मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

जब तक ईवीएम है, तब तक भाजपा की हवा है-वामन मेश्राम



ईवीएम के बदौलत गुजरात और हिमांचल पर बीजेपी का कब्जा
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
आज जिस तरह से गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव सर्वेक्षण में भाजपा को भारी सफलता मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं कि जहां एक ओर गुजरात में भाजपा फिर स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर रही है तो वहीं दूसरी ओर हिमांचल प्रदेश में पांच साल बाद फिर सŸा में लौटती दिख रही है। ठीक उसी प्रकार से इस बात को इनकार नहीं किया जा सकता है जब तक इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से चुनाव सम्पन्न होता रहेगा तब तक भाजपा की हवा बनी रहेगी। जिस दिन ईवीएम के जगह बैलेट बाक्स से चुनाव सम्पन्न होने लगेगा उस दिन न केवल भाजपा की हवा निकल जाएगी, बल्कि सŸा से हमेशा-हमेशा के लिए बेदलख भी हो जाएगी। यह बात एक वार्ता के दौरान भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने गुजरात विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने के बाद ब्राह्मणवादी मीडिया द्वारा दोनों राज्यों में भाजपा को बहुमत दिखाने के बाद कही।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि देश में अक्सर सुना जाता है सबसे ज्यादा छेड़छाड़ महिलाओं के साथ होता है, मगर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) से छेड़छाड़ के मामले में महिलाओं को पीछे छोड़ दिया है। यह बात इसलिए कहा जा रहा है कि ईवीएम की विश्वसनीयता पर वर्ष 1980 से ही सवाल खड़े हो रहे हैं, मगर चुनाव आयोग एक बार भी ईवीएम को इससे मुक्त करने का कभी भी कोई कदम नहीं उठाया है। जबकि लोकसभा चुनाव 2014 से ईवीएम की विश्वसनियता पर आक्रमक वार किए जा रहे हैं। इसके बाद भी चुनाव आयोग केवल एक ही रट लगाए बैठा है कि ईवीएम से फ्राड नहीं हो सकता है।
गौरतलब है कि एक वार्ता के दौरान भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने कहा कि ईवीएम पर न तो जनता का विश्वास है और न ही सुप्रीम कोर्ट का। इसलिए 8 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम के खिलाफ आदेश दिया कि बगैर ईवीएम में पेपर ट्रेल मशीन लगाए चुनाव सम्पन्न नहीं कराया जा सकता है। मगर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की बात नहीं माना इसलिए अब इलैक्शन कमीशन फेल हो गया है। इसीलिए हम कह रहे हैं कि इलैक्शन कमीशन पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट दाखिल करना होगा। हमने इलेक्शन कमीशन पर कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट दाखिल कर दिया है। यहां विषय हमने रखा है कि इलेक्शन कमीशन ने और भारत सरकार ने (उस समय कांग्रेस की सरकार थी), सुप्रीम कोर्ट ने 08 अक्टूबर 2013 को जो निर्णय दिया था, उस निर्णय को चुनाव आयोग ने लागू नहीं किया और जो लागू किया, उसकी गिनती हमने की तो यह 0.33 प्रतिशत ही लागू किया। अब 0.33 प्रतिशत लागू करने का क्या मतलब है? अगर 0.5 प्रतिशत लागू किया होता तो आधा प्रतिशत लागू किया, ऐसा कहा जा सकता है। इसका मतलब है कि लगभग नगण्य अर्थात जिसको गिना नहीं जा सकता लागू किया और अगर इसका भौगोलिक क्षेत्र की पहचान की जाए तो कहां लागू किया? नागलैण्ड, मिजोरम, अरूणाचल प्रदेश अर्थात ब्रह्म (म्यामांर) देश के बॉर्डर पर लागू किया। वहां 13 लोकसभा सीटें हैं, जहां लागू किया। अगर 13 लोकसभा की सीटों को घटा दें तो 530 सीटों पर लागू ही नहीं किया। भाजपा के समतल क्षेत्रों में जहां से पार्टियों को बहुमत और अल्पमत निर्धारित होता है, वहां पर लागू ही नहीं किया। भारत के समतल क्षेत्रों में लागू क्यों नहीं किया और ब्रह्म देश के बॉर्डर पर नागालैण्ड, मिजोरम में लागू क्यों किया? क्योंकि भारत के लोगों को ये मालूम भी नहीं होना चाहिए कि ईवीएम मशीन के अलावा भी कोई मशीन है।
अभी मतदाताओं का ईवीएम में भरोसा नहीं है, मगर पेपर ट्रेल मशीन लगाने के बाद इस भरोसे को हासिल किया जा सकता है। आपको खास बात बता रहा हूं कि अभी ईवीएम पर जनता का भरोसा नहीं है। भरोसा क्यों नहीं है? सुप्रीम कोर्ट कहता है कि अगर जनता का ईवीएम पर भरोसा होता तो हमारे पास क्यों आता? अगर हमारे पास केस आया है तो इसका मतलब है कि जनता का ईवीएम पर भरोसा नहीं है। मगर यह भरोसा पेपर ट्रेल मशीन, यदि ईवीएम मशीन के साथ जोड़ दी जाती है तो इस भरोसे का हासिल किया जा सकता है।
