शनिवार, 25 मई 2019

रक्षा घोटाला : आजादी के बाद से ही चल रहा है रक्षा घोटालों का दौर

आजादी के बाद से ही चल रहा है रक्षा घोटालों का दौर


राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
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सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि रक्षा मंत्रालय से राफेल डील से जुड़े कागज चोरी हो गए हैं. पहली बार नहीं है जब किसी रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों. भारत की तथाकथित आजादी के बाद से ही ये सिलसिला चल रहे हैं. बताते चलें कि 1947 में कथित आजादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चलता रहा है. जब पाकिस्तान की कबाइली फौजों ने कश्मीर पर आक्रमण शुरू किया तो सीमा की देखभाल और दूसरे कामों के लिए भारतीय सेना ने सरकार से जीपों की मांग की. भारत सरकार की तरफ से इंग्लैंड में भारत के उच्चायुक्त वीके कृष्ण मेनन ने ब्रिटिश कंपनियों के साथ जीप खरीदने का सौदा किया. मेनन ने एक संदिग्ध कंपनी के साथ 1500 जीपों की खरीददारी का सौदा कर लिया. इसके लिए उन्होंने 80 लाख रुपए कंपनी को एडवांस में दे दिए. इन जीपों की जरूरत भारत को तुरंत थी, लेकिन इनकी पहली खेप जिसमें 150 जीपें थीं, सीजफायर होने के बाद भारत पहुँची. साथ ही ये इतनी घटिया क्वालिटी की थीं कि चल भी नहीं सकती थीं. इस घोटाले की जाँच के लिए अनंथसायनम आयंगर की अध्यक्षता में कमिटी बनाई गई. लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका और 30 सितंबर 1955 को ये केस बंद कर दिया गया. साथ ही 3 फरवरी, 1956 को मेनन जवाहर लाल नेहरू की सरकार में मंत्री बन गए. भारत-चीन युद्ध के समय मेनन भारत के रक्षा मंत्री थे. इस युद्ध के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.

यही नहीं 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने. 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव की अगुवाई में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 412 सीटें हासिल की. लेकिन, 1989 के चुनाव में उनकी सरकार चली गई. इसका एक बड़ा कारण बोफोर्स घोटाला था. भारत सरकार ने सेना के लिए 155 एमएम फील्ड हवित्जर खरीदने के लिए टेंडर निकाला. हवित्जर का मतलब छोटी तोप या बंदूक होता है. सरकार ने तय किया था कि इस डील में कोई बिचौलिया नहीं होगा. तीन देशों फ्रांस, ऑस्ट्रिया और स्वीडन ने इस सौदे में दिलचस्पी दिखाई. स्वीडन और ऑस्ट्रिया ने आपस में तय किया कि तोप स्वीडन सप्लाई करेगा और गोला-बारूद ऑस्ट्रिया का होगा. ऐसे में स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी को ये डील मिल गई.

करीब 1500 करोड़ के इस सौदे में भारत को 410 हवित्जर बेची गईं. लेकिन मई, 1986 में स्वीडन के एक रेडियो पर खबर आई कि बोफोर्स ने इस सौदे को हासिल करने के लिए करीब 64 करोड़ रुपए की रिश्वत दी है. और इस कथित रिश्वत देने में राजीव गाँधी का भी नाम आया. साथ ही बोफोर्स तोप की क्षमता पर भी सवाल उठाए गए. इस डील में इटली के रहने वाले और उस दौर में गाँधी परिवार के करीबी ओतावियो क्वात्रोकी पर इस सौदे में दलाल की भूमिका निभाने का आरोप लगा.
1989 के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. क्वात्रोकी भारत से भागकर विदेश चले गए. राजीव गाँधी पर क्वात्रोकी की मदद के भी आरोप लगे. इस मामले की सीबीआई जाँच शुरू हुई. 1991 में राजीव की हत्या के बाद उनका नाम आरोपियों की सूची से हटा दिया गया. हालांकि जाँच जारी रही और 31 मई, 2005 को दिल्ली हाइकोर्ट ने राजीव गाँधी के खिलाफ लगे सारे आरोपों को गलत करार दिया. सीबीआई ने इंटरपोल से लेकर कई संस्थाओं से क्वात्रोकी को हिरासत में लेने की कोशिश की, लेकिन सफल न हो सकी. 12 जुलाई, 2013 को क्वात्रोकी की मौत हो गई.इसके बाद 1999 में बोफोर्स तोप की क्वालिटी पर खड़े किए गए सवालों को हमेशा के लिए बंद कर दिया.

