शनिवार, 25 मई 2019

चुनाव आयोग और भाजपा का गठबंधन



राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
आज एक तरफ जहाँ बीजेपी को हाराने के लिए देश में गठबंधन बन रहा है तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी और चुनाव आयोग भी आपसी गठबंधन मजबूत कर चुके हैं. चुनाव आयोग और भाजपा के गठबंधन का ही नतीजा है कि बीजेपी 2019 में दूसरी बात केन्द्र की सत्ता पर कब्जा करने जा रही है. भले ही भारतीय जनता पार्टी जीत का जश्न मना रही हो, लेकिन चुनाव के नतीजों को लेकर जनता गुस्सा ही दिख रहा है. क्योंकि, जिस तरह से देश की जनता में बीजेपी के खिलाफ आक्रोश था और बीजेपी के खिलाफ देश में महागठबंधन बना है उस हिसाब से चुनाव के परिणाम बिलकुल उसके उलट आए हैं. हर चरण में घोटालों की शिकायतें, ईवीएम का बड़े पैमाने पर खराब होना और मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब होना यह इस बात का संकेत है कि चुनाव आयोग, भारतीय जनता पार्टी ने ईवीएम घोटाले को लेकर नया कारनामा करने वाले हैं. हालांकि यह कारनामा उस वक्त उजागर हो ही गया जब बीजेपी ने ईवीएम बदलने की कोशिश की. 

बता दें कि हर शातिर चोर एक न एक सुराग ऐसा छोड़ ही जाता है जिससे उसकी चोरी के बारे में क्लू मिल जाता है और इस चुनाव में बड़े पैमाने पर ईवीएम मशीन में अदलाबदली भारी गड़बड़ी को दिखाता है, लेकिन इसके बाद भी चुनाव आयोग चुप्पी साधे रहा. आयोग का रवैया इस बात की गवाही दे रहा है कि चुनाव आयोग ही निष्पक्ष नहीं है. अगर इसी तरीके से चलता रहा तो बहुत जल्द ही देश में मनुस्मृति लागू हो जायेगा. आखिर चुनाव करवाने का स्वांग कब तक रचा जाता रहेगा? जबकि नतीजे ऐसे फिक्स ही होने हैं? इसलिए चुनाव आयोग को या तो ईवीएम मशीन का प्रयोग बंद करा देना चाहिए या फिर चुनाव ही कराना बंद कर देना चाहिए, क्योकि जब ऐसे ही सब होना है तो चुनाव आयोग को बिना चुनाव के ही परिणाम दे देना चाहिए.

यदि ईवीएम पर बात करें तो 1982 में इंदिरा गाँधी ने ईवीएम मशीन लाने का निर्णय यह सोचकर किया कि हम ब्राह्मण लोग 3.5 प्रतिशत हैं. ईमानदारी से हम ब्राह्मण लोग चुनाव नहीं जीत सकते है.भविष्य में तो यह खतरा और पैदा हो जायेगा. अगर भविष्य मे चुनाव जीतना है तो जिस मशीन पर यूरोप ने पांबदी लगाई है, वह मशीन हम ब्राह्मणों के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होगी. यह सोचकर इंदिरा गाँधी ने ईवीएम मशीन को भारत मे लाने का का फैसला किया. सन् 2004 और सन् 2009 में कांग्रेस ने सारे देश भर में लोकसभा चुनाव में ईवीएम मशीन का उपयोग किया और कांग्रेस ने ईवीएम मशीन के माध्यम से घोटाला किया. यह घोटला कैसे करना है यह केवल कांग्रेस को ही मालूम था. 2003 में अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे. मगर, अटल बिहारी बाजपेयी को ईवीएम मशीन में घोटाले के बारे में मालूम नहीं था. ईवीएम मशीन को भारत में लाने का काम इन्दिरा गाँधी ने किया था. इसलिए ईवीएम मशीन में घोटाले के बारे में इन्दिरा गाँधी को ही मालूम था. 

 2004 में कांग्रेस ने ईवीएम मशीन में घोटाला करके चुनाव जीता. 2009 में भी कांग्रेस ने ईवीएम मशीन में घोटाला करके चुनाव जीता. 2004 और 2009 में कांग्रेस द्वारा ईवीएम मशीन में घोटाला करके लोकसभा चुनाव जीतने के बाद डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने इसके दस्तावेजी सबूत इकट्ठा किए. डा.सुब्रमण्यम स्वामी ने इसके दस्तावेजी सबूत इकट्ठा करके इसे सुप्रीम कोर्ट में लेकर गया. ईवीएम मशीन में घोटाला कैसे करना है, कांग्रेस को सब मालूम है. वैसे बीजेपी को ईवीएम मशीन में घोटाले के बारे में मालमू नहीं था, मगर 2004 और 2009 में कांग्रेस के द्वारा ईवीएम मशीन में घोटाला करके लोकसभा चुनाव जीतने का सबूत डा.सुब्रमण्यम स्वामी ने आरएसएस को दे दिया, जिसके कारण आरएसएस और बीजेपी को भी मालूम हो गया कि ईवीएम मशीन में घोटाला करके चुनाव जीता गया है. इसके बाद कांग्रेस ने आरएसएस के साथ सम्पर्क किया और आरएसएस के साथ गुप्त समझौता किया. 

