2000 के नोट वापस ले सकता है आरबीआई-एसबीआई
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
बनाकर क्यों बिगाड़ा रे.....इसी गीत को चरितार्थ करते हुए आरएसएस नीति वाली केन्द्र की मोदी सरकार ने पहले 1000 और 500 के पुराने नोटों को बंद किया और इसके एवज में 2000 के नये नोट को शुरू किया और अब फिर 2000 के नये नोट को बंद करने का फरमान जारी कर रही है। इससे तो यही लगता है कि जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के इशारे पर एक साल पहले देश में हिन्दू बनाम मुसलमानों की घर वापसी हुई थी और आज इसी आरएसएस नीति वाली ही मोदी सरकार के इशारे पर 2000 के नये नोटों की भी घर वापसी शुरू हो चुकी है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने कहा है कि वह 2000 के नये नोट या तो वापस ले सकता है या फिर उसकी नई छपाई बंद कर सकता है। इस बात का खुलासा तब हुआ जब बृहस्पतिवार 21 दिसम्बर 2017 को एसबीआई की रिपोर्ट में यह बात सामने आई।
दैनिक मूलनिवासी नायक प्रमुख संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि पिछले साल देश भर में लागू की गई नोटबंदी आज भी हरेक व्यक्ति के जेहन में होगी। जिसका नाम सुनते ही एक बार फिर वो दिन ताजा हो जाते हैं कि उस दौरान पूरे देश में वो त्रासदी देखने को मिली थी जो पहले कभी भी देखने को नहीं मिली थी। उस वक्त नोटबंदी का असर पूंजीपतियों के ऊपर तो कवई नहीं पड़ा क्योंकि नोटबंदी फेयरइन लवली जैसे कालेधन को गोरा बनाने वाली वह योजना थी, जिसमें पूंजीपतियों ने अपने सारे कालेधन गोरे कर लिए। ज्यादा मुस्किल में तो वो लोग थे जिनके पास खातों में हजार दो हजार रूपये बढ़ी मेहनत के बाद रखे थे। ऐसे ही लोगों को कैश लेने के लिए दिनभर लाईनों में खड़ा रहने के बाद न केवल पुलिस की लाठियां खाने व मौत को गले लगाने के बाद कुछ रूपये निकाल पाते। नोटबंदी जैसे खतरनाक फैसले का सरकार को क्या फायदा हुआ यह बात आज तक कोई नहीं जान सका। क्योंकि न तो महंगाई कम हुई, न तो किसी के खाते में धन आया और न ही अर्थाव्यवस्था पटरी पर आई, बल्कि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई। इसका इतना भयंकर परिणाम यह निकला कि देश की आम गरीब जनता आज तक अपने को ठगा महसूस कर रही है।
गौरतलब है कि एसबीआई की रिपोर्ट में आरबीआई के हवाले से कहा गया है कि 2000 के नये नोट के लेनदेन में परेशानी को देखते हुए आरबीआई ने सावधानी बरतते हुए यो उसकी ढपाई बंद कर दी हो या फिर बाजार में तरलता की स्थित सामन्य होने के बाद सप्लाई कम कर दी हो। एसबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में लोकसभा में में पेश आरबीआई की सलान रिपोर्ट के आंकड़ों के मिलान के बाद यह तथ्य सामने आया है कि मार्च 2017 तक 3501 अरब रूपये की छोटी करेंसी बाजार में चलन में थी। इसका तात्पर्य यह है कि 08 दिसंबर तक 13324 अरब रूप्ये मूल्य के बराबर बड़ी करेंसी चलन में थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि 08 दिसंबर तक आरबीआई में 500 रूपये के 169570 लाख के नोट छापे हैं और 2000 रूपये के 36540 लाख नोट। इसका मतलब यह हुआ कि आरबीआई ने कुल 2463 अरब रूपये के 2000 के नोट तो छापे थे, लेकिन उन्हें बाजार तक नहीं पहुँचाया गया है। जिस तरह से रिपोर्ट में बताया गया है कि आरबीआई ने कहा है कि 2000 के नये नोट के लेनदेन में परेशानी को देखते हुए आरबीआई ने यह कदम उठाया तो यहां पर सवाल खड़ा होता है कि क्या यह बात आरबीआई को पहले नहीं थी कि आने वाले समय में इनते बड़े नोट से मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा? इस अर्थ यह हुआ कि सरकार और आरबीआई सब कुछ जानते हुए ऐसा कदम उठाया था, क्योंकि नोटबंदी की आड़ में सभी पूंजीपतियों के कालेधन सफेद हो गये। जब तक पूंजीपतियों के कालेधन सफेद नहीं हुए थे तब तक 2000 रूपये के नोट चलन में थे और अब जब पूंजीपतियों के सारे कालेधन सफेद हो गये तो अब सरकार और आरबीआई मुश्किलों का बहाना लगा कर 2000 के नोटों की घर वापसी कर रही है।
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