शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

सरकार मनमाने तरीके से कर रही है चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति

सरकार मनमाने तरीके से कर रही है चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति
मुख्य चुनाव आयुक्त क्या सरकार का आदमी होता है?-सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली/दै.मू.समाचार

जब चुनाव करवाने वाले निष्पक्ष तरीके से नियुक्त नहीं हुए हैं तो चुनाव निष्पक्ष कहां से संभव हो सकता है। अभी तक जितने भी मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए हैं वे सभी मुख्य चुनाव आयुक्तों को सरकार असंवैधानिक तरीकों से नियुक्त की है। सरकार के इस रवैये पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त क्या सरकार का आदमी होता है? यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्रीय चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानून क्यों नहीं बनाया गया है? इस बात का खुलासा तब हुआ जब बीते बृहस्पतिवार 06 जुलाई 2017 को अचल कुमार जोति को देश का नया मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्त किया गया।
दैनिक मूलनिवासी नायक समाचार एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार चुनाव आयोग से संबंधित एक सनसनीखेज खबर ने देश में चौतरफा बवाल खड़ा कर दिया है इसके बाद भी देश की जनता में चुनाव आयोग और सरकार के खिलाफ कोई जनआक्रोश कही नहीं दिखाई दे रहा है। गौरलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग की मिलीभगत का एक बार फिर से पर्दाफाश कर दिया है। कोर्ट के मात्र एक सवाल से सारा भेद खुद गया है कि केन्द्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अब तक बगैर कानून बनाए ही असंवैधानिक तरीके से करती आ रही थी।  इस बात का खुलासा तब हुआ जब बुधवार 05 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि केंद्रीय चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानून क्यों नहीं बनाया गया है? कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा कि इसे लेकर अब तक कोई कानून क्यों नहीं बनाया गया जबकि संविधान में इसका प्रावधान है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कानून के तहत होगी। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को तब कटघरे में खड़ा किया जब अचल कुमार जोती बीते गुरुवार को देश का नया मुख्य चुनाव आयुक्त पदभार दिया गया।
आपको बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट के सवाल को सही बताते हुए फरवरी 2004 से मई 2005 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा सरकार ने ही अभी तक चुनाव आयुक्त नियुक्त किया है। वही पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और यूपीए सरकार में खेल मंत्री रहे डॉ.एमएस गिल नियुक्ति प्रक्रिया पर कहते हैं मैं खुद इस बात का गवाह हूं कि मैं 1996 से 2001 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहा, इसलिए आयुक्तों की नियुक्ति सरकार पर न छोड़ी जाए। यह नई बात नहीं है कि अब तक जितने चुनाव आयुक्त आए वह खुशकिस्मती से अच्छे आए लेकिन यह गारंटी नहीं है कि आगे भी अच्छे आएंगे। इसका मतलब यह हुआ कि सरकार ने अब तक जितने भी चुनावा आयुक्त नियुक्त किया है वह सभी ईमानदार थे और ईमानदार हैं।
अब तक सरकार द्वारा चुने गए सभी मुख्य चुनाव आयुक्त कितने ईमानदार हैं इसका जीता जागता सबूत विगत लोकसभा चुनाव 2009 से देखा जा रहा है। 2009 से लगातार ईवीएम की विश्वसनियता को लेकर चुनाव आयोग पर आरोप पर आरोप लगाया जा रहा है इसके बाद भी चुनाव आयोग एक ही रट लगाए बैठा है कि ईवीएम पूरी तरह से ईमानदार है, इसमें किसी प्रकार का छेड़छाड़ संभव नहीं है। क्या ऐसा कहना गलत है कि जब मुख्य चुनाव आयुक्त ही नाजायज है तो ईवीएम कैसे जायज हो सकता है? विल्कुल गलत नहीं है। इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया है कि चाहे केन्द्र में कांग्रेस की सरकार रही हो या बीजेपी की सरकार रही है दोनों ने ईवीएम में घोटाला कर देश की सŸा पर जबरन कब्जा करने के लिए अपने हितैषियों को ही मुख्य चुनाव आयुक्त किया है। जबकि कई देशों में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में सीधे संसद शामिल होती है, लेकिन भारत में सरकार अपने मनमाफिक चुनाव आयुक्तां की नियुक्ति कर रही है। यही कारण है पिछले 18 सालों में राजनीतिक तनाव बढ़ गया है। अगर देखा जाए तो सरकार एक राजनीतिक दल द्वारा चलाई जाती है फिर चुनाव कराने वाली संस्था का प्रमुख वह कैसे नियुक्त कर सकती है? लेकिन भारत में वही सरकार चला रहे हैं और वही प्रमुख चुनाव आयुक्त भी नियुक्त कर रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरा बना हुआ है।

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