सोनागाछी, जहां पैदा होते ही वेश्या बन जाती है लड़की
Updated Wed, 05 Feb 2014 11:33 AM IST
भले ही देह-व्यापार को लेकर कानून हों लेकिन देश के कई हिस्सों में ये आज भी लाखों लड़कियों का भाग्य है।
वेश्यालय आए कहां से? इस बारे में कई तरह के
विचार हैं, जिनमें से ज्यादातर लोगों का यही कहना है कि पहले के समय में इन
जगहों पर केवल नाच-गाना ही हुआ करता था। जिसे कला की दृष्टि से देखा जाता
था पर समय बीता और कला की जगह इस अभिशाप ने ली।
देश के कई हिस्सों में आज भी कई लड़कियां इस अभिशाप को भुगतने के लिए मजबूर हैं। उन्हीं इलाकों में से एक है कोलकाता का सोनागाछी।
सोनागाछी, मतलब सोने का पेड़।
देश के कई हिस्सों में आज भी कई लड़कियां इस अभिशाप को भुगतने के लिए मजबूर हैं। उन्हीं इलाकों में से एक है कोलकाता का सोनागाछी।
सोनागाछी, मतलब सोने का पेड़।
सोनागाछी स्लम भारत ही
नहीं, एशिया का सबसे बड़ा रेड-लाइट एरिया है। यहां कई गैंग हैं जो इस
देह-व्यापार के धंधे को संचालित करते हैं।
इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की करीब 12 हजार लड़कियां सेक्स व्यापार में शामिल हैं। फोटोग्राफर सौविद दत्ता हाल ही में यहां गए और उन्होंने वहां की कुछ बेहद चुनिंदा दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया है।
इन तस्वीरों को उन्होंने श्रेणीबद्घ किया है और The Price of a Child नाम दिया है।
इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की करीब 12 हजार लड़कियां सेक्स व्यापार में शामिल हैं। फोटोग्राफर सौविद दत्ता हाल ही में यहां गए और उन्होंने वहां की कुछ बेहद चुनिंदा दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया है।
इन तस्वीरों को उन्होंने श्रेणीबद्घ किया है और The Price of a Child नाम दिया है।
यूं तो वेश्यालयों और
वेश्याओं पर कई तरह की फिल्में बन चुकी हैं लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य
होगा कि कोलकाता के इस रेडलाइट एरिया को विषय बनाकर एक फिल्म भी बनी है।
Born Into Brothels नाम की इस फिल्म को ऑस्कर सम्मान भी मिल चुका है।
इसे बदनसीबी कहना गलत
होगा, क्योंकि ये उससे कहीं आगे है। जिस उम्र में हमारी मां हमें दुनिया की
रीति-रिवाज, लाज-शरम सिखाती हैं वहीं यहां कि बच्चियां खुद को बेचना सीखती
हैं।
12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां मर्दों के साथ सोना सीख जाती हैं। उन्हें खुश करना सीख जाती हैं, जिसके बदले उन्हें दो डॉलर यानि 124 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की औरतें तश्तरी का खाना बनकर मर्दों की टेबल पर बिछ जाती हैं।
12 से 17 साल की उम्र में ये लड़कियां मर्दों के साथ सोना सीख जाती हैं। उन्हें खुश करना सीख जाती हैं, जिसके बदले उन्हें दो डॉलर यानि 124 रुपए मिलते हैं। इन रूपयों के बदले यहां की औरतें तश्तरी का खाना बनकर मर्दों की टेबल पर बिछ जाती हैं।
दत्ता के अनुसार, ये सब गरीबी, भ्रष्टाचार और अनैतिकता का परिणाम है। यहां की ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़कर आई हैं और अब देह बेचने का पाठ पढ़ रही हैं। (daily mail)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें