राजकुमार (संपादक, दैनिक मूलनिवासी नायक)
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ‘‘नाजायज लोग न केवल देश की सत्ता पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि नाजायज फैसले भी ले रहे हैं’’ इसका जिम्मेदार केवल ईवीएम और चुनाव आयोग है. इसका मतलब साफ है कि ईवीएम के साथ-साथ चुनाव आयोग भी हैक हो गया है. यह फर्जी सरकार और फर्जी चुनाव आयोग होने का सबसे बड़ा सबूत है. इसमें भारत की मीडिया भी पूरी तरह से शामिल है.
गौरतलब है कि चुनाव आयोग के सामने जनता के जबरन वोट छीने जा रहे हैं, चोरी किए जा रहे हैं इसके बाद भी आयोग चिड़ीचुप है. आयोग की चुप्पी साबित करता है कि ईवीएम घोटाले में आयोग पूरी तरह से शामिल है. आयोग का रवैया बता रहा है एनडीए सरकार, चुनाव आयोग को 10 साल के लिए रिर्जव कर लिया है.
बता दें कि संविधान ने चुनाव आयोग को मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने के लिए स्वतंत्र रूप से जिम्मेदारी दी है. लेकिन, चुनाव आयोग मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराने का काम रत्तीभर भी नहीं कर रहा है. बल्कि, चुनाव आयोग चुनाव परिणाम जल्दी लाने के लिए काम कर रहा है. दूसरी बात यह है कि ईवीएम के बजाए बैलेट पेपर और वीवीपीएटी से निकलने वाली कागजी मतपत्रों की गिनती पर आयोग ने कहा था कि इससे चुनाव परिणाम में देरी होगी. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा ईवीएम और वीवीपीएटी के पाँच विधानसभा में मिलान पर भी कहा था कि इससे भी चुनाव परिणाम में देरी होगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सवाल यह नहीं है, सवाल यह है कि मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना जरूरी है या रिजल्ट जल्दी लाना जरूरी है?
इसके अलावा हर बार चुनाव आयोग पर ईवीएम में घोटाला करने और सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगते आ रहे हैं. लेकिन, चुनाव आयोग बार-बार एक ही बात दोहारा रहा है कि ईवीएम हैक प्रूफ है. क्या ऐसा नहीं लगता है कि चुनाव आयोग बिक चुका है? बात एकदम साफ है कि चुनाव आयोग न केवल बिक चुका है, बल्कि मीडिया की तरह आयोग भी दलाली कर रहा है.
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