इसके साथ ही 1999 में देश का एक और बड़ा घोटाला हुआ जिसका नाम है कारगिल ताबूत घोटाला. हथियारों की खरीद-फरोख्त के अलावा कारगिल युद्ध में मारे गए सैनिकों के लिए खरीदे गए कफनों और ताबूतों की खरीददारी में भ्रष्टाचार का आरोप अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर लगा. कैग की रिपोर्ट के मुताबिक कारगिल युद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों के लिए सरकार ने अमेरिकी फर्म बुइटरोन एंड बैजा से 500 एल्युमिनियम ताबूत खरीदने का सौदा किया. एक ताबूत की कीमत करीब 2500 डॉलर रखी गई. कैग के अनुमान के मुताबिक यह कीमत वास्तविक कीमत का 13 गुना थी. इस सौदे में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस और तीन आर्मी अफसरों का नाम आया. सीबीआई जाँच हुई. दिसंबर, 2013 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के फैसले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया और ये केस भी खत्म हो गया.

साल 2001 में तहलका पत्रिका ने ऑपरेशन वेस्ट एंड नाम से एक स्टिंग ऑपरेशन किया. इसमें आरोप लगाया गया कि भारत सरकार द्वारा किए गए 15 रक्षा सौदों में रिश्वतखोरी हुई है. इस्राएल से खरीदे जाने वाली बराक मिसाइल भी इनमें से एक थी. भारत सरकार इस्राएल से 7 बराक मिसाइल सिस्टम और 200 मिसाइल खरीदने वाली थी. भारत सरकार की जो टीम इस मिसाइल को देखने इस्राएल गई थी उसने इस मिसाइल की क्षमता पर प्रश्नचिंह लगाए. साथ ही, उस समय डीआरडीओ प्रमुख रहे डॉ. अब्दुल कलाम ने भी इसकी क्षमता पर आपत्ति जताई. लेकिन, फिर भी इस सौदे को हरी झंडी दे दी गई. 

तहलका के इस स्टिंग में एनडीए सरकार की सहयोगी समता पार्टी के खजांची आरके जैन ने कबूल किया कि इस सौदे को करवाने के लिए उन्हें पूर्व नौसेना प्रमुख एसएम नंदा के बेटे सुनील नंदा से एक करोड़ रुपये की रिश्वत मिली थी. साथ ही उन्होंने जॉर्ज फर्नांडीस और उनकी करीबी जया जेटली को भी पैसे दिए थे. इस घोटाले की सीबीआई जाँच हुई और आरके जैन और सुनील नंदा को गिरफ्तार किया गया. 24 दिसंबर, 2013 को सीबीआई ने यह केस सबूतों की कमी के चलते बंद कर दिया. खास बात ये थी कि इस केस के बंद होने से एक दिन पहले यानी 23 दिसंबर, 2013 को तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने 262 बराक मिसाइल खरीदने की अनुमति दी थी.
साल 2000 में भारतीय वायुसेना ने रक्षा मंत्रालय से कहा कि भारत के राष्ट्रपति, पीएम और सेनाध्यक्षों समेत तमाम दूसरे बड़े वीवीआईपी लोगों के लिए नए हेलिकॉप्टर्स की जरूरत है. तब तक ये एमआई-8 हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल कर रहे थे. अगले 10 सालों में इन्हें बदलने की जरूरत थी. सुरक्षा की दृष्टि से तय किया गया कि ये ऐसे हेलिकॉप्टर हों जो 6 हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकें. 2007 में टेंडर निकाले गए. दो कंपनियां सामने आईं. पहली सिकोर्स्की और दूसरी फिनमैकेनिका. फिनमैकेनिका अगस्ता वेस्टलैंड की पैरेंट कंपनी है. केंद्र सरकार ने एयरफोर्स की सिफारिश पर अगस्ता वेस्टलैंड के मॉडल एडब्ल्यू 101 को चुना.

