बुधवार, 21 सितंबर 2016

नग्नता, मैथुन और कला – एक घुटन : भारत एक खोज

नग्नता, मैथुन और कला – एक घुटन : भारत एक खोज

 
 
 
 
 
 
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नग्नता, मैथुन और कला – एक घुटन : भारत एक खोज
                                                                                      –    राजू परुलेकर
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कला और संस्कृति के विकास में और ईश्वर के आस्तित्व में वस्त्र पहनना या ढँकना यह कदापि निहित नहीं है|
पूरी दुनिया में देवी देवताओं की नग्न मूर्तियाँ बनायीं गयी हैं| भारत में भी देवी देवताओंकी और उनके अवतारोंकी नग्न मूर्तियाँ और चित्र बनानेकी परंपरा ग्रीक काल के पहले से चली आ रही है| इतना ही नहीं, दुनियामें भारतका ‘सनातन’ धर्म – जिसे अब ‘हिन्दू’ कहते है, एकमात्र ऐसा धर्म होगा जिस में योनी और लिंग पूजा का विशेष महत्त्व है|
एक इस्लाम धर्म को छोड़कर दुनिया के बाकी सारे धर्म नग्नता को सम्मान और दिव्य शक्ति का प्रतिक मानते हैं| प्रबोधन काल के पश्चात कई ग्रीक देवताओं के नग्न शिल्प तथा ईसाईं धर्म के नग्न और अर्ध नग्न चित्र देखने को मिलते हैं|
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भारत के अनेक मंदिरों में योनी और लिंग पूजा, शक्ति और शिव पूजा मानी गयी है| यह भारतीय जीवन का अविभाज्य हिस्सा है| 
एम्. एफ. हुसेन जी के देवी सरस्वती का नग्न चित्र बनाने पर हिन्दू मूलतत्ववादियों ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि यह उनकी संस्कृति पर आक्रमण है| इसके दो कारण हैं – एक तो चित्रकला, शिल्पकला सम्बंधित विचार, उसकी अनाटोमी – anatomy – यानी शरीरशास्त्र समझने के लिये मूलतत्ववादी तैयार नहीं थे, दूसरा कारण, इन सबको एम्. एफ. हुसेन मुस्लिम होने की बात अचानक पता चली हो|
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‘मकबूल फ़िदा हुसेन’ पंढरपुर में जन्मे, भारतीय संस्कृति की सही जानकारी रखनेवाले, महान कलाकार थे| एक हजार वर्ष तक इस्लाम की गुलामी में रहे भारत को इस्लामी संस्कृति की हार लड़ाई में सिर्फ ५० प्रतिशत हो सकती है और बची खुची हार उनको (मुसलमानों को) अपने जैसा बनाने में है; हम उनके जैसा बनने में नहीं है| यह महत्वपूर्ण बात भारत के लोग भूल गये|
‘इस्लाम’ यह धर्म ऐसा है कि जिसमें होली बुक (कुरआन – ए – शरीफ) पर प्रश्न पूछना, विवाद उत्पन्न करना, या अपने मतानुसार इसका अर्थ लगाना आदि बातों के लिये मौत की सजा है| इसे ईश्वर से सम्बंधित अथवा पवित्र बातों की निंदा करना यानी धर्मनिंदा (blasphemy) माना जाता है|
‘चार्ली हेब्दो’ मासिक में प्रेषित महमद के नग्न चित्र कई बार छापे गये हैं| डेन्मार्क में किसी व्यंग्य चित्रकार ने प्रेषित महमद का व्यंग्य चित्र छाप दिया था| दुनिया भर के मुस्लिमों ने इन सबको मौत के घाट उतार दिया|
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‘चार्ली हेब्दो’ मासिक के संपादक ‘स्टेफेन चार्ब’ ने इन धमकियों से बिना डरे, महम्मद के नग्न चित्र मासिक में छापना जारी रखा| इसके कारण इस मासिक पर ‘पेरिस’ में हमला कर के संपादक के साथ कईयों को, मुस्लिम जिहादियों ने मार डाला| 
‘सैतान के वचन’ (Satanic Verses) कुरान और महम्मद का अपमान है ऐसा समझकर ‘सलमान रश्दी’ जैसे लेखक को कई साल पहले मौत की सजा सुनाई गयी थी|
इस लेख के लेखक ने खुद ‘चार्ली हेब्दो’ मासिक के कार्टून, ट्वीटर से ‘स्टेफेन चार्ब’ की मौत की बाद, श्रद्धांजली के तौर पर प्रसारित किये थे| वे लेखक के ‘टाइम लाइन’ पर पीछे जा कर पाठक देख सकते है|
‘तसलीमा नसरीन’ ने भी कुरआन, मुस्लिम महिलाओंकी हालत, उनका शोषण, लिंग और योनी को अपवित्र मानकर, ढँककर रखेने के प्रवृत्ति के विरुद्ध लिखा| इसके कारण उनपर अपने ही देश से निष्कासित होने की नौबत आयी| इस्लाम ऐसा धर्म है जिसमे एक ही समय सेक्स मेनिया – विषयासक्ति और सेक्स का दमन दोनों साथ साथ चलते हैं|
शायद ये दोनों एक दूसरे पर अवलंबित है| मनुष्य को उसकी जिज्ञासा होती है, जो ढँका हुआ है| कला को ढँका नहीं जा सकता, उसे दिखाना पड़ता है| उदाहरण के लिये बुर्का धारण करने वाली महिला के चित्र में कला प्रकट करना असंभव है| कई बार धर्म और कला का उदय साथ साथ होता है| मुख्य रूप से सम्बंधित धर्म के ईश्वरी अवतार और देवी देवताओं के चित्र, शिल्प इनमें से कला का अविष्कार, हर धर्म में, संस्कृति, में हर प्रदेश में होता है| ‘मायकेल आन्जेलो, लिओनार्दो द विन्ची’ से लेकर ‘एम्. एफ. हुसेन तक अनेक कलाकारोंने अपने अपने धर्म की अथवा दूसरे धर्म की व्यक्ति उनको जैसे दिखाई देते है, उसी प्रकार चित्रित किये है| उन के शिल्प भी उसी प्रकार बनाए गये हैं|
जब आप मानवीय रूप में ईश्वरी अवतार दिखाते हो, चाहे वह चित्र हो या शिल्प, तब उस की अनाटोमी – शरीर रचना सबसे महत्वपूर्ण होती है| यह अनाटोमी डॉक्टर की तरह चित्रकार और शिल्पकार इन्हें भी कुशलता से सीखनी पड़ती है| इसलिये नैतिक तथा अनैतिक यह विचार कलाकार नहीं कर सकता, वह ननैतिक – नैतिकता निरपेक्ष  होता है|
इस्लाम में मूर्तिपूजा निषिद्ध है| किसी भी मानवीय रूप में ईश्वर के अंश को चित्रित करना मना है| प्रेषित महम्मद और उनकी वारिसों के चित्र बनाना या उनकी पूजा करना मना है| इस अपराध को सजा – ए – मौत मिलेगी| मुसलमान पैगम्बर का आदर करता है, पर इबादत वह सिर्फ अल्लाताला की करता है, जो अमूर्त है| प्रेषित महम्मद अल्लाह का दूत है, वह ईश्वर या ईश्वरी अवतार नहीं| ईश्वरी दूत होने के कारण वे सर्वोच्च आदरणीय है| इस्लाम महिलाओं में दैवी अंश को नहीं मानता|
इस्लाम में स्त्री देवता नहीं| पैगम्बर की पत्नी अथवा बेटी इनकी और सम्मान से देखा जाता है; पर उन्हें देवताओं के आस पास भी स्थान नहीं दिया जाता| इस्लाम में स्त्री ‘पुरुष की जागीर’ है|  विशिष्ट दायरे में उसे कुछ हक़ भी दिए हैं| मुसलमान जोर शोर से यह दावा करते हैं कि उन्होंने स्त्री को मानवीय हक़ से भी कुछ जादा दिया है| वह सब झूठ है| हिजाब,बुर्का और जो पुरुष उसे प्राप्त हुआ है उसकी सेवा, यही इस्लामी स्त्रियों की मर्यादा है|
इस पृष्टभूमि को देखते हुए इस्लाम किसी देवी या देवता का नग्न अथवा अर्ध नग्न शिल्प बनाना असंभव ही है| सजा ए मौत की बारे में न सोचा जाय, फिर भी चित्र, शिल्प, नग्नता, अर्ध नग्नता धर्म का आधार न लेते हुए दिखानी पड़ेगी| जिस की सजा वास्तवता से सम्बंधित न होकर भी ‘चार्ली हेब्दो’ की तरह, सजा ए मौत ही मिलेगी| 
ध्यान देने लायक बात तो यह है कि प्रेषित महम्मद का चित्र, कार्टून अथवा उस सन्दर्भ में नग्नता किसी ने बनाने की सोची तो सारा मामला काल्पनिक होगा| मूल रूप में ऐसे चित्र, कल्पना से बनाये चित्र धर्म में उपलब्ध नहीं है, क्यों कि वे निषिद्ध है| मैडोना, वीनस, खजुराहो के चित्र, कामाख्या मंदिर के नग्न जगन्माता का शक्तिस्थल, इन सारे और दूसरे धर्मोंकी संकल्पना के साथ इस्लाम का दूर दूर का रिश्ता भी नहीं|
मकबूल फ़िदा हुसेन जी ने श्री गणेश के कुछ अप्रतिम चित्र बनाये है| उन्हें भारतीय संस्कृति का, हिन्दू धर्म का सही ज्ञान था| प्राचीन मंदिरों में हम देवी देवताओं की पूजा करते हैं| वे शिल्प पत्थर में तराशे गये नग्न शिल्प है| भारत में देवी को जगन्माता कहा जाता है| माता और बच्चे में तो नग्नता का सवाल ही उठ खड़ा नहीं होता| अगर ऐसा हुआ तो यूँ माना जाय कि सवाल खड़ा करने वाले के मन में माता सम्बन्धी कामुकता को लेकर दोष है|
भारत के अनेक देवताओं को – चाहे वह पुरुष देवता हो या स्त्री देवता; सुबह का स्नान कराने के समय देवताओं की मूर्तियाँ नग्न होती हैं| पंडित – पूजा करने वाला अपने हाथों से दूध, इत्र – फुलेल, पानी, घी, दही, पंचामृत से उन्हें नहलाता है|

बाद में उन देवताओं को वस्त्र चढ़ाया जाता है| कुछ मूर्तियाँ जो अर्वाचीन कालसे हैं, उन पर मूर्तिकार ने ही वस्त्र चढाने की कारीगरी की है| पर ये वस्त्र चढाने से पहले चित्रकार या शिल्पकार को देव या देवी की एनाटोमी – शरीर रचना , सुन्दर दिखाने हेतु, मूर्ति, चित्र, के नग्न स्वरूप को सोचना पड़ता है|
कलाकार नैतिक या अनैतिक नहीं होता| वह ‘ननैतिक’ – नैतिकता निरपेक्ष(amoral) होता है| कलाकार पुजारी नहीं होता| हुसेन जी ने सरस्वती का नग्न चित्र बनाया, यह हजारों साल की परंपरा थी| “इसी प्रकार वे मुस्लिम धर्म में कुछ कर दिखायें” ऐसा उनसे कहना यह बेवकूफी की हद है| उपरोक्त कहे के अनुसार मुस्लिम धर्म इस प्रकार के मानवीय कला विचारों से अनभिज्ञ है, अनजान है| उनके शिल्प, वास्तु शास्त्र में, इमारत में दिखाई देते हैं| जिस कला को सहजता से मानवीय मूल्य या मानवीय चेहरा नहीं होता, उसे कलात्मक पिछडापन कहा जा सकता है|  
भारत में कलेण्डर(दिन दर्शिका) और शिला प्रेस के लिये व्यापार करने की परंपरा राजा रविवर्मा जैसे चित्रकार ने शुरू की| राजा रविवर्मा उत्कृष्ट चित्रकार था| पर कला तत्वज्ञान की अनुसार वह ढोंगी था| पुराने विचार रखता था| उस ने अनेक देवता, ह्यूमन मॉडेल का इस्तेमाल कर, उन्हें कपडे पहनाकर प्रचलित किया| शिला प्रेस में छापे मॉडेल्स, देवी देवताओं के चित्र हिदुओं के घर घर लगाये गये| इस से यह भ्रम फैला कि देवी देवताओं को कपडे पहनाना कलाकार के लिये बंधनकारक है| वास्तव तो यह है कि जिस समाज में देव और देवी का असाधारण लैंगिक आविष्करण शिल्प और चित्रों से व्यक्त होता था, वहाँ प्रबोधन युग की जगह अँधेरा छा गया|
