शनिवार, 25 मई 2019

ईवीएम पर पहरेदारी



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)

ईवीएम पर खामोश रहने वाले ही ईवीएम की पहरेदारी कर रहे थे. आज वर्तमान में ईवीएम पर पहरेदारी करना एक व्यगांत्मक बात के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है. ईवीएम पर पहरा देने वाले लोगों की इस करतूत पर हंसी आती है, यह सोचकर कि कभी यही लोग ईवीएम के खिलाफ आवाज उठाए होते, बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा द्वारा ईवीएम के खिलाफ चलाए जा रहे आन्दोलनों में साथ दिए होते तो शायद आज यह नौबत नहीं आयी होती. 


भले ही यह बात ईवीएम पर पहरा देने वाले लोगों को नगवार लगे, परन्तु सच्चाई यही है कि आज तक ईवीएम में घोटाला करके भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में दोबारा सरकार बनाने जा रही है तब इन लोगों की आँख खुली है. पता नहीं यह आँखें फिर बंद हो जायेगी या खुली रहेगी, यह तो आगे ही पता चलेगा. लेकिन इतने दिन इन लोगों के आँखों पर सत्ता की न केवल पट्टी बंधी थी, बल्कि इनके दिलों दिमाग पर झूठी सरकार बनाने की सनक भी सवार थी. सत्ता के नशे में चूर इन नेताओं की हालत आज उन शराबियों जैसी हो गयी है जिनकी नशा एक ही झटके में तब टूट जाती है जब उनके  घर में आग लग जाती है. आज यही दशा इन नेताओं की हो गयी है. इतने दिन तक ईवीएम पर खामोश रहे, जब ईवीएम में घोटाला करके बीजेपी सरकार बनाने जा रही है तब ईवीएम की पहरेदारी कर रहे हैं. सवाल यह है कि इतने दिनों तक किस बिल में दुबके बैठे थे? क्या पहरेदारी से ईवीएम में घोटाला बंद हो जायेगा? क्या पहरेदारी से बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गयी? क्या इसका रत्तीभर भी चुनाव आयोग पर असर पड़ा? अगर ऐसी सोच है तो कम से कम इस सोच को तो भूल ही जायें. यह मात्र एक वहम है. क्योंकि, जो काम बीजेपी और कांग्रेस को करना था वो कर दिया है. अब पहरेदारी करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है और न ही हुआ.

एक और बात, यह बात इसके भी ज्यादा कड़वी है. शायद यह बात गठबंधन के लोगों को तीर के समान लगे, लगना भी जरूरी है. क्योंकि, यह बात तीर जैसा लगने के लिए ही कह रहा हूँ, शायद अब भी दिलों दिमाग से सत्ता का नशा टूट जाए. वह बात यह है कांग्रेस, बीजेपी को केन्द्र की सत्ता पर दोबारा पहुँचाने के लिए लगातार मदद कर रही है और सपा-बसपा उसी कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली में यह सोचकर समर्थन दे रहे हैं कि कांग्रेस, बीजेपी को हराने में मदद करेगी. जो कांग्रेस, बीजेपी को जितवाना चाहती है उसी कांग्रेस से उम्मीद लगाना कहाँ तक तर्कसंगत है यह तो वहीं लोग बता सकते हैं. अरे! भाड़ में जाय कांग्रेस और गठबंधन. यह बात गठबंधन को नहीं समझ में आ रही है? मैं राजनीति करने वाला नहीं हूँ, मुझे राजनीति का कुछ भी पता नहीं है, मैं राजनीति शास्त्र का छात्र भी नहीं हूँ. इसके बाद भी यह बात मुझे समझ में आ रही है, मगर राजनीति करने का दावा ठोंकने वाले इन नेताओं को यह बात क्यों नहीं समझ में आ रही है? सवाल यह है कि जब कांग्रेस की इतनी सी बात गठबंधन को समझ में नहीं आ रही है तो मुझे नहीं लगता है कांग्रेस, बीजेपी को क्यों सत्ता में लाना चाहती है, यह बात कैसे समझ में आयेगी.

