बुधवार, 19 जुलाई 2017

आधार को किसी क्षेत्र में अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता, मामले पर 09 जजों की बेंच करेगी सुनवाई-सुप्रीम कोर्ट

आधार पर बवाल      

 सुप्रीम कोर्ट और सरकार में फिर घमासान

❒ तारीख पर तारीख ❑ 
 ☞ 23  सितंबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया जाए। कोई भी अथॉरिटी किसी पब्लिक सर्विस या सरकारी बेनिफिट के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य न करें।
☞ 24  मार्च 2014  को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी शख्स किसी भी सरकारी लाभ या योजना से आधार कार्ड न होने के नाम पर वंचित नहीं किया जा सकता।
☞ 16  मार्च 2015  को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा कहा था कि आदेश का पालन करना केंद्र सरकार की ड्यूटी है और आधार कार्ड किसी भी सरकारी बेनिफिट के लिए अनिवार्य न किया जाए।
पूरा मामला एक नजर में
आज एक बार फिर से देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर घमासान मच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नसीहत देते हुए आदेश जारी किया है कि आधार को किसी क्षेत्र में अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की 09 जजों की संवैधानिक बेंच सुनवाई करेगी। कोर्ट का अंतिम फैसला आने के बाद ही आधार और उससे जुड़ी निजता के मामले पर विचार करेगी। यह मामला तब प्रकाश में आया जब ‘राइट टु प्राइवेसी’ मामले को लेकर चल रही सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने संविधान बेंच के पास रेफर कर दिया था।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार मंगलवार 18 जुलाई 2017 को राइट टु प्राइवेसी (आधार से जुड़ी निजता) के मामले को लेकर सुनवाई चल रही थी कि राइट टु प्राइवेसी संविधान के तहत मूल अधिकार है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने मामले को 09 जजों की बेंच को यह मामला रेफर करते हुए कहा कि 09 जजों की संविधान बेंच ही तय करेगी कि राइट टु प्राइवेसी संविधान के तहत मूल अधिकार है या नहीं। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि खरग सिंह और एमपी शर्मा से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो बेंच ने कहा हुआ है कि राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है। 1950 में 08 जजों की संविधान बेंच ने एमपी शर्मा से संबंधित केस में कहा था कि राइट टु प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है। वहीं 1961 में खरग सिंह से संबंधित केस में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने भी राइट टु प्राइवेसी को मौलिक अधिकार के दायरे में नहीं माना था।
आपको बताते चले कि आधार के लिए लिया जाने वाला डेटा राइट टु प्राइवेसी का उल्लंघन करता है या नहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान बेंच के सामने ये सवाल आया कि क्या राइट टु प्राइवेसी मूल अधिकार है या नहीं। जस्टिस जे चेलामेश्वर ने कहा कि संविधान में राइट टु प्राइवेसी का जिक्र नहीं है, लेकिन कॉमन लॉ में है। फ्रीडम ऑफ प्रेस में भी लिखा नहीं हुआ है, लेकिन उसकी व्याख्या की गई है। अब जरा इन बातों पर गौर करें कि 11 अगस्त 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि आधार कार्ड किसी भी सरकारी वेलफेयर स्कीम की बेनिफिट के लिए अनिवार्य नहीं होगा। कोर्ट ने कहा था कि सरकार को छूट है कि वह पीडीएस, केरोसिन और एलपीजी वितरण में ही आधार का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन इन मामलों में भी आधार अनिवार्य नहीं होगा। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से जनता को बताए कि सरकारी स्कीम के इस्तेमाल के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। लेकिन मीडिया ने सरकार के कहने पर ठीक इसका उलटा किया और जनता को केवल यही बताया कि आधार कार्ड को हर क्षेत्र में अनिवार्य बना दिया गया है। 15 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच ने सरकार को इस बात की इजाजत दी थी कि वह पीडीएस, केरोसिन और एलपीजी वितरण के अलावा पीएम जनधन योजना, मनरेगा, पीएफ और पेंशन स्कीम के लिए आधार का इस्तेमाल कर सकती है। इसके साथ ही उन्होंने साफ किया था कि इन मामलों में भी आधार अनिवार्य नहीं होगा। इसके बाद भी केन्द्र की आरएसएस नीति वाली बीजेपी सरकार धड़ल्ले से सभी क्षेत्रों में आधार को अनिवार्य बना रही है।

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