द्वारा बहुजन समाज के साथ धोखा किया गया, इससे दो धोखा हुआ। एक तो एकजुट होकर अपने अधिकार के लिए लड़ने में बाधा डाली गयी। दूसरी बात उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित कर दिया गया। हम आज तक मतदान के अधिकार से वंचित हैं। हम अपने लोगों को चुनकर नहीं भेज सकते हैं। आज फिर से सेप्रेट इलेक्टरेट को लाना संभव नहीं है। क्योंकि 1932 में देने वाले ब्रिटिश थे लेकिन आज सरकार में ब्राह्मणवादी लोग हैं, हम मांगेंगे भी, तो देंगे नहीं। इसलिए सेप्रेट इलेक्शन की मांग करना बेमानी है। पूना पैक्ट की लोगों को जानकारी देकर जगाएंगे और उन्हें जागृत कर राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के माध्यम से हम अपनी सŸा और आजादी लेंगे।

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