महिलायें श्रंगार क्याें करती है?
हमारी महिलाएँ नाक - कान छेेदकर तरह - तरह की गहने पहनती है । इनकी हाथों मे चुडियाँ है वह गुलामी का प्रतीक है।
जब हमने इतिहास पढ़ा कि फ्रांसीसी का, शाक्यो का, हुुणो का, पुर्तगालियों का, मुगलांे का आक्रमण और जब आर्य का आक्रमण सिंधुघाटी की सभ्यता के बारें में पढा़ कि आर्यो का आगमन ऐसे हुआ जैेसे भारत मे उनकी रिश्तेदारी थी, जैसे रिश्तेदार के घर पर आये थे। कार्लमाक्र्स ने कहा था कि संदेह करो और मुद्दा बनाओ। इनको जितनी भी नीतियां है उन सारी नीतियांे पर संदेह करने की जरूरत है। उसंे मुदा बनाने की जरूरत है। आज जाति प्रमाण-पत्र का जो मुद्दा है। इस पर भी हमारे साथी लगातार बहस कर रहे है तथा बहुत सारें मुद्दों का जिक्र किया ऐसा दिखायी देता है कि निगाहे कहीं और निशाने कहीं और वाली कहवत चरितार्थ होती है। अंर्तराष्ट्रीय राजनीतिक को अगर देखा जाए तो अंर्तराष्ट्रीय राजनीतिक के पटल पर अमेरिका इस समय काफी उभरा हुआ है। उसके ब्राह्मणवादी चरित्र को देखा जाए। वह कहता है कि इराक परमाणु हथियार से भरा -पडा़ है वहाँ पर लोकतंत्र नही है। वहाँ पर तानाशाही है, और हमला कर देता है ओैर कहता है कि हम वहाँ लोकतंत्र कायम करना चाहते हैं और उस देश पर हमला करके खनिज, सम्पदा जैसे तेल के कुँआ को लूटकर उसे आग केे हवाले कर देंता है। इसी तरह से अफगानिस्तान में आतंकवाद के नाम लेकर अफगानिस्तान पर हमला किया। अफगानिस्तान पर हमला करने के पीछे भारत पर निगाहें रखने की योजना थी कि अगर हम अफगानिस्तान पर हमला करतेे है तो भारत जो एक मजबूत सख्त देश है यह हमारी मुट्ठी मंे होगा और हमारी गुलामी करेगा। इस तरह की कूटनीति करके अमेरिका ने भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया हैं। नीति उसकी है इसलिए हर नीति पर संदेह करने की जरूरत है ओेेैर मुदा बनाने की आवश्यकता है। मुद्दा बनाकर जनता के बीच जाने की जरूरत है। आज हम आजदी की बाते करतें हैं तो ये लोग कहते है देश तो आजाद है आप किस आजादी की बात करतंे हो। जब हम अपने समाज की ओर चलते हैं तो दिखाई देता है कि हमेें किस तरह की आजादी की जरूरत है। हर क्षण एक भूख और कुपोषण के शिकार हो रहे हैै। लोग भुखमरी से हर दिन मर रहे है। ये हमारे मूलनिवासी समाज के ही अपना भाई है जिनकी ऐसी हालात में जिंदंगी काट रहे है। उनको भूख से मरने की मजबूरी है। इस तरह से किसान भी आत्महत्या करनंे पर मजबूर हैं। इस तरह से किसानो की आत्महत्या करने की आजादी है। हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। छोटी-मोटी बिमारियों से मर रहा है, क्योकि उन्हे मरने की आजादी है लगभग 11.3 करोड महिलाआंे को शरीर ढ़ँकने के लिए कपडा़ उपलब्ध नहीं है। वह हर रोज स्नान नहीं करती है। उन्हे गंदे, मटमैले लिबास मेें रहने की आदत है। गंदे पानी पीनें के लिए करोडो़ं लोग मजबूर है। क्योकि यह उनकी आजादी है, इस तरह की आजादी को वे लोग आजादी कहते है। हम उनकी गुलामी करे वे हमें आजाद समझते है हम उनके खिलाफ विद्रोह करते है। तो वे लोग कहते है ये लोग नक्सलवादी और माओवादी है। हम इस आजादी का विरोध करते है। हम माओवादी अवश्य है, माओवादी हथियार का दर्शन नहीं है, बल्कि माओवादी प्रतिरोध का दर्शन है। जिस तरह से एक बेटे पर अत्याचार होता है तो उसका बाप प्रतिरोध करता है, उसी तरह से एक माँ पर अत्याचार होता है तो बेटा प्रतिरोध करता है। किसी की बहन-बेटी की इज्जत को लूटी जाती है तो वह प्रतिरेाध करता है इसलिए माओवाद प्रतिरोध का दर्शन है, माओवाद हथियार का दर्शन नहीं है। इस तरह से अफगानिस्तान और वियतनाम पर हमला कर अमेरिका ने उसें लूटने का काम किया। आज इन ब्राह्मणों