ईवीएम पर रार
राजकुमार (दैनिक मूलनिवासी नायक)
ईवीएम पर रार अभी जारी है और लगता है कि जब तक भारत में ईवीएम से चुनाव होता रहेगा तब तक यह रार भी जारी रहेगा. हालांकि ईवीएम पर रार पहली बार रही हो रहा है, बल्कि इसके पहले कई बार रार हो चुका है और निरंतर जारी है. केवल एक बार चुनाव आयोग को ईवीएम के बजाए बैलेट पेपर से चुनाव कराकर ईवीएम पर रार करने वाले लोगों के जुबान पर ताला लगा देना चाहिए. इससे चुनाव आयोग भी उन आरोपों से बच जायेगा जो लगातार उसके ऊपर ईवीएम घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा रहा है. मगर, न जाने क्यों चुनाव आयोग राजी नहीं हो रहा है? जबकि दुनिया का सिद्धांत है कि जिसे चोर कहा जाता है भले ही वह चोरी किया है या नहीं, फिर भी वह एक बार अपने आपको यह साबित करने का प्रयास करता है कि वह चोर नहीं है. यहाँ तो चुनाव आयोग मान ही नहीं रहा है. चुनाव आयोग खुद अपने ऊपर लगे आरोप को गलत साबित करने के लिए आज तक प्रयास नहीं किया. वैसे भी आयोग जानता है कि प्रयास करने के बाद भी जो नतीजें आयेंगे वह भी वही साबित करेंगे की आयोग ही चोर है. शायद इसलिए ही आयोग खुद के ऊपर लगे आरोप को गलत साबित करने के लिए प्रयास नहीं कर रहा है. हालांकि चुनाव आयोग को आज नहीं तो कल साबित करना ही होगा कि चुनाव आयोग ही चोर है. क्योंकि, वामन मेश्राम नाम का व्यक्ति ऐसा करके ही दम लेने वाला है.
असल बात यह है कि हरि प्रसाद ने साल 2010 में साबित कर दिया है कि ईवीएम में घोटाला होता है और जैसे कांग्रेस 2004 और 2009 का चुनाव जीती थी उसी प्रकार से बीजेपी भी ईवीएम में घोटाला करके सरकार बनायी है. बता दें कि हरि प्रसाद तब सुर्खियों में आए जब उनपर कथित तौर पर ईवीएम से छेड़छाड़ करने और ईवीएम चुराने के आरोप लगे. हरि प्रसाद 2009 से ईवीएम के मुद्दों पर सक्रिय हैं.
चुनाव आयोग ने सितंबर, 2009 में अपने सामने उन्हें ईवीएम हैक करने के लिए आमंत्रित किया था. मगर, चुनाव आयोग ने हरि प्रसाद की टीम को अपना काम पूरा करने से पहले ही रोक दिया. इसके बाद चुनाव आयोग ने कहा कि उनकी टीम ईवीएम हैक नहीं कर पायी. हरि प्रसाद का कहना था कि आयोग ने उन्हें काम पूरा नहीं करने दिया. उन्होंने इस पूरी घटना का वीडियो रिकॉर्डिंग जारी कराने की भी अपील की थी. उस वक्त वी.वी राव कहे थे कि हमारे काम में बाधा डालने के लिए, भारत का चुनाव आयोग खोखली दलील लेकर आया है कि ईवीएम खोलने से ईसीआईएल के पेटेंट का उल्लंघन होगा.
साल 2010 में महाराष्ट्र से ईवीएम चुराने के आरोप में हरि प्रसाद को गिरफ्तार किया गया था. हरि प्रसाद 29 अप्रैल 2010 को एक तेलुगू चैनल पर लाइव ये दिखा रहे थे कि कैसे एक ईवीएम को हैक किया जा सकता है. जिस ईवीएम पर हरि प्रसाद ये डेमो दिखा रहे थे उसका इस्तेमाल महाराष्ट्र चुनाव में किया गया था. 12 मई, 2010 को महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र पुलिस से इसकी शिकायत की जिसके बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
कुछ अन्य विदेशी विशेषज्ञों ने हरि प्रसाद के साथ काम किया है. हालांकि, हरि प्रसाद को 2010 में इसी मुद्दे पर सैन फ्रांसिस्को की संस्था इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन ने उन्हें पायनियर पुरस्कार से सम्मानित किया. मिशिगन विश्वविद्यालय के तीन प्रतिनिधियों, हरिप्रसाद सहित नेट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के चार प्रतिनिधियों और नीदरलैंड के एक प्रतिनिधि को ये पुरस्कार दिया गया. 2010 में उन्होंने अमरीका में आयोजित कम्प्यूटिंग मशीनरी सम्मेलन के 17वें एसोसिएशन में भारत के इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के सुरक्षा विश्लेषण पर एक पेपर प्रकाशित किया था. हरिप्रसाद ने अपने लिंक्डइन अकाउंट पर ईवीएम के मुद्दे पर अपना बचाव किया. उन्होंने लिखा, मैंने सुरक्षा के लिहाज़ से ईवीएम का पहला स्वतंत्र ऑडिट किया है. मुझे इसके लिए जेल भेजा गया, मेरे खिलाफ जाँच की गई. मैंने ये सब कुछ अकेले सह लिया ताकि जो लोग इसमें मेरे साथ थे वे बच सकें. उन्होंने यह भी लिखा था कि ईवीएम के मुद्दे पर एक साल तक चुनाव आयोग के सामने गुहार लगाने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला है.
इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि 2010 में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रवक्ता और चुनावी मामलों के विशेषज्ञ जीवीएल नरसिम्हा राव ने एक किताब लिखी- ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?’ इस किताब की प्रस्तावना लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखी और इसमें आंध्र प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री एन चंद्राबाबू नायडू का संदेश भी प्रकाशित है. इतना ही नहीं पुस्तक में वोटिंग सिस्टम के एक्सपर्ट स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड डिल ने भी बताया है कि ईवीएम का इस्तेमाल पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने किताब की शुरुआत में लिखा है- मशीनों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है, भारत में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन इसका अपवाद नहीं है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब एक उम्मीदवार को दिया वोट दूसरे उम्मीदवार को मिल गया है या फिर उम्मीदवारों को वो मत भी मिले हैं जो कभी डाले ही नहीं गए.
किताब का चौथा अध्याय ऐसे तमाम उदाहरणों से भरा है. लेकिन अब मौजूदा विवाद के बाद इस मुद्दे पर जीवीएल नरसिम्हा राव चिड़ीचुप है. जीवीएल नरसिम्हाराव ने अपनी किताब में 2010 के ही उस मामले का जिक्र विस्तार से किया है. जिसमें, हैदराबाद के टेक एक्सपर्ट हरि प्रसाद ने मिशिगन यूनिवर्सिटी के दो रिसर्चरों के साथ मिलकर ईवीएम को हैक करने का दावा किया था. इसके बाद न तो इस मुद्दे पर बीजेपी नेता कोई आवाज उठा रहे हैं और न ही चुनाव आयोग कुछ बोल रहा है. इसका मतलब साफ है कि चुनाव आयोग चाहता है कि ईवीएम पर रार चलती रहे, ताकि इसीक आड़ में बीजेपी को सत्ता सौंपी जा सके.
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