दिल्ली में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की मीटिंग हो रही थी। देश का प्रधानमंत्री सारा का सारा मंत्रीमण्डल लेकर आरएसएस की मीटिंग में गया और वहाँ आरएसएस के सरसंघचालक को कहा कि हमने इतने महीने में क्या-क्या काम किया, उसका रिपोर्ट देने का काम कर रहे थे। आपलोगों को यह जानकारी नहीं होगी। आप लोगों को यह जानकारी नहीं होगी कि संविधान में इस संदर्भ में क्या-क्या लिखा है? सविधान में लिखा है कि देश का एक प्रधानमंत्री होगा, उसकी सलाह देने के लिए एक मंत्रीमण्डल होगा। प्रधानमंत्री मंत्रीमण्डल की सलाह से कार्य करेगा और वह जो भी कार्य करेगा, वह संसद के प्रति जवाबदेह होगा। उसमें कहीं पर भी यह लिखा हुआ नहीं है कि वह आरएसएस के प्रति जवाबदेह होगा। देश का प्रधानमंत्री क्या काम कर रहा है? वह संसद को बताये। देश का प्रधानमंत्री आरएसएस को जाकर बता रहा है, जबकि वह आरएसएस के प्रति जवाबदेह नहीं है। आरएसएस को देश के मंत्रीमण्डल की समीक्षा करने का कोई अधिकार नहीं है। यह बहुत गभीर बात है। इसलिए मैं इस अधिवेशन में इस बात को नोट करवा रहा हूँ। अगर कोई मुसलमान इस बात को उठाता तो उसे सम्प्रदायिक रंग देकर, इस मुद्दे को डायभर्ट करने की कोशिश होती। मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि इसे एससी, एसटी और ओबीसी के द्वारा इस मामले को खासतौर पर उठा रहें हैं।
26 जनवरी 1950 को, जिस संविधान को लागू किया गया और जिस संविधान को हमारे बुजुर्गा ने सहमती दी थी, उसके विरोध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आचरण है। जिसको हम लोग बिल्कुल भी मानने के लिए तैयार नहीं है। हम इससे सहमत नहीं है और हम इसके विरोध में है। प्रधानमंत्री के द्वारा इस तरह का आचरण नहीं होना चाहिए। नरेन्द्र मोदी इस बात को भूल गए हैं कि वह इस देश के प्रधानमंत्री हैं। वह आरएसएस के प्रधानमंत्री नहीं है। नरेन्द्र मादी ने देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली है। उसने आरएसएस के प्रधानमंत्री की शपथ नहीं ली है। प्रधानमंत्री संसद के प्रति जवाबदेह है। यह संविधान के अन्दर लिखा हुआ है। बाबासाहब अम्बेडकर का और मुस्लिम, सिख, क्रिश्चन तथा अन्य मायनॉरिटी के नेताओं का संविधान निर्माण के पहले एक बहुत मौलिक आग्रह था कि जब तक भारत का संविधान पास ना हो, तब तक अंग्रेज भारत छोड़कर ना जाए। नहीं तो भारत में मनुस्मृति का राज लागू ना हो जाए, उनके मन में यह आशंकाएँ थी। यह रिकॉर्डेड बात है। इसके दस्तावेजी सबूत हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस आचरण को हम लोग किसी भी हालत में मानने के लिए तैयार नहीं हैं। नरेन्द्र मोदी का यह आचरण संविधान के विरोध में हैं
संविधान के विरोध में एक और बड़ा काम हुआ है। 26 जनवरी, 1950 के बाद में संविधान के द्वारा इस देश में संवैधानिक लोकतंत्र लागू किया जाना चाहिए था। इसके विरोध में जाकर इस देश में कम्यूनल निजाम कायम कर दिया गया। इस देश में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया पर ब्राह्मणों का कब्जा है। इस देश में लोकतंत्र के चारों पिलर पर ब्राह्मणों का कब्जा है और इस देश में कम्युनल निजाम कायम किया जा चुका है। यह 26 जनवरी, 1950 के बाद में किया गया है।
