बनारस में बुनकरों का बुरा हाल
जुमला साबित हुआ मोदी का वादा
राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
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क्या बनारस में बुनकरों के लिए प्रधानमंत्री मोदी का अच्छे दिन लाने का वादा जुमला साबित हुआ? नरेंद्र मोदी ने बनारस में बुनकरों से जुड़े कई वादे किए थे. लेकिन, पाँच साल बाद स्थानीय बुनकर अच्छे दिनों के नारे और वादे के बीच ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. दुनिया भर में बनारसी साड़ी के लिए मशहूर वाराणसी आज अपनी पहचान बचाने में लगी हुई है, लेकिन कहीं से भी कामयाबी मिलती नजर नहीं आ रही है. सरकारें आती हैं, वादे करती हैं और चली जाती हैं, लेकिन बुनकरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है. हालांकि मोदी सरकार का दावा है कि बुनकरों के लिए बहुत कुछ किया गया है. 2017 सितंबर में वाराणसी के दूसरे छोर पर बसे बड़ा लालपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 200 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुए ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर (पंडित दीनदयाल उपाध्याय ट्रेड सेंटर) का उद्घाटन किया था. जिस समय यह सेंटर बनकर तैयार हुआ था, लोगों को लगा कि अब बुनकरों के अच्छे दिन आ जाएंगे. पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा था, ये संकुल मात्र इमारत नहीं है यह भारत के सामर्थ्य का परिचय कराने वाली इमारत है. ये काशी के शिल्पाकारों और बुनकरों के लिए है जो भविष्य के दरवाजे खोलने का ताकत रखती है.
आज दो साल के बाद स्थिति बिलकुल उल्टी है. ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर में बहुत-सी दुकानें खाली हैं. यहाँ पर जितनी जनता नहीं है उससे ज्यादा यहाँ इमारत में विभिन्न तरह के काम करने वाले लोग हैं. यहाँ काम करने वाले एक कर्मचारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, जब से ये सेंटर खुला है तब से शायद ही आज तक कोई ऐसा कार्यक्रम हुआ हो, जिसमें बुनकर आए हों. बुनकरों के लिए कार्यक्रम तो होता है लेकिन उसमें बुनकर नहीं होते, सब व्यापारी होते हैं. वे आगे बताते हैं, यहांँ मोहन भागवत जी आते हैं, संघ का कार्यक्रम भी हो चुका है. अमित शाह जब आते हैं तो अक्सर वो अपने कार्यकर्ताओं से यहीं पर मिलते हैं. और भी कई कार्यक्रम होते हैं, लेकिन जिस काम के लिए इसे बनाया गया है वो कार्यक्रम तो नहीं दिखता है.
बता दें कि बनारस के बुनकरां का कहना है कि मोदी ने बनारस के बुनकारों के साथ बड़ा धोखा किया है. ट्रेड सेंटर में दुकान लगाने वाले 30 साल के गुलजार अहमद बताते हैं, यहा पर सेंटर तो खुल गया है, लेकिन इसका कोई प्रचार नहीं हो रहा है. ये बनारस में ही खुला है लेकिन इसे बनारस के बुनकर ही नहीं जानते हैं. मैं पिछले पाँच महीने से यहाँ हूँ और इतने दिन में केवल चार साड़ियाँ ही बेच पाया हूँ. इस दुकान का करीब सात हजार रुपये महीना किराया दे रहा हूँ और केवल घाटा ही घाटा हो रहा है. वे आगे बताते हैं, बीते जनवरी में यहाँ पर प्रवासी सम्मेलन हुआ था, लेकिन उसका कुछ भी फायदा नहीं हुआ. साड़ी खरीदना तो दूर किसी ने एक खिलौना भी नहीं खरीदा. कुछ भी बिक्री नहीं हुई है. भले ही यहाँ पर सेंटर बन गया है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है. सरकार ने ये सेंटर तो बना दिया है, लेकिन इसका प्रचार-प्रसार नहीं होने से पूरी तरह से ये बर्बाद है.
बड़ा लालपुर सेंटर के बारे में बात करते हुए अहमद अंसारी कहते हैं, वाराणसी में ये सेंटर ऐसी जगह पर बना है जहाँ पर आम बुनकर का पहुँचना ही मुश्किल है. बनारस के 90 प्रतिशत बुनकर तो उस जगह और सेंटर के बारे जानते ही नहीं है. सेंटर के बारे में नुरुलहोदा कहते हैं, ये जो हमारे मुल्क का बादशाह है वो बड़ा झूठा है. वो बस अपनी वाहवाही के लिए सब कुछ करता है. उनके लिए सब काम केवल दिखावा है. बुनकर केंद्र बना है तो उसका फायदा कैसे होगा, ये भी बताएं. लेकिन इनके लिए सब काम खाली हवाहवाई रहता है. बुनकर बिरादिराना तंजीम के अध्यक्ष और गंगा महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी मुख्तार अहमद महतो का कहना है कि कि बुनकरों के हालात पहले से ही खराब रहे हैं, भाजपा और मोदी सरकार के आने के बाद हालत और खराब हो गए हैं. वे कहते हैं, साड़ी के काम में कई लोग लगे होते हैं, कुछ धागा बुनाई करते हैं, कुछ साड़ी कटिंग करते हैं, कुछ लोग तानी (बुनाई में ताना-बाना) रंगाई का काम करते हैं. एक साइकिल (चक्र) में काम होता है. जब नोटबंदी हुई तो बड़े व्यापारियों ने अपना पैसा खींच लिया, इस वजह से नोटबंदी के बाद बुनकरों की कमर टूट गई. बची हुई कसर जीएसटी ने निकाल दी. बुनकर उतना पढ़े-लिखे नहीं हैं कि उन्हें जीएसटी समझ में आ जाए. जितना वो कमा रहे हैं उससे ज्यादा दिमाग उनको जीएसटी जमा करने में खर्च लग जाता है, वो परेशान हो जाते हैं.
वे आगे बताते हैं, बुनकरों को आज जहाँ होना चाहिए वहाँ नहीं हैं. कुछ वजह तालीम की कमी है, कुछ बुनकर के हालात खराब हैं. पहले हथकरघा था, फिर पावरलूम आया और अब रेपियर आया है. हथकरघा तो धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. पावरलूम और रेपियर से जितनी साड़ी बन रही है, उनकी मार्केटिंग नहीं है, कोई खरीदने वाला नहीं है. अगर कोई खरीद भी रहा है तो उसके दाम कम मिल रहे हैं. उनका कहना है कि बुनकरों के साथ लगातार नाइंसाफ़ी हुई हैं, लेकिन पिछले पाँच साल में ज्यादा हुई है. वे कहते हैं, कमाई नाम की कोई चीज नहीं है. मोदी सरकार के आने के बाद महंगाई लगातार बढ़ती गई है, साड़ी की बिक्री कम होने लगी, दाम गिरने लगा और जब दाम गिरा तो उसका सीधा असर मजदूर की मजदूरी पर पड़ता है. आज एक बुनकर परिवार (हथकरघा) मिलकर मुश्किल से महीने में चार से पाँच हजार की कमाई कर पा रहा है.
हाजी मुख़्तार का यह भी कहना है कि अफसरशाही और नेताशाही इतनी ज्यादा है कि बुनकरों को कोई सुविधा नहीं मिल रही है. वे कहते हैं, पाँच साल पहले बुनकर और व्यापारी (साड़ी खरीदने वाले) के बीच में जो बातचीत थी, जो समझ थी, इस सरकार के आने के बाद से वो माहौल नहीं रह गया है. उन लोगों को और भी काम मिल रहे हैं. अब तक मोदी जी करीब बीस बार बनारस आ चुके हैं, लेकिन कभी किसी मुसलमान को करीब किए? और जब बुलाया भी तो केवल दिखाने के लिए? बुनकरों के नाम से बहुत से लोगों की दुकान चल रही है, बहुत सारे लोग लूट रहे हैं. हाल ही में नामांकन दाखिल करने वाराणसी पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो में हाजी मुख्तार ने उन्हें शॉल देकर उनका स्वागत किया था, जिसे मीडिया द्वारा मोदी के मुसलमानों की सौगात स्वीकार करने के रूप में दिखाया गया.
इस बारे में हाजी मुख्तार कहते हैं, वो हमारे प्रधानमंत्री हैं, जब हमारे सामने बड़े लोग आते हैं तो हम उनका इस्तकबाल करते हैं. वैसे भी मुस्लिम और भाजपा के बीच थोड़ी दूरी है अगर हम अपनी तरफ से पहल नहीं करेंगे तो जो थोड़ी दूरी है वो और बढ़ जाएगी. वे हमारे मुल्क के वजीर-ए-आजम हैं, हमने मुल्क के बादशाह की इज्जत की है. मोदी की इज्जत नहीं की है, न ही भाजपा के किसी नेता-मंत्री की इज्जत की है. ये हमारा फर्ज है कि कोई बड़ा हमारे घर के पास गुजरे तो हम उसकी इज्जत करें. हालांकि हाजी मुख्तार कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी से खासे नाराज नजर आते हैं. वे कहते हैं, तीन साल पहले स्मृति ईरानी बनारस आई थीं. यहाँ एक कपड़े की कंपनी में कार्यकम था जहाँ उन्होंने मुझे बुलाया था. मैं उनसे मिलने के लिए गया. वहाँ कुछ दूर पैदल चलना था, वहाँ वे कदम से कदम मिलाकर मेरे साथ चल रही थीं.
इस दौरान लगातार फोटोग्राफी हो रही थी. फिर जब वहाँ जाकर बैठे तो मेरी कुर्सी उनके पीछे थी पर उन्होंने कहकर मुझे अपने साथ बैठाया. वे इधर-उधर की ही बात कर रही थीं, हालचाल ले रही थीं और कोई बात नहीं हुई. मीडिया वाले फोटोग्राफी में लगे हुए थे और लोगों को लग रहा है कि बड़ी खास बात हो रही है, लेकिन बात कुछ भी नहीं हुई, बुनकर से जुड़ी तो कोई बात ही नहीं हुई. वे आगे कहते हैं, इसके बाद उन्होंने कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि बुनकरों की जो शिकायत है हम सुनना चाहते हैं. लेकि, सभी के दर तक तो हम पहुँच नहीं पाते, हर आदमी से मिल नहीं सकते. इसलिए जिसको जो भी शिकायत है वो लिखित में महतो साहब के यहाँ पहुँचा दे, हम दो या तीन दिन में उस मसले को हल करेंगे. उनके इस ऐलान के बाद मेरे घर पर सैकड़ों लोगों की शिकायतें आ गईं. मैंने स्मृति ईरानी को कई बार फोन किया पर फोन ही नहीं उठा. फिर मुझे कहा गया कि मैं चौक जाकर एक व्यक्ति से मिलूं. मैं उनसे मिलने गया तो उसने किसी और से मिलने की बात की, फिर मैं आगे किसी से नहीं मिला. वे झल्लाते हुए कहते हैं, ये कौन सा तरीका है कि मेरे नाम से घोषणा करके, मेरा नाम लगाकर, मुझे फंसाकर भाग गईं, उसके बाद से आई ही नहीं. ये तो नेता लोगों का काम है कि केवल इनको-उनको फंसाना है. ये लोग बहुत झूठे होते हैं. ये नेता हैं ये झूठे वादे कर सकते हैं, लेकिन हम लोग किसी से झूठा वादा नहीं करते. इससे तो साफ है कि बनारस के बुनकारों की हालत खराब है और इसका जिम्मेदार देश का वजीर-ए-आजम अर्थात नरेन्द्र मोदी है.
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