मंगलवार, 18 जुलाई 2017

ईवीएम बहुजनों के सत्यानाश कारण बन रहा है-मा.वामन मेश्राम




आजमगढ़/दै.मू.समाचार
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) जहां एक ओर देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज के सत्यानाश का कारण बन रही है वहीं दूसरी ओर संविधान और और लोकतंत्र की हत्या भी कर रही है। इसलिए अब जरूरी हो गया है कि ईवीएम को हटाकर न केवल संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की जाए बल्कि देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज का सत्यानाश होने से बचाया भी जाए। यह बात मा.वामन मेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्ष, बामसेफ) ने उŸार प्रदेश के आजमगढ़ में बामसेफ के 32वें राज्य अधिवेशन की तैयारी के अंतर्गत बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा एवं सभी ऑफसूट संगठनों के एक दिवसीय मंडल स्तरीय कार्यक्रम में उमड़े हजारो लोगों के जनसमूह को संबोधित करते हुए कही।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकारी देते हुए बताया कि आज पूरे देश में बामसेफ के नेतृज्व में ईवीएम हटाओ, बैलेट पेपर लाओ और लोकतंत्र बचाओ’ अभियान के तहत कहीं हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है तो कहीं जोरदार धरना प्रदर्शन भी किया जा रहा है। ऐसा ही एक नजारा आजमगढ़ में देखने को मिला जहां बामसेफ एवं भारत मुक्त मोर्चा के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने कहा कि एक तरफ चुनाव आयोग और दूसरी ओर केन्द्र की आरएसएस नीति वाली बीजेपी सरकार की आपसी मिली भगत से लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। इन दोनों की बदमाशी मैं अच्छी तरह से जानता हूं, क्योंकि भारत चुनाव आयोग जिस ईवीएम मशीन का उपयोग करता है, वह अन्तराष्ट्रीय मानक पूरे नहीं करती है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ईवीएम के लिए 7 तरह के विविध मानक हैं, लेकिन भारत में जिस ईवीएम मशीन का उपयोग किया जाता है, उसमें दो महत्वपूर्ण मानक लागू ही नहीं किये गए हैं। पहला है यदि चुनाव के नतीजों में संदेह है तो वोटर्स के वोट का सत्यापन किया जाए तथा मतदाताओं के अनुसार और मशीन के अनुसार भी पुर्नगणना की जाए और दूसरा यह है कि जहाँ तक व्यक्तिगत मतदाता का संबंध है, उसे आश्वस्त किया जाना चाहिए कि जिस उम्मीदवार को मतदाता ने वोट दिया है, वास्तव में उसका वोट उसी उम्मीदवार को प्राप्त हुआ है। जबकि ईवीएम में पुर्नगणना की सुविधा ही नहीं है। भारत चुनाव आयोग जिस ईवीएम मशीन का उपयोग करता है, उसमें पुर्नगणना होती है, लेकिन पुर्नमतगणना नहीं हो सकती है। अर्थात मशीन में पड़े हुए वोटों की कुल गणना होती है। यदि मशीन में पहले से ही गड़बड़ी की गई हो तो पुर्नगणना करने के बाद भी मतदाताओं के दिए हुए मतों का सत्यापन नहीं किया जा सकता। लेकिन वहीं बैलेट पेपर से वोटिंग होने पर यदि आशंका होती है तो प्रत्येक दिए हुए वोट की पुर्नगणना की जा सकती है। ईवीएम मशीन से वोटिंग होने के बाद मतदाताओं को यदि आशंका होती है तो मतदाताओं द्वारा दिए हुए वोटों की पुर्नगणना करने का प्रावधान मशीन में नहीं है। इसलिए मतदाता आश्वस्त नहीं होता। यदि मतदाता आश्वस्त नहीं होता तो उसके वोटिंग करने का अर्थ क्या है? 
आगे राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि साल 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी के सांसद डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता जी.वी.एल.नरसिम्हाराव ने ईवीएम मशीन के विरोध में सबूत इकट्ठा करके दिल्ली हाईकोर्ट में केस दायर किया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने सुब्रह्मण्यम स्वामी के केस को रद्द कर दिया था। उसके विरोध में सुब्रह्मण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम मशीन के विरोध में यह कहते हुए फैसला दिया कि केवल ईवीएम मशीन के आधार पर मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव नहीं हो सकता। ईवीएम मशीन से मतदाताओं का विश्वास उठ गया है। उस विश्वास को बहाल करने के लिए ईवीएम मशीन का घोटाला पकड़ने वाली मशीन पेपर ट्रेल जोड़ने के लिए 08 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय दिया। जिसकी खबर आज तक भारतीय मीडिया ने नहीं छापी है। चाहे वो प्रिण्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया हो किसी ने भी यह खबर नहीं छापी। जिसकी वजह से भारतीय प्रजा को इस निर्णय के बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिली। 
08 अक्टूबर 2013 का ऐतिहासिक निर्णय भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। लेकिन चुनाव आयोग राजनैतिक पार्टियों की मदद करने के काम में क्यों लगा हुआ है? चुनाव आयोग को जिस मकसद के लिए बनाया गया है उस मकसद को पूरा करने के लिए अर्थात मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव हों, ऐसा काम करना चाहिए था। पेपर ट्रेल के सन्दर्भ में और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अमल ना करने से यह बात सिद्ध होती है कि चुनाव आयोग ने न पहल की और न ही तत्परता दिखाई। चुनाव आयोग का यह आचरण मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव के विरोध में है। इसलिए चुनाव आयोग के विरोध में और चुनाव आयोग को अपनी जिम्मेवारियों का एहसास कराने के लिए उसके विरोध में आन्दोलन करने की जरूरत है।
अंत में मा.वामन मेश्राम ने बताया कि चुनाव आयोग को पेपर ट्रेल लगाने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश 08 अक्टूबर 2013 को दिया था। इस आदेश पर आज तक अमल नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देकर तीन साल से ज्यादा समय हो गया और 01 प्रतिशत से भी अमल नहीं किया है। इसका दूसरा अर्थ यह होता है की 99 प्रतिशत ईवीएम मशीन में घोटला करने का अवसर दिया है। जबकि भारत छोड़कर दुनिया के सभी महत्वपूर्ण देशों में ईवीएम का उपयोग चुनाव प्रक्रिया में नहीं किया जाता है। विकसित देशों में भी बैलेट पेपर के द्वारा चुनाव कराया जाता है। केवल मात्र भारत एक ऐसा देश है जहां चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल होता है। 

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