ऐसे नासमझ लोगों को एक नसीहत देना चाहता हूँ कि बीजेपी ही नहीं कांग्रेस से भी दूर रहने में ही भलाई है. बाबासाहब कहते थे कांग्रेस जलता हुआ घर है शायद आज बाबासाहब होते तो कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी को भी जलता हुआ घर कहते. वहीं राष्ट्रपिता जोतिराव फुले साहब कांग्रेस को कहते थे ‘‘तुम लोग ऊँट पर बैठकर बकरियाँ चराने वाले लोग हो’’ और कांग्रेस से उम्मीद करने वाले ऐसे लोगों को कहते थे ‘‘जो कांग्रेस में जायेगा, वह दो बाप की औलाद होगा’’ अरे! कम से कम अपने महापुरूषों की कहीं बातों को तो मान लो? अगर अपने महापुरूषों की बातों को दरकिनार कर कांग्रेस से उम्मीद करते हैं तो इससे ज्यादा निंदनीय बात और क्या हो सकती है? खैर, न समझ लोगों को एक बार समझाने का प्रयास करना चाहिए.

पहली बात तो यह है कि ऐसे लोगों को कांग्रेस, आरएसएस और बीजेपी का इतिहास जानने की ज्यादा जरूरत है. लोकसभा चुनाव 2019 की बात करे तो कांग्रेस भले ही बीजेपी का कड़ा विरोध कर रही है, लेकिन वास्तविकता यह है कि कांग्रेस खुद बीजेपी को केन्द्र में लाना चाहती है. यही कारण है कि कांग्रेस ने बनारस से प्रियंका गाँधी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा. यदि चुनावी नतीजों को देखें तो महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस जीरो पर आ रही है. इससे भी ज्यादा अहम बात यह है कि कांग्रेस द्वारा ईवीएम में घोटाला करके 2004 और 2009 में लगातार सत्ता में रहने के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस ईवीएम में घोटाला करके सरकार बना रही है. तब आरएसएस और कांग्रेस के बीच समझौता हुआ और समझौता में यही हुआ कि जैसे कांग्रेस ईवीएम में घोटाला करके 2004 और 2009 में केन्द्र में सरकार बनायी है, उसी प्रकार से बीजेपी भी ईवीएम में घोटाला करके 2014 और 2019 में सरकार बनायेगी. इसके बाद ईवीएम में हो रहे घोटाले पर बीजेपी ने मौन धारण कर लिया. इसका नतीजा यह निकला कि बीजेपी 2014 में सरकार बनायी और अब 2019 में दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है. वादे के मुताबिक ही लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस, बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए मदद कर रही है. 

दूसरी बात, जब से देश में ईवीएम से चुनाव शुरू हुआ है तब से धोखेबाजी का सिलसिला और तेज हो गया है. ईवीएम के माध्यम से कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी ही पूर्ण बहुमत में सरकारें बनाती आ रही हैं. क्योंकि, ईवीएम से निष्पक्ष, पारदर्शी और मुक्त चुनाव नहीं हो सकता है, बल्कि घोटाला होता है. इस बात को सुप्रीम कोर्ट भी मान चुका है और इस पर 8 अक्टूबर 2013 को फैसला भी सुना चुका है कि ईवीएम से निष्पक्ष, पारदर्शी और मुक्त चुनाव नहीं हो सकता है. अंत में यही कहना चाहता हूँ कि कांग्रेस ही आरएसएस की माँ है. यही कारण है कि आरएसएस, कांग्रेस और बीजेपी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. अब भी वक्त है कि सपा, बसपा सहित देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज बामसेफ, भारत मुक्ति मोर्चा का साथ समर्थन करें और कांग्रेस, बीजेपी सहित ब्राह्मणवाद को भारत से उखाड़ फेंके.

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