तीसरी महत्वपूर्ण बात आपको बताना चाहता हूँ कि कांग्रेस के लोगों द्वारा केन्द्र सरकार पर कब्जा किया गया। यह कब्जा अवैध तरीके से किया गया। इसके सारे तथ्य उपलब्ध हैं। भारत में चुनाव का जो तरीका है, वह दुनिया में सबसे ज्यादा भ्रष्ट तरीका है। इसके बारे में हमारे पास बहुत सारे दस्तावेजी सबूत हैं। ब्राह्मणों ने चुनावों में भ्रष्ट तरीके का उपयोग करके अल्पसंख्यक ब्राह्मणों द्वारा देश के बहुसंख्य लोगों पर यह सारी बातें थोपी हुई है। अभी हमारे पास ताकत कम है। अगर हमारे पास ताकत हो तो हम लोग इनको तहसील स्तर पर भी काम करने नहीं देंगे, क्योंकि आप चुनाव में भ्रष्ट तरीके से बहुमत हासिल कर सकते हैं, मगर जरूरी नहीं कि आप सरकार चला सकें। क्योंकि बहुमत हासिल करना एक बात है और पाँच साल तक सरकार चलाना दूसरी बात है। यह बात मैं आपको बता रहा हूँ कि जैसे ही हमारे पास ताकत आ जाएगी, हम उसको तहसील पर भी काम नहीं करने देंगे। आप लोग बोलेंगे की फिर यह तो गलत बात है, यह तो संविधान के विरोध में जाकर काम करने का मामला बनेगा।
मैं आपलोगों को यह बताना चाहता हूँ, इसको समझना बहुत ज्यादा जरूरी है कि 09 अगस्त, 1942 को गांधीजी ने भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू किया था और सारे देशभर में हिंसा हुई थी। कांग्रेस के लोग और इतिहास लिखने वाले जो ब्राह्मण हैं, वो कहते हैं कि गांधीजी ने अहिंसा से आजादी दिलाई। यह दो सौ प्रतिशत झूठ बात हैं। अंग्रेजों के पास इसके दस्तावेजी सबूत है कि गांधीजी भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान करो या मरो (डू एण्ड डाई) का नारा लगाया था। इस वजह से सारे देशभर में हिंसा हुई थी। अगर इस वजह से सारे देशभर में हिंसा हुई थी तो यह बहुत बड़ा हिंसक आन्दोलन था। हम ऐसा कह सकते हैं कि ब्राह्मणों का यह कब्जा हिंसा के द्वारा किया हुआ है। 09 अगस्त, 1942 को गांधीजी के द्वारा ‘करो या मरो’ का नारा लगाया गया था। इस वजह से सारे देशभर में हिंसा हुई थी। यह हिंसा राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी। इसके दस्तावेजी सबूत है।
उस समय इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री चर्चिल थे। उनके पास अंग्रेजों ने लिखित रिर्पोट भेजा था। उस रिर्पोट में लिखित कहा गया था कि भारत सरकार के पास जितना रेभन्यू (राजस्व) मिल रहा है। उतने रेभन्यू से देश में कानून व्यवस्था संभालना संभव नहीं है। अगर लंदन से भारत में पैसा लाकर कानून व्यवस्था संभालना है तो अंग्रेजों को भारत में रहने का कोई औचित्य ही नहीं है। अंग्रेजों ने देश पर इसलिए कब्जा किया है ताकि अंग्रेज भारत से पैसा इंग्लैण्ड लेकर जा सके। अगर इंग्लैण्ड से यह पैसा लाकर कानून व्यवस्था संचालित करना पड़े तो अंग्रेजों को भारत में रहने का कोई औचित्य ही नहीं है। यह रिर्पोट है। गांधीजी के द्वारा इतना बड़ा हिंसक आन्दोलन चलाया गया था। तब यह रिर्पोट, उस समय, चर्चिल को भेजे गए थे। क्योंकि उस समय चर्चिल इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री था। उसने भी इस बात को स्वीकार किया था कि भारत में इतनी बड़ी हिंसा हुई थी।
