रविवार, 24 दिसंबर 2017

बाबासाहब का महाड़ सत्याग्रह





डॉ. बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर चाहते थे कि अछूतां को उनके मानवीय अधिकार शीघ्रातिशीघ्र मिलें ताकि वे भी अपने को मनुष्य समझें। इस मामलें में सफलता प्राप्त करना कोई आसान काम नहीं था क्यांकि सवर्ण हिन्दुआें द्वारा इसका कड़ा विरोध किया जा रहा था। डॉ. बाबासाहब इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सतत संघर्ष किए बिना समाज का मानवीय अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते और वह इस बात को भी स्पष्ट कर लेना चाहते थे कि अछूत हिन्दू हैं या नहीं क्यांकि अछूतां की उन्नति के लिए इन दोनां प्रश्नां का हल करने के लिये उन्होंने सत्याग्रह आरंभ किया और इस कसौटी पर उन्हांने सवर्ण हिन्दुआें के ह्नदय की परीक्षा की।
डॉ. बाबासाहब द्वारा किए गये सत्याग्रहां में दो बहुत प्रसिद्ध हैं। एक महाड़ का सत्याग्रह और दूसरा नासिक का सत्याग्रह। डॉ. बाबासाहब के सच्चे अनुयायी श्री बोले’’ ने सन् 1923 में बंबई काउंसिल में यह प्रस्ताव पेश किया था कि सरकार द्वारा या सार्वजनिक पैसां से संचालित सभी संस्थाएें तथा स्थान, जैसे कि दफ्तर, स्कूल, अस्पताल, पार्क, धर्मशाला, कुएें, तालाब और शमशान घाट बगैरा, इन संस्थानां में प्रवेश करने और उनका उपयोग करने का अधिकार सरकार अछूतां को भी प्रदान करें। यह प्रस्ताव 4 अगस्त 1923 को पास हो गया और बंबई सरकर ने 11 सितंबर 1923 को  अपने सभी विभाग प्रमुखां को आदेश दिया कि ‘‘श्री बोले’’ के प्रस्ताव को कार्य रूप में किया जाए।
इस आदेश के अनुसार कोलावा जिला के महाड़ नामक नगर की नगर पालिका ने 1924 में महाड़ नगर के चवदार तालाब से पानी लेने का अधिकार अछूतों को दे दिया जो कि पहले नहीं था। महाड़ की नगर पालिका के आदेश अनुसार महाड़ के अछूत लोग, जिन्हें पानी की काफी तंगी थी, चवदार तालाब से पानी लेने गए और सवर्ण हिन्दुआें ने उन्हें पानी लेने से रोका और कहा कि यह तालाब हिन्दुआें का है लेकिन अछूत नहीं माने। उनका कहना था कि यह सार्वजनिक तालाब है इससे पानी लेने का उन्हें कानूनी हक मिल चुका है और उन्हांने पानी लेने की कोशिश की। इस पर सवर्ण हिन्दुआें ने अछूतां को मारा-पीटा। ध्यान रहे कि उस वक्त मुसलमान, ईसाई और पारसी बगैरा लोग तालाब से पानी लेते थे, लेकिन हिन्दू इस बात पर अड़े हुए थे कि वे अछूतां को तालाब का पानी नहीं लेने देंगे। उधर अछूत भी बाबासाहब डॉ. अम्बेडकर द्वारा स्वाभिमान की जगाई हुई ज्योति के कारण इस बात पर तुल गए कि वे अपने मानवीय अधिकार का प्रयोग अवश्य करेंगे। महाड़ के प्रमुख अछूत नेताआें ने महाड़ के चवदार तालाब के संबंध में बाबासाहब से बात की और उन्हांने बाबासाहब के सुझाव पर महाड़ में 19 और 20 मार्च 1927 को बाबासाहब की अध्यक्षता में एक विशाल सम्मेलन करने का निर्णय किया। सम्मेलन के कार्यकर्ताआें ने सम्मेलन को सफल बनाने के लिये दिन-रात एक कर दिया। कई दिन कार्यकर्ता इस काम में जुटे रहे। उन्हांने सम्मेलन का संदेश घर-घर पहुंचाया। परिणामस्वरूप लोग बढ़-चढ़ कर हजारां की संख्या में महाड़ पहुंचे। सम्मेलन के लिये एक विशाल पंडाल बनाया गया। जब बाबासाहब वहाँ पहुंचे तो उनका बाबासाहब अम्बेडकर की जय के जयकारां के साथ हार्दिक स्वागत किया गया और उन्हें फूल मालाओं से लाद दिया गया। 
