रविवार, 23 जुलाई 2017

उत्तर प्रदेश में बामसेफ के राज्य अधिवेशन से यूरेशियन ब्राह्मणों की मंशा पर फिरा पानी




चुनाव आयोग राजनैतिक पार्टियों की मदद करने के काम में क्यों लगा हुआ है?
 भारतीय प्रजा ईवीएम के बारे में भ्रम की शिकार है-मा.वामन मेश्राम
बांदा/दै.मू.समाचार
आज इस लोकतांत्रिक देश में प्रजा को ही ईवीएम के बारे में भ्रम का शिकार बनाकर चुनाव आयोग राजनैतिक पार्टियों की ममद करने का काम कर रहा है, लेकिन हम उनको ऐसा नहीं करने देंगे बल्कि उनकी ईंट से ईंट बजा देंगे। यह बात बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मा.वामन मेश्रान ने रविवार 23 जुलाई 2017 को उŸार प्रदेश के बांदा में चल रहे बामसेफ के 32वें राज्य अधिवेशन को संबोधित करते हुए कही।
दैनिक मूलनिवासी नायक वरिष्ठ संवाददाता ने जनकारी देते हुए बताया कि उŸार प्रदेश के बांदा जिले में बामसेफ के 32वें राज्य अधिवेश का आयोजन किया गया था जो भारी सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में उपस्थिति जनसमूह से यूरेशियन ब्राह्मणों की मंशा पर पानी फिर गया है। इस कार्यक्रम में जहां एक ओर उŸार प्रदेश के सभी जिलों से कार्यकर्ता और समर्थकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया वहीं चलती फिरती भीड़ से प्रशासन को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी। 
आपको बताते चलें कि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्टीय अध्यक्ष मा.वामन मेश्राम ने कहा कि हम तो यह बात सबूत के आधार पर कही रहें हैं कि ईवीएम से धोखेबाजी कर केन्द्र से लेकर अन्य राज्यों तक बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो रही है, लेकिन यह बात साल 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद डा. सुब्रह्मणय स्वामी, भारतीय जनता पार्टी के सांसद एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता जी.वी.एल.नरसिम्हाराव ने ईवीएम मशीन के विरोध में सबूत इकट्ठा करके दिल्ली हाईकोर्ट में केस दायर किया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने सुब्रह्मणय स्वामी की केस को रद्द किया था। उसके विरोध में सुब्रह्मण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट गये थे। सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम मशीन के विरोध में यह कहते हुए फैसला दिया कि केवल ईवीएम मशीन के आधार पर मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव नहीं हो सकता। ईवीएम मशीन पर से मतदाताओं का विश्वास उठ गया है। उस विश्वास को बहाल करने के लिए ईवीएम मशीन का घोटाला पकड़ने वाली मशीन पेपर ट्रेल जोड़ने के लिए 08 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय दिया। जिसकी खबर आज तक भारतीय मीडिया ने नहीं छापी। चाहे वो प्रिण्ट मीडिया हो या इलेक्ट्रानिक मीडिया हो किसी ने भी यह खबर नहीं छापी। जिसकी वजह से भारतीय प्रजा को इस निर्णय के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। इसलिए भारतीय प्रजा ईवीएम के बारे में भ्रम की शिकार है। 
आगे उन्होंने कहा कि 08 अक्टूबर 2013 का ऐतिहासिक निर्णय भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के जो महत्वपूर्ण फैसले होते हैं वह महत्वपूर्ण फैसले अखबार के फ्रंट पेज में छापे जाते हैं और उस पर संपादकीय भी लिखा जाता है। इलेक्ट्रालिक मीडिया में प्राईम टाईम में ऐसे विषयों पर चर्चा की जाती है। परन्तु प्रिण्ट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इसकी खबर आज तक नहीं छापी। बल्की ईवीएम कैसे अच्छी है इसकी खबरें और लेख छापे जा रहे हैं, यह मीडिया की बेशरमी की हद है।
भारत का चुनाव आयोग चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए अभियान चला रहा है। मगर चुनाव आयोग ने पेपर ट्रेल के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया उस आदेश के बारे में चुनाव आयोग के द्वारा मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव के लिए यह अभियान चलाया जाना चाहिए था। भारत के संविधान निर्माताओं ने चुनाव आयोग को स्वायंत रखा, अर्थात चुनाव आयोग भारत सरकार के अधीन कोई विभाग के जैसा नहीं है। चुनाव आयोग भारत सरकार के आदेश पर नहीं चलता है। यह अधिकार वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए जिम्मेवारी का निर्वहन करने के लिए नहीं दिया। यह अधिकार मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव सम्पन्न करने के लिए दिया है। लेकिन चुनाव आयोग राजनैतिक पार्टियों की मदद करने के काम में क्यों लगा हुआ है? चुनाव आयोग का यह आचरण मुक्त, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव के विरोध में है।
