नई दिल्ली/दै.मू.समाचार
आज इस आधुनिकता के जमाने भी देश की 35 प्रतिशत आबादी वाला ग्रामिण क्षेत्र न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है बल्कि शैक्षणिक स्तर से भी कोसों दूर है। यह भी आश्चर्य की बात है कि निरक्षरता का यह आंकड़ा कोई और नहीं बल्कि खुद केन्द्र सरकार लोकसभा में ऐसे जाहिर कर रही है जैसे केन्द्र सरकार ने कोई तीर मार लिया हो।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार सोमवार 24 जुलाई 2017 को केन्द्र की मोदी सरकार ने लोकसभा में बताया कि 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में निरक्षर लोगों की आबादी करीब 32 करोड़ है जो कुल ग्रामीण जनसंख्या का लगभग 35 प्रतिशत है। वहीं मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने गुरजीत सिंह औजला के प्रश्न के लिखित उत्तर में भारत के ग्रामीण इलाकों में निरक्षर आबादी की सूची दी। इस सूची के अनुसार 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जातीय जनगणना रिपोर्ट के अनुसार देश के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल ग्रामीण आबादी 88,66,92,406 हैं, जिसमें 31,67,95,697 लोग निरक्षर थे। निरक्षर लोगों की संख्या कुल ग्रामीण जनसंख्या का 35.73 प्रतिशत है। यदि आंकड़ों पर गौर करें तो आंकड़ों के अनुसार प्रतिशत के हिसाब से राजस्थान में ग्रामीण निरक्षर जनसंख्या सर्वाधिक है, जिसका प्रतिशत 47.58 है और वहीं सबसे कम प्रतिशत लक्षद्वीप में 9.30 प्रतिशत है। जबकि देश के सर्वाधिक साक्षर वाले राज्य केरल में जब ग्रामीण निरक्षर लोगों का प्रतिशत 11.38 फीसदी है तो और प्रदेशों की क्या हालत है उक्त आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है। कुशवाहा के उत्तर के अनुसार 2011 की जनगणना के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में सात साल और इससे अधिक के आयु वर्ग में निरक्षर लोगों की संख्या 22,96,32,152 रही जो 2001 की जनगणना की तुलना में थोड़ी कम है। 2001 की जनगणना में यह आंकड़ा 25,41,49,325 का था।
यह आंकड़ा इस बात की गवाही दे रहा है कि केन्द्र से लेकर राज्यों की कांग्रेस और बीजेपी सरकारों ने नई शिक्षा नीति तो बनाई लेकिन इस नई शिक्षा नीति से शिक्षा का विस्तार नहीं हो सका बल्कि शिक्षा का हद से ज्यादा सत्यानाश ही हुआ है। हर सरकार हमेशा यही दम भरते आई हैं कि पिछली सरकार की तुलना हमारी सरकार ने शिक्षा नीतियों में सुधार करते हुए शिक्षा स्तर को बढ़ाया है। इस पर बहुत से आंकड़े भी जारी किए हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही दिखती है।
अपाको बताते चलें कि कैग की अन्य रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों में वर्ष 2010-11 में कुल नामांकन 01 करोड़ 11 लाख था, जो 2014-15 में 92 लाख 51 हजार रह गया है, जबकि निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या 2011-12 से 2014-15 के बीच 38 प्रतिशत बढ़ी है। यदि सरकार ने शिक्षा पर ध्यान दिया होता तो क्या आज यह तस्वीर दिखती कि देश में 35 फीसदी ग्रामीण आबादी निरक्षरता की ओर तेजी से बढ़ती? लेकिन बढ़ रही है। इसकी खास वजह यह है कि सरकार ने आज तक शिक्षा के लिए कुछ भी नहीं किया है।
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