ईवीएम मामले में चिड़िचुप हुआ चुनाव आयोग
चुनाव आयोग की खामोशी के पीछे लगा लगा प्रश्नचिंह
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
जो ईवीएम का मामला अभी सुखि्र्ायां रहा उसका अचानक चिड़िचुप होना किसी दुसरी बात की तरफ संकेत कर रहा है। चुनाव आयोग की इस खामोशी पर प्रश्नचिंह लग गया है कि आखिर क्या वजह है कि चुनाव आयोग विल्कुल शांत मोड में हो गया है? इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चुनाव आयोग किसी दूसरे मुद्दे को उठाने में लगा है।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि अभी हाल ही में चुनाव आयोग ने हैकाथन कराकर असंवैधानिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को सही साबित होने का ढिंढोरा पीट रहा था वह अचानक आज खामोश क्यों है? यह एक सोचनीय और विचारणीय प्रश्न भी है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि चुनाव आयोग कहीं दूसरा प्लान बनाने में व्यस्त है? वैसे भी अभी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर खूब चर्चा चल रहा है। यदि देखा जाए तो चुनाव आयोग अपनी मनमानी करने से अब भी बाज नहीं आ रहा है। ईवीएम की विश्वसनीयता पर 1980 से ही सवाल उठ रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग ईवीएम से ही चुनाव संपन्न कराकर अपनी मनमानी का सबूत दे रहा है। चुनाव आयोग का यह रवैया साफ संकेत दे रहा है कि ईवीएम में गड़बड़ी सिद्ध हो या न हो, परन्तु चुनाव केवल ईवीएम से ही होगा।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने सभी दलों के सामने ईवीएम पर उठने वाले सवालों को खारीज करते हुए कहा कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित बताया जबकि किसी पार्टी ने हिस्सा ही नहीं लिया। अगर मीडिया में बताया गया कि दो पार्टियों ने हिस्सा लिया था फिर यह क्यों नहीं बताया गया कि शर्त के अनुसार चुनाव आयोग नहीं उतरा। यदि चुनाव आयोग को चुनौती देना ही था तो किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर को देता तब माना जाता कि चुनाव आयोग इमानदार है। लेकिन चुनाव आयोग ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को चुनौती न देकर दलाल नेताओं को चुनौती दिया। दूसरी बात गौर करने वाली यह है कि चुनाव आयोग ने चुनौती तो दिया लेकिन पूर्व शर्त लगाया कि ईवीएम को बगैर खोले गलत साबित करना होगा। चुनाव आयोग द्वारा शर्त लगाना ही साबित करता है कि चुनाव आयोग बुरी तरह से डर गया है कि कहीं ईवीएम गलत साबित हो गया तो उसकी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी और देश की जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा। यही वजह थी कि चुनाव आयोग ने ईवीएम हैक करने से पहले ईवीएम को न खोलने की शर्त लगाया।
आपको बताते चलें कि चुनाव आयोग केवल यही रट लगाए बैठा है कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित है, जबकि 2010 में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हरी प्रसाद मुरली ने ईवीएम को हैक करके भारत इलेट्रॉनिक लिमिटेड और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ईवीएम जांच के लिए बनाई गई एक्सपर्ट कमेटि और चुनाव आयोग के अधिकारियों के सामने सिद्ध कर दिया था। इसलिए सरकार उसको सम्मानित करने के बजाए जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया था। वर्ष 2014 में भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा.वामन मेश्राम ने खुद चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया और कोर्ट का फैसला मा.वामन मेश्राम के पक्ष में आया। अभी भारत मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में देश के 31 राज्यों में ‘‘ईवीएम हटाओ, लोकतंत्र बचाओ और बैलेट पेपर लाओ’’ अभियान के अतंर्गत हस्ताक्षर अभियान चला रहा है। अब चुनाव आयोग को यह समझ में नहीं आ रहा है कि अब इस हस्ताक्षर अभियान को किस तरह से काउंटर किया जाए। यही कारण है कि अब चुनाव आयोग कोई नया तरकीब सोच रहा है इसलिए अभी बिल्कुल ही चिड़िचुप है।
चुनाव आयोग की खामोशी के पीछे लगा लगा प्रश्नचिंह
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
जो ईवीएम का मामला अभी सुखि्र्ायां रहा उसका अचानक चिड़िचुप होना किसी दुसरी बात की तरफ संकेत कर रहा है। चुनाव आयोग की इस खामोशी पर प्रश्नचिंह लग गया है कि आखिर क्या वजह है कि चुनाव आयोग विल्कुल शांत मोड में हो गया है? इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चुनाव आयोग किसी दूसरे मुद्दे को उठाने में लगा है।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि अभी हाल ही में चुनाव आयोग ने हैकाथन कराकर असंवैधानिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को सही साबित होने का ढिंढोरा पीट रहा था वह अचानक आज खामोश क्यों है? यह एक सोचनीय और विचारणीय प्रश्न भी है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि चुनाव आयोग कहीं दूसरा प्लान बनाने में व्यस्त है? वैसे भी अभी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर खूब चर्चा चल रहा है। यदि देखा जाए तो चुनाव आयोग अपनी मनमानी करने से अब भी बाज नहीं आ रहा है। ईवीएम की विश्वसनीयता पर 1980 से ही सवाल उठ रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग ईवीएम से ही चुनाव संपन्न कराकर अपनी मनमानी का सबूत दे रहा है। चुनाव आयोग का यह रवैया साफ संकेत दे रहा है कि ईवीएम में गड़बड़ी सिद्ध हो या न हो, परन्तु चुनाव केवल ईवीएम से ही होगा।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने सभी दलों के सामने ईवीएम पर उठने वाले सवालों को खारीज करते हुए कहा कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित बताया जबकि किसी पार्टी ने हिस्सा ही नहीं लिया। अगर मीडिया में बताया गया कि दो पार्टियों ने हिस्सा लिया था फिर यह क्यों नहीं बताया गया कि शर्त के अनुसार चुनाव आयोग नहीं उतरा। यदि चुनाव आयोग को चुनौती देना ही था तो किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर को देता तब माना जाता कि चुनाव आयोग इमानदार है। लेकिन चुनाव आयोग ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को चुनौती न देकर दलाल नेताओं को चुनौती दिया। दूसरी बात गौर करने वाली यह है कि चुनाव आयोग ने चुनौती तो दिया लेकिन पूर्व शर्त लगाया कि ईवीएम को बगैर खोले गलत साबित करना होगा। चुनाव आयोग द्वारा शर्त लगाना ही साबित करता है कि चुनाव आयोग बुरी तरह से डर गया है कि कहीं ईवीएम गलत साबित हो गया तो उसकी इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी और देश की जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा। यही वजह थी कि चुनाव आयोग ने ईवीएम हैक करने से पहले ईवीएम को न खोलने की शर्त लगाया।
आपको बताते चलें कि चुनाव आयोग केवल यही रट लगाए बैठा है कि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित है, जबकि 2010 में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हरी प्रसाद मुरली ने ईवीएम को हैक करके भारत इलेट्रॉनिक लिमिटेड और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ईवीएम जांच के लिए बनाई गई एक्सपर्ट कमेटि और चुनाव आयोग के अधिकारियों के सामने सिद्ध कर दिया था। इसलिए सरकार उसको सम्मानित करने के बजाए जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया था। वर्ष 2014 में भारत मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा.वामन मेश्राम ने खुद चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया और कोर्ट का फैसला मा.वामन मेश्राम के पक्ष में आया। अभी भारत मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में देश के 31 राज्यों में ‘‘ईवीएम हटाओ, लोकतंत्र बचाओ और बैलेट पेपर लाओ’’ अभियान के अतंर्गत हस्ताक्षर अभियान चला रहा है। अब चुनाव आयोग को यह समझ में नहीं आ रहा है कि अब इस हस्ताक्षर अभियान को किस तरह से काउंटर किया जाए। यही कारण है कि अब चुनाव आयोग कोई नया तरकीब सोच रहा है इसलिए अभी बिल्कुल ही चिड़िचुप है।
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