मंगलवार, 18 जुलाई 2017

सरकारी बैंकों को खत्म करके बैंकिंग सेक्टर की नौकरियों के साथ ही आरक्षण खत्म करेगी मोदी सरकार


नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
चाइनीज झालरों का विरोध करने वाले देशभक्तों के लिए एक और अच्छी खबर है। चमत्कारिक पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार रेलवे, हवाई सेवाओं और आईएएस जैसे महत्वपूर्ण पदों का निजीकरण करके पहले ही आरक्षण खत्म करने की पहल कर चुकी ह। अब भक्तों की चुप्पी से उत्साहित होकर मोदी सरकार लगातार संघ के एजेंडे के अनुपालन में आरक्षण खात्मे की ओर अपने कदम तेजी से बढ़ा रही है। प्राइवेट सेक्टर से आईएएस बनाने का फैसला कर चुकी केन्द्र सरकार की निगाह अब बैंकिग सेक्टर की नौकरियों पर पड़ी है। सरकार ने फैसला लिया है कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र के दर्जनों बैंकों को खत्म करके उनकी जगह कुछ मेगा पीएसयू यानि बड़ी बैंक बनाइ जाएंगी। सरकार इस कवायद से जहां बैंकिंग सेक्टर से नौकरी कम होगी वहीं नौकरी कम होने आरक्षण स्वतरू खत्म हो जाएगा।
एसबीआई में 05 बैंकों का हो चुका है विलय- स्टेट बैंक और बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ ट्रावणकोर, भारतीय महिला बैंक जैसी बैकों का स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 01 अप्रेल से विलय हो भी चुका है। अब बाकी बैंकों को खत्म करके ऐसी ही अन्य बैंक बनाने की तैयारी है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ये तो स्वीकार कर लिया कि सरकार 3-4 विश्व स्तर के बैंक बनाने और सार्वजिनक क्षेत्र की बैंकों को एक साथ जोड़ने की योजना पर तेजी से काम कर रही है लेकिन ये कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया। बोले ये बहुत गुप्त जानकारी है। देश में अभी 21 सरकारी बैंक हैं। नरेंद्र मोदी सरकार इनकी संख्या घटाकर 12 करने पर गंभीरता से काम कर रही है। ये मेगा बैंक अपने बैंकों को बढ़ाकर नहीं बनाएंगे। तमाम बैंक खत्म कर उन्हें एक में जोड़कर मेगा बैंक बनाएंगे। एक तरफ जहां आईसीआईसीआई, एचडीएफसी, यस बैंक, ऐक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, सिटी बैंक, करुर वैश्य बैंक सहित दर्जनों की संख्या में निजी क्षेत्र के बैंक खुले हैं और तमाम गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों को सेमी बैंकिंग की अनुमति दी जा रही है, वहीं सरकारी बैंक खत्म किए जा रहे हैं। इसके पीछे का एक मकसद यह भी है कि अब सरकारी बैंकों में आरक्षण से भर्तियां करनी पड़ रही हैं। न रहेंगे बैंक, न रहेगा आरक्षण। सीधा सा हिसाब है। एक तर्क यह भी है कि सरकारी बैंकों के कर्मचारी नालायक और लुटेरे होते हैं। ढंग की सेवाएं नहीं देते। घूसखोरी करते हैं। इसका तरीका यह है कि सरकारी बैंकों के कर्मचारियों की जातीय जनगणना करा ली जाए। पता चल जाएगा कि ये घूसखोर, चोर, बेइमान लोग कौन हैं। बैंक अगर बर्बाद हैं तो किन लोगों ने बर्बाद किया। इनके सीईओ के नाम देख लिए जाएं। टाप मैनेजमेंट के लोगों को देख लिया जाए कि ये कौन लोग हैं..? संवैधानिक आरक्षण से आए हैं या जन्मजा आरक्षण पाए लोग हैं जो सरकारी बैंकों को लूट खाए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें