ब्राह्मणवादी सरकारों ने मुकदमों का खड़ा कर दिया अंबार
फैमली कोर्ट में 2.45 लाख केस लंबित
नए न आए तो भी निपटाने में लगेंगे 17 साल
लखनऊ/दै.मू.समाचार
आज ब्राह्मणवादी सरकारें जहां अपनी सरकार के काबिलियत का ढोल पीट रही है उन्हीं सरकारों ने देश से लेकर सूबे की हालत बद से बद्तर बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। यह ब्राह्मणवादी सरकारों की नालायकी ही है कि आज सूबे के पारिवारिक अदालतों में मुकदमों का अंबार खड़ा कर दिया गया है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो उŸार प्रदेश के केवल फैमिली कोर्ट में अब तक 2.45 लाख केस लंबित पड़े हैं। यदि इसके बाद नए केस न भी आएं तो इन केसों पर मात्र सुनवाई करने में 17 साल का समय बीत जाएगा।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार शनिवार 08 जुलाई 2017 को उŸार प्रदेश में लंबित मुकदमों के मामले में पेश आंकड़ों ने चौंका कर रख दिया है। उत्तर प्रदेश की पारिवारिक अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या 2.45 लाख के पार पहुंच ही नहीं चुकी है बल्कि जानबूझ कर पहुंचाई गई है। अगर इन अदालतों में नए केस न भी आएं तो भी सभी मामलों को निपटाने में 17 साल लग जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि 190 फैमिली कोर्ट में से केवल 42 ही जज हैं। इस हकीकत से पर्दा तब उठा जब हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ फैमिली कोर्ट को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में अप्रैल 2017 तक के लंबित केसों की संख्या का हवाला दिया गया था। इस पर जस्टिस श्रीनारायण शुक्ला और जस्टिस शिव कुमार सिंह-प्रथम ने कहा कि अगर मान लिया जाए कि मई से एक भी केस दायर नहीं हो और पारिवारिक अदालतों को वैसे ही चलने दिया जाए जैसे ये अभी चल रही है तो इन सभी मामलों पर फैसला सुनाने में 17 साल लग जाएंगे।
आपको बताते चलें कि यूपी के 14 जिलों में 05-05 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं लेकिन अदालतें खाली पड़ी हैं। जजों की संख्या का हवाला देते हुए बताया गया है कि 190 फैमिली कोर्ट में कुल 42 ही जज हैं। यदि 08 फरवरी 2017 तक का आंकड़ा देखा जाए तो जिला अदालतों में कुल 3028 पद स्वीकृत हैं जिनमें से कुल 2251 पदों पर नियुक्ति की गई है और 777 पद अभी रिक्त हैं। विशेष सूत्रों के मुताबिक क्लास 03 काडर के 14,089 पद स्वीकृत हैं इनमें से केवल 9,980 भरे गए हैं जबकि 4,109 पद खाली हैं। यदि क्साल 04 की बात करें तो 8700 स्वीकृत पदों में 1,742 पद खाली हैं। यह हाल केवल यूपी की अदालतों का है। प्रदेश की पारिवारिक अदालतों में लंबित 02 लाख 45 हजार 918 मामलों में से सर्वाधिक लखनऊ, इलाहाबाद और कानपुर नगर में हैं। जहां लखनऊ में 15620 मामले लंबित हैं तो वही इलाहाबाद में यह संख्या 1,187 और कानपुर नगर में 8618 है। यही नहीं लखनऊ में तीन पारिवारिक अदालते हैं जबकि इलाहाबाद व कानपुर नगर में दो-दो हैं। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि हर जज पर केसों का बोझ कितना बढ़ चुका है।
इन तथ्यों का खुलासा तब हुआ जब पारिवारिक न्यायालय हाईकोर्ट के अधीन या जिला जजों की प्रशासकीय व विभागीय अधीनता में इसे लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान एक और रोचक बातां का खुलासा हुआ है। वह यह है कि उक्त तीन अदालतों के अलावा आगरा, अलीगढ़, आजमगढ़, बरेली, बुलंदशहर, देवरिया, गाजियाबाद, हरदोई, जौनपुर, मेरठ और सुल्तानपुर में करीब 05-05 हजार से अधिक मामले लंबित हैं। यह न्यायालयों की गंदी तस्वीर केवल फैमिली कोर्ट की ही नहीं है बल्कि निचली अदालतों के भी हाल वैसे ही नजर आ रहे हैं जैसे फैमिली कोर्ट की खस्ता दशा है। मालूम हो कि निचली अदालतों में लंबित केसों की कुल संख्या 60,20,302 है जबकि सिविल अदालतों में इनकी संख्या 15,13,290 है। क्रिमिनल अदालतें भी इन वाकयों से अछूता नहीं है। क्रिमिलन अदालतों में भी 45,07,012 मामले लंबित पड़े हैं। यदि उक्त बातों का पूर्ण रूप से विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जो लंबित मामलों का अंबार खड़ा है वह अंबार ऐसे ही नहीं लगा है बल्कि सरकार द्वारा जानबूझ कर खड़ा किया गया है।