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कामाख्या देवी हिन्दुओंका सबसे बड़ा शक्ति स्थल है| कामाख्या मंदिर में योनी पूजा अति पवित्र और इस से बहने वाला खून शक्ति बीज माना जाता है|
महादेव शंकर के बारे में लिंग पूजा भारतीय जीवन का अविभाज्य हिस्सा है|
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नग्नता का डर और परहेज यह हिन्दू धर्म में नहीं था| इस्लाम की इस प्रकार की मान्यताएं उदारचेता लोगों के खिलाफ थी| हिन्दू मूलतत्ववादी लोगों ने भारत में हिन्दुओं की विजय और इस्लाम की हार इस कदर मानी कि इस्लाम की बंद संस्कृति हिन्दू संस्कृति की उदारता में और ननैतिकता में(amorality) विलीन करने के बजाय हम भी उनकी तरह कट्टर बने| इस मूर्खता की सोच ने कट्टर हिन्दू अपने मूल नग्न और अद्भुत अविष्कार की शाश्वत ईश्वरी कला को कपडे पहनाने लगे और बुर्के भी|
आजकल मूर्ति बनाते समय शिल्पकार उस पर कपड़ों का आवरण चढ़ाता है| चित्रकार भी वही करता है| नग्नता से वे ही डरते है, जिन के मनमें नग्नता और कामुकता का फर्क स्पष्ट नहीं हुआ है|    
देवी को हम जगन्माता मानते है, शक्ति स्थल मानते है| अपनी संस्कृति से हमें यह सीख मिली है कि उसे के और हमारे बीच में बेटे का रिश्ता है| जब माँ बेटे को और बेटा माँ को नग्न देखता है, तब दोनों का जन्म होता है| 
कामाख्या मंदिर के शक्ति देवी की मूर्ति योनी पूजा और शक्ति स्थल की नाम से भारत भर में विख्यात है| भारत में इस देवी का और मंदिर का महत्व अनन्य साधारण है| 
कामाख्या देवी के मंदिर को शक्ति स्थल मानकर योनी पूजा करते वक्त उस के योनी का रक्त(प्रतिक की रूप में) हम सर पर धारण करते है, तब वह स्थल कामुक है, ऐसा हम सोचते है क्या? या वह अपनी संस्कृति है?
हुसेन जी ने सरस्वती का नग्न चित्र बनाया, उस से अत्यंत कलात्मक और अष्ट सात्विक भाव प्रकट होता था| इस के विपरित कलात्मक नजरिये को लेकर भारत माता का जो चित्र हम सदैव देखते है, उसे लम्बी साड़ी पहनायी हुई होती है| ऐसा लगता है कि हल्दी – कुमकुम समारोह में कोई सुहागिन आई हो, जिसके केश खुले है| उस चित्र का परिणाम देखते हुए वह अखंड भारत है ऐसा भी नहीं लगता, या किसी की माता है ऐसा भी नहीं लगता| कला का पिछडापन और अर्थहीनता उस साड़ी पहने हुए भारत माता के चित्र से प्रतीत होती है| अब किसी कर्मठ सिरफिरे ने आपके गले पर छुरी रख कर उसे ही भारत माता मानने के लिये बाध्य किया तो भी, प्राचीन, अर्वाचीन और ‘पोस्ट मॉडर्ननिजम’ से वह एक बनावटी,सामान्य चित्र है|
हजारों साल के इस्लाम के आक्रमण के पश्चात भी हम उन्हें अपने जैसे नहीं बना पाये, बल्कि हम उनके जैसे हो गये| यही हमारी सांस्कृतिक नग्नता है| महत्वपूर्ण समस्या तो यहीं है कि इस नग्नता को कैसे छिपाया जाय? 
