शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

शासक वर्ग ने रामनाथ कोविंद को बनाया चक्रव्यूह का मोहरा


रामनाथ के सहारे भाजपा के सियासत का नया समीकरण
नई दिल्ली/दै.मू.मसाचार
रामनाथ कोविंद को बीजेपी ने देश के 14वां राष्ट्रपति बनाकर आरएसएस द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह का मोहरा ही नहीं बना दिया है बल्कि रामनाथ कोविंद के सहारे ही बीजेपी अपने सियासत के समीकरणों की जमीन भी तैयार कर ली है। अब इसी समीकरण के आधार पर बीजेपी 2019 के आम चुनाव के लिए बाजी जीतने का जश्न भी मना रही है।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि बृहस्पतिवार 20 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति चुनाव के आए नतीजों में बीजेपी के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद 65 फीसदी से अधिक वोट हासिलकर देश के 14वें राष्ट्रपति बने हैं। भले ही रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति बने हैं, लेकिन हकीकत यही है कि बीजेपी ने रामनाथ कोविंद आरएसएस द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह का नया मोहरा बना लिया है। गौरतलब है कि भले ही कोविंद बीजेपी के सक्रिय नेता नहीं रह गए हों, लेकिन वह परोक्ष रूप से बीजेपी के सबसे बड़े हथियार बन गए हैं। भाजपा की चुनावी राणनीति में अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग सबसे आगे हो चुका है। बीजेपी राष्ट्रपति और पीए के दोनों सर्वोच्च पदों पर अनुसूचित व पिछड़ा वर्ग के नेताओं को बैठाकर बीजेपी को एक नई पहचान दी है। इससे ने केवल अनुसूचित जाति के लोगों का बल्कि पिछड़े वर्ग का भी झिझक बीजेपी के प्रति खत्म हो जाएगी और बीजेपी इसे अपना हथियार बनाकर इस्तेमाल करेगी।
आपको बताते चलें कि गुरुवार को राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आ गए हैं और अछूतों की राजनीति के चलते देश को एक नया अछूत राष्ट्रपति मिल गया है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या इससे अछूतों को कोई खास फायदा होगा? अगर इसका जवाब ढूंढा जाए तो स्पष्ट जवाब है कि इससे अछूतों को रŸाभर भी फायदा नहीं होगा, बल्कि बीजेपी को अछूतों के वोटों की शक्ल में फायदा जरूर पहुंचेगा, जिसका वो इस्तेमाल 2019 के आम चुनाव में करने वाले हैं। क्योंकि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को कोई खास अधिकार नहीं होते हैं। कुछ एक मामले को छोड़ दिया जाए तो जो सरकार चाहती है, उन्हें वो ही करना होता है। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति सरकार को मशविरा दे सकते हैं, सरकार से पुनर्विचार करने के लिए कह सकते है, लेकिन अगर सरकार इनकार कर दे तो उन्हें हस्ताक्षर करने ही होंगे। यदि देखा जाए तो भारतीय राष्ट्रपति की कमोबेश वही स्थिति होती है जो इंग्लैंड में महारानी की होती है। राष्ट्रपति तो सिर्फ नाम के ही होते हैं, उन्हें कोई अधिकार नहीं होता। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद हो गए थे। कानून के एक रिसर्च इंस्टीस्यूट के उद्घाटन के वक्त राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि हम लोगों को आंखे बंद कर के ब्रिटेन के रिवाजों को नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि राष्ट्रपति के अपने अधिकार होने चाहिए। लेकिन नेहरू का व्यक्तित्व इतना मजबूत था कि उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को 10 साल तक राष्ट्रपति तो रखा लेकिन कभी उनकी कोई बात नहीं मानी। यह इस बात का सबूत है।
भारत में संविधान के विरुद्ध भी सरकार कुछ कहती है तो राष्ट्रपति को उसे मानना होता है, इमरजेंसी के दौरान भी तो यही हुआ था, इंदिरा गांधी ने जो कहा, वही माना गया। पार्टियां अधिकतर नेताओं को ही राष्ट्रपति बनाती हैं। जो व्यक्ति आज आधी रात तक बीजेपी का सक्रिय सदस्य है और उसकी हर बात का समर्थन करता है कल राष्ट्रपति बनते ही उनकी सोच कैसे बदल जाएगी? हकीकत यही है कि अछूत भले ही खुश होंगे की उनके समुदाय से कोई राष्ट्रपति बना है लेकिन राष्ट्रपति अपने फैसले से कोई फायदा पहुंचाए ऐसा नहीं हो सकता। बीजेपी केवल अछूत और पिछड़े वर्ग को देश के सर्वोच्च पदों पर स्थापित करके आरएसएस द्वारा बनाए गए चक्रव्यूह को मोहरा बनाकर 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए जमीन तैयार किया है।

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