हिन्दू शब्द अपनाने की ब्राह्मणों की क्या मजबूरी?
अभी दो दिन की बात है आरएसएस प्रमुख मोहनभागवत ने एक बार फिर बयान दिया है कि भारत में रहने वाले सभी हिन्दू हैं। यह बात समझने के लिए यह समझना होगा कि जिस हिन्दू शब्द को ब्राह्मणों ने स्वीकार करने से इनकार कर दिया आखिर क्या कारण हुआ कि अस्वीकार किए हुए शब्दों को अपना लिया? इस बात का इतिहास गवाह है कि यूरेशियन ब्राह्मणों ने विचार मंथन के बाद हिन्दू शब्द को अपनाया और 1922 में पं.मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में हिन्दू महासभा की स्थापना की तथा प्रचारित करने लगे कि जैसा आज मोहनभागवत प्रचारित कर रहा है कि सभी वर्ण के लोग हिन्दू हैं। यूरेशियन ब्राह्मणों ने वैदिक धर्म, सनातन धर्म एवं ब्राह्मण धर्म को हिन्दू धर्म में परिवर्तित कर दिया। राजाराम मोहन राय द्वारा 1828 में स्थापित ब्राह्म समाज प्रार्थना सभा तथा दयानन्द सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज से अपने को मुक्त कर लिया और समस्त ऊर्जा हिन्दू शव्द को प्रचारित करने में लगा दिया। 1925 में नागपुर में डॉ.बलिराम हेडगेवार ने आरएसएस की स्थाना की। आरएसएस ने ‘‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’’ यह प्रचारित किया। चूंकि समस्त ब्राह्मणवादी मीडियामें यूरेशियन ब्राह्मणों का कब्जा है जिसके कारण इसमें ब्राह्मणवादी मीडिया भी शामिल हो गया। अब प्रश्न उठता है कि यूरेशियन ब्राह्मणों ने ऐसा क्यों किया? जो हिन्दू शब्द को पहले अस्वीकार किया था बाद में उसी अस्वीकार किए हुए शब्द को पुनः गले लगा लिया। इसका सही जवाब यह है कि हिन्दू शब्द अपनाने के पीछे यूरेशियन ब्राह्मणों के दो उद्वेश्य हैं। पहला-यह कि प्रजातंत्र में जिनका बहुमत होता है, सŸा उसी के हांथ में होती है। ब्रिटिश वयस्क मताधिकार से यूरेशियन ब्राह्मणों में खलबली मच गई कि भारत स्वतंत्र होने के बाद यहां पर भी वयस्क मताधिकार लागू हो सकता है। अगर भारत में ऐसा हो गया तो एक वोट की कीमत लागू होगी, इससे भारत से ब्राह्मणवाद हमेशा-हमेशा के लिए नेस्तानाबूद हो जाएगा और सŸा पर सदियों से अधिकार वंचित मूलनिवासी बहुजन समाज का कब्जा हो जायेगा। ऐसा न हो इससे मुक्ति के लिए हम (अल्पसंख्य ब्राह्मणों) को हिन्दू शब्द को अपनाना होगा, जिससे की सŸा पर हमरा एकाधिकार बना रहे। इसी उद्वेश्य की पूर्ति के लिए समस्त ब्राह्मणों ने अपने आपको हिन्दू घोषित किया। जिसका परिणाम है कि आज तक अल्पसंख्यक यूरेशियन ब्राह्मण हिन्दू शब्द को आधार बनाकर बहुसंख्य (बहुजनों) पर राज कर रहा है।
दूसरा उद्वेश्य था कि शूद्रों को शूद्र कहने से शूद्रों में होने वाली प्रतिक्रिया को समाप्त करना, क्योंकि ब्राह्मणों को पता था कि शूद्र वर्ण के लोगों को यदि शूद्र कहा जाता है तो वे जातियां अपमान महसूस करती हैं तथा प्रतिक्रिया स्वरूप ब्राह्मणों के विरूद्व आंदोलन खड़ा कर सकती हैं। यह विचार कर सकती हैं कि यूरेशियन ब्राह्मणों ने हमें शूद्र बनाकर अपमानित ही नहीं किया है बल्कि समस्त मानवीय अधिकारों से भी वंचित किया है। इस प्रतिक्रिया से बचने के लिए ब्राह्मणों ने शूद्रों-अतिशूद्रों को हिन्दू कहना शुरू किया। इसमें भी एक राज वह यह है कि ब्राह्मणों ने शूद्रों-अतिशूद्रों को तो शूद्र कहना बंद कर दिया, मगर शूद्र मानना बंद आज तक नहीं किया है। इस तरह से शूद्रों और अति शूद्रों को हिन्दू बनाकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ पनप रहे आंदोलन को शांत कर दिया।
यही नहीं हिन्दू एकता को प्रभवी बनाने के लिए शूद्रों को अपने साथ जोड़ने के लिए मुगल आक्रमणकारियों के द्वारा मध्यकाल में किए गए अत्याचारों का बखान करना, यह एक ऐसा उपाय यूरेशियन ब्राह्मणों ने ढूंढ निकाला, जिसमें शूद्रों-अतिशूद्रां को हिन्दू बनाने में मदद मिली। यूरेशियन ब्राह्मण शूद्रों के सम्मुख अपने को छुपा कर छद्म दुश्मन मुसलमानों को पेश कर अपने आपको सुरक्षित कर लिया तथा हिन्दुओं का निर्विवाद नेता बन गया। क्योंकि वह जानता था कि हिन्दू-मुसलमान का विवाद जितना ज्यदा होगा, यूरेशियन ब्राह्मण उतना ही शक्तिशाली होगा। अतः हिन्दू संकल्पना को अपनाने से यूरेशियन ब्राह्मण पुनः समाज का सर्वोच्च नेता बन गया। इसी के साथ शूद्र जातियों को झूठा सहयोग दिया ताकि शूद्रां में ब्राह्मणी व्यवस्था के प्रति विद्रोह पैदा न हो। वर्तमान में सभी पिछड़ी जातियां जो कि मूलतः शूद्र वर्ण में आती है उनको ब्राह्मणों द्वारा रचाए गये कपोल काल्पनिक अधारित वेद, पुराण, गाता , रामायण और महाभारत के माध्यम से मानसिक गुलाम बना दिया। आज मूलनिवासी बहुजन समाज शिक्षित होने के बाद भी न केवल अपने आपको हिन्दू मानते हैं बल्कि हिन्दू होने पर गर्व भी करते हैं और ब्राह्मणों का हथियार बनकर अपनों का ही गला काट रहे हैं। यही कारण है कि यूरेशियन ब्राह्मणों ने अपने आपको हिन्दू कहना शुरू किया, जिसका नतीजा है कि आज भी अल्पसंख्यक ब्राह्मण बहुसंख्य बहुजनों पर हिन्दू के नाम पर सŸा पर नाजायज कब्जा किया है।
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