मंगलवार, 20 सितंबर 2016

आम्बेडकर के लफ्ज भगवान भी नहीं काट सकता जिस जगत में मै पैदा हुआ हु , अगर उसकी मकरूह गुलामी और गैरइंसानी नाइंसाफी की जंजीरे न तोड़ सका, जिसमे वह कराह रही है, तो मै अपनी जिंदगी को गोली मारकर ख़त्म कर दूंगा |

आम्बेडकर के लफ्ज भगवान भी नहीं काट सकता

 जिस जगत में मै पैदा हुआ हु , अगर उसकी मकरूह गुलामी और  गैरइंसानी नाइंसाफी की जंजीरे न तोड़ सका, जिसमे वह कराह रही है, तो मै अपनी जिंदगी को गोली मारकर ख़त्म कर दूंगा | 




 आजादी, हमदर्दी और उन्नति की बरकतों से कबतक  खाली  रहेगी |
 यदि मै गांधी और जिन्हे की घृणा  करता हु तो मै उनसे नफरत नहीं करता बल्कि मै उन्हें नापसंद करता हु वह इसलिए की मुझे देश अधिक प्यारा है |
 महामानव के मौत से साधारण आदमी के भी दिल दाद देते है, लेकिन सूरज ढलते वक्त भी चिल्लाने वाले अल्कु संसार में होते है तो क्या करे  ?
 भारत में आज तक अनेक हस्तिया तमाम हुई होगी लेकिन जिसके मरहूम हो जाने पर यदि करोडो ह्रदय लहू लुहान हुए हो और करोडो आखो से आसुओ की धराये बही    हो ऐसी मौत केवल आंबेडकर की हुई |
 रोजाना 'मराठा ' के एडिटर आचार्य अत्रे ने १९५६ के ६ दिसंबर को इन शब्दों में बाबासाहेब को अपनी श्रद्धांजलि  भेट की |
"बाबा गए..!सात  करोड़ जनता असहाय हुई | जुल्म और बनावटी बेइंसाफी के खिलाफ आजीवन ईमान से जुज़्नेवाले जुंजारु, बहादुर चले गए पांच  हजार  वर्षो तक पांच करोड़ लोगो का हिन्दू समाज द्वारा किये गए छल का मुहतोड़ जवाब   डॉ आंबेडकर थे    |  "
 आम्बेडकर यानि जंग, यक़ीनन जंग | उनके जिस्म के जर्रा से जंग जाहिर होती थी | आम्बेडकर जुल्म के वास्ते बनी हुए वज्र की मुठ  थी! आम्बेडकर बनावटी  और जालसाजी  के सर को कलम करनेवाली गदा थी ! आम्बेडकर यानि जन्मभेद और नबराबरी पर छोडा गया  सुदर्शन चक्र !   आम्बेडकर जुल्म और वर्णशाही  की आतंकियों को फाड़ने वाला शिरकत नाख़ून था ! आम्बेडकर यानि वतनदार   और सयासदोंके   खिलाफ छेड़ा  गया संग्राम !!! 
 आम्बेडकर ने रब, मजरब  जाती भेदो के फंडों और बंदगी के खिलाफ रन बिगुल फूकने कने वाले बुद्ध जैसे रहबरोको अपनाया! गिरी हुई औरतो को ऊपर उठाने की कोशिश करनेवाले महात्मा फुले को खत्म करने के लिए हिन्दू समाज ने भाड़े के हत्यारे भेजे ! कबीर के हाथ  पाव   बांधकर पानी में डुबो दिया गया, हाथी के पैरो तले रौंदा गया और फिर मरने के बाद हिन्दू और मुसलमानोको उनके बारे में इतना प्यार होने लगा की उनके लाश का हक़ हासिल करने के लिए एक  दूसरे  का सर  फोड़ने  तक के लिए तूल गए ! भगवान बुद्ध के खून के प्यासों ने उन्मत नालागिरी हाथ और बेकाबू देवदत्त जैसे कतिलो को छोडे बिना  चैन   नहीं ली |
  मुद्दत में और उनके बाद भी जिन्हे दुःख दर्द और छल का हलाहल पीना पड़ा ऐसे बहादुर रहबरों के आंबेडकर सच्चे  शागिर्द  थे |
 हिन्दू समाज और कांग्रेस की सियासत के जरिये  आम्बेडकर का जितना अपमान, जितनी बुराई जितनी धोखाधड़ी हुई शायद वह कभी किसी के साथ होगी |
 तुटूगा, सहूँगा , मारुँगा लेकिन झुकुंगा नहीं इस जिद से उन्होंने बगावत का जिहाद छेड़ लिया था |
 कुत्ते बिल्लियों से भी गिरा बर्ताव करने वाले तुम्हारे मजहब में मै नहीं जाउगा | इंसान और इंसानियत के बीच हराकत का जहर फ़ैलाने वाले तुम्हारे स्मिर्ति  ग्रंथो को जला दूंगा इस कदर सीना ठोक कर वे सनातनी हिन्दुओ को आगाह  करते थे ! इस पर हिन्दू लोग  उन पर गुस्सा हुए | उनको लगा आंबेडकर तो मुहम्मद गजनबी से भी खतरनाक हमलावर है |
 धर्म अख्तियार की पुकार करने के बाद उनका खून करने के इरादे से एक हिन्दू लीडर डॉ कुर्त कोटि के पास गया लेकिन कुरटकोटी ने कहा "खबरदार जो तुम आम्बेडकर पर हमला  करने चले हो आम्बेडकर के हर खून के कतरे कतरे से दस दस आंबेडकर पैदा होगे | "

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