बुधवार, 1 मई 2019

खतरे में बेटियों का अस्तित्व

खतरे में बेटियों का अस्तित्व

 बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे नारों के बीच भी भेदभाव से मर रही हैं लड़कियां


राजकुमार (दैनिक मूलनिवासी नायक)

हमारा पुरुष प्रधान समाज विज्ञान और विकासवाद के इस तथ्य को शायद ही स्वीकार करे कि लड़कियाँ और महिलायें, लड़कों और पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक और मानसिक तौर पर अधिक मजबूत होती हैं. लडकियाँ अधिक जीवट वाली होती हैं और कठिन परिस्थितियों को भी अपेक्षाकृत अधिक आसानी से पार करती हैं. लेकिन, नए अनुसंधान बताते हैं कि विकासवाद के इस तथ्य को भी हमारा समाज भेदभाव के कारण अब झूठा साबित करने पर तुला हुआ है.



बीएमजे ग्लोबल हेल्थ नामक जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार लड़कों और लड़कियों में भेदभाव के कारण पाँच वर्ष से कम उम्र की लड़कियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. यह भेदभाव इतना गहरा है कि जीव विज्ञान द्वारा लड़कियों में प्रदत्त मजबूती भी बेकार हो चली है. इस अध्ययन को लंदन स्थित क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी की विशेषज्ञ वलेन्तीना गैल की अगुवाई में एक दल ने किया है. इस दल के अनुसार दुनिया भर में प्राकृतिक कारणों से अभी भी पाँच साल से कम उम्र में लड़कों की अधिक मौतें होतीं हैं, लेकिन यह अंतर गरीब देशों में लगातार कम होता जा रहा है.

प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज के 8 जनवरी 2018 के अंक में प्रकाशित साउदर्न यूनिवर्सिटी ऑफ डेनमार्क की वर्जिनिया जरुली के एक शोध पत्र के अनुसार महिलायें और लड़कियाँ अधिक जीवट वाली और जुझारू होती हैं और यहाँ तक कि प्राकृतिक आपदा के समय भी इनकी मृत्यु दर कम रहती है. प्राकृतिक आपदा के समय भूख, प्यास, स्वास्थ्य पर काबू पाने वाली लड़कियों के साथ हम किस कदर का भेदभाव करते होंगे, इसे एक बार तो सोच कर देखिये!

लड़कियों की परवरिश में जितना भेदभाव हमारे देश में है, उतना शायद और कहीं नहीं है. ‘‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’’ जैसे नारे तो लगातार दिए जाते हैं, लेकिन लड़कियों की हालत में कहीं से सुधार होता नहीं दिखाई देता है. भ्रूण हत्या के द्वारा बहुत सारी लड़कियाँ पैदा होने के पहले ही मार दी जाती हैं. जो पैदा होती हैं, उनमें भी अधिकतर प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर भेदभाव का शिकार होती हैं. इसी भेदभाव के कारण प्रति वर्ष पाँच वर्ष से कम उम्र की 239000 लड़कियों को मार दिया जाता है. ध्यान रहे कि यह संख्या भ्रूण-हत्या से अलग है. अप्रैल, 2016 में एक साक्षात्कार के दौरान महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी ने बताया था कि भारत में हरेक दिन 2000 से अधिक लड़कियाँ भ्रूण में ही मार दी जाती हैं.

लांसेट के वर्ष 2011 के अध्ययन के अनुसार 1980 से 2000 के बीच कुल 1 करोड़ 20 लाख लड़कियों की हत्या पैदा होने से पहले कर दी गयी. इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वर्ष 2011 में प्रति 1000 पुरुष पर मात्र 914 महिलायें थीं. यह एक सोचा-समझा सामूहिक नरसंहार है, जिसे कोई नहीं देखता है. यह अध्ययन ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस के दल ने किया है और इसे लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित किया गया है. अध्ययन के अनुसार यह अतिरिक्त मृत्यु दर भारत में औसतन 18.5 प्रति हजार जन्म है. देश के कुल 640 जिलों में से लगभग 90 प्रतिशत जिलों में यह समस्या है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में समस्या विकराल है.

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, मेघालय और नागालैंड में लड़कियों की यह अतिरिक्त मृत्यु दर प्रति हजार जन्म में 20 या उससे भी अधिक है. इस सन्दर्भ में सबसे बदतर हालत उत्तर प्रदेश का है, जहाँ यह दर 30 से भी ऊपर है. अध्ययन की सह-लेखक क्रिस्तिफी गिलमोतो के अनुसार भारत में लैंगिक असमानता इस हद तक है कि आप लड़कियों को केवल पैदा होने से ही नहीं रोकते, बल्कि पैदा होने के बाद भी परवरिश, खान-पान, टीकाकरण, शिक्षा, चिकित्सा इत्यादि में भी भेदभाव करते हैं. स्पष्ट तौर पर लड़कियों का लालन-पालन लड़कों की तुलना में उपेक्षित ही रहता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत उन देशों में से एक है जहाँ टीकाकरण में भी लड़के और लड़कियों में भेदभाव बरता जाता है. इस रिपोर्ट का एक दिलचस्प पहलू यह है कि सवर्णों में यह भेदभाव अधिक है. अध्ययन के आँकड़े बताते हैं कि अनुसूचित जाति, अनु.जनजाति या फिर मुसलमानों की संख्या भले ही अधिक है, लेकिन उनमें बहुत ही कम भेदभाव किया जाता है जिससे उनमें मृत्यु दर कम है. 

यह, अपने तरह की पहली रिपोर्ट है, जिससे इतना तो समझा जा सकता है कि थोड़ा सा ध्यान देकर और बिना भेदभाव के अगर लड़कियों की परवरिश की जाए तो प्रतिवर्ष 2,39,000 लड़कियों को अकाल मृत्यु से बचाया जा सकता है. हैरानी की बात है कि लड़कियाँ अधिक मजबूत और विपत्तियों को अधिक सहने की क्षमता रखती हैं. अगर बेटियों को बचाया नहीं गया तो न केवल बेटियों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा, बल्कि संसार की संरचना भी खत्म हो जायेगी. हाँ इसके लिए सभी लोगों को पहल करना होगा. किसी को सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के भरोसे नहीं रहना होगा. वर्ना रोज नए नारे गढ़े जाते रहेंगे और लड़कियाँ मरती रहेंगी.

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