889 पिछड़े, अनुसूचित और आदिवासी समुदाय के छात्र हुए बाहर
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
देश में आरक्षण को समाप्त करने का एक तरफ कुचक्र रचा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ आरक्षित वर्ग के बच्चे मेहनत करके अगर आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थान में जगह बना भी लेते हैं तो उनका ऐसा उत्पीड़न किया जाता है कि वे छात्र वहां अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाते हैं। कई छात्रों की ऐसी शिकायत भी रही है कि मनुवादी मानसिकता के अध्यापक कई छात्रों को जानबूझकर फेल भी कर देते हैं ताकि आईआईटी से उनकी पढ़ाई पूरी न हो सके। साफ है कि जातिवादियों ने आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों को भी कसाईवाड़ों में बदल दिया है जहां जातिवादी मानसिकता के अध्यापक पिछड़ों, अनुसूचित जाति और आदिवासी समुदाय के छात्रों के भविष्य का बेरहमी से कत्ल कर रहे हैं। जबकि इससे पहले जातिवाद का भेदभाव मेडिकल कॉलेजों में छात्रों के साथ होता रहा है।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि एम्स जैसे बड़े शिक्षण संस्थान समेत कई मेडिकल कॉलेज के छात्रों ने भी अपने साथ जाति के आधार पर भेदभाव की बाते कहीं थी। बाद में जब उनकी खबरें मीडिया का हिस्सा बनी तो उन छात्रों की दोबारा परीक्षा कराई गई तो सभी छात्र पास हो गए। लेकिन इस प्रकिया में छात्रों के तीन चार साल बर्बाद हो गए। अब यही जातिवाद का गंदा खेल आईआईटी में भी खेला जा रहा है। छात्रों के खराब प्रदर्शन के लिए आईआईटी के अध्यापक अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहे हैं? इस मामले में सामाजिक चिंतक और आईआईटी रूड़की के छात्र रहे सुनील कुमार कहते हैं कि देश की शिक्षा व्यवस्था में भयानक खामियां है। आईआईटी में पढ़ने वाले बच्चे अगर अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहे हैं तो इसका दोष सिर्फ बच्चों का नहीं है, दोष उन अध्यापकों का भी है जिनके निम्न स्तर के ज्ञान के चलते बच्चों को विषय की पढ़ाई समझ में नहीं आ रही है। अगर खराब प्रदर्शन करने वाले छात्रों को निकाला जाता है तो जिस अध्यापक के छात्र खराब प्रदर्शन कर रहे हैं उसको भी निकाला जाना चाहिए। तब तो इसे न्याय कहा जा सकता है, लेकिन यहां तो न्याय दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है।
अब सवाल उठतात है कि आखिरकार ऐसा कैसे संभव है कि देश की सबसे कठिन मानी जाने वाली प्रवेश परीक्षा को पास करके छात्र वहां अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहा है? आईआईटी के अध्यापकों पर भी इस बात की जिम्मेदारी आनी चाहिए। अगर आईआईटी में पढ़ाने वाले अध्यापकों के छात्र फेल हो रहे हैं तो कहीं न कहीं उनके कमजोर ज्ञान और पढ़ाने के कौशल में कमी के चलते ऐसा हो रहा है और जहां तक आईआईटी में जातिवाद की बात है तो यहां भी समाज के अन्य जगहों के जैसा ही जातिवाद है। इस बात की पूरी संभावना ही नहीं बल्कि सौ प्रतिशत सत्य है कि सवर्ण जातिवादी मानसिकता के अध्यापक छात्रों को जाति के आधार पर फेल कर रहे हैं।
आपको बता दें कि पिछले एक साल में आईआईटी में खराब प्रदर्शन के आधार पर 889 छात्रों को आईआईटी से बाहर किया गया है। बाहर किए गए छात्रों में से लगभग 98 फीसदी छात्र आरक्षित वर्ग के हैं। जिससे साफ है कि आईआईटी में जाति के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। आईआईटी में पढ़ना हर छात्र का सपना होता है। लोगों का मानना है कि यहां से पढ़े हुए छात्र इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बड़ी से बड़ी सफलता हासिल करते हैं। यहां तक की आईआईटी में एडमिशन लेने के लिए भी छात्रों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि पिछले एक साल में आईआईटी के 889 छात्रों को खराब परफॉर्मेंस दिखाकर बाहर निकाल दिया गया है। आपको बता दें कि जातिवाद के कारण एम-टेक और एमएससी की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों की संख्या करीब 630 है। इससे साफ जाहिर होता है कि आईआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों पर कब्जा करने वाले यूरेशियन ब्राह्मण नहीं चाहते हैं कि 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज के छात्र डॉक्टर, वकील और इंजीनियर बनें।
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