कांग्रेस ने आरएसएस से सम्पर्क किया और आरएसएस को कहा कि डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने सारे दस्तावेजी सबूत दिए हैं कि हमने कैसे 2004 और 2009 में ईवीएम मशीन में घोटाला करके लोकसभा चुनाव जीता और आप लोगों ने वो सारे के सारे दस्तावेज देख लिए है, इसलिए अब आपसे क्या छुपाना है, अब तो आपको सब कुछ मालूम ही हो गया है. जब तक हम सोच रहे थे कि छुपा है तो छुपा है, ठीक है, मगर अब आपको सब मालूम ही हो गया है और बन्द मुट्ठी खुल गई है, इसलिए अब आपको हम बताते हैं कि हमने 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम मशीन में घोटाला किया था और चुनाव जीता था. मगर राष्ट्रहित में यह है कि आडवानी को रोका जाए, क्योंकि जो ब्राह्मणहित में होता है, उसे वो राष्ट्रहित में बताते हैं. जो ब्राह्मणों के हित में होता है, वे कहते हैं कि नहीं-नहीं यह देशहित और राष्ट्रहित में है.

कांग्रेस ने कहा कि ठीक है, हम ही बताते हैं. कांग्रेस ने आरएसएस को कहा कि 2014 के चुनाव में आप घोटाला कर लेना. केन्द्र में हमारी सरकार है, चीफ इलेक्शन कमिश्नर हमने बनाया है. उसने पिछले बार इस षड्यंत्र में हिस्सा लिया था और जब पिछली षड्यंत्र में हिस्सा लिया था, तो अब भी षड्यंत्र में हिस्सा लेगा और दूसरी बात यह है कि जो भारतीय प्रशासनिक सेवा है, उसमें 80 प्रतिशत ब्राह्मण और तत्सम ऊँचे जाति के लोग हैं. केन्द्र में हमारी सरकार है, इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों से हम यह काम करवाऐंगे. जूडिशियरी को हमने बोल दिया है, मीडिया वालों को भी बोल दिया है कि इसकी कोई खबर न छापी जाए. इसलिए हम आपको सारे देश भर में मदद करने के लिए तैयार हैं, इसलिए 2014 का चुनाव घोटाला करके जीतो हम भी आपको हर संभव मदद करेंगे. लेकिन हम जनता को दिखाने के लिए आपका विरोध करेंगे. 

इस तरह से आरएसएस ने कांग्रेस को कहा कि आपने ऐसा कहा कि 2004 और 2009 का लोकसभा चुनाव में घोटाला करके दो बार चुनाव जीता और आप हमें एक ही बार घोटाला करने के लिए बोल रहे हो, इसलिए यह बात सही नहीं है. कांग्रेस ने आरएसएस से पूछा कि आपका क्या कहना है? आरएसएस के लोग बहुत घाघ हैं, उन्होंने कांग्रेस को कहा कि आप भली भांति जानते हैं कि हम क्या कहना चाहते हैं? कांग्रेस ने कहा कि अच्छा आपका यह कहना है कि हमने दो बार घोटाला किया है तो आपको भी दो बार घोटाला करने का अवसर दिया जाए? आरएसएस ने कहा कि हम तो पहले ही कह रहे हैं कि आप समझदार लोग हैं, आप हमसे सीनियर लोग हैं. 1885 में कांग्रेस बनी और 1925 में आरएसएस बनी, तो आप तो हमसे सीनियर हैं, आप ज्यादा होशियार लोग हैं. अगर आपने दो बार घोटाला किया है, तो हमें भी दो बार घोटाला करने दिया जाए. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में दो बार घोटाला करने दिया जाए. इस बात पर कांग्रेस और आरएसएस के साथ सौदेबाजी हुई और सौदेबाजी होने के बाद यह निर्णय हुआ. इस सौदेबाजी का ही दुष्परिणाम है कि 2014 में बीजेपी सत्ता में आयी और अब 2019 के सत्ता में आ रही है.

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