धर्म के अन्दर नग्नता त्याज्य नहीं, सनातन धर्म में तो बिलकुल ही नहीं| इस्लाम और विक्टोरियन काल यह नग्नता ढँकने वाला पाखंडी काल माना गया है| धर्म का सच्चा अर्थ प्रकृति है, और प्रकृति शाश्वत – ननैतिक होती है|  
वस्त्र और नैतिकता का क्या सम्बन्ध? मिसाल के तौर पर कहा जाय, तो उष्ण प्रदेश – विषुववृत्त रेखा में रहने वाले लोग सादे और नाजुक – पतले वस्त्र पहनते हैं| शीत प्रदेश के लोग ऊनी कपडे, विविध आवरणों से बने वस्त्र पहनते हैं| इस का मतलब क्या यह है कि जादा कपडे पहनने वाले लोग ज्यादा नैतिक होते हैं?
अगर वस्त्र नैतिकता का निदर्शक है तो जादा कपडे पहनने वाले लोग नैतिक माने जाने चाहिये| जिसे से हमें डर लगता है, उसे हम ढँक देते हैं, और यह भय हमारे मन में विद्यमान है|
इस्लाम धर्म भय पर आधारित है| कुछ अब्राहमनिक(Abrahamanic) धर्म भय पर आधारित ही है| पर भारत में निर्माण धर्म, भय की आधार पर खड़े नहीं है|
जैन लोगों में दिगम्बर पंथ है| क्या उस पंथ को भी अश्लील माना जाय?
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अनेक स्तूप, मंदिर और अनेक शिल्प के देवी देवता नग्न रूप में उस काल के कलाकारों ने तराशे हैं| आज के जैसे कट्टर लोग उस समय भारत में मौजूद नहीं थे| इस कारण वे अपनी कला को पूर्ण रूप में व्यक्त कर सके|
देव, अवतार ये ईश्वर के अंश होते है, ईश्वर नहीं| ईश्वर जन्म नहीं लेता, ईश्वर की मृत्यु भी नहीं आती, ईश्वर का अंश जिस में बड़ी मात्रा में होता है, उनको हम अवतार मानते हैं|
कई साधू और साध्वी, मन्त्र साधना करने वाले साधू या साध्वी अथवा नाग पंथीय साधू वस्त्र विहीन होते हैं|
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अश्लीलता से उनका कोई वास्ता नहीं|
हुसेन जी मुस्लिम होने के कारण वे हिन्दू देवताओं का जान बूझ कर अपमान करते है; वे इस्लाम के साथ इस तरह बर्ताव करेंगे क्या, ऐसा पूछना नीरी बुद्धि हीनता है| इस्लाम कोई धर्म नहीं, वह तो राजनीतिक ‘कल्ट’ यानी जीवन शैली है, जिस की दूसरी अहमियत धर्म है| मानवीय आस्तित्व का सफ़र एक खोज है, जिस में अनेक कलाएँ हैं, संगीत है, विज्ञान है| क्रमशः वे निम्न लिखित है –
१.      ज्ञान योग 
२.      अवतार/ प्रेषित
३.      धर्म
४.      धर्म का संगठन
५.      धर्म के नाम से काम करते है ऐसा बताने वाले राजनितिक/अराजनीतिक संगठन 
सच्चा कलाकार ज्ञान, प्रेषित और धर्म के आस्तित्व में अनेक स्तरपर कार्यरत होता है| उसे धर्म के संगठन (उदा. शंकराचार्य के न्यास, खिलाफत, वैटिकन, वक्फ बोर्ड इत्यादि) इन सबसे कोई लेना देना नहीं होता| उस प्रकार वह काम ही नहीं कर सकता| धर्म के संगठन के नीचले स्तर पर, धर्म के संगठन के नाम पर राजनीतिक/अराजनीतिक (निजी) संगठन काम करते हैं| कोई भी सच्चा कलाकार उन्हें कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दे सकता| और उसने देना भी नहीं चाहिये| दोनों की भाषा एक दूसरे की समझ में नहीं आती| संख्या के बल पर कलाकार निष्प्रभ होता है, हारता है, पर उसका कहना प्राकृतिक और अमर होता है| उसे हराने वाले का बोलना झूठ, कामुकता लिये हुए और ढोंग से ओतप्रोत होता है| हुसेन जी, चार्ली हेब्दो, तसलीमा नसरीन की साथ क्या क्या हुआ होगा यह बात ध्यान में आ सकती है|
देवी देवताओं के चित्र और शिल्प दुनियाभर की सारी संस्कृतियों में (अर्वाचीन भारतीय संस्कृति को लेकर) केवल नग्न रूप में चित्रित और तराशे हुए नहीं हैं|
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हर एक धर्म में कुछ अपवाद छोड़ दे तो देवी देवताओं की अनगिनत मैथुन चित्र और शिल्प बने है और वे दैवी माने जाते हैं| सहजता से तथा ज्ञान के स्तरपर मैथुन यही निर्मिती की आरंभिक और आखरी सीमा होती है| वही मैथुन अलग अलग रूप में पुनर्निर्मित करनेकी दैवी प्रतिभा कलाकार को प्राप्त होती है| यह बात जिनकी समझ में नहीं आती ये कलाकार की हत्या करनेका मौका ढूंढते है| ऐसे लोग सारी संस्कृतियों, सारी जगहों पर छिपे बैठे हैं| वे सिर्फ मैथुन का, नग्नता का विरोध नहीं करते बल्कि निर्मिती की, प्रकृति की और ज्ञान की हत्या करते हैं| इनका पक्ष लेने वाली सरकार जब अलग अलग देशों में बनती है तब तब उस देश का, प्रान्त का और संस्कृति का पतन शुरू होता है|
नैतिकता का प्रकृति से, सृजन से, ज्ञान से कोई वास्ता नहीं| ज्ञान, प्रकृति ननैतिक(amoral) है| नैतिकता कानून है, इस प्रकार लाखो विरोधी नैतिक कानून नग्नता और मैथुन के सन्दर्भ में है, बल्कि हर बात के सन्दर्भ में है| अगर विषय बदल कर उदाहरण दिया जाय तो – संजय दत्त ने हथियार रखने के कारण भारत में पांच साल जेल की सजा काटी| जो ब्रिटिश कालीन कानून की तहत थी| इस प्रकार हथियार रखना अमरिका में अपराध नहीं है बल्कि एक सहज घटना है| भारत में कानून के अनुसार सजा काटने के कारण उसके लिये अब अमरीका के दरवाजे बंद हैं| सजा की संकल्पना या रूप बदलता रहता है| उसका परिणाम दूर तक होता है| यह दिखाने के लिये यहाँ यह उदाहरण कुछ हटकर दिया गया है|
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दुनिया भर के चित्रकारों और शिल्पकारों ने नग्नता के सन्दर्भ में कई प्रयोग किये है| उसमें भारत का स्थान प्रथम है| 
खजुराहो जैसे मंदिर, अजंता एलोरा जैसे शिल्प भारतीय संस्कृति की धरोहर है| धर्म के नाम पर अगर चित्रकारों ने देवी देवताओं की नग्न और मैथुन शिल्प बनाना बंद कर दिया तो हमें अपनी चार पांच हजार साल पहले की पुरानी कला संस्कृति और शिल्प संस्कृति को नकारना पड़ेगा|
जैनिज़म, बुद्धिज़म, हिन्दू सनातन धर्म ने कलाकार को शिल्प या चित्र बनाते समय नग्नता अथवा मैथुन शिल्प बनाना नैतिक नियमों को लेकर त्याज्य नहीं किया था|
