राजनीति में जुर्म के बाहुबली
वैसे तो राजनीति में खादी पहनने और साफ-सुथरा दिखने की होड़ होती है, लेकिन जहाँ बात फायदे की हो तो ‘दागी’ को भी गले लगाने से नहीं चूकते हैं. ताजा उदाहरण बिहार और पूर्वांचल के बाहुबली में देखने को मिल रहा है जहाँ पूर्वांचल में छठे और सातवें चरण में होने वाले मतदान में माफिया इफेक्ट परदे के पीछे से नजर आने वाले हैं. ज्यादातर नामी बाहुबली इस बार खुद मैदान में नहीं हैं, लेकिन उनके रिश्तेदार और करीबी लोकसभा 2019 में ताल ठोंक रहे हैं.
दरअसल बीजेपी पूर्वांचल की कुछ सीटों को लेकर अपनों की भीतरघात और गठबंधन की मजबूती के चलते मुश्किलों में घिरी हुई है. इस मुश्किल को आसान करने के लिए राजन को अपनाने में जरा भी देरी नहीं की. दरअसल यूपी में फायदेमंद ‘दाग’ राजनीतिक पार्टियों को हमेशा से भाते रहे हैं. इसमें सिर्फ बीजेपी ही नहीं, बीएसपी, सपा और कांग्रेस सभी शामिल हैं.
बता दें कि यूपी में माफियाराज की शुरुआत करने वाले गोरखपुर के पड़ोस की सीट संत कबीर नगर पर खासा माफिया इफेक्ट दिख सकता है. यहाँ से पूर्वांचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी बीएसपी-सपा गठबंधन की तरफ से मैदान में हैं. उनके खिलाफ कांग्रेस से भालचंद्र यादव ताल ठोंक रहे हैं, जबकि बीजेपी से गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद उम्मीदवार हैं.
फैजाबाद के बाहुबली रहे मित्रसेन यादव के बेटे आनन्द सेन सपा-बसपा गठबंधन से उम्मीदवार हैं. मित्रसेन यादव की मौत के बाद भी उनका नाम और दबदबा उनके बेटे के कितना काम आया इसका पता 23 मई को चलेगा. यहाँ के एक और बाहुबली अभय सिंह समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं. इसलिए वह भी परदे के पीछे से आनन्द सेन को जिताने के लिए जोर लगाएंगे.
कैसरगंज से बाहुबली बृजभूषण शरण सिंह बीजेपी के सांसद हैं और इस बार भी कैसरगंज सीट से मैदान में हैं. बृजभूषण के खिलाफ जानलेवा हमला, डकैती जैसी गंभीर धाराओं के मामले दर्ज हैं. इलाके में उनकी छवि बाहुबली की है. इसके बावजूद वह लगातार बीजेपी के साथ हैं. बृजभूषण का बेटा प्रतीक भी बीजेपी से विधायक है. इसी तरह से सुलतानपुर के बाहुबली भाई सोनू-मोनू की जोड़ी पर संत ज्ञानेश्वर की हत्या समेत कई गंभीर अपराधों के आरोप उन पर लगते रहे हैं। जुलाई 2014 में पेशी के दौरान दोनों भाइयों पर बमों से हमला भी हुआ था. छवि पर काफी सवाल हैं इसके बावजूद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने सुलतानपुर सीट पर मेनका गांधी को टक्कर देने के लिए सोनू सिंह को चुना है.
विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान अखिलेश यादव ने बाहुबली मुख्तार अंसारी को साथ लेने से मना कर दिया था. फिर मुख्तार की बीएसपी से नजदीकियाँ बढ़ीं और बीएसपी सुप्रीमो मायावती की मौजूदगी में मुख्तार का कौमी एकता दल बीएसपी में शामिल हो गया. राजनीति की मजबूरी देखिए, जिन्हें ‘दागी’ कहकर अखिलेश ने पार्टी में शामिल करने से इनकार कर दिया, उन्हीं मुख्तार के बड़े भाई अफजाल के लिए वे अब वोट मांग रहे हैं. अफजाल गाजीपुर से गठबंधन के प्रत्याशी हैं. मुख्तार मऊ सदर से विधायक हैं और गाजीपुर, मऊ और आसपास वह भले ही सामने न हों पर पर्दे के पीछे से उनकी सियासत चलती है.
गोंडा से सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी पंडित सिंह पर सपा सरकार के सत्ता में रहते सीएमओ के अपहरण का आरोप लगा था. इसके अलावा कई बार उनके बिगड़े बोलों ने भी पार्टी की जमकर किरकिरी करवाई है. इसके बावजूद वो सपा की जरूरत हैं क्योंकि गोंडा में वह पार्टी का मजबूत सहारा हैं. वहीं पार्टी विद डिफरेंस का दावा करने वाली बीजेपी ने पाँच लोगों के जघन्य हत्याकांड के आरोपित अशोक सिंह चंदेल को विधानसभा 2017 में टिकट देकर विधायक बनाया. उस दौरान पार्टी यह कहकर उनका बचाव कर रही थी कि अभी दोषी नहीं सिद्ध हुए हैं. अब अशोक चंदेल को आजीवन कारावास हुए वक्त बीत चुका है, लेकिन उसके खिलाफ कार्रवाई तो दूर पार्टी ने एक शब्द बोलना भी जरूरी नहीं समझा, जबकि उस पर पार्टी से ही जुड़े कार्यकर्ता के परिवार के लोगों की हत्या का आरोप है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि बुंदेलखंड में चंदेल का दमखम कायम है और भाजपा चुनाव में कोई दिक्कत नहीं चाहती है.
