कामाख्या शक्तिपीठ से जुड़े कुछ रोचक तथ्य, जो बहुत कम लोगों को है पता
|इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है। मंदिर में एक कुंड सा है, जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस जगह से पास में ही एक मंदिर है जहां पर देवी की मूर्ति स्थापित है। यह पीठ माता के सभी पीठों में से माहापीठ माना जाता है।
इस पीठ के बारे में एक बहुत ही रोचक कथा प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस जगह पर माता के योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं। इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है। तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है।
प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है गीला वस्त्र
यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं। कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
कथा के अनुसार, एक समय पर नरक नाम का एक असुर था। नरक ने कामाख्या देवी के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा। देवी उससे विवाह नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने नरक के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि अगर नरक एक रात में ही इस जगह पर मार्ग, घाट, मंदिर आदि सब बनवा दे, तो देवी उससे विवाह कर लेंगी। नरक ने शर्त पूरी करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को बुलाया और काम शुरू कर दिया। काम पूरा होता देख देवी ने रात खत्म होने से पहले ही मुर्गे के द्वारा सुबह होने की सूचना दिलवा दी और विवाह नहीं हो पाया। आज भी पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है और जिस मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है, उसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं, जिस बात से क्रोधित होकर महर्षि वशिष्ट ने इस जगह को श्राप दे दिया। कहा जाता है कि श्राप के कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया।
16वीं शताब्दी से जुड़ा है आज के मंदिर का इतिहास
मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध होने लगे, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह जीत गए। युद्ध में विश्व सिंह के भाई खो गए थे और अपने भाई को ढूंढने के लिए वे घूमत-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए। वहां पर उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया। यह बात जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई। खुदाई करने पर कामदेव का बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला। राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था। जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने फिर से बनवाया।
भैरव के दर्शन के बिना अधूरी है कामाख्या की यात्रा
कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है, उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है। कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है। कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिर्वाय है।
कब जाएं
कामाख्या मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम अक्टूबर से मार्च का माना जाता है।
कैसे पहुंचें
कामाख्या मंदिर के लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर गुवाहाटी है। गुवाहाटी में आवागमन के सभी साधन उपलब्ध है। गुवाहाटी में एयरपोर्ट भी है।
मंदिर के आस-पास घूमने की जगह
कामाख्या मंदिर के पास ही नवग्रह मंदिर, महाकालभैरव मंदिर, ऋषि वशिष्ट का आश्रम है। मंदिर के कुछ दूरी पर उमानंद शिव का मंदिर है। इसने अलावा यहां पर मदन कामदेव, भुवनेश्वरी देवी, मानस कुंड लोहित आदि कुंड भी हैं।
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