डॉ. बाबासाहब ने अपने भाषण में कहा कि हम तालाब से पानी इसलिए लेना चाहते हैं कि हम भी औरां की तरह मनुष्य हैं और मनुष्य की तरह ही जीना चाहते हैं और हम इस बात का भी निर्णय करना चाहते हैं कि अछूत हिन्दू है या नहीं। उन्हांने बड़े जोर से कहा कि अधिकार किसी के मांगने से नहीं मिलते। उनके लिये कठिन संघर्ष करना पड़ता हैं तभी वे प्राप्त होते हैं। बाबासाहब ने बड़े प्रेरणा भरे शब्दां में अछूतां से कहा कि ‘बेगार देनी बंद करो, शराब, अफीम बगैर से बचो। बीमार, मृत पशुआें का मांस खाना छोड़ दो और अपने लोगां में जात-पांत का भेद खत्म कर दो। अपने बच्चां को पढ़ाआें ताकि वे उन्नति कर सकें।’
‘‘शिक्षा जितनी लड़कां के लिये आवश्यक है उससे भी अधिक लड़कियां के लिये आवश्यक है क्यांकि किसी उन्नत समाज का आधार पढ़ी लिखी स्त्रियां ही होती हैं।’’ अपने को नीच समझना छोड़ दो और आपस में संगठित होकर अपने खोए हुए अधिकारां को प्राप्त करो। मानवीय अधिकार प्राप्त करना तुम्हारा जन्म सिद्ध अधिकार है। इस प्रकार बाबासाहब ने सदियां से सोए हुए लोगां को उनके अधिकारां के प्रति सचेत किया। रात को बाबासाहब की अध्यक्षता में हुई कार्यकर्ताआें की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि चवदार तालाब का पानी लेने के अपने जायज अधिकार को प्राप्त करने के लिये कल सत्याग्रह किया जाएगा। 
दूसरे दिन लगभग छः हजार सत्याग्रहियां का जुलूस डॉ.बाबासाहब के नेतृत्व में तालाब की ओर चल पड़ा। बाबासाहब और अछूतां के जीवन में यह एक महत्वपूर्ण और क्रान्तिकारी घटना थी। बाबासाहब हिन्दू समाज के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने जा रहे थे। सदियां से दबे हुए अछूत लोगां को जिन्दादिली का पाठ पढ़ाने जा रहे थे और सवर्ण हिन्दुआें को समय बदल जाने की सूचना देने जा रहे थे और साथ ही सामाजिक क्रान्ति की सक्रिय घोषणा करने जा रहे थे। जुलूस शांतिपूर्वक तालाब के किनारे पहुंच गया। बाबासाहब तालाब के साथ किनारे खड़े हो गये और फिर बैठकर तालाब का पानी हाथां की अंजलि में लेकर पीया। उनके बाद बहुत से सत्याग्रहियां ने तालाब का पानी पीया। फिर जुलूस शांतिपूर्वक पंडाल में पहुंच गया।
अछूतां का तालाब से पानी पीना सवर्ण हिन्दू सह न सके। कुछ शरारती हिन्दुआें ने यह झूठी खबर फैला दी कि अछूत लोग वीरेश्वर के मंदिर में प्रवेश करने वाले हैं, इससे सवर्ण हिन्दू जोश में आ गए और वे संगठित होकर हाथां में लाठियां लेकर पंडाल की ओर दौड़े। उस समय कुछ अछूत पंडाल में भोजन कर रहे थे, कुछ अपने-अपने गांव जाने की तैयारी में थे और अधिकांश अछूत महाड़ से चले भी गये थे। सवर्ण हिन्दुआें ने जहाँ भी अछूत मिले उनको पीटना शुरू कर दिया। डॉ. बाबासाहब परिवास बंगले में अपने अनुयायियां से विचार विमर्श कर रहे थे और इस दंगा-फसाद से बिल्कल अनभिज्ञ थे। दंगे की खबर मिलते ही वह अपने अनुयायिें के साथ ही पंडाल की ओर दौड़े। कुछ गुंडां ने उन पर आक्रमण करना चाहा लेकिन सत्याग्रहियां ने उनका आक्रमण असफल बना दिया। डॉ. बाबासाहब पंडाल में पहुंचे उन्हांने देखा कि पंडाल छिन्न-भिन्न हो गया है। भोजन मिट्टी में मिला पड़ा है। कुछ जख्मी सत्यागा्रिहयां की दवा-दारू का प्रबंध करवाया। इस घटना में प्रसिद्ध नेता राज भोज भी जख्मी हुए थे फिर दूसरे दिन बाबासाहब मुम्बई चले गये। उनके मुंबई पहुंचने से पहले ही महाड़ के दंगे-फसाद की खबर महाराष्ट्र के कोने-कोने में पहुंच चुकी थी और हर जगह इस दंगे की ही चर्चा हो रही थी। भारत में अछूत लोग बाबासाहब के इस साहस पूर्ण सत्याग्रह की खूब प्रशंसा कर रहे थे और स्वर्ण हिन्दुआें द्वारा निहत्थे अछूतां पर आक्रमण करने की निंदा कर रहे थे।