यूपी में सत्ता संभालने के बाद सपा से आए बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर रेप के आरोप लगे. पार्टी की इस मामले में खासी किरकिरी हुई, लेकिन आज तक भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों की तरफ से कुलदीप के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है. जबकि, सीबीआई ने बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और उनके भाई के खिलाफ तमाम साक्ष्यों के साथ चार्जशीट दाखिल कर दी है. पार्टी को मालूम है कि कुलदीप सिंह सेंगर अपनी विधानसभा सीट के साथ ही आसपास की कई सीटों पर प्रभाव रखते हैं और पार्टी को उनकी जरूरत है.
बाबू सिंह कुशवाहा कभी मायावती के खास सिपाहसालार थे। दो सीएमओ की हत्या और एक डिप्टी सीएमओ की जेल में संदिग्ध हालात में मौत के बाद एनआरएचएम घोटाले का जिन्न बाहर आया तो सीबीआई की कार्रवाई शुरू हो गई. इसके बाद मायावती ने कुशवाहा से किनारा कर लिया. कुशवाहा तीन साल से ज्यादा जेल में रहे. पिछड़े वोटों पर पकड़ देखते हुए बीजेपी ने उन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश की, लेकिन विरोध के बाद बीजेपी ने किनारा कर लिया. 2014 में बाबू सिंह कुशवाहा ने सपा से नजदीकियां बढ़ाईं. उनकी पत्नी शिवकन्या को गाजीपुर से टिकट मिल गया, लेकिन वह हार गईं. बाबू सिंह पर तमाम ‘दाग’ के बावजूद अब कांग्रेस ने उन्हें अपनाया है. कुशवाहा की पार्टी के सात उम्मीदवार कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर ताल ठोंक रहे हैं.
बिहार से दो बार विधायक रह चुके राजन तिवारी मूलरूप से गोरखपुर के सोहगौरा निवासी हैं. राजन की यूपी और बिहार में आतंक का पर्याय रहे माफिया श्री प्रकाश शुक्ला से नजदीकियाँ बताई जाती हैं. श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ राजन का नाम महराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से विधायक रहे वीरेंद्र प्रताप शाही पर हमले में आया था. इस मामले में बाद में वो बरी हो गए. बिहार में आरजेडी के पूर्व मंत्री ब्रज बिहारी प्रसाद की हत्या में भी श्री प्रकाश के साथ राजन का नाम आया था. निचली अदालत ने सजा सुनाई पर हाईकोर्ट से बरी हो गए. बीजेपी से पहले राजन तिवारी बीएसपी से भी जुड़े रहे.
लोकसभा की घोसी और गाजीपुर सीट पर माफिया मुख्तार अंसारी की धमक विपक्षियों को खासा परेशान करेगी. मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी बीएसपी के टिकट पर गाजीपुर और करीबी अतुल राय घोसी से चुनाव लड़ रहे हैं. मुख्तार अंसारी ने वर्ष 2009 में बीएसपी के टिकट पर बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव लड़ा था और हार गए थे. वर्ष 2014 में भी मुख्तार ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में मना कर दिया था और घोसी से चुनाव लड़े थे.
पूर्वांचल के बड़े बाहुबलियों में गिने जाने वाले रमाकांत यादव और विजय मिश्र की जंग भदोही लोकसभा सीट में देखने को मिलेगी. यहाँ रमाकांत यादव कांग्रेस के प्रत्याशी हैं. विजय मिश्र परदे के पीछे से चुनाव में दम दिखा रहे हैं. विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान सपा से टिकट कटने के बाद विजय मिश्रा ने निषाद पार्टी से चुनाव लड़ा था. मोदी लहर होने के बावजूद विजय मिश्रा ने ज्ञानपुर सीट से भारी मतों से जीत हासिल की थी. वह चार बार से विधायक हैं. इस सीट से आय से अधिक संपत्ति के मामले में आरोपित रहे रंगनाथ मिश्रा भी बीएसपी-सपा गठबंधन के प्रत्याशी हैं.
अगर जौनपुर की बात करें तो जौनपुर में दो लोकसभा सीट जौनपुर व मछलीशहर के लिए वैसे तो ब्यूरोक्रेट व टेक्नोक्रेट मैदान में हैं. लेकिन, इस सीट पर परदे के पीछे बाहुबलियों का दमखम दांव पर लगा है. बाहुबली धनंजय सिंह ने यहाँ से टिकट के लिए बीजेपी से लेकर कांग्रेस का दरवाजा खटखटाया, लेकिन बात नहीं बनी. धनंजय ने सुभासपा व अपना दल से भी टिकट के लिए कोशिश की। धनंजय खुद मैदान में नहीं हैं. लेकिन, वह यहाँ के चुनाव को प्रभावित करने का खासा दम रखते हैं. अब यह देखने वाला होगा कि कौन सा दल परदे के पीछे से उनके दम खम को अपने पक्ष में करवाता है.
राजकुमार (दैनिक मूलनिवासी नायक)
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