सामाजिक क्रांति के महान योद्धा-छत्रपति शाहूजी महाराज
‘‘वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते’’-राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज
राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज का जन्म 26 जुलाई, 1874 ई. को हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह राव आबासाहब घाटगे था. छत्रपति छत्रपति शाहूजी महाराज का बचपन का नाम ‘यशवंतराव’ था. छत्रपति शिवाजी महाराज (प्रथम) के दूसरे पुत्र के वंशज शिवाजी चतुर्थ कोल्हापुर में राज्य करते थे. ब्रिटिश षडयंत्र और अपने ब्राह्मण दीवान की गद्दारी की वजह से जब शिवाजी चतुर्थ का कत्ल हुआ तो उनकी विधवा आनंदीबाई ने अपने जागीरदार जयसिंह राव आबासाहेब घाटगे के पुत्र यशवंतराव को मार्च, 1884 ई. में गोद ले लिया. बाल्य-अवस्था में ही यशवंतराव को साहू महाराज की हैसियत से कोल्हापुर रियासत की राजगद्दी को सम्भालना पड़ा. यद्यपि राज्य का नियंत्रण उनके हाथ में काफी समय बाद अर्थात् 2 अप्रैल, सन 1894 में आया था.
छत्रपति शाहूजी महाराज का विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार खानवीकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुआ था. शाहूजी महाराज की शिक्षा राजकोट के ‘राजकुमार महाविद्यालय’ और धारवाड़ में हुई थी. वे 1894 ई. में कोल्हापुर रियासत के राजा बने. उन्होंने देखा कि जातिवाद के कारण समाज का एक वर्ग पिस रहा है तो उन्होंने अछूतों के उद्धार के लिए योजना बनाई और उस पर अमल आरंभ किया. छत्रपति शाहूजी महाराज ने अछूत और पिछड़ी जाति के लोगों के लिए विद्यालय खोले और छात्रावास बनवाए. इससे उनमें शिक्षा का प्रचार हुआ और सामाजिक स्थिति बदलने लगी. परन्तु, उच्च वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया. वे छत्रपति शाहूजी महाराज को अपना शत्रु समझने लगे. उनके पुरोहित तक ने यह कह दिया कि आप शूद्र हैं और शूद्र को वेद के मंत्र सुनने का अधिकार नहीं है. छत्रपति शाहूजी महाराज ने इस सारे विरोध का डट कर सामना किया.
छत्रपति शाहूजी महाराज हर दिन बड़े सबेरे ही पास की नदी में स्नान करने जाया करते थे. परम्परा से चली आ रही प्रथा के अनुसार, इस दौरान ब्राह्मण पंडित मंत्रोच्चार किया करता था. एक दिन बंबई से पधारे प्रसिद्ध समाज सुधारक राजाराम शास्त्री भागवत भी उनके साथ हो लिए थे. महाराजा कोल्हापुर के स्नान के दौरान ब्राह्मण पंडित द्वारा मंत्रोच्चार किये गए श्लोक को सुनकर राजाराम शास्त्री अचम्भित रह गए. पूछे जाने पर ब्राह्मण पंडित ने कहा कि, चूँकि महाराजा शूद्र हैं, इसलिए वे वैदिक मंत्रोच्चार न कर पौराणिक मंत्रोच्चार करते हैं. ब्राह्मण पंडित की बातें शाहूजी महाराज को अपमानजनक लगीं. उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर लिया. महाराज शाहूजी के सिपहसालारों ने एक प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित नारायण भट्ट सेवेकरी को महाराजा का यज्ञोपवीत संस्कार करने को राजी किया. यह सन 1901 की घटना है. जब यह खबर कोल्हापुर के ब्राह्मणों को हुई तो वे बड़े कुपित हुए. उन्होंने नारायण भट्ट पर कई तरह की पाबंदी लगाने की धमकी दी. तब इस मामले पर शाहूजी महाराज ने राजपुरोहित से सलाह ली, किंतु राजपुरोहित ने भी इस दिशा में कुछ करने में अपनी असमर्थता प्रगट कर दी. इस पर छत्रपति शाहूजी महाराज ने गुस्सा होकर राज पुरोहित को बर्खास्त कर दिया.
