बीते 11 साल में यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज नहीं है
दिसंबर 2012 से अप्रैल 2013 तक ऐसा भी रहा जब सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस को मिलाकर मुस्लिम जजों की संख्या चार हो गई थी.
समावेशिता
लोकतंत्र के बुनियादी गुणधर्मों से एक होती है. इसलिए लोकतांत्रिक
व्यवस्था के हर अहम पायदान पर सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के
प्रतिनिधित्व का बड़ा महत्व होता है. शायद यही वजह रही है कि सुप्रीम कोर्ट
में ऐसे मौके बहुत सीमित रहे हैं, जब यहां कोई मुस्लिम जज न रहा हो. इस
साल तक सुप्रीम कोर्ट में दो मुस्लिम जज थे जो रिटायर हो गए हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बीते 11 साल में पहला और तीन दशक में दूसरा मौका है, जब सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में आखिरी बार 2012 में दो मुस्लिम जजों की नियुक्त की गई थी. इनमें से जस्टिस एमवाई इकबाल इस साल दो फरवरी को और जस्टिस फाकिर मोहम्मद इब्राहीम कलीफुल्ला 22 जुलाई को रिटायर हो गए. अगले मुस्लिम जज की नियुक्ति का इंतजार काफी लंबा हो सकता है क्योंकि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच रस्साकशी चल रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक अभी केवल पटना और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मुस्लिम समुदाय से हैं. पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी हैं, जो असम के रहने वाले हैं और अगले साल अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मंसूर अहमद मीर हैं, जो जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं. वे अप्रैल 2017 में रिटायर होंगे.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज के न होने पर चिंता जताई है. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही यह स्थिति बदलेगी. बालकृष्णन का कहना है, ‘यह अधिकारों को दरकिनार करने का सवाल नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय में सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व का सवाल है. दुनिया के दूसरे देशों में सभी धर्मों, समुदायों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान बने हैं.’
सुप्रीम कोर्ट में सेवाएं दे चुके 196 और मौजूदा 28 जजों के आंकड़े को देखें तो अब तक मुस्लिम जजों की संख्या 17 या 7.5 फीसदी रही है. इनमें एम हिदायतुल्ला, एम हमीदुल्लाह बेग, एएम अहमदी और अल्तमस कबीर चीफ जस्टिस रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज एम फातिमा बीवी भी मुस्लिम समुदाय से थीं.
दिसंबर 1988 के बाद पहली बार अप्रैल 2003 से सितंबर 2005 के बीच लगभग ढाई साल तक सुप्रीम कोर्ट में कोई भी मुस्लिम जज नहीं रहा. इस लिहाज से यह सबसे लंबा समय है. चार अप्रैल 2003 को जस्टिस एसएसएम कादरी के रिटायर होने के बाद नौ सितंबर 2005 को जस्टिस अल्तमस कबीर की नियुक्ति हुई थी. इससे बाद दिसंबर 2012 से अप्रैल 2013 तक ऐसा मौका भी रहा जब सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम जजों की संख्या चार हो गई. इस समय चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर, जस्टिस आफताब अहमद, जस्टिस इकबाल और जस्टिस कलीफुल्ला सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त थे.
हाईकोर्ट के जज 62 वर्ष की उम्र में, जबकि सुप्रीम कोर्ट के जज 65 साल की उम्र में रिटायर होते हैं. सुप्रीम कोर्ट में कुल जजों की संख्या 31 है, लेकिन अभी तीन पद खाली हैं. पदासीन जजों में से जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और जस्टिस सी नागप्पन अक्टूबर में और जस्टिस शिवकीर्ति सिंह व जस्टिस अनिल आर दवे नवंबर में रिटायर हो रहे हैं. यानी नई नियुक्तियां होने तक सुप्रीम कोर्ट को न केवल मुस्लिम जज बल्कि खाली पदों को भरने का इंतजार रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट में आखिरी बार 2012 में दो मुस्लिम जजों की नियुक्त की गई थी. इनमें से जस्टिस एमवाई इकबाल इस साल दो फरवरी को और जस्टिस फाकिर मोहम्मद इब्राहीम कलीफुल्ला 22 जुलाई को रिटायर हो गए. अगले मुस्लिम जज की नियुक्ति का इंतजार काफी लंबा हो सकता है क्योंकि जजों की नियुक्ति प्रक्रिया पर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच रस्साकशी चल रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक अभी केवल पटना और हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मुस्लिम समुदाय से हैं. पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस इकबाल अहमद अंसारी हैं, जो असम के रहने वाले हैं और अगले साल अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मंसूर अहमद मीर हैं, जो जम्मू-कश्मीर के रहने वाले हैं. वे अप्रैल 2017 में रिटायर होंगे.
पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज के न होने पर चिंता जताई है. उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही यह स्थिति बदलेगी. बालकृष्णन का कहना है, ‘यह अधिकारों को दरकिनार करने का सवाल नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय में सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व का सवाल है. दुनिया के दूसरे देशों में सभी धर्मों, समुदायों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान बने हैं.’
सुप्रीम कोर्ट में सेवाएं दे चुके 196 और मौजूदा 28 जजों के आंकड़े को देखें तो अब तक मुस्लिम जजों की संख्या 17 या 7.5 फीसदी रही है. इनमें एम हिदायतुल्ला, एम हमीदुल्लाह बेग, एएम अहमदी और अल्तमस कबीर चीफ जस्टिस रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज एम फातिमा बीवी भी मुस्लिम समुदाय से थीं.
दिसंबर 1988 के बाद पहली बार अप्रैल 2003 से सितंबर 2005 के बीच लगभग ढाई साल तक सुप्रीम कोर्ट में कोई भी मुस्लिम जज नहीं रहा. इस लिहाज से यह सबसे लंबा समय है. चार अप्रैल 2003 को जस्टिस एसएसएम कादरी के रिटायर होने के बाद नौ सितंबर 2005 को जस्टिस अल्तमस कबीर की नियुक्ति हुई थी. इससे बाद दिसंबर 2012 से अप्रैल 2013 तक ऐसा मौका भी रहा जब सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम जजों की संख्या चार हो गई. इस समय चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर, जस्टिस आफताब अहमद, जस्टिस इकबाल और जस्टिस कलीफुल्ला सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त थे.
हाईकोर्ट के जज 62 वर्ष की उम्र में, जबकि सुप्रीम कोर्ट के जज 65 साल की उम्र में रिटायर होते हैं. सुप्रीम कोर्ट में कुल जजों की संख्या 31 है, लेकिन अभी तीन पद खाली हैं. पदासीन जजों में से जस्टिस वी गोपाल गौड़ा और जस्टिस सी नागप्पन अक्टूबर में और जस्टिस शिवकीर्ति सिंह व जस्टिस अनिल आर दवे नवंबर में रिटायर हो रहे हैं. यानी नई नियुक्तियां होने तक सुप्रीम कोर्ट को न केवल मुस्लिम जज बल्कि खाली पदों को भरने का इंतजार रहेगा.
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