मंदिरों में रखा सोना आखिर किस काम का?
एक खबर के अनुसार भारत के मंदिरो
में जमा सोना अमेरिका के रिजर्व सोने के ढाई गुना अधिक है तथा भारत में
रिजर्व सोने के 400 गुना अधिक । इतनी अकूत खजाने के मालिक है भारतीय मंदिर
,यदि यह सोना जनकल्याण में लगाया जाये तो तकरीबन 10 साल तक किसी को टेक्स
देने की जरुरत नहीं रहेगी ,हॉस्पिटल्स, स्कूल आदि जनकल्याण योजनाये साल तक
बिना सरकरी मदद 10के चल सकती हैं । हर व्यक्ति साल 2तक खाना सकेगा इतना
सोना मंदिरो में दबा पड़ा है ।
देश में अब भी 60% बच्चे कुपोषित हैं जो
पौष्टिक आहार न मिलने के कारण गंभीर बीमारियो के चपेट में आ जाते हैं। देश
में हॉस्पिटल की इतनी कमी है की ग्रामीण क्षेत्रो में 20-25 किलो मीटर्स
पर एक सरकारी हास्पिटल होगा और आधे लोग बिना इलाज के ही दम तोड़ देते हैं ।
शिक्षा की दर इतनी कम की स्कूल न होने के कारण या स्कूल में सुविधा न होने
के कारण 50% से अधिक बच्चे स्कूल ही नहीं जा पाते , निरक्षरों की संख्या
60% से अधिक है । गरीबी में भारत का विश्व में चौथा स्थान है जंहा एक तिहाई
लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं , उन्हें पानी , बिजली जैसी
मूलभूत सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं ।
परन्तु, पुजारी वर्ग ईश्वर के नाम पर
जनता का दोहन किये जा रहा है ,लोगो में अन्धविश्वास का इतना अधिक शिकंजा कस
दिया गया है की चाहे भक्त को कर्ज लेके पूजा पाठ , हवन यज्ञ ,दान या और
तीर्थ - कर्मकाण्ड करने हों वह करेगा जरूर।
खुद भूँखा रहेगा पर मूर्ति पर सोना
चढ़ाएगा , प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेमचंद जी ने दान की मानसिकता के जाल में
जकड़े होरी की कथा अपने उपन्यास ' गोदान' में बहुत अच्छे से की है । मूर्ति
पर चढ़ाया पैसा या सोना जनता की भलाई के काम नहीं आता बल्कि काम आता है
पुजारी के जिसका भरा पेट दिन रात और बड़ा होता रहता है ।
भारत में विदेशियो के आक्रमण का प्रमुख
कारण ये मंदिर ही रहें है जिनमे रखा सोना , हीरे आदि कीमती चीजे उन्हें
भारत पर आक्रमण के लिए ललायित करतीं। गज़नवी के भारत पर आक्रमण करने का
प्रमुख कारण मंदिरो में रखा सोना ही था,इसी लिए वह हर साल भारत पर आक्रमण
करता और मंदिरो आदि को लूटता ।सोमनाथ के मंदिर को जब उसने लूटा तब उसे इतना
हीरे जेवरात मिले थे की उसे उस ख़जाने को हजारो खच्चरों और घोड़ो पर लाद
के ले जाना पड़ा था । जबकि उस समय भी हिन्दू धर्म का एक बड़ा वर्ग जिसे
शुद्र अछूत कहा जाता है वह निर्धन होने के कारण अमानवीय जीवन यापन कर रहा
था । तब भी धन-सोना केवल मंदिरो में बैठे लोगो के अपने स्वार्थ के लिए ही
काम आ रहा था , गरीब जनता के लिए नहीं । विदेशी आते और मंदिरो में रखा सोना
लूट के ले जाते पर पुजारी वर्ग उसे जनता की भलाई में काम नहीं लाता था
बल्कि बैठा बैठा धन लुटवा देता था ।
विदेशियो के अलावा देसी राजा महाराजा या
सरदार अदि भी मन्दिरो में रखे सोने चांदी पर अपनी नजर गड़ाये रखते थे
,जिसे और जब मौका मिलता पुजारी के साथ मिल के या चोरी कर के मंदिरो का धन
गायब कर देता और अपने भोग विलास में खर्च करता । आज भी यही चल रहा है ,
सरकार को चाहिए की सभी सोने को अपने कब्जे में लेके जनकल्याण योजनाओ में
लगा दे
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