सन 1902 के मध्य में साहू महाराज इंग्लैण्ड गए हुए थे. उन्होंने वहीं से एक आदेश जारी कर कोल्हापुर के अंतर्गत शासन-प्रशासन के 50 प्रतिशत पद पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित कर दिये. महाराज के इस आदेश से कोल्हापुर के ब्राह्मणों पर जैसे गाज गिर गयी. उल्लेखनीय है कि सन 1894 में जब शाहूजी महाराज ने राज्य की बागडोर सम्भाली थी, उस समय कोल्हापुर के सामान्य प्रशासन में कुल 71 पदों में से 60 पर ब्राह्मण अधिकारी नियुक्त थे. इसी प्रकार लिपिकीय पद के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण थे. शाहूजी महाराज द्वारा पिछड़ी जातियों को अवसर उपलब्ध कराने के कारण सन 1912 में 95 पदों में से ब्राह्मण अधिकारियों की संख्या अब 35 रह गई थी. सन 1903 में शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर स्थित शंकराचार्य मठ की सम्पत्ति जप्त करने का आदेश दिया. दरअसल, मठ को राज्य के खजाने से भारी मदद दी जाती थी. कोल्हापुर के पूर्व महाराजा द्वारा अगस्त, 1863 में प्रसारित एक आदेश के अनुसार, कोल्हापुर स्थित मठ के शंकराचार्य को अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति से पहले महाराजा से अनुमति लेनी आवश्यक थी, परन्तु तत्कालीन शंकराचार्य उक्त आदेश को दरकिनार करते हुए संकेश्वर मठ में रहने चले गए थे, जो कोल्हापुर रियासत के बाहर था.
23 फरवरी, 1903 को शंकराचार्य ने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति की थी. यह नए शंकराचार्य लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के करीबी थे. 10 जुलाई, 1905 को इन्हीं शंकराचार्य ने घोषणा की कि ‘चूँकि कोल्हापुर भोसले वंश की जागीर रही है, जो कि क्षत्रिय घराना था. इसलिए राजगद्दी के उत्तराधिकारी छत्रपति शाहूजी महाराज स्वाभविक रूप से क्षत्रिय हैं.
मंत्री ब्राह्मण हो और राजा भी ब्राह्मण या क्षत्रिय हो तो भी किसी को कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन, राजा की कुर्सी पर वैश्य या फिर शूद्र शख्स बैठा हो तो दिक्कत होती थी. छत्रपति शाहूजी महाराज क्षत्रिय नहीं, शूद्र मानी गयी जातियों में आते थे. कोल्हापुर रियासत के शासन-प्रशासन में पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व निःसंदेह उनकी अभिनव पहल थी. छत्रपति शाहूजी महाराज ने सिर्फ यही नहीं किया, अपितु उन्होंने पिछड़ी जातियों समेत समाज के सभी वर्गों मराठा, महार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, ईसाई, मुस्लिम और जैन सभी के लिए अलग-अलग सरकारी संस्थाएँ खोलने की पहल की. शाहूजी महाराज ने उनके लिए स्कूल और छात्रावास खोलने के आदेश जारी किये. जातियों के आधार पर स्कूल और छात्रावास असहज लग सकते हैं, किंतु निःसंदेह यह अनूठी पहल थी उन जातियों को शिक्षित करने के लिए, जो सदियों से उपेक्षित थीं.
