शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

थोक भाव में खत्म होती सरकारी नौकरियां

मोदी राज में नौकरियों का बुरा हाल
सरकारी रिक्त पदों की भर्तियों पर तालाबंदी

मुम्बई/दै.मू.समाचार
देशविनाशक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नोटबंदी के बाद अब सरकारी नौकरियों के रिक्त पदों की भर्तियों पर तालाबंदी का दौर चल रहा है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के आईटी सेक्टर ने साल 2016-2017 में 8.6 प्रतिशत की विकास दर हासिल की, मगर इस दौरान नौकरियों की दर सिर्फ 5 प्रतिशत ही रही है। इस बात का सबूत खुद ये सरकारी आंकड़े दे रहे हैं। अनुमान तो यह भी लगाए जा रहे हैं कि अगले तीन सालों के दौरान इस क्षेत्र में नौकरियों में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट देखी जा सकती है।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार हाल के दिनों में आईटी क्षेत्र की जिन बड़ी कंपनियों में छंटनी देखी गई, उनमें इन्फोसिस, कॉग्निजेंट और विप्रो जैसे नाम शामिल हैं। गौरतलब है कि भारत सरकार द्वारा किए गए रोजगार और बेरोजगारी संबंधी सर्वेक्षण के अनुसार मोदी राज में केवल पचास प्रतिशत कामगारों की ही रोजगार में भागेदारी है, जबकि हर वर्ष 1.20 करोड़ युवक और युवतियां डिग्रियां लेकर रोजगार के बाजार में आते हैं, मगर नौकरियां नहीं हैं। गौरतलब है कि इस बीच इसी साल अप्रैल माह में भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने एक अध्यादेश जारी कर कहा है कि पिछले दो तीन सालों के विभिन्न मंत्रालयों के विभागों में जो पद रिक्त पड़े हुए हैं उन्हें निरस्त किया जाता है। कई विभाग ऐसे हैं जहां पिछले कई सालों से रिक्तियां भरी नहीं जा रही थीं, हालांकि उनको भरने के लिए हर साल विज्ञापन जारी किए जाते थे, मोदी सरकार और वित्त मंत्रालय के नए अध्यादेश के बाद ये पद ही समाप्त किए जा रहे हैं। सिर्फ मंत्रालयों के विभागों की ही बात नहीं है। न्यायपालिका में भी जजों की रिक्तियों को कई सालों से रोक कर रखा गया है।
विशेष सूत्रों के मुताबिक इस बात तो लेकर कई मजदूर संगठनों ने बढ़ती बेरोजगारी के बीच खाली पड़े पदों पर सरकार को आड़े हाथों लिया है, मगर मजेदार बात तो यह है कि संघ परिवार से सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ यानी बीएमएस का कहना है कि मौजूदा रिक्तियों को केन्द्र सरकार खत्म कर उन्ही पदों पर ठेके पर बहालियां कर रही है, जो यह जनहित में नहीं है। अब गौर करने वाली बात है कि केन्द्र सहित कई राज्यों में सरकार भी आरएसएस की और सरकार के विरोध में आवाज उठाने वाले मजदूरों के संगठन भी आरएसएस के। इसके बाद कितना र्निलज होकर अपने ही समर्थक सरकार के ऊपर आरोप लगा रहे हैं। आरएसएस संगठनों ने सरकार पर इतना तक आरोप लगा रहे हैं कि खाली पदों को खत्म करने का यह फैसला बहुत पहले से चला आ रहा है, चाहे वो यूपीए का दौर हो या एनडीए का, हर साल खाली पड़े पदों को सरकारें खत्म करती चली आ रही हैं। अब इन संगठनों द्वारा अपने ही सरकार पर नौकरियों को खत्म करने का आरोप क्यों लगाया जा रहा है? यह इसलिए ताकि जनता गुमराह बनी रहे कि सरकार और संघ से कोई आपसी रिश्ता नहीं है, जनता के अंदर यह भावना रहे कि संघ, जनहित के लिए सरकार पर आरोप लगा रहा है और इससे संघ को जनता का समर्थन हाशिल होता रहेगा।
इस बात की जनता को भनक तक नहीं है कि संघ संचालित मोदी सरकार बड़ी चालाकी से सभी सरकारी नौकरियों को खत्म कर रही है और जो थोड़ी बहुत रिक्तियां कहीं-कहीं बची हुई थीं वो भी हाल के सरकारी आदेश के बाद निरस्त हो गई हैं। थोक के भाव पर सब रिक्तियां खत्म होती जा रही है। यह इस बात का सबूत है कि सरकार नियमित बहालियों के स्वरूप को बदलकर सरकार ने ठेकेदारी प्रथा शुरू कर दी है। यही नहीं सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में लगभग 67 प्रतिशत नौकरियां पूरी तरह से ठेकेदारी पर आधारित हो गई हैं। कानून बनाने वाली एजेंसी भी सरकार है और कानून तोड़ने वाली भी सबसे बड़ी एजेंसी सरकार ही है। कानून कहता है कि नियमित स्वरूप के कामों को नियमित कर्मचारियों द्वारा ही किया जाना चाहिए, अगर कोई इस कानून को तोड़ता है तो सरकार उसको दंडित करती है, अब सरकार खुद ही ऐसा कर रही है। नियमित प्रारूप के कामों में भारतीय रेल का भी नाम है जहां भी बड़े पैमाने पर मौजूद रिक्तियों को खत्म किया जा रहा है। इसी के साथ इस मुद्दे को लेकर पिछले कई सालों से संघर्ष होते आ रहे हैं। मगर सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंगा है। भारतीय रेल के विभिन्न विभागों में 2.5 लाख रिक्तियां हैं, जिन्हें भरा नहीं जा रहा है। गौरतलब है कि लोकसभा में सवाल उठा कि केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के अधीन विभागों में 46 लाख कर्मचारी होने चाहिए जबकि उनकी संख्या 32 से 33 लाख के बीच रह गई है. यानी लगभग 13 से 14 लाख पद रिक्त पड़े हुए हैं।
आपको बताते चलें कि कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था कि लोक सेवा में भी काफी रिक्तियां हैं जिसमे आईएएस, आईपीएस और वन सेवा के पद शामिल हैं। उन्होंने बताया कि जहां देश भर में 1470 पद रिक्त हैं, वहीं आईपीएस अफसरों के 908 पद खाली पड़े हुए हैं। प्रश्न का जवाब देते हुए जितेंद्र सिंह का कहना था कि सबसे ज्यादा आईएएस के 128 रिक्त पद बिहार में हैं, उत्तर प्रदेश में 117 और पश्चिम बंगाल में 101, उसी तरह आईपीएस के पदों में सबसे ज्यादा 114 पद उत्तर प्रदेश में रिक्त हैं जबकि 88 पद पश्चिम बंगाल, 79 ओडिशा में और 72 कर्नाटक में भी पद रिक्त हैं। यही हाल बिहार का भी है बिहार में भी आईपीएस के 43 पद रिक्त पड़े हुए हैं।

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