गुरुवार, 2 मई 2019

आदर्श गाँव की लीपापोती

आदर्श गाँव की लीपापोती


राजकुमार (दैनिक ​मूलनिवासी नायक)

जिस गाँव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोद लिया था क्या वह गाँव ‘आदर्श’ बन पाया? 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने और प्रधानमंत्री बनने के बाद वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने जिले के जयापुर गाँव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गोद लिया था. जिसका मकसद इस गाँव को आदर्श गाँव बनाना था. एक ऐसा गाँव जिसका नाम विश्वपटल पर लिया जा सके. अब पाँच साल बीतने को है, लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. लेकिन, जयापुर वो आदर्श गाँव नहीं बन पाया, जिसका सपना यहाँ रहने वाले लोगों को दिखाया गया था.
अगर इस गाँव की तस्वीर देखें तो आज भी इस गाँव में सीवर की व्यवस्था नहीं है, तमाम घरों में लोग चूल्हे पर ही खाना बनाते हैं. इलाज के लिए कोई स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं और सबसे बड़ी बात इस गाँव में जाने के लिए की पर्याप्त साधन भी उपलब्ध नहीं हैं.

आपको बता दें कि जयापुर की कुल आबादी इस समय 4200 है. 2011 की जनगणना के अनुसार, इस गाँव की आबादी 3100 है. इस गाँव में कुल 2700 वोटर हैं. गाँव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है. यहाँ पटेल, ब्राह्मण, भूमिहार, कुम्हार, अनुसूचित जति आदि जातियों के साथ रहते हैं. सबसे ज्यादा आबादी पटेलों की है. इस गाँव के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं. यहाँ पर गेहूं, धान और तरह-तरह की सब्जियों की खेती होती है. खेती के अलावा कुछ लोग सरकारी नौकरी तो कुछ लोग प्राइवेट नौकरी में भी हैं. अगर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गाँव जयापुर जाने की सोच रहे हैं तो पहले आप ये समझ लीजिए कि अगर आपके पास अपनी गाड़ी है तो ठीक है, नहीं तो गाड़ी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है. वाराणसी रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में बसे इस गाँव में आने के लिए आपको साधन की काफी मशक्कत करनी पड़ती है. अगर गाड़ी मिल गई है तो जयापुर जाने के लिए आपको बहुत संभल कर गाड़ी में बैठना होगा. क्योंकि, सड़क ऊबड़-खाबड़ और बेहद खराब हाल में है. राजातालाब से जयापुर की दूरी महज छह किलोमीटर है. मगर आपको घंटों लग जायेंगे.

जयापुर गाँव के लिए एक पूर्व माध्यमिक स्कूल है, जो पास के चंदापुर गाँव में स्थित है. यहाँ आठवीं तक की पढ़ाई होती है. बिल्डिंग देखकर स्कूल की हालत अच्छी स्थिति में लगती है. परन्तु केवल देखने के लिए है वास्तविक उलट है. आठवीं से आगे की पढ़ाई के लिए गाँव में कोई व्यवस्था नहीं है. जब आप थोड़ी आगे बढ़ते हैं तो आपको एक लाइब्रेरी दिखाई देता है. लाइब्रेरी की दीवार पर अच्छी-अच्छी बातें तो लिखी हैं, लेकिन वो सब शायद दिखावे के लिए ही है, क्योंकि इस लाइब्रेरी में ताला लगा हुआ है. जयापुर में कोई भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है. यहाँ से करीब चार किलोमीटर दूर महगाँव है, वहाँ एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. जयापुर के इलाज के लिए लोग वहीं जाते हैं. जब कभी तबीयत खराब होती है तो यहाँ से करीब पाँच किलोमीटर दूर जक्खिनी जाना पड़ता है. डिलिवरी या कोई भी इमरजेंसी के दौरान कोई सुविधा भी इस गाँव में नहीं है. 

प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के तहत प्रशासन ने जयापुर गाँव में हर घर में शौचालय निर्माण करवाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था और काम हुआ भी. करीब-करीब सभी घरों में शौचालय बना दिए गए, लेकिन इन शौचालयों की हालत पीएम मोदी की स्वछ भारत अभियान की असफलता की कहानी बयान कर रहे हैं. इस गाँव में सीवर नाली की कोई व्यवस्था नहीं है. जब बारिश होती है तो पानी घर में घुसने लगता है. शिकायत करने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जयापुर को गोद लेने के बाद गाँव में जगह-जगह सोलर लाइट की व्यवस्था की गई, लेकिन देखरेख के अभाव में ये खराब हो गईं. इनमें लगीं बैटरियां भी चोरी हो गईं. गाँव में नंदघर यानी आंगनबाड़ी केंद्र भी बना हुआ है. दूर से देखने में ये सुंदर लगता है, लेकिन जब आप पास जाकर देखते हैं तो पता लगता है कि यहाँ ताला बंद है. मार्बल उखड़े पड़े हैं, खिड़की का शीशा टूटा हुआ है. खिड़की से अंदर देखने पर सारा सामान बिखरा पड़ा नजर आता है. सभी जगह धूल ही धूल है. इसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले कई महीने से ये खुला ही नहीं है. 

अब जरा उज्जवला योजना पर गौर करें तो यहाँ के लोगों का कहना है, उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर और चूल्हा तो मिल गया है, मगर सिलेंडर दोबारा भरवाने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. लिहाजा वह फिर से लकड़ी पर खाना बनाने को मजबूर है. वहाँ की महिलाएं बताती हैं कि गैस सिलेंडर और चूल्हा निःशुल्क मिल गया, मगर सिलेंडर खाली होने पर उसे दोबारा भरवाने के लिए 1110 रुपये कहाँ से लाएं? सब्सिडी का पैसा तो बाद में आएगा. उनका कहाना है कि हम मुश्किल से दिन में 100 रुपये कमा पाते हैं. इसी में बच्चों का खर्च भी होता है. मेरे पति मजदूरी करते हैं. हम दोनों लोग मिलकर किसी तरह अपना और अपने बच्चों का पेट पाल लेते हैं. अगर उक्त बातों का पूर्ण रूप से विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि देश विनाशक प्रधानमंत्री ने इस गाँव को गोंद लेकर इस गाँव को बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. इससे अच्छा होता कि इस गाँव को गांद ही नहीं लिया गया होता. अगर इस गाँव को गोंद नहीं लिया गया होता तो शायद इसका अच्छा विकास हुआ होता. मगर नरेन्द्र मोदी ने ‘आदर्श गाँव’ के नाम पर इस जयापुर गाँव को गोंद लेकर आदर्श गाँव की लीपापोती कर दिया. इसके बाद भी इस जयापुर गाँव का विकास पाँच साल में भी नहीं हो पाया.

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