उन्होंने अछूत-पिछड़ी जातियों के बच्चों की शिक्षा के लिए खास प्रयास किये थे. उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई. शाहूजी महाराज के प्रयासों का परिणाम उनके शासन में ही दिखने लग गया था. स्कूल और कॉलेजों में पढ़ने वाले पिछड़ी जातियों के लड़के-लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय प्रगति हुई थी. कोल्हापुर के महाराजा के तौर पर शाहूजी महाराज ने सभी जाति और वर्गों के लिए काम किया.
बता दें कि छत्रपति शाहूजी महाराज के कार्यों से उनके विरोधी भयभीत थे और उन्हें जान से मारने की धमकियाँ दे रहे थे. इस पर उन्होंने कहा था कि ‘‘वे गद्दी छोड़ सकते हैं, मगर सामाजिक प्रतिबद्धता के कार्यों से वे पीछे नहीं हट सकते’’ राजर्षि छत्रपति शाहूजी महाराज ने 15 जनवरी, 1919 के अपने आदेश में कहा था कि ‘‘उनके राज्य के किसी भी कार्यालय और गाँव पंचायतों में भी अछूत-पिछड़ी जातियों के साथ समानता का बर्ताव हो, यह सुनिश्चित किया जाये. उनका स्पष्ट कहना था कि छुआछूत को बर्दास्त नहीं किया जायेगा. उच्च जातियों को अछूत जाति के लोगों के साथ मानवीय व्यवहार करना ही चाहिए. जब तक आदमी को आदमी नहीं समझा जायेगा, समाज का चौतरफा विकास असम्भव है’’
15 अप्रैल, 1920 को नासिक में ‘उदोजी विद्यार्थी’ छात्रावास की नींव का पत्थर रखते हुए छत्रपति शाहूजी महाराज ने कहा था कि ‘‘जातिवाद का अंत जरूरी है, जाति को समर्थन देना अपराध है. हमारे समाज की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा जाति है. जाति आधारित संगठनों के निहित स्वार्थ होते हैं. निश्चित रूप से ऐसे संगठनों को अपनी शक्ति का उपयोग जातियों को मजबूत करने के बजाय इनके खात्मे में करना चाहिए’’
छत्रपति शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर की नगरपालिका के चुनाव में अछूतों के लिए भी सीटें आरक्षित की थी. यह पहला मौका था की राज्य नगरपालिका का अध्यक्ष अस्पृश्य जाति से चुनकर आया था. उन्होंने हमेशा ही सभी जाति वर्गों के लोगों को समानता की नजर से देखा. शाहूजी महाराज ने जब देखा कि अछूत-पिछड़ी जाति के छात्रों की राज्य के स्कूल-कॉलेजों में पर्याप्त संख्या हैं, तब उन्होंने एक आदेश से इनके लिए खुलवाये गए पृथक स्कूल और छात्रावासों को बंद करा करवा दिया और उन्हें सामान्य व उच्च जाति के छात्रों के साथ ही पढ़ने की सुविधा प्रदान की.
छत्रपति शाहूजी महाराज ही थे, जिन्होंने ‘भारतीय संविधान’ के निर्माण में महत्त्वपूर्व भूमिका निभाने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की थी. महाराजाधिराज को बालक भीमराव की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद बालक भीमराव का पता लगाकर मुम्बई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए, ताकि उन्हें किसी सहायता की आवश्यकता हो तो दी जा सके. शाहूजी महाराज ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के ‘मूकनायक’ समाचार पत्र के प्रकाशन में भी सहायता की. महाराजा के राज्य में कोल्हापुर के अन्दर ही अछूत-पिछड़ी जातियों के दर्जनों समाचार पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित होती थीं. सदियों से जिन लोगों को अपनी बात कहने का हक नहीं था, महाराजा के शासन-प्रशासन ने उन्हें बोलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी थी. मूलनिवासी बहुजनों पर दुःखों का पहाड़ उस समय टूट पड़ा जब 10 मई, 1922 को राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज नामक चमचमाता सूरज हमेशा-हमेशा के लिए डूब गया.
राजकुमार (दैनिक मूलनिवासी नायक)
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