12 हेलिकॉप्टरों की कीमत करीब 3600 करोड़ थी. 2012 से डिलिवरी शुरू हो गई. 2013 तक 3 हेलिकॉप्टर भारत आ गए. लेकिन, 2013 में इस डील में रिश्वतखोरी की बात सामने आई. आरोप लगा पूर्व एयर चीफ मार्शल एस पी त्यागी पर. कहा गया कि उन्होंने डील के नियम बदले और ऊंचाई की सीमा को घटाकर 6000 मीटर से 4500 मीटर कर दिया. इससे अगस्ता वेस्टलैंड को ये सौदा मिल गया. इसके एवज में त्यागी और उनके रिश्तेदारों पर 360 करोड़ रुपए की रिश्वत लेने के आरोप लगे. अगस्ता वेस्टलैंड की तरफ से इस पूरे सौदे को करवाने की जिम्मेदारी क्रिश्चियन मिशेल नाम के दलाल पर थी. उन्हें कंपनी ने कथित तौर पर 225 करोड़ रुपये दिए थे. इस मामले के सामने आते ही सरकार ने ये सौदा रद्द कर दिया.

अगर भारत में घोटालों की बात करें तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने मिलकर देश को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. आईये एक नजर डालते हैं भारत में 1948 से लेकर आज तक के घोटालों की सूची पर

कांग्रेस, भाजपा के संयुक्त घोटाले
♦    जीप घोटाला (1948)
♦    साइकिल घोटाला (1951)
♦    बीएचयू फंड घोटाला (1955)
♦    मो0 सिराजुद्दीन एण्ड कंपनी घोटाला (1956)
♦    मुंध्रा मैस घोटाला (1957)
♦    तेजा लोन घोटाला (1960)
♦    कैरो घोटाला (1963)
♦    पटनायक कलिंग ट्यूब्स मामला (1965)
♦    नागरवाला काण्ड (1971)
♦    मारुति घोटाला (1974)
♦    कुओ ऑयल डील घोटाला  (1976)
♦    अंतुले ट्रस्ट घोटाला (1982)
♦    बोफोर्स घोटाला (1987)
♦    सेंट किट्स मामला (1989)
♦    बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज घोटाला (1992)
♦    सिक्यूरिटी स्कैम (1992)
♦    तांसी भूमि घोटाला (1992)
♦    चीनी आयात घोटाला (1994)
♦    जूता घोटाला (1995)
♦    यूरिया घोटाला (1996)
♦    चारा घोटाला (1996)
♦    पेट्रोल पंप आवंटन घोटाला (1997)
♦    बराक मिसाइल घोटाला (2001)
♦    स्टाम्प पेपर घोटाला (2003)
♦    ताज कॉरिडोर मामला (2003)
♦    खाद्यान्न घोटाला, उत्तर प्रदेश (2003)
♦    सत्यम घोटाला (2008)
♦    मधु कोडा (2009)
♦    खाद्यान्न घोटाला (2010)
♦    हाउसिंग लोन स्कैम (2010)
♦    एस बैंड घोटाला (2010)
♦    आदर्श घोटाला (2010)
♦    कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (2010)
♦    कोयला आवंटन घोटाला (2012)
♦    2जी स्पेक्ट्रम घोटाला (2008)