भारत छोड़ो आन्दोलन में इतनी हिंसा करने के बाद चर्चिल ने कांग्रेस के नेताओं के साथ वार्ता करने का आश्वासन दिया था और वार्ता करने के लिए चिर्चिल ने क्रिप्स कमीशन भेजा था। मगर वह क्रिप्स कमीशन फेल हो गया। गांधीजी उस समय जेल में थे। तब गांधीजी ने जेल से उस समय के गर्वनर जनरल को चिट्ठी भेजी और उस चिट्ठी में उन्होंने कहा कि आप लोगों ने हमें आजादी देने का वादा किया था। तब उस समय के गर्वनर जनरल ने कहा कि हम तो अभी आजादी देने के लिए तैयार हैं, मगर देश में एससी, एसटी और मॉयनॉरिटी के लोगों को संवैधानिक सुरक्षा (कॉन्स्टीट्यूशनल सेफगार्ड) चाहिए। क्या आप एससी, एसटी और मायनॉरिटी के लोगों को संवैधानिक सुरक्षा देने के लिए तैयार हैं? तो गांधीजी ने लिखित चिट्ठी भेजी और उस लिखित चिट्ठी में उन्होंने लिखा कि हम संविधान के अन्दर किसी भी प्रकार का कोई भी संवैधानिक गारंटी देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके बाद मामला बहुत पेचींदा हो गया और जान बुझकर संभवतः देश के विभाजन में मामला आगे गया। यह भयंकर इतिहास हमारे सामने है।
इसके बाद इस बात के बारे में ज्यादा आग्रह किया गया कि अंग्रेज ट्रांसफर ऑफ पावर करने के पहले संविधान पर आम सहमति बनाने का काम करे और आम सहमति बनने के बाद ही अंग्रेज भारत छोड़कर जाए। मैं जो बात आपको बता रहा हूँ, इसमें बहुत सारी बातें लोगों को समझ में नहीं आएगी कि संविधान पर आम सहमति बनाने की जरूरत क्यों थी? क्योंकि संविधान पर तभी सहमती बनती है, दूसरे जो ताकतवर लोग हैं, जिन्होंने हिंसा के द्वारा भारत पर कब्जा करने का प्लान बनाया था, वो तो कुछ देना नहीं चाहते थे। इसका मतलब है कि वे हिंसा के द्वारा कब्जा करना चाहते थे। संविधान में सहमति बनाने का जो आग्रह था, वह आग्रह कांग्रेस का नहीं था बल्कि संविधान बनने के बाद ही अंग्रेज देश छोड़कर जाए। यह आग्रह कांग्रेस को छोड़कर दूसरे लोगों का था। यह बहुत अहम बात जानने और समझने की है। कांग्रेस संविधान नहीं बनाना चाहती थी, क्योंकि कांग्रेस के पास पहले से ही मनु का बनाया हुआ संविधान था।
मैं एक और उदाहरण आपको बताना चाहता हूँ कि भारत में ब्राह्मण केन्द्र की सŸा पर कब्जा किया। हमारे देश में बहुस्तरीय शासन प्रणाली है। जैसे सेंट्रल गवर्नमेंट हैं, फिर लोकल सेल्फ गवर्नमेन्ट है और फिर उसके नीचे ग्राम पंचायत है। इसका मतलब है कि इस देश में बहुस्तरीय शासन प्रणाली है। अभी ग्राम पंचायत के संदर्भ में केन्द्र सरकार के द्वारा कानून भी पास किया गया है, जो संविधान सभा में बाबासाहब अम्बेडकर के विरोध की वजह से पास नहीं हुआ था। भारत में बहुस्तरीय शासन प्रणाली में केन्द्र सरकार में ब्राह्मणों का कब्जा है। केन्द्र सरकार में ब्राह्मणों का कब्जा होने के बाद ब्राह्मणों को संतुष्ट होना चाहिए था। मगर ब्राह्मण संतुष्ट नहीं है।
आप अन्दाजा लगाओ कि ब्राह्मणां ने केन्द्र की सरकार पर कब्जा तो कर ही लिया है, अब राज्य में किसको मुख्यमंत्री बनाना है, यह निर्णय भी ब्राह्मण कर रहा है। इसको अनियंत्रित सŸा कहते हैं। इसे अंग्रेजी में एबसुलेट पावर कहते हैं। इसके बाद जो मुख्यमंत्री है वह जिला, पंचायत का अध्यक्ष नोमिनेट करता है। वह मेयर को नोमिनेट करता है। इस तरह से सारे पंचायत राज पर कब्जा हो जाता है। इस तरह से प्रत्यक्ष रूप से सारे के सारे देश पर कब्जा हो जाता है। संविधान में ऐसा नहीं है, मगर संविधान के विरोध में जाकर ऐसा काम किया जा रहा है। ये काम कांग्रेस के लोग कर रहे थे।
