बुधवार, 21 सितंबर 2016

शबरिमला का सच

✎ शबरिमला का सच

image
शबरी माला का सच ।।
शबरीमाला का सच और औरत !!!!!!!!!!!
बड़े दुःख की बात है कि कुछ दिन पहले देश के एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र में कुछ लड़कियों ने पट्टिकाओं पर आई लाइक ब्लीडिंग ……..आई लाइक पीरियड!!!!!!!!!!!!
मैं फेसबुक के माध्यम से अपने देश की समस्त आदरणीय महिलाओ , देवियों से कहना चाहता हूँ कि बिना सच को जाने ऐसी बेतुकी बाते ना कीजिये |
कोई भी मनुष्य नहीं कह सकता कि उसने अपनी माँ के कोख से जन्म नहीं लिया और जन्म देने में यही रक्त काम आया है |
इस मासिक रक्त की महिमा ऋग्वेद में इतनी गायी गयी है कि अगर पिता के घर रहने पर ये रक्त आरम्भ हो जाता है तो पिता को ब्रह्महत्या के बराबर पाप लगता है |
आप लोग इतनी हलकी बात कैसे कर सकती है | देश की समस्त सम्मानित महिलाओ को जानना चाहिए कि देवी स्वरूपा माँ कामाख्या के मंदिर ( गोवाहाटी , आसाम ) में सबसे बड़ा मेला जून के तीसरे सप्ताह में लगता है क्योकि ऐसा मन जाता है कि उस समय माँ यही रक्त उत्सर्जित करती है जो तंत्र और मन्त्र की दुनिया में बड़ा ही महत्व रखता है और शायद की कोई ऐसा योगी ध्यानी होगा जो उस समय माँ कामाख्या का दर्शन ना चाहता हो |
डॉक्टर के अनुसार ये रक्त उत्सर्जन सबसे सुरक्षित समय में माना जाता है पर मनो वैज्ञानिक स्तर पर पीड़ा का अंतराल इतना लम्बा होता है कि महिला के सम्मान और सिर्फ शरीर तक उसको ना आँका जाये इस लिए इस उत्सर्जन के समय महिला से मिलना निषेधित कर दिया गया |
अब सबसे बड़ी बात शबरी माला की जितने थोथे तरीके से महिलाओ ने इस बात का विरोध किया है कि महिला क्यों नहीं जा सकती मंदिर के अंदर और ये उनका संवैधानिक हनन है और कुछ अति बुद्धिजीवियों ने सर्वोच्च न्यायलय में वाद ला दिया .उनको शायद ये नहीं पता कि मासिक रक्त उत्सर्जन के कारण महिला का शबरी माला में प्रवेश निषेधित नहीं है बल्कि ये कहानी है एक महिला के प्रतिशोध की जिसका नाम शबरी था और जिसने अपने प्रेम के अपमान में ये निषेधित रखा कि कोई उसके मंदिर में ना सके |
इसकी कहानी बड़ी ही रोचक है |
समुन्द्र मंथन के बाद अमृत की कहानी सभी जानते है और ये भी जानते है कि विष्णु ने किस तरह से मोहिनी का रूप रख कर राहु-केतु का सर काट कर अमृत की रक्षा की थी |
एक दिन शंकर जी विष्णु जी से जिद करने लगे कि उनको भी वो मोहिनी का रूप दिखाइए पहले विष्णु जी तैयार नहीं हुए पर ज्यादा कहने पर जैसे ही विष्णु ने अपना रूप मोहिनी का रखा तो उस रूप को देख कर शंकर जी इतने सम्मोहित हो गए कि उन दोनों के मिलन से एक पुत्र पैदा हुआ अब समस्या ये थी कि उस पुत्र का किया जाये तो उन दोनों ने केरल राज्य में पोंकाव ऋषि के आश्रम में जाकर उस बालक को डाल दिया पर पोंकाव ऋषि को लगा कि बालक उनके आश्रम में क्या करेगा इस लिए उन्होंने पुन्दल के राज को बुलाया जो संतान हीं थे और उनको वो बालक सौप दिया |
बालक राजा के घर पलने लगा पर रानी को उस बालक से ईर्ष्या थी और एक दिन बीमारी का बहाना बना कर उसने उस बालक से जंगल से शेरनी का दूध लाने को कहा वो सोच रही थी कि बालक जंगल में मर जायेगा पर बालक न सिर्फ दूध लाया बल्कि शेरनी की पीठ पर भी बैठ कर आया और लोग उसमे देवता देखने लगे यही बालक आगे चल कर आयप्पा भगवान कहलाये जो कलयुग के अंतिम देवता है पर अयप्पा से शबरी नाम की महिला को प्रेम हो गया और वो आयप्पा से विवाह करने का प्रयास करने लगी पर आयप्पा ऐसा नहीं करना चाहते थे और ये भी नहीं चाहते थे कि शबरी का मन दुखाया जाये इस लिए उन्होंने एक शर्त रखी और शबरी से बोले कि जब पृथ्वी पर ऐसी लड़कियां होना बंद हो जाएँगी जिनको मासिक होता हो या लड़कियां उस उम्र तक जा ही नहीं पाएंगी जहा ये उत्सर्जन होता है तो मैं तुमसे विवाह कर लूंगा |
शबरी ने उनकी बात मान लीऔर इंतज़ार करने लगी पर ये प्राकृतिक चक्र न कभी रुका और ना ही शबरी का विवाह आयप्पा से हो पाया और शबरी बैठी रह गयी उसी के प्रतीक स्वरुप आज भी उन लड़किओं का जाना वह प्रतिबंधित है जिनको रक्त उत्सर्जित होने लगता है |
इसको लड़िकियों के अपमान और अधिकार से जोड़ कर देखने के बजाये उस कहानी से जोड़ कर देखना चाहिए जिसमे एक महिला इसी प्राकृतिक क्रिया के कारण विवाहित नहीं हो सकी |
इसी लिए आज भी शबरीमाला में वो लड़कियां नहीं जा सकती है जिनको मासिक शुरू हो जाता है क्योकि शबरी का विवाह इसी कारण से नहीं हो सका |
इस लिए वही प्रतीक अभी भी चल रहा है | अब निर्णय देश की महिलाओं को करना है कि जो प्रतिशोध शबरी का आज तक जिन्दा है वो उसके साथ है या फिर वो खुद एक महिला ( शबरी ) के मान सम्मान के प्रति उदासीन होकर सिर्फ मैं में जीकर एक ऐतिहासिक महिला के प्रतिशोध को अनजाने में समाप्त कर देना चाहती है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें