सच छिपाने की कोशिश तो नहीं ट्रॉमा की आग?
लखनऊ/दै.मू.समाचार
केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में लगी आग की आंच विधानसभा तक पहुंच गई है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभा में संदिग्ध हालत में मिला विस्फोटक पदार्थ का मामला और ट्रॉमा सेंटर में लगी आग दोनों का तार एक ही तार से जुड़ा लग रहा है। मंगलवार को ट्रॉमा सेंटर में आग्निकांड की जांच में सामने आई खामियों को लेकर विपक्ष ने सदन में सरकार को घेरने की कोशिश की।
दैनिक मूलनिवासी नायक प्रमुख संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि ट्रामा सेंटर में आग लगने से पहले दवा खरीद का रिकॉर्ड मांगा गया था, रिकार्ड उपलब्ध कराने से पहले ही सारे रिकार्ड की फाइलें खाक हो गई। संदेह यही होता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उसी को जलाने के लिए जानबूझकर आग लगाई गई हो? इसका मतलब यह हुआ कि जहां भी कोई घपला या घोटाला होता है, वहां आग लग जाती है, इसके भी कई सबूत हैं। आपको बताते चलें कि ट्रॉमा सेंटर की आग में करोड़ों रुपये की दवाएं और उनकी खरीद-फरोख्त के दस्तावेज भी जल गए हैं। इन दवाओं और दस्तावेज के जलने के कारणों की दोबारा गहनता से जांच करवाई जानी चाहिए। साथ ही यह भी जांच का विषय है कि आग लगने के पीछे केजीएमयू में बनी कुछ जांच समितियों का सच छिपाने की कोशिश तो नहीं है? ये दो टिप्पणियां उस रिपोर्ट का अंश हैं जो कमिश्नर अनिल गर्ग ने मंगलवार को सीएम दफ्तर को भेजी है। अब मुख्यमंत्री कार्यालय के ऑफिसर केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर में आग लगने के कारणों की जांच के बाद तैयार की गई इस रिपोर्ट के आधार पर ऐक्शन लेने के साथ जरूरी गाइड लाइंस जारी करने की भी तैयारी कर रहे हैं।
कमिश्नर की रिपोर्ट के मुताबिक, दवाओं की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है। इनकी खरीद-फरोख्त से जुड़े दस्तावेज भी उसी स्टोर में रखे हुए थे जिनमें आग लगी है। इसी के साथ यह भी जानकारी मिली है कि केजीएमयू सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट की दूसरी टिप्पणी में शिक्षकों की भर्ती की ओर भी इशारा किया गया है। कुछ महीने पहले पीएमओ और सीएम दफ्तर से इन भर्तियों में कथित गड़बड़ियों की शिकायत भी हुई थी। केजीएमयू रजिस्ट्रार ने भी इन भर्तियों की जांच करवाने के लिए दो कमिटी बना दी थीं। ट्रॉमा सेंटर में आग सेकंड फ्लोर से शुरू हुई थी। इसी फ्लोर पर दवाओं का मुख्य स्टोर भी था। इस स्टोर में वेंटिलेटर में इस्तेमाल होने वाले महंगे एंटीबायटिक, कई तरह के ट्यूब, सीवीसी लाइन, एनेस्थेटिक ड्रग्स और ईसीजी की दवाएं थीं जो कुछ महीने पहले ही खरीदी गई थीं। इससे ही साबित हो जाता है कि दवाओं का रिकार्ड और शिक्षकों की भर्ती में घपले की जांच लगी थी। इस जांच की आँच लगने से पहले ही सारे दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया गया।
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