भाजपा के घोटाले

1- कारगिल ताबूत घोटाले, कारगिल उपकर दुरूपयोग घोटाला।
2- दूरसंचार प्रमोद महाजन - घोटाले (रिलायंस)
3-अरुण शौरी निजी खिलाड़ियों को बेलआउट पैकेज यूटीआई घोटाले
4- साइबर स्पेस इन्फोसिस लिमिटेड घोटाले
5- पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी आवंटन घोटाले
6- जूदेव घोटाले सेंटूर होटल में डील
7- दिल्ली भूमि आवंटन घोटाले
8- हुडको घोटाले राजस्थान में लैंडस्कैम
9- बेल्लारी खनन और रेड्डी ब्रदर्स घोटाले
10- मध्य प्रदेश में कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट घोटाले
11- कर्नाटक में भूमि आवंटन (येदियुरप्पा)
13- पंजाब रिश्वत मामले
14- उत्तराखंड पनबिजली घोटाले- छत्तीसगढ़ खानों में भूमि घोटाले
15- पुणे भूमि घोटाले (भाजपा नेता नितिन गडकरी शामिल)
16- उत्तराखंड में गैस आधारित पावर प्लांट घोटाले
17- फर्जी पायलट घोटाले सुधांशु मित्तल और विजय कुमार मल्होत्रा
18- अरुण शौरी द्वारा वीएसएनएल विनिवेश घोटाला
19- अरविंद पार्क लखनऊ घोटाले
20- आईटी दिल्ली प्लॉट आबंटन घोटाले
21- चिकित्सा प्रोक्योर्मेंट घोटाले - सी पी ठाकुर
22- बाल्को विनिवेश घोटाले जैन हवाला मामले लालकृष्ण आडवाणी
23- 1998 खाद्यान घोटाला 35,000 करोड़
24- 2000 चावल निर्यात घोटाला 2,500 करोड़ का
25- 2002 उड़ीसा खदान घोटाला 7,000 करोड का
26- 2003 स्टाम्प घोटाला 20,000 करोड़ का
27- 2002 संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला 600 करोड़ का
28- 2002 कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला 120 करोड़ का
29- 2001 केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला 1,000 करोड़ का
30- 2001 यूटीआई घोटाला 32 करोड़ का
31- 2001 डालमिया शेयर घोटाला 595 करोड़ का
32- 1998 टीक पौधों का घोटाला 8,000 करोड़ का
33- 1998 उदय गोयल कृषि उपज घोटाला 210 करोड़ का
34-1997 बिहार भूमि घोटाला 400 करोड़ का
35- 1997 एसएनसी पावार प्रोजेक्ट घोटाला 374 करोड़
36- 1997 म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला 1,200 करोड़ का
37- 1996 उर्वरक आयत घोटाला 1,300 करोड़ का
38- 1996 यूरिया घोटाला 133 करोड का ये 1999 से 2004 तक
39- मप्र का व्यापम घोटाला
40- छत्तीसगढ़ का 36000 करोड का चावल घोटाला 
41- पंजाब का 12000 करोड का गेहुं घोटाला
42- राजस्थान का माईंस घोटाला 
43- मनुस्मृति का बुक्स घोटाला
44- ललित गेट 
45- गुजरात का जमीन घोटाला
46- हेमा मालिनी जमीन घोटाला
47 - एल ई डी बल्ब घोटाले
48- गुजरात में मोदी ने 1 लाख 25 हजार करोड का हिसाब ही नही दिया सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार.
49- 36000 करोड़ का चावल घोटाला
50- छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री, उनका परिवार, उनके रिश्तेदार, स्टाफ, पीए सब शामिल
51- महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे का 206 करोड़ का घोटाला,
52- 271 करोड़ का कार बाइक घोटाला हैदराबाद में वैंकया नायडू के पुत्र आरोपी,
53- मोदी राज में गुजरात का 27000 करोड़ का टैक्स घोटाला, 1 रुपये फीट के भाव अदानी को 16000 एकड़ जमीन का घोटाला.
54- स्मार्ट सिटी की बिना किसी जमीनी आधार दस्तावेज वाली योजना के नाम पर 1 लाख करोड़ का आवंटन घोटाला.
55- पिछले साल फरवरी में पेट्रोल 63 रूपए लीटर और कच्चा तेल 45-50 डॉलर प्रति बैरल था अब जब कच्चा तेल 29 डॉलर प्रति बैरल पर है तो पेट्रोल के दाम 66 रूपए प्रति लीटर. ये है इनकी लूटनीति थी.
57-पिछली सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम का 20 प्रतिशत भाग बेचा था 62000 करोड़ रुपए में, तब संघियों के फेवरेट कैग ने 1,76,000 करोड़ का घाटा बताया था, अब मोदी जी ने बचा हुआ 80 प्रतिशत स्पेक्ट्रम 1,10,000 करोड़ में 20 साल की उधारी में बेच दिया जिसकी ब्याज सहित 21 लाख करोड़ कहाँ गया? इसके अलावा बैंक लूटने का सिलसिला पूंजीवादहित में जारी है.

कांग्रेस के घोटाले

1987 - बोफोर्स तोप घोटाला, 960 करोड़
1992 - शेयर घोटाला, 5,000 करोड़।।
1994 - चीनी घोटाला, 650 करोड़
1995 - प्रोफ्रेशनल अलॉटमेंट घोटाला, 5,000 करोड़
1995 - कस्टम टैक्स घोटाला, 43 करोड़
1995 - कॉबलर घोटाला, 1,000 करोड़
1995 - दीनार हवाला घोटाला, 400 करोड़
1995 - मेघालय वन घोटाला, 300 करोड़
1996 - उर्वरक आयत घोटाला, 1,300 करोड़
1996 - चारा घोटाला, 950 करोड़
1996 - यूरिया घोटाला, 133 करोड
1997 - बिहार भूमि घोटाला, 400 करोड़
1997 - म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला, 1,200 करोड़
1997 - सुखराम टेलिकॉम घोटाला, 1,500 करोड़
1997 - एसएनसी पॉवर प्रोजेक्ट घोटाला, 374 करोड़
1998 - उदय गोयल कृषि उपज घोटाला, 210 करोड़
1998 - टीक पौध घोटाला, 8,000 करोड़
2001 - डालमिया शेयर घोटाला, 595 करोड़
2001 - यूटीआई घोटाला, 32 करोड़
2001 - केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला, 1,000 करोड़
2002 - संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला, 600 करोड़
2002 - कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला, 120 करोड़
2003 - स्टाम्प घोटाला, 20,000 करोड़
2005 - आईपीओ कॉरिडोर घोटाला, 1,000 करोड़
2005 - बिहार बाढ़ आपदा घोटाला, 17 करोड़
2005 - सौरपियन पनडुब्बी घोटाला, 18,978 करोड़
2006 - ताज कॉरिडोर घोटाला, 175 करोड़
2006 - पंजाब सिटी सेंटर घोटाला, 1,500 करोड़
2008 - काला धन, 2,10,000 करोड
2008 - सत्यम घोटाला, 8,000 करोड
2008 - सैन्य राशन घोटाला, 5,000 करोड़
2008 - स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र, 95 करोड़
2008 - हसन् अली हवाला घोटाला, 39,120 करोड़
2009 - उड़ीसा खदान घोटाला, 7,000 करोड़
2009 - चावल निर्यात घोटाला, 2,500 करोड़
2009 - झारखण्ड खदान घोटाला, 4,000 करोड़
2009 - झारखण्ड मेडिकल उपकरण घोटाला, 130 करोड़
2010 - आदर्श घर घोटाला, 900 करोड़
2010 - खाद्यान घोटाला, 35,000 करोड़
2010 - बैंड स्पेक्ट्रम घोटाला, 2,00,000 करोड़
2011 - 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 1,76,000 करोड़
2011 - कॉमन वेल्थ घोटाला, 70,000 करोड़

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