ने हमे जाति और उपजाति में टुकडे़-टुकड़े करके छिन्न्ा-भिन्न्ा करके हमारे ऊपर शासन करते कर रहा है। क्योकि इन लोगों ने हमारी ताकत को समझते है। साथियो, लोगों का कहना है कि धर्म पूँजीपतियों के कल्याण के लिए होता है। यह सही है क्योकि धर्म ने हमेशा पूँजीपति वर्ग ओैर दबंगो का ही पक्ष लिया है। इस तरह से राजा को धर्म ने कहा कि राजा ईश्वर का प्रतीक होता है। सती प्रथा थी, सती प्रथा के खिलाफ किसी भी राजा ने आवाज उठायी। हजारो स्त्रियो को जलाकर राख कर दिया लेकिन किसी धर्मशास्त्रो में इसके खिलाफ मे कुछ नहीं लिखा। धर्मशास्त्रो ने किसी नीति का निर्धारण नहीं किया। सती प्रथा के अंतर्गत किसी स्त्री को चिता सजायी जाएगी तो कौन सा मंत्र का उच्चारण किया जाएगा, जब चिता सजायी जाएगी तो विधवा स्त्री किस दिशा में अपना चेहरा करके बैठेगी। दूसरी तरह जो लोेग इसका विरोध करते थे उसे असूर, राक्षस और दैत्य, दानव कहकर उनकी हत्या किया जाता था, इसे धर्म कहा जाता था। इस तरह से धर्म उस समय राजा के साथ था। धर्म कहता था कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होता है। इतना ही नहीं हमारे भारत देश मे कुछ राजाओे को भगवान का दर्जा दिया जाता है। लेकिन जनता की ताकत ने उस राजतंत्र को उखाड़ फेका। जिसे ईश्वर की प्रतिनिधि माना जाता था। जनता कि ताकत ने उस अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेका। जिस राज मे सूर्य अस्त नहीं होता था, उसे भी उखाड़ फेका। उन्हांेने वर्तमान समय मे मिश्र की ताकत को उखाड़ फेका। जनता सडक पर उतर आई है सभी देश हैरान है, वह हार चुके है। उधर अमेरिका बोल रहा है हुश्न मुबारक अपनी सŸाा छोडे़ और जनता की आवज को सुने और इधर अमेरिका की खुफिया एजेन्सी हुश्न मुबारक के साथ खडी़ है। ऐसा है अमेरिका का दोगली चरित्र! आज पूँजीपति वर्ग को हमारी ताकत का एहसास हो गया है। उनके पास हजारो तोपे है, लाखों बंदूके हैंे और पचास लाखों से अधिक सेनाएँ है फिर भी आज जनता की ताकत से डर रहा है। क्योकि हमारे पास कुछ भी नहीं है तो वह सिर्फ सगंठन की ताकत है। ब्राह्मण यह नही चाहता है कि मूलनिवासी एक मंच पर आकर संगठित हो जाए। जिस दिन हम सभी मूलनिवासी बहुजन संगठित हो जाएगे उस दिन ये ब्राह्मण हमारे मुकाबला नहीं कर सकते है। उनकी बंदूके, तोपे अथाह खँजाने किसी काम का नहीं रह जाएगा। सत्ता हमारे हाथों मेें होगी। साथियों, आज यह जाति प्रमाण-पत्र की समस्या है। हमंे पाँच हजार साल से जातियो और उपजातियो मेे बांटकर हमे तड़पाया है, इतना ही नहीं जरूरत पड़ी तो हमें काट डाला। इस तरह से हमारे महा पुरूषो को गुलाम बनाया जाता था। किन्तु महिलाएँ तो आजाद थी क्योकि यहाँ नारी प्रधान समाज था। यहाँ की महिलाएँ ने पुरूषांे से अधिक संघर्ष किया, इनको पुरूषों से अधिक खतरनाक समझा गया। यही कारण है कि इन आर्य ब्राह्मणांे ने इनकी नाक, कान को छेेद किया। इन्हे नाक-कान छेद कर रस्सी से बांधा गया। क्यांेकि स्त्रियों का विद्रोह बहुत ही खतरनाक था। आज हमारी महिलाएँ नाक-कान छेेदकर उसमे तरह-तरह के गहने पहनती है। इनकी हाथों में चुडियाँ है वह भी गुलामी की निशानी है। आज हम जिसे श्रृंगार कहते हैं वह वास्तव मे गुलामी है इनकी और यह सत्य इतिहास हैं साथियो आज छोटे-छोटे आन्दोलन चल रहे है, उसे एक सूत्र में जोड़ना होगा और उसे राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के रूप देकर उसे जन-आन्दोलन मंे परिवर्तन करना होगा तभी हमारे आदिवासी समाज का कल्याण होगा। हमें आजादी कि लिए लडा़ई लड़नी होगी, क्योंकि इस दुनिया मे आजादी से बढकर कोई चीज नही है।
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