गुरुवार, 9 मई 2019

सावधान! आगे मीडिया गैंग है

सावधान! आगे मीडिया गैंग है

राजकुमार (दैनिक मूलनिवासी नायक)
‘‘एक नमूना यह भी देखें कि पुलवामा आतंकी हमले के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच जितना बम, गोला, बारूद के विस्फोट का आवाज नहीं हुआ उससे कहीं कई गुना ज्यादा मीडिया के विस्फोट का आवाज हुआ था. यही कारण है कि आज के दौर में भारतीय पत्रकारिता को ‘‘मीडिया-ए-लश्कर, दलाल-ए-मीडिया, गोदी-ए-मीडिया’’ आदि नामों से पुकारा जाने लगा है.’’


 ‘‘हर डाल पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ता क्या होगा’’ की पंक्तियाँ राजनैतिक-प्रशासनिक और मीडिया-माफिया के गठजोड़ पर सटीक साबित हो रही हैं. जहाँ तथा-कथित दलाल पत्रकारों की घुसपैठ पुलिस चौकी से लेकर तहसील, जिला से लेकर देश-प्रदेश के मुख्यालयों तक फैल चुकी है. पत्रकारिता में गन्दगी कितना असर दिखा रही इसका असर हर तरफ देखा जा सकता है जहाँ कथित दलाल पत्रकारों का जमघट पुलिस चौकी, थाने, ब्लॉक, तहसील, जिला, राज्य, दिल्ली मुख्यालय तक नजर आता है. ये दलाल पत्रकार दरोगा से लेकर अफसरों-मत्रियों के साथ फोटो खि्ांचाकर उनसे नजदीकी सम्बंध दर्शाकर कार्य कराने का ठेका लेकर पचास-सौ रूपय से लेकर हजारों, लाखों, करोड़ों की दलाली करते हैं. जानकार सूत्र बताते हैं कि दलाल पत्रकार केवल अफसर-मंत्रियों से सम्बंध तो बनाने में लगे ही रहते हैं, बल्कि ये काम ना करने वाले अफसरों को भी ब्लैक मेल करने में गुरेज नहीं करते हैं. बता दें कि दलाल पत्रकारों का गठजोड़ मीडिया मैनेज करने का भी ठेका लेते हैं, जिन्हें पर्दे के पीछे लेन-देनकर किसी को हीरो तो किसी को जीरो बनाने का खेल बड़े पैमाने पर खेल खेलते हैं.

समाज के अन्दर हुए गुनाहगारों को सामने लाने वाली मीडिया में तमाम गुनाहगार नामी-गिरामी टीवी चैनलों, समाचार पत्रों से लेकर न्यूज पोर्टलों के पत्रकार बनकर कलम और कैमरे को हथियार के रूप में प्रयोग कर कहीं जनता को ठगने में लगे हैं तो कहीं दलाली-ब्लैकमेलिंग, काले कारनामों को अंजाम दे रहे हैं. जिससे पत्रकारिता और पत्रकारों की छवि ध्वस्त होने के कगार पर पहुँच गई है.

इस बात में कोई शक नहीं है कि देश के चौथे स्तम्भ के रूप में पहचान बन चुकी एवं समाज का आईना कहे जाने वाली मीडिया अब बदनामी के दल-दल में फंसती जा रही है. नामी गिरामी चैनल हो, समाचार पत्र, न्यूज पोर्टल हो या फिर यूट्यूब चैनल इनसे कथित पत्रकारां की पूरे देश में बाढ़ आ गई है. गाँव के गली-मोहल्ले से कस्बो-शहरों में पत्रकार और प्रेस लिखे वाहनों की भीड़ नजर आ रही है. थाने-पुलिस चौकियों से लेकर सरकारी कार्यालयों, पत्रकार वार्ताओं में कैमरों-चैनल आईडी के साथ भीड़ नजर आती है. वहीं कथित पत्रकार गरीबों के बांटने वाले राशन विक्रेताओं के इर्द-गिर्द चील-कौवों की तरह मंडराते कभी भी कहीं भी देखे जा सकते हैं. कभी-कभी तो ऐसा भी सुनने को मिलता है कि गांजा, अफीम, शराब जैसे काले कारोबार में तमाम कथित पत्रकारों की संलिप्तता भी सामने आ रही हैं. बल्कि उनसे वसूली के कारनामे भी आये दिन सामने आते रहते हैं.



यह कितनी चौंकाने वाली बात है कि कथित पत्रकारों के बीच माफियाओं, अफसरों, मंत्रियों, नेताओं, पुलिस अधिकारियों के साथ फोटो खिंचवाकर ब्लैक मेलिंग-दलाली के कार्यों को अंजाम दे रहे हैं. जिसमें वह अधिकारियों से कार्य कराने के बदले जनता से रकम वसूलते हैं और अपने सम्बंधों के कारण या तो कार्य कराने में सफल हो जाते हैं या फिर दी गई रकम को हड़पने के बाद रकम देने वालों को आँख दिखा देते हैं. हालत यह है कि जो अधिकारी इनके कार्य नहीं करता है उसे किसी ना किसी मामले में फंसाकर सबक सिखाने में पीछे नहीं हटते हैं. यही कारण है कि अफसर-नेता-पत्रकार-पुलिस के गठजोड़ पर ‘‘राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट’’ की पंक्तियाँ सटीक चरितार्थ हो रही है.

कभी खबरों की खोज में जुटे रहने वाले पत्रकार अब पत्रकारिता के नाम पर कैमरा-कलम को हथियार बनाकर मीडिया गैंग के रूप में जगह-जगह शिकार की तलाश में जुटे रहते हैं. जो कभी पकड़ में आने पर समूह के रूप में अपने साथी को छुड़ाने के लिये पुलिस-प्रशासन पर दबाब बनाने की कोशिश करते हैं. मीडिया गैंग का यह कारनामा अब किसी से छिपा नहीं है. हालांकि ऐसे मामले ज्यादातर पहले ग्रामीणों में देखा जाता था, लेकिन अब चारों तरफ फैल गया है. अब तो पुलिस और पत्रकारों का गठजोड़ जनता को ही लूटने लगा है. सुबह से लेकर शाम तक थाने-चौकियों पर दलाल पत्रकारों का जमघट लगा रहता है. एक नमूना यह भी देखें कि पुलवामा आतंकी हमले के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच जितना बम, गोला, बारूद के विस्फोट का आवाज नहीं हुआ उससे कहीं कई गुना ज्यादा मीडिया के विस्फोट का आवाज हुआ था. यही कारण है कि आज के दौर में भारतीय पत्रकारिता को ‘‘मीडिया-ए-लश्कर, दलाल-ए-मीडिया, गोदी-ए-मीडिया’’ आदि नामों से पुकारा जाने लगा है.

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