74 स्टेशंस और 80 ट्रेनों में जांच के बाद हुआ खुलासा
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
कैग की एक रेलवे पर एक रिपोर्ट शुक्रवार को संसद में पेश की गई। इसमें कहा गया है कि रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में मिलने वाला खाना इंसानों के खाने लायक नहीं है। कैग ने 74 स्टेशंस और 80 ट्रेनों में जांच के बाद यह बात अपनी रिपोर्ट में कही है। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि स्टेशन और ट्रेन बेहद गंदे रहते हैं और इनमें सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता। 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के बाद से जिस तरह रेल मंत्री सुरेश प्रभु ट्विटर के जरिए रेलवे के काम काज के तरीकों में लगातार सुधार का प्रयास करते दिखेए लेकिन वो नाकाफी प्रतीत हो रहे हैं।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि रेल यात्राएं लगातार बदतर होती जा रही है, कैटरिंग सेवाओं और गंदगी की शिकायत करते रहे हैं और अब सीएजी ने इस बात पर अपनी मुहर भी लगा दी है कि अब रेल का खाना खाने लायक नहीं रह गया है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक यसीएजीद्ध ने भारतीय रेल की कैटरिंग सर्विस से जुड़ी अपनी रिपोर्ट संसद के सामने रखीण् इसमें भारतीय रेल की कैटरिंग सर्विस में बहुत सी अनियमितताओं पर सवाल उठाए गए हैं। सीएजी ने साफ शब्दों में कहा है कि ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को परोसी जा रही चीजें खाने लायक नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक एक ओर ट्रेन के भीतर और स्टेशनों पर परोसी जा रही चीजें प्रदूषित हैं तो वहीं दूसरी तरफ डिब्बाबंद और बोतलबंद वस्तुएं एक्सपायरी डेट के बाद भी बेची जा रही हैं। 2005 से भारतीय रेल ने तीन बार अपनी कैटरिंग पॉलिसी में बदलाव किया। कई ऐसे कैटरिंग सर्विस जिसे 2005 में आईआरसीटीसी को दिया गया था और वापस जोनल रेलवे को दिया गया थाए एक बार फिर उसे आईआरसीटीसी को दे दिया गया है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इसके लिए मैनेजमेंट स्तर पर लगातार हो रहे बदलाव को बड़ा कारण बताया है। रिपोर्ट में लिखा गया कि इससे अनिश्चितता की स्थिति बनी और यात्रियों को इससे नुकसान हुआ है।
आपको बताते चलें कि अगर किसी बड़े या छोटे विभागों में घोर लापारवाही सीएजी और रेलवे की संयुक्त टीम ने इसके अलावा 80 ट्रेनों का भी मुआयना किया रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि ट्रेनों और स्टेशनों पर साफ-सफाई का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा जाता है। कूड़ेदानों को न तो ढक कर रखा जाता है और न ही इनकी नियमित सफाई होती है। रिपोर्ट के मुताबिक पेय पदार्थों में साफ पानी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है और खाने पीने की चीजों को धूल, मक्खी से बचाने के लिए ढकने तक की व्यवस्था नहीं है, साथ ही रिपोर्ट में ट्रेनों के अंदर चूहे और तेलचट्टों का पाया जाना भी एकदम आम बात है। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रेलवे लंबी दूरी की कई ट्रेनों में पैंट्री कार उपलब्ध कराने में नाकाम रहा हैण् रिपोर्ट के मुताबिक जिन ट्रेनों में पैंट्री कार उपलब्ध हैं उनमें जहां एक ओर बेची जा रही चीजों का रेट कार्ड उपलब्ध नहीं हैं तो वहीं दूसरी ओर चीजें ऊंची क़ीमतों पर बेची जा रही हैं। जांच के दौरान खाने की वस्तुओं का वजन भी तयशुदा मात्रा से भी कम पाया गयाण्रिपोर्ट में लिखा गया है कि सात जोनल में तो अब तक रेलवे ने कैटरिंग सर्विस के लिए ब्लूप्रिंट ही तैयार नहीं किया है।
क्या है रिपोर्ट में... ☠?
☞ कैग की शुक्रवार को संसद में पेश की गई रिपोर्ट में कई अहम बातें हैं।
☞ कैग के मुताबिक- ट्रेन और स्टेशंस पर ऐसा खाने वाली चीजें मौजूद रहती हैं, जो इंसानों के लायक नहीं हैं। मिलावट और रिसाइकल चीजें इस्तेमाल की जाती हैं। पानी की जो बॉटल्स बेची जातीं हैं, वो एक्सपायरी डेट वाली होती हैं।
☞ रिपोर्ट के मुताबिक, जिन ब्रांड्स को मंजूरी नहीं दी गई है, उन ब्रांड्स की पानी की बोतलें भी दोनों जगह बेची जाती हैं।
☞ रिपोर्ट के मुताबिक, नई दिल्ली, हावड़ा, गुवाहाटी, इलाहाबाद और लखनऊ के स्टेशनों और ट्रेनों में जो फूड आयटम्स सप्लाई किए जा रहे थे, वो इंसानों के खाने लायक नहीं पाए गए।
खुला पड़ा रहता है खाना
☞ रिपोर्ट के मुताबिक- सीधे नलों से पानी लिया जाता है। डस्ट बिन्स खुली पड़ी रहती हैं और इन्हें धोया भी नहीं जाता। खाने का सामान भी ढंककर नहीं रखा जाता। इसके ऊपर मक्खियां, मच्छर, धूल, चूहे और कॉकरोच पाए गए। ट्रेनों में ये कमियां पाई गई हैं।
☞ कैग ने रेलवे की एक और बड़ी खामी की तरफ ध्यान दिलाया है। उसके मुताबिक, ट्रेनों में बेचे जाने वाले सामान का कोई बिल पैसेंजर्स को नहीं दिया जाता।
☞ रिपोर्ट के मुताबिक
क्वांटिटी भी कम है। यही नहीं रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि खाने का जो सामान पैसेंजर्स को सर्व किया जाता है उसकी क्वांटिटी भी कम होती है। जिन ब्रांड्स को बेचने की इजाजत नहीं है, उनकी पैकेज्ड वॉटर बॉटल्स बेची जाती हैं। इसमें आगे कहा गया है कि कई फूड आयटम्स और दूसरे सामान मैक्सिमम रिटेल प्राइस पर बेचे जाते हैं और ओपन मार्केट की तुलना में इनकी कीमत ज्यादा वसूली जाती है। बता दें कि देश में करीब 65,000 किलोमीटर लंबा रेल नेटवर्क है। इस पर रोज 11,000 ट्रेनें चलाईं जाती हैं। हर रोज करीब 2.5 करोड़ लोग इनमें सफर करते हैं। रिपोर्ट में इन कमियों का भी जिक्र 11 जोन के 35 स्टेशनों पर वॉटर प्यूरीफायर नहीं थे। 22 ट्रेनों में ये होने के बावजूद सीधे टोंटी से पानी भर कर चाय कॉफी एवं सूप बनाने में इस्तेमाल किया जा रहा था। 11 जोन के 28 स्टेशनों पर तय स्टैंडर्ड के मुताबिक डस्ट बिन्स नहीं थे। 32 स्टेशनों और 15 ट्रेनों में पाया गया कि कैटरिंग स्टाफ टॉवर कैप और ग्लब्ज नहीं पहनते। तीन स्टेशनों पर फूड आयटम्स ढके नहीं थे। कीडे और धूल पाई गई। 12313 सियाल्दाह राजधानी एक्सप्रेस में वाडीलाल की आइसक्रीम तय 100 ग्राम की जगह 90 ग्राम ही दी जा रही थी। 12019 हावड़ा रांची शताब्दी एक्सप्रेस में परांठा और दाल का वजन कम था। ब्राण्डेड चिप्स, नमकीन ज्यादा कीमत पर बेचे जा रहे थे। आगरा स्टेशन पर बिकने वाले पेठा में फंफूद पाई गई। कानपुर शताब्दी में मिलावटी तेल पाया गया है। जो यह साबित करने के लिए काफी है कि जब तक देश में बीजेपी का राज रहेगा तब तक न तो रेलवे में सुधार होगा और न ही देश की विकास में।
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