शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

भारतीय चुनाव आयोग सवालों के घेरे में


सीईसी और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर केंद्र और जुडिशरी आमने-सामने
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति का मामला एक बार फिर से चर्चा में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून न होने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश जे.एस.खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि चुनाव आयुक्त देश भर में चुनाव का आयोजन और निगरानी करते हैं, उनका चयन सबसे पारदर्शी तरीके से होना चाहिए। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 324-(2) के प्रावधान का जिक्र किया और कहा कि संसद से इस पर कानून बनाने की उम्मीद की गई थी, पर इसे बनाया नहीं गया। यह पीठ, वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से अनूप बरनवाल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। संयोगवश, यह सवाल पिछले पखवाड़े उठा, जब अचल कुमार ज्योति ने मुख्य चुनाव आयुक्त की शपथ ली।  
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जानकरी देते हुए बताया कि केंद्र में सरकार चलाने वाली पार्टियों ने अभी तक सीईसी के पद पर अपने चहेते अफसरों को ही बिठाया है जो गैरकानूनी है। इस बात का खुलासा पिछले पखवाड़े भी उठ चुका है। लेकिन बुधवार को यह मामला एक बार फिर से तुल पकड़ लिया है। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून न होने पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश जे.एस.खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि चुनाव आयुक्त देश भर में चुनाव का आयोजन और निगरानी करते हैं, उनका चयन सबसे पारदर्शी तरीके से होना चाहिए। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 324-(2) के प्रावधान का जिक्र किया और कहा कि संसद से इसपर कानून बनाने की उम्मीद की गई थी, पर इसे बनाया नहीं गया। 
गौरतलब है कि सवाल ज्योति की क्षमता पर नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ दल से उनकी निकटता को लेकर है। वे गुजरात कॉडर के आईएएस अधिकारी हैं, जो प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य है। 01 जनवरी 2010 से 31 जनवरी 2013 तक वे गुजरात में मुख्य सचिव के पद पर थे, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उनके प्रधानमंत्री बनने के एक साल बाद मई 2015 में ज्योति चुनाव आयुक्त बनाए गए। अभी सीईसी और बाकी चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार ही करती है। मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर राष्ट्रपति उनकी नियुक्ति करते हैं। सच्चाई यह है कि अभी तक सत्तारूढ़ दलों ने सीईसी के पद पर अपने चहेते अफसरों को ही बिठाया है। यही हाल कांग्रेस का था। कांग्रेस शासनकाल के दौरान चुनाव आयुक्त के पद पर नवीन चावला की नियुक्ति हुई तो यह राजनीतिक विवाद का विषय बन गया था।। बीजेपी के नजदीकी समझे जाने वाले सीईसी एन.गोपालस्वामी ने 2009 लोकसभा चुनाव से पहले चावला को हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास यह कहकर भेजी कि उनके सीईसी बनने के बाद ‘निष्पक्ष और स्वतंत्र’ चुनाव कराना संभव नहीं होगा। 2007 में नवीन चावला को चुनाव आयुक्त के पद से हटाने के लिए बीजेपी नेता जसवंत सिंह और अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और ईवीएम से छेड़छाड़ की शिकायत भी की थी। यही नहीं इस मामले मे वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल थे। आज जब बीजेपी अपने चहेते को बैठाई तो फिर यह सवाल एक अहम चर्चा का विषय बन गया और सवाल उठना शुरू हो गया है। यानी एक तरफ कांग्रेस और दूसरी तरफ बीजेपी अपने चहेतों को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाकर मनमाने तरीके से ईवीएम का गलत इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं बल्कि ईवीएम के माध्यम से लोकतंत्र की हत्या भी कर रहे हैं।

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