फैमली कोर्ट में 2.45 लाख केस लंबित
नए न आए तो भी निपटाने में लगेंगे 17 साल
लखनऊ/दै.मू.समाचार
आज ब्राह्मणवादी सरकारें जहां अपनी सरकार के काबिलियत का ढोल पीट रही है उन्हीं सरकारों ने देश से लेकर सूबे की हालत बद से बद्तर बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। यह ब्राह्मणवादी सरकारों की नालायकी ही है कि आज सूबे के पारिवारिक अदालतों में मुकदमों का अंबार खड़ा कर दिया गया है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो उŸार प्रदेश के केवल फैमिली कोर्ट में अब तक 2.45 लाख केस लंबित पड़े हैं। यदि इसके बाद नए केस न भी आएं तो इन केसों पर मात्र सुनवाई करने में 17 साल का समय बीत जाएगा।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार शनिवार 08 जुलाई 2017 को उŸार प्रदेश में लंबित मुकदमों के मामले में पेश आंकड़ों ने चौंका कर रख दिया है। उत्तर प्रदेश की पारिवारिक अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या 2.45 लाख के पार पहुंच ही नहीं चुकी है बल्कि जानबूझ कर पहुंचाई गई है। अगर इन अदालतों में नए केस न भी आएं तो भी सभी मामलों को निपटाने में 17 साल लग जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि 190 फैमिली कोर्ट में से केवल 42 ही जज हैं। इस हकीकत से पर्दा तब उठा जब हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ फैमिली कोर्ट को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में अप्रैल 2017 तक के लंबित केसों की संख्या का हवाला दिया गया था। इस पर जस्टिस श्रीनारायण शुक्ला और जस्टिस शिव कुमार सिंह-प्रथम ने कहा कि अगर मान लिया जाए कि मई से एक भी केस दायर नहीं हो और पारिवारिक अदालतों को वैसे ही चलने दिया जाए जैसे ये अभी चल रही है तो इन सभी मामलों पर फैसला सुनाने में 17 साल लग जाएंगे।
आपको बताते चलें कि यूपी के 14 जिलों में 05-05 हजार से ज्यादा मामले लंबित हैं लेकिन अदालतें खाली पड़ी हैं। जजों की संख्या का हवाला देते हुए बताया गया है कि 190 फैमिली कोर्ट में कुल 42 ही जज हैं। यदि 08 फरवरी 2017 तक का आंकड़ा देखा जाए तो जिला अदालतों में कुल 3028 पद स्वीकृत हैं जिनमें से कुल 2251 पदों पर नियुक्ति की गई है और 777 पद अभी रिक्त हैं। विशेष सूत्रों के मुताबिक क्लास 03 काडर के 14,089 पद स्वीकृत हैं इनमें से केवल 9,980 भरे गए हैं जबकि 4,109 पद खाली हैं। यदि क्साल 04 की बात करें तो 8700 स्वीकृत पदों में 1,742 पद खाली हैं। यह हाल केवल यूपी की अदालतों का है। प्रदेश की पारिवारिक अदालतों में लंबित 02 लाख 45 हजार 918 मामलों में से सर्वाधिक लखनऊ, इलाहाबाद और कानपुर नगर में हैं। जहां लखनऊ में 15620 मामले लंबित हैं तो वही इलाहाबाद में यह संख्या 1,187 और कानपुर नगर में 8618 है। यही नहीं लखनऊ में तीन पारिवारिक अदालते हैं जबकि इलाहाबाद व कानपुर नगर में दो-दो हैं। ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि हर जज पर केसों का बोझ कितना बढ़ चुका है।
इन तथ्यों का खुलासा तब हुआ जब पारिवारिक न्यायालय हाईकोर्ट के अधीन या जिला जजों की प्रशासकीय व विभागीय अधीनता में इसे लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी। सुनवाई के दौरान एक और रोचक बातां का खुलासा हुआ है। वह यह है कि उक्त तीन अदालतों के अलावा आगरा, अलीगढ़, आजमगढ़, बरेली, बुलंदशहर, देवरिया, गाजियाबाद, हरदोई, जौनपुर, मेरठ और सुल्तानपुर में करीब 05-05 हजार से अधिक मामले लंबित हैं। यह न्यायालयों की गंदी तस्वीर केवल फैमिली कोर्ट की ही नहीं है बल्कि निचली अदालतों के भी हाल वैसे ही नजर आ रहे हैं जैसे फैमिली कोर्ट की खस्ता दशा है। मालूम हो कि निचली अदालतों में लंबित केसों की कुल संख्या 60,20,302 है जबकि सिविल अदालतों में इनकी संख्या 15,13,290 है। क्रिमिनल अदालतें भी इन वाकयों से अछूता नहीं है। क्रिमिलन अदालतों में भी 45,07,012 मामले लंबित पड़े हैं। यदि उक्त बातों का पूर्ण रूप से विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जो लंबित मामलों का अंबार खड़ा है वह अंबार ऐसे ही नहीं लगा है बल्कि सरकार द्वारा जानबूझ कर खड़ा किया गया है।
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