मतदाताओं का विश्वास बहाल करने के लिए पूर्णतः पारदर्शिता लाने का यह आदेश हम लोग दे रहे हैं। ये यहां पर आदेश है। ये आदेश लागू होने से चुनाव में घोटाला नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पेपर ट्रेल मशीन लगाने का आदेश दिया। पेपर ट्रेल मशीन लगाने से घोटाला कैसे रोका जा सकता है। इसके लिए मैं दो बातें आपको बताना चाहता हूँ ताकि आपको पता चले कि पहले ठप्पा मारने का सिस्टम था। इसमें क्या होता था? बूथ सेंटर पर वोटर को बैलेट पेपर दिया जाता था। वोट पहले बैलेट पेपर को अच्छी तरह से देखता था। उसमें कांग्रेस, बीजेपी, कम्प्युनिष्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी और समाजवादी पार्टी का चिन्ह होता था। वोटर उसको अच्छी तरह से देखता था। उसमें अलग-अलग पार्टी का चुनाव चिन्ह होता था। पंजा, कमल का फूल, साईकिल, हाथा, गदहा, घोड़ा, कुŸा, सुअर ऐसे अलग-अलग निशान होता था फिर मतदाता इसे देखने के बाद क्या करता था? वह फिर सोचता था कि किसको वोट दें। चलो इस बार कुŸो को वोट मारा जाय तो वह कुŸो को स्टाम्प मारता था। मनोरंजन के लिए नहीं बोल रहा हूँ। आपको समझाने के लिए बोल रहा हूँ। फिर उस बैलेट पेपर को फोल्ड करके बैलेट बॉक्स में डाल देता था। डालते वक्त कभी-कभी अटक जाता था तो वह मतदाता जिसने कुŸो को वोट दिया है, उस कुŸो को ही वोट जाना चाहिए, उसे हिलाकर बैलेट बॉक्स में डाल देता था और सुनिश्चित हो जाता था कि उसका वोट कुŸो के नाम पर ही जरूर जमा हो गया। यह प्रक्रिया बैलेट पेपर में होता था।
अब ईवीएम आ गया और ईवीएम में घोटाला होता है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने पेपर ट्रेल लगाया। ईवीएम में क्या होता है? वो भी बताता हूँ। ईवीएम आया और ईवीएम आने के बाद में मतदाता बूथ सेन्टर पर गया। मतदाता ने बूथ सेन्टर पर ईवीएम का बटन दबाया और लाईट जलने के बाद में मतदाता ढूंढता है कि मेरा वोट कहां गया? तब इलेक्शन कमीशन का कर्मचरी आता है और कहता है कि बाबा वोट हो गया है, आप जाओ। उस आदमी के मन में आशंका होती है कि कहीं मुझे चूना तो नहीं लगाया। हजारों, लाखों और करोड़ों लोग वोट देने के बाद इसी भावना से वापस चले गए। जब इस भावना के कुछ लोग वापस गए, तो इसमें से कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट में जाने का भी पार्श्वभूमि आपको बता रहा हूं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईवीएम का बटन दबाने के बाद में लाईट का जलना इस बात की गारण्टी नहीं है कि मतदातों ने जो वोट जिस कैन्डीडेट को दिया, उसी कैन्डीडेट के नाम पर जमा हुआ, इसकी गारन्टी नहीं मानी जा सकती है। ईवीएम का लाईट जलना कोई गारण्टी नहीं है। ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने माना। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदाताओं को गारण्टी होनी चाहिए कि उसने जिस कैन्डीडेट को वोट दिया, उसी कैन्डीडेट को उसका वोट जमा हो गया, वह सुनिश्चित होना चाहिए। इसकी गारण्टी होना चाहिए। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईवीएम मशीन में वीवीपीएटी अर्थात वोटिंग वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल अर्थात पेपर ट्रेल लगाई जानी चाहिए। वोटर वेरिफिएवल पेपर ऑडिट ट्रेल यह लम्बा नाम है। उसका संक्षिप्त नाम पेपर ट्रेल है।
एक है वेरिफिकेशन अर्थात भौतिक सत्यापन। पहले बैलेट पेपर होता था। जब रिकाउटिंग की मांग होती थी, तो यह बैलेट पेपर एक वजन और आकार का कागज है, वो इलेक्शन कमीशन के रिकॉर्ड में रहता था, तो इसका भौतिक आकार है और यह रिकॉर्ड में रहता था। ईवीएम मशीन में यह नहीं रहता है। बैलेट बॉक्स में बैलेट पेपर का कागज रहता था, मगर ईवीएम मशीन में कुछ भी भौतिक प्रमाण नहीं है। ये धोखाधड़ी रोकना सम्भव होगा। मगर अभी हम ऐसा मानते हैं कि चुनाव आयोग के कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट किया और यह कन्टेम्प्ट ऑफ कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का किया। सुप्रीम कोर्ट के ऊपर कोई अदालत नहीं है। इस देश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अमल नहीं होता है, तो आप अन्दाजा लगा सकते हो कि मामला कितना बिगड़ा हुआ है। व्यवस्था में कितनी सड़न आ चुकी है। इसलिए इसको हम लोग सुधारने में भी लगे हुए हैं और कुछ खत्म करने में लगे हुए हैं। खत्म करने के लिए ज्यादा समय लगेगा। हम लोग उसकी तैयारी कर रहे हैं।  

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