इस दंगे में पुलिस ने केवल 09 हिन्दुआें की गिरफ्तार किया था, जिनको चार-चार महीने की कैद की सजा हो गई। निःसंदेह सवर्ण हिन्दुआें के इस हिंसात्मक कार्य से डॉ. बाबासाहब के ह्नदय को गहरा दुःख हुआ, परंतु वे निराश नहीं हुए। उन्हें और अछूतां को इस बात का संतोष था कि उन्हांने तालाब के पानी को छू कर अपने मानवीय अधिकार का सक्रिय समर्थन किया है। इससे उनमें नया साहस तथा जोश पैदा हुआ। अछूत उद्धार आन्दोलन में महाड़ सत्याग्रह एक नया मोड़ था जो अछूतां की मानसिक क्रान्ति का परिचायक था। इससे अछूत लोग संघर्ष के महत्व और आवश्यकता को समझ सके और उनमें जाग्रति और स्वाभिमान की भावना पैदा हुई। संघर्ष के बिना अधिकार मिल नहीं सकते, इस बात को भी अछूत लोग समझ गए। उधर महाड़ के हिन्दुआें ने अछूतां के जख्मां पर नमक छिड़क दिया। उन्हांने घोषणा की कि अछूतां द्वारा तालाब के पानी को शुद्ध करने की रस्म अदा की जाएगी। इस रस्म के अनुसार ब्राह्मण पुरोहितां ने 108 घड़े पानी के तालाब के निकाल कर बाहर फैंके और पंचगव्य अर्थात गऊ के शरीर से प्राप्त दूध (तीन भाग), दही (दो भाग), घी (एक भाग), मूत्र (एक भाग) और गोबर (आधा भाग) मिलाकर बनाए गये पंचगव्य से भरे हुए 8 घड़े ब्राह्मण पुरोहितां द्वारा मंत्र उच्चारण के साथ तालाब में डाल दिए गये और बस इस तरह तालाब शुद्ध हो गया। 
सवर्ण हिन्दू लोग पहले की तरह तालाब के पानी का प्रयोग करने लगे लेकिन बाबासाहब अम्बेडकर ने इस शुद्धिकरण को अछूतां का अपमान समझा। उन्हांने दोबारा सत्याग्रह करने की घोषणा कर दी और उन्हांने अपने विचारां का अधिक प्रचार-प्रसार करने के लिये तीन अप्रैल 1927 को ‘बहिष्कृत भारत’ नामक पत्रिका निकाली। 26 जून 1927 को ‘बहिष्कृत भारत’ पत्रिका में बाबासाहब ने लिखा कि महाड़ के हिन्दुआें द्वारा तालाब का धार्मिक विधि से शुद्ध किया जाना अछूतां के लिए बड़ा अपमान जनक है और यदि अछूत महाड़ के हिन्दुआें के इस कार्य का विरोध करना चाहते हैं। वे अपना नाम ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ के दफ्तर में लिखवाएँ और इस प्रकार बाबासाहब फिर सत्याग्रह करने की तैयारी में जुट गए। उधर महाड़ नगर पालिका ने हिन्दुआें के दबाव में आकर 1924 का प्रस्ताव जिसके अनुसार तालाब अछूतां के लिए खोल दिया गया था।
 04 अगस्त 1927 को रद्द कर दिया। नगरपालिका का यह कार्य अछूतां के लिये चुनौती था बाबासाहब ने इस चुनौती को स्वीकार किया और सत्याग्रह के लिए 25 तथा 26 दिसम्बर 1927 की तारीख निश्चित कर दी। महाड़ में सम्मेलन और सत्याग्रह की तैयारियां जोरां पर थी। सवर्ण हिन्दुआें ने सम्मेलन के लिए जगह देने से इंकार कर दिया। एक मुसलमान ने इस सम्मेलन के लिए जगह दी डॉ. बाबासाहब अपने 200 सत्याग्रहियां के साथ 24 दिसम्बर 1927 को बंबई से महाड़ को रवाना हुए और दूसरे दिन वे दास गांव पहुंचे। वहाँ हजारां अछूतां ने बाबासाहब की जय के जयकारां के साथ उनका हार्दिक स्वागत किया। वहाँ से उनको जुलूस के रूप में महाड़ ले जाया गया। महाड़ में अछूतां ने बाबासाहब का बड़ी धूमधाम के साथ स्वागत किया आकाश ‘बाबासाहब जी जय’ के जयकारां से गूंज उठा।