साथियों, मैं ये बातें इसलिए आपको बता रहा हूँ कि मैंने आपको एक स्टेटमेंट दिया था कि जिस संविधान पर आम सहमति बनाकर पावर ऑफ ट्रान्सफर (सŸा हस्तान्तरण) किया गया था, उस संविधान के विरोध में जाकर काम हो रहा है। संविधान के उस आम सहमति का उल्लंघन किया जा रहा है। अगर देश में संविधान के अनुसार काम किया गया होता, तो भी हमारे लोगों की समस्याओं का सामाधान हो गया होता। अगर संविधान का लेटर एण्ड स्पिरिट (संविधान की मूल भावना) का अमल किया गया होता तो भी हमारे लोगों की समस्याओं का समाधान हो गया होता। संविधान में जितना कुछ भी है, अगर उसका भी अमल किया गया होता, तो हमारे समस्याओं का समाधान हो गया होता, मगर संविधान के विरोध में जाकर जो इलेक्टोरल सिस्टम (चुनाव प्रक्रिया) है, उसमें नोमिनेटेड मेम्बर होता है। पार्टी जिस व्यक्ति को नोमिनेट करती है और उसको कैन्डिडेट के तौर पर नोमिनेट करती है, तो पार्टी उस व्यक्ति को सारा ताकत लगाकर एवं पैसा और पब्लिसीटी देकर उस नोमिनेटेड व्यक्ति को चुनवाकर लाती है और चुनवाकर लाने के बाद उस सदस्य को पूछना बंद कर देती है।
पॉर्लियामेंट में जो भी कानून पास होता है, उसके लिए उस चुने हुए सदस्य को पूछना बंद कर देती है। पार्लियामेंट में कानून दो तिहाई बहुमत से पास होते हैं। कांग्रेस भी इसी तरह कानून पास करती रही है और बीजेपी भी इसी तरह कानून पास करती है। जिस तरह से इस देश में लोकतंत्र हमारे पुरखे चाहते थे, इस लोकतंत्र के विरोध में, इस देश में ब्राह्मणतंत्र स्थापित किया गया।
साथियों, बामसेफ के लोगों को सारे देशभर में आनेवाले समय में मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड के साथ मिलकर एवं दूसरे धर्म के जो लोग हैं, जैसे-लिंगायत, क्रिश्चन, बौद्व, सिख और जैन धर्म के लोगों को साथ में लेकर क्योंकि वे भी परेशान है, उनको साथ में लेकर एक एŸोहाद, एक एकता कायम करनी होगी। फिर एक राष्ट्रीय स्तर की एक तहरीक बनानी होगी। इस तहरीक बनाने के अभियान में हम बामसेफ के लोग बराबरी के शरीक हैं। ये संदेश राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले जो लोग हैं, उनको मैं देना चाहता हूँ। ये जो सारे जिलों में जो बड़े-बड़े कार्यक्रम हो रहे हैं, उसमें सौ कार्यक्रम आयोजन करने की जिम्मेदारी बामसेफ की होगी। देशभर में 500 जिलों में कार्यक्रम होंगे। उसमें से सौ बड़े कार्यक्रम, हम अपने मैनेजमेंट में लगाऐंगे और उसका सारा खर्चा हम उठायेंगे। इन कार्यक्रमों का नियोजन हम देखेंगे और उसमें मुस्लिम समाज के जो लोग हैं, उनके साथ कॉ-ऑर्डिनेशन से कमेटियाँ बनेगी और मिल-जुलकर इस काम को हम लोग करेंगे। ये बात देशभर से आए हुए सभी कार्यकर्ताओं के सामने इसलिए बता रहा हूँ, ताकि जिले-जिले में जाकर बताने की जरूरत नहीं हो। एक बहुत बड़ी तहरीक आने वाले दस सालों मे खड़ी हो सकती है और बहुत सूझ-बूझ और धीरज से हमको इस काम को करना होगा।
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