गुजरात में टूट रहा बीजेपी चीफ अमित शाह का 15 साल पुराना तिलिस्म!
नई दिल्ली, 9
सितम्बर 2016 | अपडेटेड: 12:30 IST
सूरत
में अमित शाह के मंच की फोटो
2014
में जब
नरेंद्र मोदी
ने पीएम
की कुर्सी
संभाली तो
उन्होंने अपने
करीबी अमित
शाह को
भी गुजरात
में नहीं
रहने दिया
बल्कि उन्हें
बीजेपी अध्यक्ष
बनाकर संकेत
दे दिया
कि वो
सरकार के
साथ साथ
संगठन पर
भी अपनी
पकड़ ढीली
नहीं होने
देना चाहते.
लोकसभा चुनाव
में बीजेपी
को मिली
प्रचंड जीत
के पीछे
अमित शाह
की कुशल
रणनीति का
हाथ बताया
गया. इसके
बाद कई
राज्यों में
विधानसभा के
चुनाव हुए.
कहीं बीजेपी
को जीत
मिली तो
कहीं हार
का मुंह
भी देखना
पड़ा. मोदी
के 7, आरसीआर
आने पर
गुजरात में
आनंदीबेन को
सत्ता सौंपी
गई थी
लेकिन दो
साल भी
नहीं बीते
कि सीएम
बदलना पड़
गया. गुरूवार
को सूरत
में अमित
शाह की
सभा में
जो हुआ,
उससे ऐसे
संकेत मिलने
लगे कि
या तो
राज्य में
सबकुछ ठीक
नहीं है
या फिर
अमित शाह,
जो कभी
'मोदी के
हनुमान' तक
कहे गए
उनका तिलिस्म
टूट रहा
है.
- सूरत: पाटीदारों के कार्यक्रम में शाह का विरोध
- मोदी, शाह को भी तलब करे NCW: आशुतोष
- हार्दिक ने अमित शाह को बताया 'जनरल डायर'
पाटीदार
बहुल सूरत
में शाह
के कार्यक्रम
में गुरुवार
को जमकर
हंगामा हुआ.
हार्दिक पटेल
के लिए
नारेबाजी की
गई तो
अमित शाह
वापस जाओ
के नारे
लगे. सभी
कुर्सियां चलीं.
हालात इतने
खराब हो
गए कि
चार घंटे
तक चलने
वाला कार्यक्रम
एक घंटे
में ही
खत्म करना
पड़ा. यह
कार्यक्रम बीजेपी
से जुड़े
पाटीदार समुदाय
ने शक्ति
प्रदर्शन के
लिए किया
था. इसका
मकसद यह
दिखाना था
कि बीजेपी
को अब
भी पाटीदारों
का पूरा
समर्थन हासिल
है. लेकिन
हंगामे के
दौरान सूरत
की सड़कों
पर 'जनरल
डायर वापस
जाओ' के
पोस्टरों से
साफ हो
गया कि
बीजेपी के
राष्ट्रीय अध्यक्ष
का असर
अब कम
हो रहा
है. ऐसे
में उन
वजहों को
जानना जरूरी
है जिनसे
अमित शाह
या फिर
कहें तो
गुजरात में
बीजेपी के
खिलाफ हवा
चलने लगी
है.
1.
जब नरेंद्र
मोदी गुजरात
के सीएम
थे तो
पार्टी और
सरकार में
किसी तरह
की खींचतान
की खबर
नहीं आती
लेकिन इनके
दिल्ली जाते
ही जैसे
सबकुछ बिखरने
लगा. राज्य
में प्रतिद्वंदी
कांग्रेस की
लोकप्रियता बढ़ने
लगी है.
2.
पिछले दिनों
जब गुजरात
की सत्ता
आनंदीबेन से
लेकर विजय
रूपानी को
सौंपी गई
तो पार्टी
की अंदरूनी
कलह सामने
आ गई
थी. विधायक
दल की
बैठक में
आनंदीबेन ने
रूपानी के
नाम पर
वीटो लगा
दिया. वो
नितिन पटेल
को लेकर
सीएम की
कुर्सी सौंपना
चाहती थीं.
हालांकि, पीएम
मोदी की
दखल के
बाद आनंदीबेन
झुकीं और
रूपानी को
नेता चुना
गया.
3.
रूपानी ने
सीएम पद
की शपथ
ली तो
उनके कैबिनेट
में नौ
ऐसे मंत्रियों
की छुट्टी
कर दी
गई जिन्हें
आनंदीबेन पटेल
का वफादार
माना जाता
था.
4.
पिछले साल
अक्टूबर में
पाटीदार अमानत
आंदोलन समिति
के नेता
हार्दिक पटेल
के आह्वान
पर राज्यभर
में विरोध
प्रदर्शन हुए.
हालात इतने
खराब हो
गए कि
तमाम इलाकों
में कर्फ्यू
लगाना पड़ा.
गौरतलब है
कि 2002 के
दंगों के
बाद पहली
बार राज्य
में कर्फ्यू
लगाना पड़ा
था.
5.
हार्दिक
पटेल को
देशद्रोह के
आरोप में
जेल में
डाल दिया
गया था.
यह संगठन
पटेल समुदाय
को ओबीसी
का दर्जा
दिए जाने
के साथ
साथ सरकारी
नौकरियों और
पढ़ाई में
27 फीसदी आरक्षण
की मांग
कर रहा
है.
6.
बीजेपी दावा
करती है
कि पाटीदार
अब भी
उनके साथ
हैं लेकिन
हार्दिक पटेल
के आंदोलन
के दौरान
राज्य सरकार
ने जिस
तरीके से
पूरे मामले
को हैंडल
किया उससे
इस समुदाय
का बड़ा
वर्ग बीजेपी
से नाराज
बताया जाता
है.
7.
गुजरात के
दलित पिछले
15-20 वर्षों से
बीजेपी को
वोट देते
रहे हैं.
मोदी के
गुजरात मॉडल
में दलित
भी शामिल
हैं. लेकिन
राज्य में
दलित उत्पीड़न
की घटनाएं
पिछले 10-15 सालों में
बढ़ी हैं.
पिछले दिनों
ऊना की
घटना और
उसकी प्रतिक्रिया
में अहमदाबाद
में दलितों
की विशाल
रैली से
संकेत मिलने
लगे हैं
कि बीजेपी
का दलित
वोट बैंक
दरकने लगा
है.
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