महाड़ में लगभग 20 हजार अछूत लोग सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए एकत्रित हुए थे, जिनमें 7 हजार ने सत्याग्रह के लिए अपने नाम लिखवाए थे। अछूतां में काफी जोश था। सम्मेलन शाम को 4 बजे आरंभ हुआ, जोरदार जयकारां के बीच बाबासाहब भाषण देने के लिए खड़े हुए। उन्हांने कहा कि पहले मैं सभी लोगां को यह बता देना चाहता हूँ कि हम तालाब में से पानी इसलिए नहीं लेना चाहते कि हम उस पानी के बिना मरे जा रहे हैं बल्कि हम तालाब में से पानी इसलिए लेना चाहते हैं कि हम अपना मानवीय अधिकार जता सकें कि हम भी दूसरे मनुष्यां की तरह मनुष्य हैं और मनुष्य की तरह जीना चाहते हैं। स्थिति को गंभीर देखकर जिला मजिस्ट्रट पुलिस सुपर टेण्डेन्ट के साथ सम्मेलन में आए और बाबासाहब से बोले कि 12 हिन्दुआें ने अदालत में दावा पेश किया है कि तालाब हमारी निजी संपत्ति है। अदालत ने उनसे सबूत मांगे हैं इसलिए कुछ दिन अदालत के फैसले की आपको प्रतीक्षा करनी चाहिए। पहले सत्याग्रह के समय जिन लोगांं ने आप पर आक्रमण किया था उनको सजा दे दी गई है। जब अगर आप कानून का उल्लंघन करेंगे तो आप भी सजा के पात्र होंगे। आप स्वयं बैरिस्टर हैं और सारे सरकारी कानूनां के जानकार हैं। मैं एक अंग्रेज अफसर हूँ, इसलिए मैं आपको एक हितैषी के नाते यह सलाह दे रहा हूँ कि आप अदालत के फैसले तक सत्याग्रह स्थापित कर दें और आप अदालत में कानून लड़ाई भी जरूर लड़ें। मेरे विचार में आपकां अवश्य विजय प्राप्त होगी। ये कहकर वे चले गये। रात को बाबासाहब की अध्यक्षता में कार्यकर्ताआें की बैठक हुई, जिसमें बड़ी सोच-विचार के बाद यही निर्णय किया गया कि अदालत के फैसले तक सत्याग्रह स्थगित रखा जाए। दूसरे दिन के सम्मेलन में बाबासाहब ने विशाल एकत्रित जनसमूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप बड़े बहादुर हैं और अपने अधिकारां को प्राप्त करने के लिए हर प्रकार का बलिदान देने के लिये तैयार हैं। आप लोग मेरी शक्ति हैं। यद्यपि हम इस समय अदालत के फैसले तक सत्याग्रह स्थगित कर रहे हैं तो भी इसका यह मतलब नहीं कि हमारी लड़ाई बंद हो गई हैं, जब तक हमें पूर्ण मानवीय अधिकार प्राप्त नहीं होते, हमारी यह लड़ाई जारी रहेगी। डॉ. बाबासाहब के इस निर्णय को सभी ने स्वीकार किया। सम्मेलन के अंत में बाबासाहब ने विशाल जनसमूह के सामने ‘मनु-स्मृति’ जैसे काले ग्रंथ को जलाया। क्यांकि मनुस्मृति हिन्दुआें के काले कानूनां का ग्रंथ है जिसने ऊँच-नीच व भेद-भाव को पैदा करके शूद्रों-अतिशूद्रों को पतन के गडढ़े में धकेला है और वास्तव में यह ग्रंथ मानवता का सबसे बड़ा शत्रु है। मनुस्मृति को जलाकर हिन्दुआें के ह्नदय पर बाबासाहब द्वारा की गई यह एक करारी चोट थी। हिन्दुआें द्वारा चौदार तालाब के पानी को शुद्ध करने के जवाब में बाबासाहब ने मनुस्मृति को जलाने का एक महान क्रान्तिकारी कार्य किया। सत्याग्रह स्थगित करने के बाद बाबासाहब ने आदलत में महाड़ तालाब पर अछूतां के अधिकार का दावा पेश किया और अपनी योग्यता से यह मुकद्दमा भी जीत लिया। यह बाबासाहब और अछूतां की एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक विजय थी। महाड़ तालाब के एक ही सत्याग्र्रह ने बाबासाहब अम्बेडकर को एससी, एसटी के मसीहा के रूप में सारे भारत में विख्यात कर दिया।

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