आगे मा.वामन मेश्राम ने कहा कि चुनाव आयोग को पेपर ट्रेल लगाने का आदेश 08 अक्टूबर 2013 को दिया गया था। इस आदेश पर आज तक अमल नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देकर तीन साल से ज्यादा समय हो गया और 01 प्रतिशत से भी कम अमल किया। इसका दूसरा अर्थ यह होता है की 99 प्रतिशत ईवीएम मशीन में घोटला करने का अवसर दिया। चुनाव आयोग को पेपर ट्रेल मशीन पर अमल करके भारतीय जनता के विश्वास को बहाल करने का भी आदेश दिया था। क्या 99 प्रतिशत जगह पर वोटर्स वेरिफिकेशन पेपर ऑडिट ट्रेल ना लगाकर जनता का विश्वास बहाल होगा? निश्चित रूप से नहीं। चुनाव आयोग का यह आचरण न्यायपालिका का अवमानना है और इसलिए सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के विरोध में न्यायपालिका के अवमानना की हमारी केस पेंडींग है। यदि इस केस पर हमें जल्दी न्याय मिलता, हम जल्दी न्याय मिलने के हकदार हैं। मगर चुनाव आयोग ने जानबूझकर विलम्ब करने का काम किया। इसके हमारे पास दस्तावेजी सबूत हैं। यदि चुनाव आयोग विलम्ब करने का काम नहीं करता तो उŸार प्रदेश के 403 विधानसभा में पेपर ट्रेल मशीन लग जाती और यह चुनाव आयोग के आचरण पर देशव्यापी अविश्वास फैल गया है यह अविश्वास नहीं फैलता। चुनाव आयुक्तों ने चुनाव आयोग जैसे संस्थाओं को बदनाम करने का काम किया और आयुक्तों को इसके लिए दण्ड और सजा दी जानी चाहिए। 
आप हैरान हो जाओगे यह सुनकर की जब चुनाव आयोग पर उŸार प्रदेश के चुनाव के बाद आरोप लगने शुरू हुए तो चुनाव आयोग को उसकी निष्पक्षता सिद्ध करनी चाहिए थी। चुनाव आयोग ने अपनी निष्पक्षता को सिद्ध करने की बजाए केवल बयानबाजी करने का काम किया। चुनाव आयोग का यह व्यवहार पक्षपाती है। अगर चुनाव आयोग पर आरोप है, तो क्या आरोपी को न्यायाधीस बनने का अधिकार है? आरोपी को न्यायाधीस बनने दिया जा सकता है? नेचरल जस्टिस के सिद्धांतानुसार निश्चित रूप से आरोपी को जज बनने का अधिकार नहीं है। इसलिए चुनाव आयोग को तृतीय पक्ष विशेषज्ञ के द्वारा आरोपों की जांच करनी चाहिए थी। 
अंत में मा.वामन मेश्राम ने कहा कि चुनाव परिणाम के बारे में बहुत सारे सवाल हैं। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट में उठाये गये हैं। मगर उन सवालों को चुनाव आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया। केवल आरोप बेबुनियाद है, ऐसा बयान दिया। यह बयान निष्पक्ष निणर्यपूर्णनहीं कहा जा सकता। इसके हमारे पास सबूत हैं और उन सबूतों को जल्द ही सार्वजनिक किया जायेगा। ईवीएम से नाजायद सŸा पर कब्जा करने का ही नतीजा है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के बाद आदित्यनाथ योगी सरकार में कानून व्यवस्था पंगू हो चुकी है। पिछले दिनों सरकार ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि अपराध की घटनाएं बढ़ी हैं। विधानसभा में भी यह बात उठ चुकी है कि सरकार के गठन से लेकर 09 मई तक राज्य में कुल 729 हत्याएं, 803 बलात्कार, 60 डकैती, 799 लूट और 2682 अपहरण की घटनाएं हुई हैं। इन घटनाओं ने उŸार प्रदेश की नई इबाबादत लिख दिया है वही सहारनपुर, बुलन्दशहर, सम्भल, गोण्डा, मथुरा, अलीगढ़, मुरादाबाद, शामली सहित प्रदेश के कई जिलों में जातीय/साम्प्रदायिक खूनी दंगे जैसे जघन्य अपराधों से पूरा देश थर्रा उठा है। उŸार प्रदेश में कानून का राज न होने कि वजह से आपातकाल जैसे हालात निर्माण हो गये हैं। इसलिए उŸार प्रदेश सरकार को तत्काल बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। अंत में उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हम ईवीएम के विरोध में दूसरा आंदोलन चलाने वाले हैं, और यह आंदोलन नीति और रणनीति बनाकर चलाएंगे जिसे रोक पाना सरकार और चुनाव आयोग के बस की बात नहीं होगी। अगर ब्राह्मण डाल-डाल है तो मैं पात-पात हूं, उनको पता नहीं है कि उनका पाला वामन मेश्राम से पड़ा है।

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