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प्राचीन महर्षियों ने ज्ञान और दैवी अंश के स्तरपर सृजन को देखा था| नैतिकता के नियम और कानून एक जैसे है| सीमा पर कायदा बदलता है| केवल देश की ही नहीं अपितु राज्य की सीमा की अनुसार भी बदलता है| महाराष्ट्र में बीफ पर प्रतिबन्ध है, केरला में नहीं| गुजरात में शराब बंदी है पर महाराष्ट्र में नहीं| इसका अर्थ यही है कि गुजरात में शराब पीना अपराध है अथवा महाराष्ट में गोमांस खाना माना है, आस पास के राज्यों में नहीं| भारत में बिना परमिट के हथियार रखना अपराध है, पर अमरीका में नहीं| अनेक प्रजातियों में आज भी एक से जादा पत्नियाँ या एक से जादा पति रखने का रिवाज जारी है| ऐसी रीतियाँ भारत में कई स्थानों पर है| कई मुक्त भटकने वाली प्रजातियों में है, वैसे आधुनिक दुनियाँ में भी है|  
भारत में विक्टोरियन काल के गुलामी के काल खंड में रानी विक्टोरिया का साम्राज्य विश्व भर में फैला था| जब उस पर हमेशा सूरज चमकता था तब विक्टोरियन मैनरिज़म नामक कोड ऑफ़ कंडक्ट – व्यवहार की नीति प्रचलित हुई, जिस से महिलाओं ने पूरा बदन ढँक जाये ऐसे कपडे पहनना, पुरुषों ने खाना खाते समय विशिष्ट पद्धति से कपडे पहनना, काँटा और चम्मच इस्तेमाल करना, अभिजात्य संस्कृति का लक्षण माना जाने लगा|
जेम्स कामेरून(James Cameron) की ‘टायटानिक’ फिल्म के कुछ दृश्यों में विक्टोरियन मैनारिज़म – रीती रिवाज के उदहारण देखने को मिलते है| फिल्म में एक जगह पर, बाद में महान कहलाया गया चित्रकार, पिकासो का उल्लेख भी सामान्य, अति साधारण के रूप में मिलता है| प्रथम श्रेणी के विक्टोरियन अभिजात्य वर्ग में जो वातावरण था, उसका गुलाम भारतीय प्रजा पर, दीर्घ काल तक नकारात्मक असर रहा| विक्टोरिया रानी और ब्रिटिश साम्राज्य की हार के बाद, ब्रिटन अमरीका और ब्रिटिशों का अमल जिस पर था, वे राष्ट्र कुल देश इस वर्चस्व से परे हट गये| कला और संस्कृति के, नैतिकता के, झूठे नियम उन्होंने त्याग दिये|
विक्टोरियन काल में, जिस ने मूल कम्प्युटर की खोज की, जिस ने नाझी का कूट सन्देश(encrypted message decode) पढ़ने की विधि को इजाद किया, वह एलन टूरिंग सम लैंगिक होने की कारण अपराधी माना गया| उसे हार्मोनल उपचार अथवा जेल जैसा विकल्प दिया गया| आगे चलकर उस ने आत्महत्या की| सम लैंगिकता कोई बीमारी नहीं थी| एलन टूरिंग आगे कम्पूटर का पितामह साबित हुआ| उसकी खोज की कारण हिटलर की विरोध में हुआ युद्ध दो साल पहले समाप्त हुआ| इंग्लैंड की रानी ने टूरिंग को मृत्यु के उपरांत माफ़ी दे दी| 
पर इसके विपरीत प्राचीन भारतीय संस्कृति में सम लैंगिकता को किसी भी प्रकार के बीमारी की भावना से नहीं देखा जाता था|

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